शेष नारायण सिंह
अब पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष वही कहने लगे हैं जो भारत के सरकार को शक़ था और दुनिया भर के राजनीतिक टिप्पणीकार कई महीनों से कह रहे हैं . पाकिस्तानी सेनाओं के सुप्रीम कमांडर और राष्ट्रपति आसिफ ज़रदारी ने कहा है कि उनका देश एक तरफ धार्मिक अति उत्साही आतंकवाद और उग्रवाद से अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है और दूसरी तरफ भारी बाढ़ ने बहुत बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है . पाकिस्तान की इस स्वीकारोक्ति के बाद भारत सरकार के विदेश नीति के नियामक चिंतित हैं कि अगर पाकिस्तान ने अपने हालात को ठीक न किया तो उसके अस्तित्व पर आया संकट गहरा जाएगा जिसकी वजह से इलाके में अस्थिरता का माहौल बन जाएगा. पाकिस्तानी राष्ट्रपति का यह बयान उनके देश के रक्षा दिवस के मौके पर दिए गए सन्देश के रूप में आया है. पाकिस्तान में ६ सितम्बर का दिन रक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है . इसके पहले तो विजय दिवस के रूप में मनाया जाता था लेकिन बाद में जब पूरी दुनिया में इस तथाकथित विजय दिवस का मजाक उड़ाया जाने लगा तो बाद में इसे रक्षा दिवस का नाम दे दिया गया. इस सन्दर्भ में वयोवृद्ध पत्रकार खुशवंत सिंह का एक संस्मरण बहुत ही दिलचस्प है . साठ और सत्तर के दशक में खुशवंत सिंह टाइम्स ग्रुप की नामी पत्रिका इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इण्डिया के सम्पादक थे. और बम्बई में रहते थे. उसी दौर में किसी ६ सितम्बर के दिन उन्हें बम्बई स्थित पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास से दावतनामा मिला. वहां गए तो बेतरीन किस्म का खाना और दुनिया की सबसे महंगी शराब पीने को मिली. खुशवंत सिंह शराब के बहुत शौक़ीन हैं . बहुत खुश हुए और पूछा कि भाई यह दावत किस विजय की खुशी में है . उन्हें बताया गया कि पाकिस्तानी सेना ने जब १९६५ में भारतीय सेना पर विजय हासिल की थी, उसी दिन को पाकिस्तान में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.खुशवंत सिंह ने अपने संस्मरण में लिखा है कि उन्होंने लौट कर इस बारे में लिखा और सुझाया कि इस तरह के विजय दिवस पाकिस्तान को अक्सर मनाते रहना चाहिए . उन्होंने सुझाव दिया कि १९७१ की लड़ाई में भी पाकिस्तान को कोई विजय दिवस ढूंढ लेना चाहिए. बहरहाल खुशवंत सिंह की बात तो मजाक में टाल दी गयी लेकिन जब पूरी दुनिया में थकी हारी पाकिस्तानी फौज़ का मखौल उड़ने लगा तो पाकिस्तानी हुक्मरान ने विजय दिवस को पाकिस्तान के रक्षा दिवस के रूप में बदल दिया. रक्षा दिवस वाली बात भी कम दिलचस्प नहीं है हुआ यह था कि भारत के ऊपर १९६२ के चीनी हमले के बाद पाकिस्तानी तानाशाह जनरल अयूब खां को मुगालता हो गया था कि वे जब चाहें भारत को रौंद सकते हैं . इसी चक्कर में उन्होंने कश्मीरी नवयुवकों की शक्ल बनाकर करीब ३० हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों को जम्मू-कश्मीर में उतार दिया था . उसके बाद सैनिक हमला भी कर दिया . जब भारत की समझ में बात आई तो ज़बरदस्त जवाबी हमला हुआ. भारत की सेना लगभग लाहौर तक पंहुच गयी. ३ जाट रेजिमेंट ने तो इच्छोगिल नहर पार कर के लाहौर हवाई अड्डे की तरफ बढना शुरू कर दिया था . कुछ ही घंटों में हवाई अड्डा भारतीय सेना के कब्जे में हो जाता लेकिन अमरीका ने हस्तक्षेप किया और कहा कि कुछ घंटों के लिए युद्ध विराम कर दिया जाए जिस से अमरीकी नागरिकों को लाहौर से सुरक्षित निकाला जा सके. भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री यशवंतराव चह्वाण ने अमरीका को भरोसा दिलाया कि अमरीकी नागरिकों का कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन अमरीकी आग्रह को ठुकराना संभव नहीं था .वास्तव में यह अमरीकी चाल थी और इस बीच अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव का इंतजाम हो गया और लड़ाई रोक दी गयी. यह सब ६ सितम्बर १९६५ के दिन हुआ था . इसी लिए ६ सितमबर को पाकिस्तान में बहुत मह्त्व दिया जाता है. और रक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता हैं. पाकिस्तानी इतिहास के इतने महत्वपूर्ण दिन पर राष्ट्रपति का इतना निराशाजनक सन्देश चिंता का विषय है . ज़रदारी ने कहा है कि इस साल छः सितम्बर को पाकिस्तान बाकी वर्षों से ज्यादा खतरों का सामना कर रहा है . आतंकवादी और उग्रवादी मिलकर पाकिस्तानी समाज को बुरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं . आम तौर पर फर्जी शेखी में मुब्तिला रहने वाले पाकिस्तानी फौज़ी अफसर भी इस बार डरे सहमे हुए हैं . सेना के मुखिया जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने अपने सन्देश में कहा है कि,' आतंरिक रूप से हम आतंकवाद और उग्रवाद का सामना कर रहे हैं जिसकी वजह से देश की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है . ज़ाहिर है कि पाकित्सानी राह्स्त्र के सामने अपने ६३ साल के इतिहास का सबसे बड़ा संकट है और अगर कोई चमत्कार नहीं होता तो पाकिस्तान को तबाह होने से बचा पाना मुश्किल होगा . यहाँ यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि पाकिस्तान का तबाह होना किसी के हित में नहीं है. और अगर कुछ ज्यादा गड़बड़ हुआ तो सबसे ज्यादा परेशानी भारत को ही होगी. शायद इसी लिए भारत ने पाकिस्तान की बाढ़ राहत की कोशिश में मदद करने की पेशकश की है . हालांकि शुरू से ही भारत को दुश्मन के रूप में पेश कर रहे पाकिस्तानी हुक्मरान के लिए भारत से मदद लेना बहुत कठिन राजनीतिक फैसला साबित हो रहा है लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्र के सामने जो संकट है उस से बचने का सबसे कारगर तरीका भारत की मदद से ही निकल सकता है . क्योंकि भारत के पास प्राकृतिक आपदा से लड़ने का अनुभव भी है और क्षमता भी. हो सकता है कि भारत की मदद लेकर पाकिस्तानी हुकूमत को आतंकवादियों से भी जान छुडाने का मौक़ा मिले . यह भी संभव है कि इस मुसीबात की घड़ी में अगर भारत को दोस्त के रूप में पेश किया जा सका तो पाकिस्तानी अवाम का बहुत फायदा होगा क्योंकि भारत की दुश्मनी का डर दिखाकर ही पाकिस्तानी फौज़ी अफसर राष्ट्रीय सम्पदा का दोहन करते हैं और राजनीतिक नेतृत्व को ब्लैकमेल भी करते हैं
पाकिस्तान के इस हाल का वो खुद जिम्मेदार है , अमेरिका की फेकी रोटी खा सकता है, भारत से मिलने वाली मदद मंजूर नहीं ........
ReplyDeleteएक बार जरुर पढ़े :-
(आपके पापा इंतजार कर रहे होंगे ...)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html
पड़ोसी का रिश्ता होता ही ऐसा है, न उगलते बनता है, न निगलते।
ReplyDelete"...पाकिस्तान की इस स्वीकारोक्ति के बाद भारत सरकार के विदेश नीति के नियामक चिंतित हैं कि अगर पाकिस्तान ने अपने हालात को ठीक न किया तो उसके अस्तित्व पर आया संकट गहरा जाएगा जिसकी वजह से इलाके में अस्थिरता का माहौल बन जाएगा..."
ReplyDeleteएक बिगड़ी हुई औलाद, एक धरती के बोझ, एक खून चूसने वाले पिस्सू, की हालत ऐसी क्यों है सभी जानते हैं फ़िर भी उसे "पालने" का जिम्मा हम ही उठायें? सदभावना और सहिष्णुता की कितनी कीमत चुकाएंगे हम? और उसे भीख में देने के लिये क्या भारत के पास इफ़रात में पैसा है या भारत के गरीब अचानक अमीर और खुशहाल हो गये हैं?