शेष नारायण सिंह
ग्रेटर नोयडा एक्सटेंशन में बिल्डरों से ज़मीन वापस लेकर कोर्ट ने उस ज़मीन के असली मालिक किसानों को न्याय दिलवाने की कोशिश की है . कोर्ट ने तकनीकी आधार पर फैसला दिया है . माननीय हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि इस इलाके में ज़मीन का अधिग्रहण उद्योगों के लिए किया गया था लेकिन उसे आवासीय इस्तेमाल के लिए दे दिया गया . यह काम गैरकानूनी था क्योंकि जब अथारिटी ने ज़मीन बिल्डरों को अलाट किया , उस वक़्त तक उत्तरप्रदेश सरकार से लैंड यूज़ बदलने की मंजूरी नहीं आई थी . इसका मतलब यह हुआ कि अगर लैंड यूज़ बदलने की मंजूरी आ गयी होती तो शायद कोर्ट ने किसानों की अर्जी को खारिज कर दिया होता . अगर ऐसा हुआ होता तो किसानों के साथ अन्याय हो जाता क्योंकि जो ज़मीन किसानों से ७११ रूपये प्रति वर्ग मीटर के रेट से मुआवजा देकर ली गयी थी. उसे अथारिटी ने ग्यारह हज़ार या उस से भी ज़्यादा रूपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से बेचा . यह सही है कि उस ज़मीन के विकास में बहुत खर्च आया. सड़कें और पार्क बनाए गए जिसके लिए सरकार को कोई पैसा नहीं मिला. विकास के और भी काम हुए . ज़ाहिर है कि ज़मीन की कीमत बेचते वक़्त बढ़ जायेगी . लेकिन खरीद और बिक्री की कीमत में इतना बड़ा फ़र्क़ विश्वसनीय नहीं है. आरोप लग रहे हैं कि ज़मीन की वास्तविक कीमत अथारिटी के अलाटमेंट वाले दाम से कहीं ज्यादा है . ज़ाहिर है अन्याय हुआ है , किसानों के साथ भी और सरकारी खजाने के साथ भी . लेकिन सबसे बड़ा अन्याय जिस वर्ग के साथ हुआ है वह पिछले दिनों बिलकुल नज़रंदाज़ होता रहा. और वह वर्ग है फ़्लैट बुक कराने वालों का .इस सारे खेल में सबसे ज्यादा अन्याय उस मध्यवर्गीय भारतीय के साथ हुआ है जिसने बिल्डरों के सब्ज़बाग़ दिखाने के बाद नोयडा एक्सटेंशन में घर पाने का सपना पाल रखा था. उसने पाई पाई जोड़कर बिल्डर को पैसा दिया और अब वह खाली हाथ खड़ा है . जहां तक बिल्डर का सवाल है, उसने जितना खर्च किया है उस से कई गुना ज्यादा मकान खरीदने वालों से वसूल चुका है . बिल्डर से उसने जो एग्रीमेंट किया है उसकी भाषा ऐसी है कि फ़्लैट बुक कराने वाला ज़िन्दगी भर अदालतों के चक्कर काटता रहे, उसे न्याय नहीं मिलेगा. तुर्रा यह कि अब बिल्डर जी पीड़ित बन कर सरकार से फायदा लेने के चक्कर में हैं . उम्मीद की जानी चाहिए कि कोर्ट इस स्थिति पर भी विचार करे और किसान को न्याय देने के साथ साथ उस मध्यवर्गीय भारतीय का भी ध्यान रखे जिसने सरकार और बिल्डर पर भरोसा करके अपनी गाढ़ी कमाई को एक आशियाने का सपना पूरा करने के लिए लगा दिया है . उसके साथ भी न्याय होना चाहिये . ज़ाहिर है सुप्रीम कोर्ट के अलावा यह न्याय कोई और नहीं दिला सकता . अन्याय को ख़त्म करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के पास इतनी ताक़त है जिसकी कोई सीमा नहीं बनायी जा सकती. २३ जुलाई के दिन आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई के दौरान माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि संविधान के अनुच्छेद १३६ के तहत सर्वोच्च न्यायालय के पास यह पावर है कि वह उस मामले में अपने आप हस्तक्षेप करे जहां साफ़ नज़र आ रहा हो कि अन्याय हुआ है . यह हो सकता है कि किसी ने उस अन्याय को खत्म करने के लिए प्रेयर न की हो लेकिन संविधान की तरफ से सुप्रीम को अपने आप हस्तक्षेप करने का पूरा अधिकार है . सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जे एम पांचाल और न्यायमूर्ति एच एल गोखले की बेंच ने आदेश दिया कि सुप्रीम कोर्ट को अपील सुनने का जो अधिकार अनुच्छेद १३६ के आधार पर मिला हुआ है , वह अन्य अदालतों के अपील सुनने के अधिकार से अलग है . फैसले में लिखा है कि अगर कहीं घोर अन्याय नज़र आये तो सुप्रीम कोर्ट की ड्यूटी है कि वह अपने आप मामले को विचार के लिए स्वीकार करे और उस पर न्याय करे. माननीय न्यायमूर्तियों ने कहा कि अगर किसी हाई कोर्ट से कोई अन्याय हो गया है और कोई गैर कानूनी फैसला दे दिया गया है तो सुप्रीम कोर्ट का फ़र्ज़ है कि उसे ठीक करे. सब को मालूम है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस देश में अन्याय के खिलाफ माहौल बनाने में जो योगदान किया है ,वह अद्भुत है .अन्याय चाहे जहां हो, सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आने के बाद उस पर न्याय की नज़र पड़ती है और हर हाल में न्याय होता है.आज सुप्रीम कोर्ट के न्यायिक हस्तक्षेप की वजह से भारत सरकार और देश के भाग्य विधाता राजनेता जेलों की हवा खा रहे हैं .अपने देश में कार्यपालिका ने जिस तरह से मनमानी शुरू कर दी थी वह गैरमामूली थी . लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद भारत की सरकार को भी अंदाज़ लग गया है कि इस देश में इंसाफ़ का सबसे बड़ा दरबार सरकार से भी ज्यादा ताक़तवर है और वह दरबार दिल्ली के तिलक मार्ग पर लगता है . सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीश जिस तरह से संविधान की रक्षा का दायित्व निभा रहे हैं , आने वाली नस्लें उस पर गर्व करेगीं.
आज सुप्रीम कोर्ट की वजह से ही कामनवेल्थ खेलों में हुई लूट पर सही जांच हो रही है. केंद्र सरकार ने पूरी कोशिश की कि उस घोटाले में शामिल छोटे छोटे अफसरों को पकड़ कर उन्हें बलि का बकरा बना दिया जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में जांच करने का आदेश देकर न्याय को पटरी से उतरने से बचा लिया .नतीजा यह है कि कामनवेल्थ खेलों के सबसे बड़े अधिकारी जेल में हैं . टू जी स्पेक्ट्रम के घोटाले में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करूणानिधि को भरोसा था कि केंद्र के कांग्रेसी नेता उनकी पार्टी और परिवार वालों की घूसखोरी का बुरा नहीं मानेगें . उनकी उम्मीद भी सही थी . प्रधान मंत्री ने बुरा नहीं माना लेकिन अदालत के आदेश के बाद सब कुछ बदल गया और तमिलनाडु के कई नेता जेलों में हैं. कई आई ए एस अफसर भी जेलों में हैं . कांग्रेस के नेताओं की समझ में आ गया है कि मनमानी करना अब आसान नहीं होगा. गुजरात के मुख्य मंत्री ने सपने में नहीं सोचा होगा कि उनके अधिकारियों की मनमानी पर कभी लगाम लगेगी लेकिन उनके बहुत करीबी एक मंत्री जेल में हैं और पुलिस के कई अफसर गिरफ्तार हैं . सुप्रीम कोर्ट के इंसाफ़ का इकबाल इतना बुलंद है कि अपराधी अधिकारियो और नेताओं का बच पाना बहुत मुश्किल है. जिन लोगों ने संसद में कैश फार वोट का शर्मनाक खेल खेला था वे भी पछता रहे हैं . सब को मालूम है कि कैश फार वोट के असली ज़िम्मेदार कौन लोग हैं लेकिन दिल्ली पुलिस ने पिछले तीन वर्षों में कुछ नहीं किया. अब जब सुप्रीम कोर्ट का हुक्म हुआ तो गिरफ्तारी शुरू हो गयी. हालांकि अभी बलि के बकरे ही पकडे जा रहे हैं लेकिन उम्मीद की जानी चाहिये कि असली गुनाहगार भी इंसाफ़ के सामने झुकने के लिए मजबूर किये जा सकेगें. उसी सुप्रीम कोर्ट पर अब उन मध्यवर्गीय भारतीयों की मजबूरी की निगाहें लगी हुई हैं जिन्होंने ग्रेटर नोयडा एक्सटेंशन में घर बनाने का सपना संजोया था . उम्मीद ही नहीं पक्का भरोसा है कि इंसाफ़ होगा और वह इंसाफ़ देश की सबसे बड़ी अदालत ही करेगी.
सही बात है असली पीड़ित तो बेचारे एक छत की तलाश में जीवन भर की जमा पूंजी गंवाने वाले वे लोग ही हैं,जिन्होंने फ्लैट बुक कराए थे। माननीय उच्चतम न्यायालय को उनकी तरफ भी ध्यान देना चाहिए।
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