शेष नारायण सिंह
संचारमंत्री ए राजा ने आखिर इस्तीफा दे ही दिया .सी ए जी की रिपोर्ट से पता चला था कि राजा ने देश के सरकारी खजाने को खूब तबियत से लूटा है .करीब पौने दो लाख करोड़ रूपये की हेराफेरी का मामला सामने आया था. हालांकि इसमें से एक मामूली हिस्सा ही बतौर रिश्वत मिला होगा लेकिन जनता का पैसा तो इस भ्रष्ट आदमी ने डुबा ही दिया . लेकिन गठबंधन की राजनीति और उस से जुड़े हुए ब्लैकमेल की ताक़त की वजह से पिछले कई दिनों से राजा और चेन्नई में बैठे उनके पालनहार अड़े हुए थे कि राजा को मंत्रिपद से हटाया नहीं जाएगा . सरकार को समर्थन देने की कीमत वसूल रहे चेन्नई के छत्रप ने अपनी ताक़त का एहसास क़दम क़दम पर करवाया .उनके रुख से समझ में आ गया कि जी २ स्पेक्ट्रम मामले में जो लूट हुई है ,उसमें ए राजा केवल शिखंडी की भूमिका में थे . असली खेल तो चेन्नई वाले उस्ताद ने लगा रखा था. इस इस्तीफे का कोई मतलब नहीं है क्योंकि इसके बाद डी एम के की राजनीतिक ताक़त और उसकी घूस बटोर सकने की क्षमता में कोई कमी नहीं आयेगी और राजा को हटाकर जो दूसरा बंदा मंत्री बनाया जाएगा वह भी राजा की तरह से दिल्ली से चौथ वसूली करके चेन्नई भेजेगा . लेकिन राजा के इस्तीफे से संसद में विपक्ष का हमला झेल रही मनमोहन सिंह सरकार को थोडा सांस लेने का मौक़ा मिल जाएगा. यही देश का दुर्भाग्य है कि भ्रष्टाचार के मामले में लगभग पूरी तरह से डूबे हुए मंत्री को भी हटाने के लिए न तो कांग्रेस और न ही केंद्र सरकार तैयार हैं . हाँ संसद में होने वाली फजीहत से बचने के लिए उन्होंने मंत्री पद से राजा को हटा दिया . इस सन्दर्भ में जवाहरलाल नेहरू को याद किया जाना स्वाभाविक है जिन्होंने केशव देव मालवीय जैसे मंत्री को दस हज़ार रूपये के रिश्वत के मामले में मंत्री पद से हटा दिया था . और एक आज का भारत है जहां सत्तर हज़ार करोड़ के घोटाले वाले मौज कर रहे हैं . सबसे तकलीफ की बात यह है कि आज की राजनीतिक बिरादरी में घूस को अपराध मानने का रिवाज़ की ख़त्म हो गया है . संचार मामले के घोटालों में सबसे प्रमुख नाम अब तक सुखराम का हुआ करता था . पी वी नरसिम्हा राव सरकार के संचार मंत्री के रूप में सुखराम ने भ्रष्टाचार की जो मंजिलें तय की थीं , उस से उस वक़्त की मुख्य विपक्षी पार्टी , बी जे पी को बहुत तकलीफ हुई थी और उसने संसद की कार्यवाही करीब सात हफ्ते तक नहीं चलने दिया था. विपक्ष में बी जे पी की इस भूमिका को देख कर लगा था कि बी जे पी वाले ईमानदार लोग हैं और आगे चल कर जब कभी सरकार में आयेगें तो सार्वजनिक जीवन से भ्रष्टाचार को हमेशा के लिए ख़त्म कर देगें. लेकिन इस सोच को तब भारी झटका लगा जब उन्हीं सुखराम को बी जे पी ने अपनी पार्टी में भर्ती कर लिया और एक नेता के रूप में सम्मान दिया . सुखराम के बी जे पी में भर्ती होने के बाद ही लग गया था भ्रष्टाचार के मामले में बी जे पी वाले भी कांग्रेस से कमज़ोर नहीं पड़ेगें. जब बी जे पी की अगुवायी में सरकार बनी तो इसका सबूत भी मिल गया . सरकारी कंपनी विदेश संचार निगम को बी जे पी के मंत्रियों ने कौड़ियों के मोल बेच दिया , सरकारी खजाने पर बोझ बनी एयर इंडिया के होटलों, सेंटोर को असली कीमत से नब्बे फीसदी कम दाम पर बेच दिया . और भी ऐसे बहुत सारे काम किये जिस में झूम कर भ्रष्टाचार किया गया . और हमेशा के लिए यह साबित हो गया कि जहां तक भ्रष्टाचार की बात है बी जे पी और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है . यह बार कामनवेल्थ खेलों में हुए घोटाले की जांच से और भी साफ़ हो जाती है . करीब सत्तर हज़ार करोड़ के सरकारी धन के खर्च में हेराफेरी का पता चला तो सबसे पहले जो आर्थिक अपराधी पकड़ में आया वह बी जे पी का ही बड़ा नेता निकला . बताते हैं कि बी जे पी में भी वह पार्टी के अध्यक्ष के गुट का खास आदमी है . ऐसी हालत में जब दोनों ही बड़ी राजनीतिक पार्टियां घूस की संस्कृति में आकंठ डूबी हुई हैं तो राजनीतिक सिस्टम से किसी सुधार की उम्मीद करना ज्यादती होगी. बी जे पी के भ्रष्टाचार की बातें इस लिए भी चिंता में डालती हैं कि जिस सरकारी नीति का पालन करके ए राजा ने लूट मचाई थी उसको अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान ही बनाया गया था .यानी अगर दुबारा बी जे पी की सरकार में आती तो जो काम ए राजा ने किया वह एन डी ए के किसी घटक दल के मंत्री ने किया होता . ठीक उसी तरह जैसे इन लोगों ने विदेश संचार निगम को बेचा था या और भी बहुत सारे घपले किये थे . ऐसी हालत में शासक वर्गों की पार्टियों से घूस के खिलाफ आचरण की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए . इनकी देशभक्ति की भावना भी आर्थिक लाभ के लिए होती है . घूसखोरी पर लगाम तभी लगेगा जब इस देश की जनता जागरूक होगी और नेताओं से सीधे जवाब मांगेगी
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