शेष नारायण सिंह
आर एस एस ने अब शायद बी जे पी को हाशिये पर लाने का मन बना लिया है .अपनी आबरू बचाने के लिए १० नवम्बर को आर एस एस के नेता खुद सडकों पर उतरेगें और धरना प्रदर्शन करेगें . उनकी शिकायत है कि यू पी ए सरकार संघी आतंकवाद के ब्रैंड को प्रचारित करने में लगभग कामयाब हो गयी है और बी जे पी वाले कोई भी राजनीतिक पहल नहीं कर रहे हैं. नाराज़ संघी नेतृत्व अब खुद ही मैदान ले रहा है . 1980 से ही आर एस एस की राजनीतिक लडाइयां संचालित करने का ज़िम्मा बी जे पी के पास था . लेकिन जब १९८४ में पार्टी लगभग शून्य पर पंहुच गयी तो राजनीतिक काम के लिए विश्व हिन्दू परिषद् को आगे किया गया . लेकिन आर एस एस का दुर्भाग्य है कि वहां भी निराशा ही हाथ लगी. विश्व हिन्दू परिषद् के नेता बी जे पी वालों से भी ज्यादा गैर ज़िम्मेदार निकले . उन्होंने चौतरफा लूटमार शुरू कर दी .नतीजा यह हुआ कि आर एस एस ने एक बार फिर बी जे पी को आजमाने की कोशिश की लेकिन नागपुर वालों को बी जे पी राजनीतिक क्षमता पर अब भरोसा नहीं है . एक एक करके आर एस एस के आतंकवादी सेल के नेताओं को पकड़ा जा रहा है और बी जे पी की तरफ कोई राजनीतिक एक्शन नज़र नहीं आ रहा है .बी जे पी के रुख से परेशान आर एस एस ने अब कमान खुद ही अपने हाथ में ले ली है . आर एस एस के प्रवक्ता, राम माधव ने शनिवार को संवाद दाताओं को बताया कि १० नवम्बर को देश के हर जिले में आर एस एस के कार्यकर्ता इकट्ठा होंगें और केंद्र सरकार की तरफ से आर एस एस की पोल खोलने की कोशिश के खिलाफ धरना देगें . आर एस एस की तरफ से दावा किया जा रहा है कि उस दिन पूरे देश में आम आदमी की ज़िंदगी दुश्वार कर दी जायेगी लेकिन जानकार बाते हैं कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. जिन राज्यों में आर एस एस के कंट्रोल वाली सरकारें हैं ,वहां तो ज़रूर कुछ बसें आदि तोडी जायेगीं , कुछ राजनीतिक विरोधियों को मारा पीटा जाएगा लेकिन मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात के बाहर कोई ख़ास तोड़ फोड़ नहीं होगी. आर एस एस के आवाहन पर आयोजित १० नवम्बर के धरने की सफलता या असफलता का कोई मतलब नहीं है लेकिन राजनीतिक लडाइयां खुद न लड़ कर अपने अधीन सगठनों को आगे करने वाले संगठन के लिए राजनीति की पिच पर उतरना इस बात का संकेत है कि संघी राजनीति में काफी उथलपुथल है . २००४ में केंद्र सरकार से हटाये जाने के बीद बी जे पी में राजनीतिक समायोजन की बात चल रही है . राजनाथ सिंह के कार्यकाल में तो आडवाणी गुट भारी पड़ गया था और आडवाणी के लोगों ने राजनाथ सिंह के लिए क़दम क़दम पर मुश्किलें पैदा कीं लेकिन उनके बाद जब नितिन गडकरी को अध्यक्ष बना दिया गया तो दिल्ली के वे नेता जो गडकरी को एक मामूली कार्यकर्ता समझते थे, परेशान हो गए. आर एस एस और उसके मातहत सभी संगठनों में आतंरिक लोकतंत्र बिलकुल नहीं है . इसीलिये बी जे पी जैसे राजनीतिक रूप से मान्यता प्राप्त संगठन का अध्यक्ष भी नागपुर से तय होता है . वहां किसी को भी नेता मान लेने का फैशन नहीं है . ज़ाहिर है गडकरी को दिल्ली वालों ने वह क़द नहीं हासिल करने दिया जो एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष का होना चाहिये .गडकरी ने जिस तरह से अर्जुन मुंडा को झारखण्ड का मुख्य मंत्री बनाया उसकी फजीहत दिल्ली के नेताओं ने मीडिया के अपने बन्दों के ज़रिये करवाई. केंद्र सरकार में अपने कांग्रेसी मित्रों की मदद से आडवाणी गुट के नेताओं ने गडकरी के ख़ास साथी सुधांशु मित्तल को कामनवेल्थ खेलों की जांच में सुरेश कलमाड़ी से ज्यादा भ्रष्ट साबित करवाने की कोशिश की और काफी हद तक सफल रहे. मुंबई के आदर्श हाउसिंग घोटाले में भी आर एस एस के भरोसेमंद व्यापारी, नागपुर के संचेती को फंसाने की सफलता पूर्वक कोशिश की गयी . नतीजा यह हुआ कि संघी आतंकवाद से लेकर आर्थिक भ्रष्टाचार के मामलों में आर एस एस के करीबी लोगों को फंसा दिया गया . सारा आपरेशन आडवाणी गुट के दिल्ली वाले नेताओं ने कांग्रेस में मौजूद अपने साथियों की मदद से किया इसलिए तकनीकी रूप से उनको ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता . ऐसी हालत में खिसियाहट होती है . आर एस एस आजकल बी जे पी के दिल्ली वाले नेताओं से खिसियाया हुआ है और अब उनको दरकिनार करके वह अपनी लड़ाई खुद ही लड़ने की तैयारी कर चुका है . अजीब बात यह है कि दिल्ली वाले इन ताक़तवर लोगों के बीच भी एकता नहीं है . अब यह तय है कि २०१४ में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में लाल कृष्ण आडवाणी को नहीं पेश किया जाएगा . शायद इसी वजह से आडवानी गुट की दूसरी कतार के नेता भी अपना वर्चस्व कायम करने में भिड़ गए हैं .कुल मिलाकर माहौल ऐसा है कि बी जे पी में हर कोने में मारकाट मची हुई है . कहीं बेल्लारी ब्रदर्स को घेरा जा रहा है तो कहीं सुधांशु मित्तल लतियाये जा रहे हैं . नतीजा साफ़ है कि आर एस एस की राजनीतिक शाखा ,बी जे पी से नागपुर का भरोसा उठ गया है . और हिन्दू राष्ट्र कायम करने की आर एस एस की कोशिश में किसी नयी राजनीतिक सत्ता की आमद की संभावना की हवा बह रही है.
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