Wednesday, May 1, 2019

शहीद हेमंत करकरे का अपमान करने वाली अपनी उम्मीदवार को बीजेपी क्या सज़ा देगी


शेष नारायण सिंह

मालेगांव में हुए बम विस्फोट में प्रज्ञा सिंह  ठाकुर मुख्य अभियुक्त  हैं .उस विस्फोट में बहुत सारे  निर्दोष लोगों की जान गयी थी .  एन आई ए की तरफ से दाखिल की गयी चार्जशीट के आधार पर उनके ऊपर आरोप  २०१८ में तय कर दिए गए थे .जब आरोप तय हुए तब दिल्ली में नरेंद्र मोदी की सरकार थी .प्रज्ञा ठाकुर आजकल जमानत पर जेल से  बाहर हैं . उनको बीजेपी ने भोपाल से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया है .हालांकि  प्रज्ञा ठाकुर मुलजिम हैं लेकिन वे चुनाव लड़ सकती हैं. कानून इसकी अनुमति देता है. अभी चंद रोज़ पहले उन्होंने बीजेपी की  सदस्यता ली थी . तब से ही वे लगातार हिंदुत्व की अलमबरदार के रूप में आक्रामक बयान दे रही हैं . उनकी उम्मीदवारी  की राजनीति को समझने के लिए वर्तमान सरकार के बारे में जानकारी लेना ज़रूरी है. शुरू में लग रहा था कि  बीजेपी  राष्टवाद के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर चुकी थी . लेकिन राष्ट्रवाद  के मुद्दे पर बड़े पैमाने पर लामबंदी नहीं हो सकी . सरकार में रहते हुए अपने काम पर वोट माँगा जाता है. यहाँ वह भी संभव नहीं है . आम तौर पर ऐसा माना जा रहा  है कि सरकार पिछले पांच साल  में ऐसा कोई काम नहीं कर सकी है जिसके बल पर चुनाव जीता जा सके.लेकिन ऐसा कोई काम ही नहीं है . इस सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ मुरली मनोहर जोशी की ही मानी जायेगी . जब डॉ जोशी से पूछा गया कि आप मोदी सरकार को दस में से कितने नम्बर  देंगें  तो उन्होंने कहा कि जब कापी में कुछ लिखा ही नहीं है तो क्या नंबर दूं. इन हालात में यह बात बिलकुल साफ़ हो गयी है कि  पार्टी को चुनाव जीतने के लिए नए मुद्दे चाहिए थे .  मुद्दों की तलाश में बीजेपी चुनाव जीतने के लिए हिंदुत्व को मुद्दा बनाने की रणनीति पर  काम कर रही है . इसी  कोशिश में भोपाल से कांग्रेस के उम्मीदवार और " संघी आतंकवाद " के प्रबल विरोधी दिग्विजय सिंह के खिलाफ प्रज्ञा ठाकुर को बीजेपी का उम्मीदवार बनाया  गया है . प्रज्ञा ठाकुर अभी जमानत पर हैं उनके ऊपर आतंकवाद विरोधी कानून मकोका  के तहत मुक़दमा चल  रहा है . वे मध्यप्रदेश के बीजेपी नेता सुनील जोशी की हत्या के केस में भी अभियुक्त थीं . २०१४ में सरकार आने के बाद कुछ मामलों में उनके केस बंद कर दिए गए थे लेकिन अभी मालेगांव धमाके में वे अभियुक्त हैं ..
प्रज्ञा ठाकुर ने बीजेपी की सदस्यता लेने के  साथ ही आक्राकता दिखाना शुरू कर दिया . उन्होंने अपने ऊपर हुए अत्याचार के लिए भोपाल से कांग्रेस के प्रत्याशी , दिग्विजय सिंह की सोच को   परोक्ष रूप से ज़िम्मेदार बताने लगीं .  बहुत बढ़ बढ़ कर बोलने लगीं और उसी रौ में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के आतंकवाद विरोधी दस्ते के तात्कालीन प्रमुख , शहीद हेमंत करकरे के बारे में बहुत ही आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें बोल गईं. उन्होंने उनको कुटिल कहा , पापी कहा और देशद्रोही तक कह  डाला . उन्होंने यह भी कहा कि शहीद करकरे की मृत्यु इसलिए हुयी कि इन मोहतरमा ने उनको बद्दुआ  दे दी थी.  यह कहना था कि पूरा देश उनके खिलाफ टूट पड़ा .  जो बहादुर पुलिस अफसर मुंबई को आतंकवादी हमले से बचाने के लिए शहीद हुआ था , जिसने पाकिस्तान से आये आतंकवादियों को सामने से  चुनौती दी थी , जिसके सीने पर अंधेरे में छुपे हुए आतंकवादियों ने गोली मारी थी , उसका आपमान सहन करने के लिए देश तैयार नहीं था. कुछ वक़्त के लिए तो ऐसा लगा कि सोशल मीडिया पर पूरा देश उतर आया है और शहीद करकरे को अपमानित करने वाली बीजेपी उम्मीदवार ,प्रज्ञा ठाकुर की निंदा  कर रहा है. कांग्रेस ने भी मौक़ा देख , मोर्चा संभाल लिया और शहीद का अपमान करने वाली पार्टी के रूप में बीजेपी को पेश करने में कोई समय नहीं गंवाया .
बीजेपी को भी लगा कि गलती हो गयी लेकिन लेकिन प्रज्ञा ठाकुर अपने को पीड़ित बताकर सहानुभूति लेने के चक्कर में डटी रहीं . जब  बीजेपी ने  शहीद हेमंत करकरे के बारे में दिए गए उनके बयान को उनका निजी बयान बताकर पल्ला झाड लिया तब भी वे अपनी राग अलापती रहीं . लेकिन कुछ टीवी चैनलों और अखबारों ने प्रज्ञा ठाकुर के असंतुलित बयान को जिस तरह से हाईलाईट किया उससे बीजेपी को लग  गया कि  बात  बिगड़ गयी हैं . उनको भोपाल से  उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस को तथाकथित " हिन्दू आतंकवाद " के घेरे में लेने की कोशिश उल्टी पड़ चुकी थी. जो  बीजेपी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और भारतीय पुलिस और सेना के वीरों की शहादत को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही है उसकी एक महत्वपूर्ण प्रत्याशी पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ मोर्चा लेने वाले सबसे बहादुर योद्धा को अपमानित कर रही थी . ज़ाहिर है कि बीजेपी जिस मोहरे को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी , वही उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन चुका  है . पार्टी के नेताओं की समझ में साफ़ तौर पर आया गया कि प्रज्ञा ठाकुर की बदजुबानी को सही  ठहराने की कोशिश में उनका  भारी नुक्सान होने वाला है . शायद इसीलिये प्रज्ञा  ठाकुर को पार्टी की तरफ से फटकारा गया और उन्होंने शहीद करकरे की शान में की गयी बदतमीजी के लिए माफी मांग ली. लेकिन माफी भी ऐसी माँगी जिससे पार्टी को नुक्सान होने का ख़तरा बना हुआ है . माफी की भाषा ऐसी है जिसको पढने पर लग जाता  है कि वे माफी तो मांग रही हैं लेकिन अभी भी वे शहीद हेमंत करकरे को गुनहगार साबित करने से बाज़ नहीं आ रही हैं . उन्होंने लिखकर माफी नहीं माँगी है . संवाददाताओं से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि, " 'जो मैंने कहा था वह मेरी व्यक्तिगत पीड़ा थीजो मैंने सुनाई थी। मेरे बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो मैं अपना बयान वापस लेती हूंऔर माफी मांगती हूं'देश के दुश्मन इससे खुश हो रहे हैंइसलिए मैं अपने बयान को वापस ले रही हूं और माफी भी मांगती हूं।." बताते हैं इसके बाद बीजेपी के बड़े नताओं ने उन्हें डांटा और शहीद हेमंत करकरे की तारीफ़ करने का निर्देश दिया . उसके बाद उन्होंने कहा कि, " हेमंत करकरे आतंकवादियों की गोली से शहीद हुए थे. जो बात मैंने उनके बारे में कही , वह नहीं कहना चाहिए  था . मैं खेद प्रकट करती हूँ " लेकिन लगता है कि बात अभी बनी नहीं है . महाराष्ट्र के कुछ संगठनों ने मांग की है कि प्रज्ञा ठाकुर और बीजेपी ने शहीद करकरे के बच्चों को जो पीड़ा पंहुचाई है उसके लिए भी माफी मांगें .

 अब लगता है कि प्रज्ञा ठाकुर बीजेपी के चुनाव अभियान में दिग्विजय सिंह और  उनकी पार्टी पर कालिख पोतने के लिए काम नहीं आने वाली हैं .भोपाल में तीन  हफ्ते बाद चुनाव होना है . तब तक उनकी लानत मलानत का सिलसिला चलता रहेगा और  उनकी पार्टी उस पर सफाई देने के लिए मजबूर होती रहेगी .तब तक चुनाव हो जाएगा . अब तो साफ़ लगने लगा है कि वे  दिग्विजय सिंह को भी चुनौती नहीं दे पाएंगीं क्योंकि वे जहाँ भी जायेंगी उनसे शहीद हेमंत करकरे के बारे में सवाल तो पूछे जायेगे वरना योजना यह थी कि दिग्विजय सिंह पर यह आरोप चस्पा किया जाए कि वे सभी हिन्दुओं को आतंकवादी मानते हैं . और उसी आड़ में बीजेपी का चुनाव  प्रचार केन्द्रित किया जाए . अब इस बात पर भी सवाल उठना शुरू हो गए हैं . क्योंकि दिग्विजय सिंह को हिन्दू विरोधी साबित करने की कोशिश तो उसी दिन दफ़न हो गयी थी जब उन्होंने हिन्दू धर्म की सबसे कठिन तीर्थयात्रा , नर्मदा परिक्रमा को विधि विधान से पूरी की थी .   टीवी की बहसों में जो विश्लेषक  एंकरों द्वारा की जा रही दिग्विजय सिंह की निंदा के बीच चुप बैठे रहते थे वे अब कहने लगे हैं कि दिग्विजय सिंह ने कभी भी हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग  नहीं किया है . वे हमेशा " संघी आतंकवाद " शब्द का प्रयोग करते हैं . मीडिया के सहयोग से आर एस एस और बीजेपी के नेता उनको हिन्दू विरोधी साबित करने के लिए दिन रात लगे रहते हैं .प्रज्ञा ठाकुर को उनके खिलाफ उम्मीदवार बनाकर इसी बात को रेखांकित किया जाना था .प्रज्ञा ठाकुर उसी प्रोजेक्ट का हिस्सा थीं लेकिन अब शहीद को अपमानित करके वे बीजेपी के राष्टवाद वाले प्रोजेक्ट को भी नुक्सान पंहुचा रही हैं . अब साफ़ नज़र आने लगा  है कि उनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है . बीजेपी की  उम्मीदवार के रूप में तो शायद वे बनी रहें लेकिन दिग्विजय सिंह और कांग्रेस को हिन्दू विरोधी साबित करने में अब उनकी उपयोगिता ख़त्म हो चुकी है . हो सकता है कि अभी चुनाव के पांच चरण बाकी हैं , बीजेपी कोई और  तरीका लेकर आये क्योंकि शुरू के  दो चरणों की सूचना के मुताबिक़ पार्टी को उत्तर प्रदेश और बिहार में  बीजेपी को बड़ा नुक्सान हो चुका है.

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