Monday, April 5, 2010

मैदान मेरा हौसला है और अंगारा मेरी ख्वाहिश

शेष नारायण सिंह

बड़े जोर शोर से प्रचार करने के बाद भी ,मुंबई में महेश दत्तानी के नाटक 'सारा' के खिलाफ तोड़ फोड़ करने के अपने फैसले को शिव सेना लागू नहीं कर सकी. और जब पुलिस ने माहौल बहुत ही गरम कर दिया तो शिव सेना के एक छुट भैया नेता ने घोषणा कर दी कि पार्टी ने विरोध करने के अपने फैसले को स्थगित कर दिया है . यह अलग बात है कि जब यह बयान आया तो थियेटर पर विरोध करने गए दो चार शिव सैनिक पिट कर वापस आ चुके थे .और पुलिस बाकी लोगों को धमका रही थी. बान्द्रा के एक नामी थियेटर में नाटक के प्रदर्शन की घोषणा के बाद शिव सेना ने अपने पुराने तरीकों का इस्तेमाल करते हुए नाटक के प्रदर्शन के दौरान तोड़ फोड़ की धमकी देकर अपने वसूली के धंधे को परवान चढाने की कोशिश की थी लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उनकी एक न चली और भागना पड़ा . उनका विरोध नाटक के पाकिस्तानी होने के कारण था. जब की सच्चाई है है कि नाटक भारतीय था,अलबत्ता उसमें मुख्य करेक्टर पाकिस्तानी शायर 'सारा शगुफ्ता ' के जीवन पर आधारित था .
शिव सेना के पुराने वक्तों में उनकी धमकी के बाद किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी कि वह कोई नाटक या सिनेमा प्रदर्शित करे. लेकिन अब शिव सेना की धमकियों को मुंबई की कलाकार बिरादरी ने गंभीरता से लेना बंद कर दिया है. इस घटना से एक बात और साफ़ हो गयी है कि शिव सेना के लोग बिना कुछ जाने समझे दौड़ पड़ते हैं . वास्तव में यह नाटक पकिस्तान के समाज को एक बहुत ही घटिया रोशनी में पेश करता है जिस से .कायदे से शिव सेना को खुश होना चाहिए लेकिन अगर इतनी समझ होती तो शिव सैनिक क्यों बनते

नाटक 'सारा' औरत होने की सच्चाई को परत दर परत खोलता है . शाहिद अनवर के इस नाटक में पाकिस्तानी शायरा 'सारा शगुफ्ता' की ज़िंदगी के अंतर विरोधों को प्रस्तुत किया गया है ..लेकिन बात को इतने सलीके से कहा गया है कि यह पूरी दुनिया की औरत की मजबूरी का एक दस्तावेज़ बन गया है . १४ साल की उम्र में अपने से कई साल बड़े अधेड़ से शादी करने और ३ बच्चे पैदा करने के बीच सारा शगुफ्ता जिस नरक से गुज़र रही थीं, उसे इस प्रस्तुति में बहुत ही बेबाक तरीके से पेश किया गया है.उसके बाद उनकी बाकी तीन शादियों को भी एक मजबूर औरत के मज़बूत हो रहे हौसलों की रोशनी में पेश किया गया है .उनके अपने बच्चे उनसे छीनने की कोशिश की गयी . आरोप लगा कि वे बदचलन थीं . उन्होंने अदालत में स्वीकार कर लिया कि वे बद चलन थीं और वे तीनों बच्चे उनके तो थे लेकिन उनके शौहर के नहीं थे .अदालत ने बच्चों की कस्टडी सारा के हवाले कर दिया .और फिर एक बार यतीम होने का अहसास उन्होंने बहुत करीब से देखा क्योंकि अपने ११ भाई बहनों के साथ सारा भी यतीम थीं ,हालांकि उनका बाप जिंदा था. पाकिस्तानी समाज में औरत की दुर्दशा को रेखांकित करने की यह कोशिश बात को बिलकुल नारे की शक्ल में कह देती है.

'मोनोलाग' शैली में प्रस्तुत किये गए नाटक सारा शगुफ्ता का सबसे सशक्त पक्ष है उसके संवाद जिसे अभिनेत्री, सीमा आजमी ने बहुत ही खूब सूरत तरीके से पेश किया. जब सीमा कहती हैं कि ' मैदान मेरा हौसला है और अंगारा मेरी ख्वाहिश 'तो लगता है कि काश हर औरत इसी तरह उठ खडी होती तो दुनिया बदल जाती. २९ साल की उम्र में सारा शगुफ्ता ने खुदकुशी की . इसके पहले भी वे ४ बार खुदखुशी की कोशिश कर चुकी थीं लेकिन नाकामयाब रही थीं . इस बीच उन्हें ४ बार शादियाँ करनी पड़ी.. पागलखाने गयीं और वहां देखा कि जो औरतें वहां दाखिल की गयी हैं उनमें से कोई भी पागल नहीं है . सबके घर वालों ने उन्हें जायदाद हड़पने के लिए पागल करार देकर अफसरों को घूस दे कर वहाँ भर्ती करवा दिया है .कुछ दिन बाद जब पागल खाने से उनकी रिहाई हुई तो वे बहुत रोयीं क्योंकि पहली बार कुछ ऐसे इंसानों से बिछुड़ रही थीं जिन्हें वे सही में मुहब्बत करने लगी थी.
सारा शगुफ्ता की भारत की नामी साहित्यकार, अमृता प्रीतम से दोस्ती थी. हालांकि उम्र में बहुत फर्क था लेकिन औरत होने का एहसास उनको उन्हीं जमातों में खड़ाकर देता था जिसमें अमृता जैसी महिलायें खडी थी, यहाँ का खुलापन देख कर उन्हें लगा कि काश उनका अपन बदन ही उनका अपना वतन होता. लेकिन जब दिल्ली में कुछ दिन रह चुकीं तो उन्हें साफ़ नज़र आने लगा कि यहाँ भी मर्दवादी सोच के लोग औरत को उसी तरह देखते हैं जैसे उनके अपने पकिस्तान में . उन्होंने अपने आप से बार बार सवाल किया कि लोग अकेली औरत से इतना डरते क्यों हैं औरत की वफादारी पर शक़ क्यों करते हैं ,वफादारी की गलियों में आज भी कुतिया कम और कुत्ता ज़्यादा इज्ज़त क्यों पाता है . सारा शगुफ्ता ने लिखा है कि वे सवाल की गहराई तक नहीं जाना चाहतीं क्योंकि कहीं फ़रिश्ते लपेट में ना आ जाएँ.

मुंबई के मानिक सभागृह में प्रस्तुत यह नाटक एक प्रयोग था . महेश दत्तानी का निदेशन बेहतरीन है और सीमा आजमी की अभिनय क्षमता ऐसी बांकी कि कुछ देर बाद ऐसा लगने लगा कि स्टेज पर सीमा नहीं , सारा शगुफ्ता ही खडी हैं .

4 comments:

  1. शेष जी, इस लेख के लिए धन्यवाद्. सारा शगुफ्ता पर एकाँकी....अच्छी ख़बर है.
    जहाँ तक शिव सैनिकों का सवाल है शेष भारत को अपना दुश्मन बना चुके ये कुँए के मेंढक अब सिर्फ़ टर्र टर्र का शोर कर सकते हैं ... उसके दिन भी जल्द ही लद जाएंगे.

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  2. शेष जी, इस लेख के लिए धन्यवाद्. सारा शगुफ्ता पर एकाँकी....अच्छी ख़बर है.
    जहाँ तक शिव सैनिकों का सवाल है शेष भारत को अपना दुश्मन बना चुके ये कुँए के मेंढक अब सिर्फ़ टर्र टर्र का शोर कर सकते हैं ... उसके दिन भी जल्द ही लद जाएंगे.

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  3. ...और सारा को दिल्ली से कब मिलवा रहे हैं? बात पक्की कर के आइयेगा, उनके चाहने वाले यहाँ कम नहीं, आज भी उस दौर को लोग याद करते हैं जब वो हिंदुस्तान में थीं और Queen Bee थीं!

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  4. सारा शगुफ्ता पर दो किताबें हर किसी को पढनी चाहिए....एक सारा के नज्मो का संकलन 'शायरी झंकार नहीं' और दूसरी अमृता प्रीतम द्वारा लिखी सारा की जीवनी 'एक थी सारा'...

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