शेष नारायण सिंह
झारखण्ड विधानसभा चुनाव ने बहुत सारे मुगालते दूर कर दिए.चुनाव के पहले नक्सलवादी राजनीति की ताक़त का जो अनुमान लगाया जा रहा था, वह गलत निकला . कुछ इलाकों के अलावा राज्य में नक्सलों का प्रभाव सीमित है.. और दूसरी बात यह कि नक्सलवादियों की किसी धमकी या बहिष्कार की फ़रियाद को जनता बकवास समझती है ... एक मुगालता यह था कि बी जे पी में नए अध्यक्ष की तैनाती के बाद शायद मूल्य आधारित राजनीति का युग शुरू होगा क्योंकि जितने प्रचार के बाद आर एस एस ने नितिन गडकरी को अध्यक्ष बनाया था, लगता था कि कुछ दिन के लिए ही सही, पार्टी भ्रष्टाचार आदि की राजनीति से दूर हो जायेगी लेकिन वह भी नहीं हुआ. गद्दी संभालते ही नितिन गडकरी ने उस आदमी को झारखण्ड का मुख्यमंत्री बना दिया जिसके भ्रष्टाचार के बारे में बी जे पी का हर नेता भाषण देता रहता था . यानी यह तय हो गया है कि नितिन गडकरी ने भी बी जे पी के उन्ही भ्रष्ट अध्यक्षों के पदचिन्हों पर चलने का फैसला कर लिया है जिसके शिखर पुरुष पूर्व बी जे पी अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण माने जाते हैं.... एक मुगालता और टूटा है . अब तक आमतौर पर माना जाता था कि सत्ता के लिये कांग्रेस कुछ भी कर सकती है लेकिन झारखण्ड में शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री न बनाकर और बी जे पी को सरकार में शामिल होने का मौक़ा देकर कांग्रेस ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी दूरगामी लक्ष्य को हासिल करने के लिए छोटे छोटे स्वार्थों से उबरने की राजनीति को अपनी रणनीति का हिस्सा बना चुकी है ..राहुल गाँधी को आम तौर पर कांग्रेस की नयी नीतियों के मुख्य पैरोकार के रूप में देखा जाता है . अगर झारखण्ड में हुए ताज़ा कांग्रेसी फैसले में भी उनकी ही राजनीतिक सूझबूझ काम आई है तो इसमें दो राय नहीं कि कांग्रेस में फिर से एक मज़बूत राजनीतिक शक्ति बनने की योजना बन चुकी है और उस पर गंभीरता से काम हो रहा है.. और इस योजना की अगुवाई राहुल गाँधी ही कर रहे हैं...
झारखण्ड में अब बी जे पी के सहयोग से झारखण्ड मुक्ति मोर्चा की सरकार बनना तय है .बी जे पी के नए अध्यक्ष ने घोषणा कर दी है कि वास्तव में वह बी जे पी की सरकार होगी क्योंकि उसे वे बी जे पी की नौवीं राज्य सरकार बता रहे हैं. यानी जो शिबू सोरेन कल तह संघी बिरादरी के लिए भ्रष्टाचार और अपराध का पर्याय था वह आज नितिन गडकरी का अपना बंदा बन चुका है .. जहां उन्होंने शिबू सोरेन को अपना मुख मंत्री बताया उसी भाषण में उन्होंने दावा किया कि वे जल्दी ही लाल किले पर बी जे पी का झंडा फहराने की फ़िराक में हैं ..यहाँ उनकी राजनीतिक नासमझी को रेखांकित करना उद्देश्य नहीं है लेकिन उन्हें शायद यह नहीं मालूम कि लाल किले पर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाता है किसी पार्टी का नहीं. झारखण्ड में जिन चुनावों के बाद बी जे पी के सहयोग से गठबंधन सरकार बनने जा रही है उसके लिए जो चुनाव प्रचार हुए वे बहुत ही दिलचस्प थे..पूरे चुनाव में बी जे पी वालों ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि शिबू सोरेन जैसे भ्रष्ट आदमी का साथी होने की वजह से कांग्रेस बहुत ही भ्रष्ट राजनीतिक पार्टी है. और जनता को चाहिय कि उसे बिलकुल वोट न दें . शिबू सोरेन के खिलाफ भी बी जे पी ने बहुत ही ज़हरीला प्रचार अभियान चलाया था और उन्हें अपराध और भ्रष्टाचार का देवता बना कर पेश किया था. चुनाव के दौरान टी वी चैनलों पर चले बहस मुबाहसों में बी जे पी वाले शिबू सोरेन की धज्जियां उड़ाते नज़र आते थे ..लगता था कि अगर कहीं शिबू सोरेन या उनके सहयोगी रहे कांग्रेसी जीत गए तो सर्वनाश हो जाएगा लेकिन सरकार में शामिल होने की जो उतावली बी जे पी ने दिखाई उस से साफ़ साबित हो गया कि बी जे पी वाले भी भ्रष्टाचार से कोई परहेज़ नहीं करते..
बी जे पी ने शिबू सोरेन को हमेशा ही भ्रष्टाचार का पर्याय माना है . जिन लोगों को याद होगा वे बी जे पी का वह अभियान कभी नहीं भूल पायेंगें कि किस तरह से बी जे पी ने संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी थी जब शिबू सोरेन केंद्र में मंत्री थे और उनके भ्रष्टाचार बी जे पी को राजनीतिक प्वाइंट स्कोर करने का एक बड़ा हथियार दिखता था . शिबू सोरेन पर अपने सहायक शशि नाथ झा की हत्या का आरोप भी लग चुका है . जिसके चक्कर में वेह जेल की हवा खा चुके हैं .. बी जे पी को अब तक यह सबसे बड़ा अधर्म का काम लगता था. लेकिन अब दिल्ली में उनके एक प्रवक्ता ने बता दिया कि शिबू सोरेन को दुमका की एक अदालत ने बरी कर दिया है और अब वे पवित्र हो गए हैं... शिबू सोरेन के साथ बंधू तिर्की भी हैं और भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो भ्रष्टाचार की पाठ्यपुस्तकों में उदाहरण के रूप में दर्ज हैं..जब पी वी नरसिंह राव की सरकार को लोकसभा में अविश्ववास मत से बचाने के लिए शिबू सोरेन से रिश्वत ली थी,तो उनके खिलाफ सबसे बड़े राजनीतिक मोर्चे की कमान भी बी जे पी वालों के हाथ में थी.
इतनी सारी राजनीतिक दुविधाओं के चलते यह बात समझ में नहीं आती कि बी जे पी वाले शिबू सोरेन के साथ सरकार कैसे चलायेंगें . शिबू सोरेन के साथ कई ऐसे विधायक हैं जो बी जे पी के साथ नहीं जाना चाहते . क्योंकि कंधमाल और अन्य जगहों पर ईसाईयों और मुसलमानों के साथ बी जे पी वालों ने जो सुलूक किया है उसके चलते किसी भी अल्पसंख्यक के लिए बी जे पी के साथ रहना असंभव माना जाता है अगर उसकी आदतें शाहनवाज़ हुसैन या मुख्तार अब्बास नकवी जैसी न हों... इस लिए बी जे पी के साथ जाने के बाद शिबू सोरेन के कुछ अपने साथी भी उनका साथ छोड़ सकते हैं .शायद कांग्रेस इसी अवसर का इंतज़ार करेगी . जो भी हो जल्दबाजी करके बी जे पी ने राजनीतिक अदूरदर्शिता का परिचय दिया है जबकि कांग्रेस ने शिबू सोरेन को मुख्य मंत्री पद से दूर रख कर राजनीतिक कुशलता का उदाहरण दिया है .
यदि इसका उलटा हो जाता और कांग्रेस के साथ शिबू का सौदा" हो जाता तब आप कहते कि भाजपा को गठबंधन करना नहीं आता, किसी न किसी को सरकार बनाना तो मजबूरी थी लेकिन भाजपा को नहीं पता कि यह कैसे किया जाता है… और फ़िर धर्मनिरपेक्ष सरकार, सेकुलरिज़्म की जीत, साम्प्रदायिक ताकतों की हार जैसे सदाबहार जुमले भी उछालने में सहूलियत होती… समझ नहीं आता कि त्याग की सारी अपेक्षाएं भाजपा-संघ से ही क्यों लगाई जाती हैं? क्या लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को गरियाने वाले आज उसके साथ नहीं हैं? क्या मुलायम को पानी पीकर कोसने वाली कांग्रेस खुद सरकार बचाने के लिये भीख मांगने नहीं गई थी? झारखण्ड में जो भी पिछले दस साल से चल रहा है, वह इसलिये कि वहाँ की जनता ही ऐसा जनादेश दे रही है… और खदानें और अयस्क तो हैं ही लूटने के लिये इस देश में… YSR का उदाहरण हमारे सामने है, जो पक्के कांग्रेसी और एवेंजेलिस्ट रहे…
ReplyDeleteआपको किसने बता दिया कि कांग्रेसी धर्मात्मा होते हैं ? बी जे पी और कांग्रेस दोनों एक ही तरह की राजनीति करते हैं . उनमें कोई फर्क नहीं है . कांग्रेस वाले धर्म निरपेक्षता के रास्ते सत्ता हथियाना चाहते हैं और बी जे पी वाले हिन्दू पुनरुत्थान का नारा दे कर . दोनों ही पूंजीपतियों के हित में काम करते हैं
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