Friday, December 25, 2009

मीडिया ही बनेगा राजनीतिक अपराध के खिलाफ युद्ध का हरावल दस्ता

शेष नारायण सिंह


आजकल अपराध और दबदबे का अजीब मेल देखा जा रहा है. सत्तर के दशक में अपराधियों को नेता बनाने का जो पौधा,स्व. इंदिरा गांधी के छोटे बेटे, स्व.संजय गाँधी ने रोपा था ,वह अब फल देने लगा है .. अपराधी नेताओं और उनकी दूसरी पीढी समाज को धकिया कर रसातल तक ले जाने की अपनी मुहिम पर पूरे ध्यान से लगी हुई है.. इस हफ्ते के अखबारों में दो ख़बरें ऐसी हैं जो सामाजिक पतन की इबारत की तरह खौफनाक हैं और दोनों ही सामाजिक जीवन में घुस चुके अपराध के समाजशास्त्र की कहानी को बहुत ही सफाई से बयान करती हैं ..पहली तो हरियाणा की खबर , जहां उन्नीस साल पहले बुढापे की दहलीज़ पर क़दम रख चुके एक अधेड़ पुलिस अफसर ने एक १४ साल की बच्ची के साथ ज़बरदस्ती की और जब लडकी ने आत्महत्या कर ली तो उसके परिवार वालों को परेशान करता रहा . १९ साल के अंतराल के बाद जब अदालत का फैसला आया तो उस अफसर को ६ महीने की सज़ा हुई. अब पता लग रहा है कि उस अफसर को अपनी हुकूमत के दौरान राजनेता ओम प्रकाश चौटाला मदद करते रहे, उसे तरक्की देते रहे और केस को कमज़ोर करके अदालत में पेश करवाया. . जानकार बताते हैं कि केस को इतना कमज़ोर कर दिया गया है कि हाई कोर्ट से वह अपराधी अफसर बरी हो जाएगा. राजनेता की मदद के बिना कानून का रखवाला यह अफसर अपराध करने के बाद बच नहीं सकता था.दूसरा मामला . उत्तर प्रदेश के एक छुटभैया विधायक के बेटे का है . यह बददिमाग लड़का दिल्ली के किसी शराबखाने में घुस कर गोलियां चला कर भाग खड़ा हुआ . उसी शराबखाने में बीती रात उसकी बहन गयी थी और अपना पर्स भूल कर चली आई थी.उसी पर्स को वापस लेने गयी अपनी बहन के साथ गया लड़का गोली चला कर रौब मारना चाहता था. उत्तर प्रदेश की सरकारी पार्टी के विधायक का यह लड़का दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़ गया और आजकल पुलिस की हिरासत में है .यह दो मामले तो ताज़े हैं . ऐसे बहुत सारे मामले पिछले कुछ वर्षों में देखने में आये हैं .जेसिका लाल और नीतीश कटारा हत्याकांड तो बहुत ही हाई प्रोफाइल मामले हैं जिसमें नेताओं के बच्चे अपराध में शामिल पाए गए हैं. ऐसे ही और भी बहुत सारे मामले हैं जिनमें नेताओं के साथ साथ अफसरों के बच्चे भी आपराधिक घटनाओं में शामिल पाए गए हैं ... अफ़सोस की बात यह है कि जब यह बच्चे अपराध करते हैं तो उनके ताक़तवर नेता और अफसर बाप उन्हें बचाने के लिए सारी ताक़त लगा देते हैं.और यही सारी मुसीबत की जड़ है ..
समाज को इन अपराधी नेताओं और अफसरों ने ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से वापसी की डगर बहुत ही मुश्किल है. यह मामला केवल उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा और पंजाब तक ही नहीं सीमित है . इस तरह की प्रवृत्ति पूरे देश में फ़ैल चुकी है . अगर इस प्रवृत्ति पर फ़ौरन काबू न कर लिया गया तो बहुत देर हो जायेगी और देश उसी रास्ते पर चल निकलेगा जिस पर पाकिस्तान चल रहा है या अफ्रीका के बहुत सारे देश उसी रास्ते पर चल कर अपनी तबाही मुकम्मल कर चुके हैं . लेकिन अपराधी तत्वों का दबदबा इतना बढ़ चुका है कि इन अपराधियों को काबू कर पाना आसान बिलकुल नहीं होगा. हालात असाधारण हो चुके हैं और उनको दुरुस्त करने के लिए असाधारण तरीकों का ही इस्तेमाल करना होगा. नेहरू के युग में यह संभव था कि अगर अपराधी का नाम ले लिया जाए तो वह दब जाता था , डर जाता था और सार्वजनिक जीवन को दूषित करना बंद कर देता था . जवाहर लाल नेहरू ने एक बार अपने मंत्री केशव देव मालवीय को सरकार से निकाल दिया था क्योंकि दस हज़ार रूपये के किसी घूस के मामले में वे शामिल पाए गए थे..उन्होंने एक बार एक ऐसे व्यक्ति को गलती से टिकट दे दिया जिसके ऊपर आपराधिक मुक़दमे थे . जब मध्य भारत में चुनावी सभा के दौरान उनको पता चला कि यह तो वही व्यक्ति है जिसे उन्होंने गिरफ्तार करवाया था, नेहरू जी ने उसी चुनावी मंच से ऐलान किया कि इस आदमी को गलती से टिकट दे दिया गया है , उसे कृपया वोट मत दीजिये और उसे चुनाव में हरा दीजिये. वह आदमी कोई मामूली आदमी नहीं था, मंत्री रह चुका था , रजवाड़ा था और आज के एक बहुत बड़े नेता का पूज्य पिता था . आज जब हम देखते हैं कि कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे लोगों को टिकट देना पसंद करती हैं जो अपनी दबंगई के बल पर चुनाव जीत सकें तो जवाहर लाल नेहरू के वक़्त की याद आना स्वाभाविक भी है और ज़रूरी भी.. ज़ाहिर है कि नेहरू ने राजनीतिक जीवन में जिस शुचिता की बुनियाद रखी थी उनके वंशज संजय गाँधी ने उसके पतन की शुरुआत का उदघाटन कर दिया था. बाद में तो सभी पार्टियों ने वही संजय गाँधी वाला तरीका अपनाया और राजनीतिक व्यवस्था आज गुंडों के हवाले हो चुकी है .. अगर यही व्यवस्था चलती रही तो मुल्क को तबाह होने का खतरा बढ़ जाएगा... इस हालत से बचने के लिए सबसे ज़रूरी तो यह है कि अपराधी नेताओं और अफसरों के दिमाग में यह बात बैठा दी जाए कि जेसिका लाल और नीतीश कटारा के हत्यारों की तरह ही हर बद दिमाग सिरफिरे को जेल में ठूंस देने की ताक़त कानून में है . लेकिन दुर्भाग्य यह है कि कानून का इकबाल बुलंद करने वाले भी ज़्यादातर मामलों में शामिल पाए जाते हैं..ऐसी हालात में घूम फिर कर ध्यान मीडिया पर ही जाता है . पिछले दिनों जितने भी हाई प्रोफाइल मामलों में न्याय हुआ है उसमें मीडिया की भूमिका अहम् रही है . इस बार भी हरियाणा वाले अपराधी अफसर के मामले में मीडिया ने ही सच्चाई को सामने लाने का अभियान शुरू किया है और उम्मीद है कि रुचिका की मौत के लिए ज़िम्मेदार अपराधी को माकूल सज़ा मिलेगी. .इस लिए राजनीति में अपराधियों के दबदबे के बावजूद अभी उम्मीद बाकी है और उम्मीद की जानी चाहिए कि अपराधियों को सज़ा मिलने की गति तेज़ होगी.. और मीडिया की मुहिम देश को और समाज को बचाने में कारगर साबित होगी.

3 comments:

  1. कौन सा मीडिया? अपने अपने मालिकों की नीतियों के अनुसार खबर दिखाता और छापता मीडिया? आजकल मिशन नहीं है धन्धा है? जब पत्रकार खुद ही शोषण के शिकार हों तो? और किसे सरकार से सुविधायें नहीं चाहिये? दर-असल वही मुद्दे मीडिया भी उछालता है जिसमें पार्टी बडी हो किसी छोटे आदमी की स्टोरी को देखा है कभी? फिर भी आवश्यक है अगर न हो तो ये नेता तो भूनकर खा जायें और डकार भी न ले

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  2. सही बात है .मीडिया पर मालिकों की पकड़ मुकम्मल हैं...मैंने तो रुचिका वाले मामले में चैनलों के रुख को देख कर एक उम्मीद की किरण देखी थी . सो लिख दिया. अवधी में एक कहावत है कि जिसकी थाली गायब हो जाती है वह घड़े में भी तलाशता है ( जेकर टाठी हेराय जात है उ गगरियु में हेरथय ) . हालांकि पक्का है कि घड़े में थाली घुस ही नहीं सकती. शायद मेरी भी हालत वही है .

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  3. मीडिया ताकतवर तो है और अभी भी काफी अच्छे लोग उसमें हैं ,कुछ उम्मीदें न्यायपालिका से भी हैं किन्तु धब्बा वहाँ भी काफी गहरा लग चूका है ,
    सचमुच इस देश का भगवान् ही मालिक है

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