अमेरिका में पिछले महीने एक ऐसा कानून पास हुआ है जिसके अनुसार पाकिस्तान को हर साल 150 करोड़ डालर की आर्थिक मदद मिला करेगी। सीनेट के सदस्यों-केरी और लूगर के नाम से जुड़ा यह बिल पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी राहत का काम करेगा, लेकिन अजीब बात है कि पाकिस्तानी फौज ने इस सहायता पैकेज का विरोध करने का फैसला किया है। उसे आर्थिक सहायता से जुड़ी कुछ शर्तो पर ऐतराज है।
अब तक जो भी अमेरिकी सहायता पाकिस्तान को मिलती थी उससे फौज के आला अफसर मजे करते थे। उनकी कोई जवाबदेही नहीं होती थी। इस रकम का इस्तेमाल भारत के खिलाफ हथियार जुटाने और आतंकवाद फैलाने के लिए भी किया जाता था। इस बार अमेरिका की कोशिश है कि पाकिस्तान में सत्तारूढ़ लोकतांत्रिक सरकार को मजबूत किया जाए। आपरेशन एक्ट (पीस एक्ट) नाम के इस कानून में वास्तव में कुछ शर्तें ऐसी हैं जिन्हें किसी भी स्वतंत्र और संप्रभु देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना जा सकता है। एक्ट में व्यवस्था है कि अमेरिकी विदेश मंत्री हर छह महीने बाद एक सर्टिफिकेट जारी करेंगी कि पाकिस्तान ने बीते छह महीने सही तरह काम लिया है, लिहाजा अगली किस्त जारी की जा सकती है। सही तरह काम करने वाले देश के रूप में अमेरिकी विदेश मंत्री की सनद हासिल करने के लिए पाकिस्तान को परमाणु प्रसार और अनधिकृत कारोबार के बारे में जानकारी अमेरिका को देनी पड़ेगी। पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक एक्यू खान का नाम लिए बिना उनकी हर गतिविधि पर अमेरिकी नियंत्रण की बात की गई है।
पड़ोसी देशों के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियां करने वालों पर पूरी तरह से रोक लगाने की बात भी की गई है। अल-कायदा, तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मुहम्मद का साफ उल्लेख करके यह बता दिया गया है कि अगर भारत के खिलाफ आतंक फैलाया गया तो दाना-पानी बंद कर दिया जाएगा। दुनिया जानती है कि लाहौर के पास स्थित मुरीदके शहर में लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज मुहम्मद सईद और जमात-उद्-दावा का मुख्यालय है। इस शहर को अमेरिकी पीस एक्ट में आतंकवाद के प्रमुख केंद्र के रूप में दिखाया गया है। जाहिर है कि अगर पाकिस्तान सरकार हाफिज मुहम्मद सईद को काबू में नहीं रखती तो अमेरिकी खैरात पर रोक लग सकती है। पाकिस्तानी फौज को जो बात सबसे नागवार गुजरी है वह यह कि अमेरिका पाकिस्तान की सरकार और वहां की फौज पर नियंत्रण रखे। सरकार को आगे से सेना के बजट, कमांड की प्रक्रिया, जनरलों का प्रमोशन, रणनीतिक नीति निर्धारण और नागरिक प्रशासन में सेना की भूमिका पर नजर रखनी पड़ेगी और अमेरिका को इसके बारे में जानकारी देनी पड़ेगी। सबसे मुश्किल बात यह है कि पाकिस्तानी सरकार के लिखकर देने मात्र से बात नहीं बनेगी। अमेरिकी विदेश मंत्री की ओर से अच्छे काम की सनद तब मिलेगी जब मौके पर तैनात अमेरिकी अधिकारी इस बात की पुष्टि कर देंगे। सही बात यह है कि अगर अमेरिका इस बात पर अड़ा रहता है तो यह माना जाएगा कि उसने पाकिस्तान की सरकार पर एक प्रकार से कब्जा कर लिया है, लेकिन अमेरिकी प्रशासन की परेशानी यह है कि पिछले तीस साल में पाकिस्तानी शासकों ने अमेरिकी मदद का दुरुपयोग ही किया है।
पिछले दिनों रावलपिंडी में सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कियानी ने पाकिस्तानी सेना के शीर्ष कमांडरों की बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक के बाद एक बयान जारी किया गया, जिसमें पीस एक्ट के प्रावधानों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया कि इन प्रावधानों के लागू होने पर पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा पर उलटा असर पड़ेगा। कमांडरों ने लगभग आदेश देने की भाषा में जरदारी सरकार को कहा कि राष्ट्रीय असेंबली (संसद) की बैठक बुलाएं और इस कानून के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिक्रिया व्यक्त करें। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) ने भी अमेरिकी मदद के साथ जुड़ी हुई शर्तो का विरोध किया है, जबकि जरदारी सरकार इस कानून से खुश है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति के प्रवक्ता फरहत उल्ला बाबर ने कहा कि जो लोग अमेरिकी सहायता का विरोध कर रहे हैं वे वैकल्पिक रास्ता सुझाएं। दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व विदेशी मामलों की उपसमिति के उपाध्यक्ष सीनेटर गैरी एकरमैन ने पाक अधिकारियों को हड़काया है कि अमेरिकी मदद किसी मकसद को हासिल करने के लिए दी जा रही है। यह कोई खैरात नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर पाकिस्तान शर्तो का उल्लंघन करता है तो मदद को रद भी किया जा सकता ह
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