शेष नारायण सिंह
लोकसभा के ताज़ा चुनाव ने भारतीय राजनीति के कई मिथकों को तोडा है . नतीजों के विश्लेषण से समझ में आ रहा है कि मतदाता जातियों के सांचे से बाहर आने की कोशिश कर रहा है .जहाँ तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की २०१९ की जीत की बात है ,वह निश्चित रूप से असाधारण है . उन्होंने अपने २०१४ के रिकार्ड में भी सुधार किया है . उस जीत के परिणामस्वरूप अब सरकार भी बन गयी है. इमकान है कि वर्तमान सरकार वे काम भी करेगी जो बीजेपी के २०१४ के संकल्प पत्र में लिखा हुआ है .उनकी जीत अब चुनावी बहस का नहीं अकादमिक चर्चा का विषय बन गयी है . तरह तरह के लोग उसका विश्लेषण कर रहे हैं. चुनाव के पहले जिन लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया था उनको अनुमान लग गया था कि गाँव में लोग अलग तरह से वोट देने के बारे में विचार कर रहे थे. इन पंक्तियों के लेखक ने जब मार्च २०१९ में पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ गाँवों का दौरा किया था तो जो संकेत ज़मीन पर दिख रहे थे ,उनसे अनुमान लगना स्वाभाविक था . २० मार्च २०१९ की अपनी एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि ," लगता है कि मायावती की राजनीति में कुछ बदलने वाला है . दलितों के घर के सामने बने हुए इज्ज़त घर , दलित परिवारों के लिए बनाये गए .ईंट के छोटे मकान उनके पक्के वोट बैंक में नक़ब लगा सकते हैं . अगर किसी बाबू साहब ने किसी दलित के नाम से थोडा बहुत गेहूं सरकारी खरीद केंद्र पर जमा करा दिया था तो उस दलित के नाम भी दो हज़ार रूपये डीबीटी के ज़रिये बैंक में जमा हो चुके हैं. दलितों के नेताओं और बीजेपी का विरोध कर रहे नेताओं का दावा है कि इससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है लेकिन इज्ज़त घर ( शौचालय ) का प्रभाव गरीब दलितों के वोट पर पडेगा ,यह बात साफ़ नज़र आती है .हालांकि यह भी सच है कि आज से चालीस साल पहले जिन दलित बस्तियों में मैंने काम किया था उनमें बड़ा बदलाव आया है. बड़ी संख्या में दलित नौजवान सरकारी कर्मचारी हैं , कुछ लडकियां जिले के सरकारी इंजीनियरिंग कालेज से बी टेक की पढ़ाई कर रही हैं . दलितों में शिक्षा के प्रति जागरूकता है और वे सरकारी नौकरी के लिए प्रयास करते हैं जबकि बाबू साहब लोगों के बच्चे दसवीं या बारहवीं फेल होने के बाद चौराहे की रौनक बढाने में योगदान कर रहे हैं . अपेक्षाकृत जागरूक और संपन्न दलितों में मायावती के प्रति पूरा समर्पण है लेकिन जिनको पिछले दो साल में शौचालय और मकान जैसी सुविधाएं मिली हैं वे नरेंद्र मोदी की तरफ मुखातिब हो रहे हैं "
जो लोग उत्तर प्रदेश की जातिव्यवस्था को समझते हैं उनको मालूम है कि इस तरह के संकेत अगर ज़मीन से उठ रहे थे तो उसका मतलब बड़ा था. आज नतीजे आने के बाद आसानी से कहा जा सकता है कि दलित जातियों के वोटों पर मायावती का एकाधिकार टूट चुका है . दलितों के अलावा एक और संकेत भी उसी दौरे में साफ़ नज़र आ रहा था . २२ मार्च की अपनी पोस्ट में लिखा था कि ," ओबीसी जातियों के एक वर्ग में नरेंद्र मोदी को पिछड़ी जाति का नेता माना जा रहा है . हर चौराहे पर बीजेपी की जीत की बात की जा रही है .एयर स्ट्राइक के कारण भी खाली बैठे नौजवान लड़कों में वीरता की धारा देखी जा सकती है . मोदी के आधी बांह के कुरते और अजीबो गरीब रंग की जाकिट पहने बहुत सारे लोग देखे जा सकते हैं .अब आप ही बताइये कि चुनाव किस तरफ जा सकता है ? मेरे वे दोस्त जो मोदी को हर कीमत पर हराना चाहते हैं , उनसे निवेदन है कि वे इसे मेरी राय न मानें . यह ज़मीनी सच्चाई है ."
यह सारा माहौल एक दिन में नहीं बना . २०१३-१४ के अपने चुनाव अभियान में नरेंद्र मोदी ने अपने आपको पिछड़ी जाति के एक गरीब आदमी के रूप में पेश किया था और यह सिद्ध करने की कोशिश की थी कि उनका परिवार स्टेशन पर चाय बेचकर गुज़ारा करता था . उनके इन दावों का मजाक भी उड़ाया गया ,उनको गलत भी साबित करने की कोशिश की गयी लेकिन उस सबका नतीजा यह हुआ कि कई कई दिन मीडिया में मोदी की जाति चर्चा में बनी रही . २०१४ के चुनाव में तो उनकी जीत का सेहरा इस बात के जिम्मे किया जा सकता है कि लोग उस वक़्त की कांग्रेस की सरकार को अति भ्रष्ट मान रहे थे , अन्ना हजारे के आन्दोलन को हवा देकर एक कांग्रेस विरोधी संगठन और मीडिया ने पूरे देश में माहौल बना दिया था , सी ए जी पद पर बैठे एक अफसर ने टूजी के काम में करीब पौने दो लाख करोड़ के घोटाले की बात लिख कर माहौल को गरम कर दिया था. अब पता चला है कि सी ए जी का टूजी स्पेक्ट्रम वाला घोटाला काल्पनिक था लेकिन चुनाव २०१४ में वह अपना काम कर गया . मोदी की जीत में उन सारी बातों ने योगदान दिया था . नरेंद्र मोदी की बात पर जनता ने विश्वास किया और उनको सपष्ट बहुमत दे दिया . लेकिन २०१९ के चुनाव में बात अलग थी . बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को एक कुशल और ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया और जनता ने उनपर विश्वास किया . इस विश्वास की बारीकी को समझकर ही मौजूदा चुनाव नतीजों की बारीकी को समझा जा सकता है .
२०१९ के नतीजों में जानकारों का एक वर्ग लगातार ईवीएम की कारस्तानी की बात कर रहा है . इस श्रेणी में अपने बहुत से मित्र भी हैं .लेकिन उस बात को मानने के सबूत नहीं हैं इसलिए ईवीएम वाली बात को अभी नहीं माना जा सकता है . हां अगर आगे चलकर कोई सबूत आ गया तो मान लेने में कोई परेशानी नहीं होगी . अभी तो फिलहाल नरेंद्र मोदी की चुनाव की रणनीति और उनकी प्रचार शैली पर ही बात की जायेगी . इस चुनाव में उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण है कि उन्होंने समाज के सबसे करीब इंसान को संबोधित किया और उसके मन में यह विचार पैदा करने में सफलता पाई कि यह प्रधानमंत्री हमारे लिए कुछ करने वाला है . यह विश्वास जीतने के लिए उन्होंने पिछले पांच साल में योजनाबद्ध तरीके से काम किया . पिछले पांच वर्षों में नरेंद्र मोदी अपने अधिकतर भाषणों में ' गरीब' शब्द का बार बार प्रयोग करते थे . कई बार यह बात अजीब लगती थी . लेकिन वास्तविकता यह थी कि वे समाज के सबसे गरीब लोगों के लिए कुछ कर रहे थे . ज्यादातर स्कीमें पुरानी थीं . मसलन दलितों के लिए पक्के मकान और उनके लिए शौचालय की स्कीम डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री के रूप में शुरू किया था . पीवी नरसिम्हाराव की सरकार के वित्त मंत्री के रूप में भी उन्होंने इसका उल्लेख किया था .प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस मद के लिए धन का आवंटन भी किया था . लेकिन यह योजनाएं ज़मीन पर लागू नहीं हो सकीं. ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत अधिकारी , बीडीओ और जिला विकास अधिकारी सारी रक़म रिश्वत के रूप में हड़प कर रहे थे .२०१४ के बाद जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें थीं ,वहां यह स्कीमें मजबूती से लागू की गईं. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद लगभग हर दलित बस्ती में यह स्कीमें युद्ध सत्र पर लागू की गयीं और जो भी हुआ उसके बारे में बाकायदा बताया गया कि यह प्रधानमंत्री की कृपा से हुआ है . घरों आदि पर कई जगह तो प्रधानमंत्री की फोटो भी लगी हुयी देखी गयी.
समकालीन इतिहास पार नज़र डालें तो एक तस्वीर उभरती है .ऐसा लगता है कि गाँव में गरीबी हटाने की बात जिस पार्टी ने भी की और जनता ने उसका विश्वास कर लिया तो उसको सत्ता सौंप दी . आज़ादी लड़ाई के बाद सबको मालूम था कि कांग्रेस अंग्रेजों, ज़मींदारों, साहूकारों से मुक्ति दिलाने के लिए ही महात्मा गांधी की अगुवाई में काम कर रही है . इसलिए आज़ादी के बीस साल बाद तक कांग्रेस को इस देश की गरीब जनता का समर्थन मिलता रहा . लेकिन जब सोशलिस्ट पार्टी के नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने गरीबों के एक वर्ग को समझा दिया कि कांग्रेस उनको बेवकूफ बनाकर वोट ले रही है और वह पूंजीपतियों और समाज के ऊपरी वर्ग की पार्टी है तो १९६७ में हुए आम चुनाव में जनता ने कई राज्यों में कांग्रेस को हरा दिया और गरीबों के रहनुमा के रूप में समाजवादियों और संविद के उनके साथियों को स्वीकार कर लिया . अब तक इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बन चुकी थीं और शुरू में ही उनको राजनीतिक चुनौती मिल रही थी . उन्होंने १९६७ में पी एन हक्सर को अपना सचिव बनाया .वे विदेश सेवा के एक कुशाग्रबुद्धि अधिकारी थे लेकिन उसके पहले नागपुर में कम्युनिस्ट पार्टी के नेता भी रहे थे . जनजागरण और गरीबी के समाजशास्त्र के प्रकांड पंडित थे . उन्होंने इंदिरा गांधी को आगाह किया था कि ,"कांग्रेस की छवि एक ऐसी पार्टी की बनती जा रही है जो बड़े उद्योगपतियों और बड़े भूस्वामियों की चेरी है .अगर कांग्रेस अपनी छवि एक ऐसी पार्टी के रूप में बनाने में सफल न हुयी जो गरीब किसान और भूमिहीन मजदूर की पार्टी है तो गरीब आदमी कांग्रेस को वोट देना बंद कर देगा ."( Intertwined Lives by Jairam Ramesh . पृष्ठ 130"). इस सलाह के बाद ही इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के नारे को विकसित करना शुरू किया और १९७१ में बहुत बड़े बहुमत से सरकार बनाया लेकिन उन्होंने गरीबी को हटाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया . संजय गांधी के प्रभाव के चलते उन्होंने पी एन हक्सर को भी अपने सचिव पद से हटा दिया और उसी प्रभाव के चक्कर में बड़े उद्योगपतियों और बड़े भूस्वामियों की मददगार बनती गईं. और १९७७ में चुनाव हार गईं.१९८० की उनकी जीत में उनका योगदान बहुत ज़्यादा नहीं था , वह जनता पार्टी की नाकामी के कारण उनको मिली थी .
लगता है कि नरेंद्र मोदी गरीबी के बारे में पी एन हक्सर जैसी सोच के मालिक हैं और गरीबी के खिलाफ अभियान चलाकर चुनाव जीतने का अमोघ अस्त्र उनके हाथ लग चुका है .हालांकि किसी को कुछ दे देने से गरीबी का हटना टिकाऊ नहीं होता. उसके लिए तो हर हाथ को काम देना पड़ता है . यह भी सच है कि ग्रामीण भारत में हर गरीब का सपना होता है कि उसको पक्का घर मिल जाए, शौचालय बन जाय, बिजली लग जाय और रसोई गैस मिल जाय. वे सारी चीज़ें लोग जीवन भर कमाकर इकट्ठा करते हैं लेकिन नरेंद्र मोदी ने एक बड़ी आबादी को यह सब उपलब्ध करा दिया है और जिनको नहीं मिला है उनके मन में उम्मीद जगा दिया है. इस तरह से उन्होंने अपनी छवि गरीबी के खिलाफ एक योद्धा की बना ली है .२०१९ के चुनाव की जीत में गरीबी के खिलाफ उनके अभियान का सबसे बड़ा योगदान है .