शेष नारायण सिंह
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वे सारे रिकार्ड नष्ट करवा दिए जिसकी बिना पर उन्हें सज़ा हो सकती थी. २७ फरवरी से ९ मार्च के पुलिस के वे सारे रिकार्ड जिनसे साबित हो जाता कि उन्होंने पुलिस को हिदायत दी थी कि बीजेपी, विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल के लोगों को क़त्लो गारद करने की खुली छूट दे दो, अब नष्ट कर दिए गए हैं . इस सन्दर्भ में जब पुलिस के आला आधिकारियों से पूछा गया कि ऐसा क्यों हुआ तो उन्होंने बता दिया कि पुलिस विभाग में यह नियम है कि पांच साल बाद वे सारे "गैरज़रूरी" कागजात नष्ट कर दिए जाते हैं जिनका किसी भी "मुक़दमे में कोई इस्तेमाल न हो". यह हैरानी की बात है कि पुलिस के आला हाकिमों ने तय कर लिया कि वे सारे कागज़ जिन में ऐसे सबूत हैं जिस से मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को सज़ा मिल सकती हो , वे गैर ज़रूरी हैं और उनका किसी भी मुक़दमें में कोई इस्तेमाल नहीं है . जबकि अभे यूं सभी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है .ज़ाहिर है यह कागज़ नरेंद्र मोदी के प्रयास से ही नष्ट किये गए होंगें . अगर नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री न होते तो उनके राज्य के पुलिस अफसरों ने ही उनके खिलाफ सबूत नष्ट करने का मुक़दमा दर्ज कर दिया होता और उन्हें तीन साल की सज़ा बामशक्कत करवा देते . लेकिन ऐसा नहीं होगा क्योंकि वहां मोदी का राज है और जो भी मोदी से कानून और संविधान की बात करेगा उसे सज़ा दी जायेगी .ठीक वैसी ही सज़ा जो आजकल आई पी एस अफसर संजीव भट्ट को दी जा रही है .जब उस वक़्त गाँधी नगर में तैनात आला पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया था कि मुख्यमंत्री के आवास में उनकी मौजूदगी में हुई बैठक में नरेंद्र मोदी ने अफसरों को बता दिया था कि मुसलमानों को सबक सिखाना है और मुसलमानों को बचाने की कोई भी कोशिश नहीं की जानी चाहिए . हालांकि उनके इस हलफनामे को उस वक़्त मीटिंग में मौजूद एक बड़े अफसर ने गलत बताया है लेकिन परिस्थितिजन्य साक्ष्य ऐसे हैं कि किसी चाटुकार अफसर की बात को गंभीरता से लेने की कोई ज़रूरत नहीं है . दर असल मोदी ने उन सभी अफसरों को बहुत कमाई करवाई थी जिन्होंने मुसलमानों को सबक सिखाने के उनके प्रोजेक्ट में मदद की थी. जिन लोगों ने उनकी मनमानी में साथ नहीं दिया था या अपनी सही ड्यूटी करने के चक्कर में नरसंहार के काम में मोदी का हुकुम नहीं माना था उनको दण्डित किया गया था. संजीव भट्ट की श्रेणी में ही एक और अफसर का नाम सुर्ख़ियों में आया था जो २००२ में जामनगर नगर निगम का कमिश्नर था . उसने भी कहा है कि वह सुप्रीम कोर्ट में हाज़िर होकर बयान देने के लिए तैयार है कि मोदी ने किस तरह से हत्याकांड की साज़िश रची और उसे अपनी मर्जी के अंजाम तक पंहुचाया . इस अफसर का भाई भी गुजरात पुलिस में बड़ा अधिकारी है और वह भी अदालत में बयान देना चाहता है .उसका दावा है कि उसके ऊपर नरेंद्र मोदी के कारिंदों और अफसरों ने किस तरह दबाव डाला .इन दोनों भाइयों को राज्य सरकार की ओर से परेशान किया जा रहा है. आई ए एस अफसर भाई को तो किसी मामूली अपराध में बुक करने जेल में डाल दिया गया है . इसके पहले हज़ारों लोग खुलकर मोदी की सच्चाई पब्लिक डोमेन में डाल चुके हैं. लेकिन कहीं कुछ नहीं हो रहा है . मोदी छुट्टा घूम रहे हैं . इस सारे प्रकरण में दिल्ली के राजनेताओं का रवैया बहुत ही चिंताजनक है . जहां तक बीजेपी का सवाल है ,उसके नेता तो मोदी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं . जैसे ही मोदी की कोई पोल खुलती है , यह लोग दिल्ली में ऐसा माहौल बना देते है कि जैसे मोदी को किसी साज़िश का शिकार बनाया जा रहा है . संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था तो बीजेपी के मोदी गुट के एक बड़े नेता ने बयान दिया था कि जब भी मोदी के बारे में सुप्रीम कोर्ट में कोई सुनवाई होती है कुछ लोग झूठ को तथ्य बनाकर प्रचार करने लगते हैं . वैसे भी भीजेपी के आला नेता शुरू से ही गुजरात नरसंहार २००२ के हर तथ्य को ढंकते रहे हैं . मोदी की राजनीति के सहारे वे पूरे देश के लोगों बाँट कर भारत में राज करने के सपने देख रहे हैं.जिस पार्टी के मालिक, आर एस एस वालों ने महात्मा गाँधी को नहीं छोड़ा उनसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है. इन अफसरों ने जो कुछ भी कहा था सब कुछ उन दस्तावेजों में था जिसे अब मोदी की सरकार ने नष्ट कर दिया है . ज़ाहिर है कि इन कागजों के ख़त्म हो जाने के बाद मोदी और उनके कारिंदे ईमानदार और संविधान के प्रति प्रतिबंद्ध अफसरों को झूठा साबित करने की कोशिश करेगें . उम्मीद केवल सुप्रीम कोर्ट से है . केंद्र सरकार और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी तो मोदी के साथ ही खड़े नज़र आते हैं .
Thursday, June 30, 2011
Wednesday, June 29, 2011
भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के पीछे कहीं साम्प्रदायिकता की राजनीति तो नहीं
शेष नारायण सिंह
बहुत दिन बाद कुछ चुनिन्दा पत्रकारों से मुखातिब हुए मनमोहन सिंह ने अपनी बात बतायी. उनके मीडिया सलाहकार के पांच मित्र पत्रकारों के कान में उन्होंने कुछ बताया लेकिन जब देखा कि वहां से निकलकर वे संपादक लोग प्रेस कानफरेंस करने लगे हैं और प्रधान मंत्री की बात पर अपनी व्याख्या कर रहे हैं तो हडबडी में करीब नौ घंटे बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाईट पर सरकारी पक्ष भी रख दिया गया.उनके दफतर वालों की मेहनत से जारी की गयी ट्रान्सक्रिप्ट पर नज़र डालें तो साफ़ लगता है कि दिल्ली के सत्ता के गलियारों में तैर रही बहुत सारी कहानियों को खारिज करने के लिए प्रधानमंत्री ने इन पंज प्यारों को तलब किया था.उन्होंने एक बार फिर ऐलान किया कि वे कठपुतली प्रधानमंत्री नहीं हैं . राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान को भी उन्होंने अपने तरीके से हैंडिल करने की कोशिश की . कांग्रेस के एक वर्ग की तरफ से चल रहे उस अभियान को भी उन्होंने दफन करने की कोशिश की जिसके तहत दिल्ली में यह कानाफूसी चल रही है कि सारे भ्रष्टाचार की जड़ में प्रधानमंत्री ही हैं . देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि अपने आप को बचाने के लिए ही वे प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के घेरे में नहीं आने देना चाहते . लेकिन डॉ मनमोहन सिंह ने बहुत ही बारीकी से यह बात स्पष्ट कर दी कि दरअसल कांग्रेस का वह वर्ग प्रधानमंत्री को लोकपाल से बाहर रखने के चक्कर में है जो भावी प्रधानमंत्री की टोली में है. जहां तक उनका सवाल है , वे तो प्रधानमंत्री को लोकपाल की जांच में लाना चाहते हैं . राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनवाने की कोशिश में लगे नेताओं को उनके इस बयान का असर कम करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी. संपादकों से प्रधानमंत्री के संवाद की यह वे बातें हैं जो आम तौर पर सबकी समझ में आयीं और टेलिविज़न में काम करने वाले कुछ अफसर पत्रकारों ने इसे टी वी के ज़रिये पूरी दुनिया को बताया और सर्वज्ञ की मुद्रा में बहसों को संचालित किया . दिल्ली शहर में बुधवार को कई ऐसे पत्रकारों के दर्शन हुए जो कई वर्षों से प्रधानमंत्री और उनके मीडिया सलाहकार के ख़ास सहयोगी माने जाते थे लेकिन संवाद में नहीं बुलाये गए. उनके चहरे लटके हुए थे. जो लोग नहीं बुलाये गए थे उन्होंने अपने अपने चैनलों पर बाकायदा प्रचारित करवाया कि प्रधानमंत्री अपनी कोशिश में फेल हो गए हैं .इन बातों का कोई मतलब नहीं है , दिल्ली में यह हमेशा से ही होता रहा है .ज़्यादातर प्रधानमंत्री इन्हीं मुद्दों में घिरकर अपने आपको समाप्त करते रहे हैं .केवल जवाहरलाल नेहरू ऐसे व्यक्ति थे जिनको हल्की बातों में कभी नहीं घेरा जा सका.प्रधानमंत्री ने आर एस एस और बीजेपी की अगुवाई में शुरू किये गए उस अभियान को पकड़ने की कोशिश की जिसके बल पर हर बार आर एस एस ने देश की जनता को अपनी राजनीति का हिस्सा बनाने में सफलता पायी है . उन्होंने संसद, सी ए जी और मीडिया से अपील की उनकी सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार साबित करने की आर एस एस की कोशिश का हिस्सा न बनें और पूरी दुनिया के माहौल को नज़र में रख कर फैसले करें.उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थ के लोग उनकी सरकार को लुंजपुंज सरकार साबित करने की फ़िराक़ में हैं और मीडिया उनको हवा दे रहा है. उन्होंने मीडिया से अपील की कृपया सच्चाई की परख के बाद ही अपनी ताक़त का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ करें.
भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की आर एस एस और बीजेपी की कोशिश को पकड़कर प्रधानमंत्री ने निश्चित रूप से दक्षिणपंथी राजनीति को अर्दब में लेने की कोशिश की है .यह बात स्पष्ट कर देने की ज़रुरत है कि १९६७ से लेकर अबतक लगभग सभी सरकारें भ्रष्ट रही हैं . उन पर विस्तार से चर्चा करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सब को मालूम है कि टाप पर फैले भ्रष्टाचार का शिकार हर हाल में गरीब आदमी ही होता है और उसे मालूम है कि सरकार भ्रष्ट है . लेकिन भारत के समकालीन इतिहास में तीन बार केंद्रीय सरकार को भ्रष्ट साबित करके आर एस एस ने अपने आपको मज़बूत किया है. यह अलग बात है कि २००४ के चुनावों में कांग्रेस ने भी बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को महाभ्रष्ट साबित करके एन डी ए की सरकार को पैदल किया था . लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट साबित करने की कोशिश के बाद हमेशा ही आर एस एस के हाथ सत्ता लगती रही है . इस विषय पर थोड़े विस्तार से चर्चा कर लेने से तस्वीर साफ़ होने में मदद मिलेगी. १९७४ में जब जयप्रकाश नारायण का आन्दोलन शुरू हुआ तो उसमें बहुत कम संख्या में लोग शामिल थे लेकिन जब के एन गोविन्दाचार्य ने पटना में उनसे मुलाकात की और आर एस एस को उनके पीछे लगा दिया तो बात बदल गयी. राजनीति की सीमित समझ रखने वाली इंदिरा गाँधी ने थोक में गलतियाँ कीं और १९७७ में अर एस एस के सहयोग से केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बन गयी. महात्मा गाँधी की हत्या के आरोपों की काली छाया में जी रहे संगठन को जीवनदायिनी ऊर्जा मिल गयी.आर एस एस की ओर से बीजेपी में सक्रिय ,उस वक़्त के सबसे बड़े नेता, नानाजी देशमुख ने खुद तो मंत्री पद नहीं स्वीकार किया लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को कैबिनेट में अहम विभाग दिलवा दिया . जनता पार्टी की सरकार में आर एस एस के कई बड़े कार्यकर्ता बहुत ही ताक़तवर पदों पर पंहुच गए. बाद में समाजवादी चिन्तक और जनता पार्टी के नेता मधु लिमये ने इन लोगों को काबू में करने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी . आर एस एस वालों ने जनता पार्टी को तोड़ दिया और बीजेपी की स्थापना कर दी. लेकिन आर एस एस के नियंत्रण में एक बड़ी राजनीतिक पार्टी आ चुकी थी. आज के बीजेपी के सभी बड़े नेता उसी दौर में राजनीति में आये थे और आज उनके सामने ज़्यादातर पार्टियों के नेता बौने नज़र आते हैं .राजनाथ सिंह , सुषमा स्वराज, नरेंद्र मोदी, सुशील कुमार मोदी सब उसी दौर के युवक नेता हैं .दिलचस्प बात यह है कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया गया था क्योंकि सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी की सरकार अपनी पूर्ववर्ती कांग्रेस से भी ज्यादा भ्रष्ट साबित हुई .
दूसरी बार भ्रष्टाचार के खिलाफ जब आर एस एस ने अभियान चलाया तो मस्कट के रूप में राजीव गाँधी के वित्तमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को आगे किया गया . राजीव गाँधी की टीम में राजनीतिक रूप से निरक्षर लोगों का भारी जमावड़ा था . उन लोगों ने भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को ठीक से नहीं संभाला और वी पी सिंह की कठपुतली सरकार बना दी गयी. उस सरकार का कंट्रोल पूरी तरह से आर एस एस के हाथ में था और बाबरी मस्जिद के मुद्दे को हवा देने के लिए जितना योगदान वी पी सिंह ने किया उतना किसी ने नहीं किया . वी पी सिंह के अन्तःपुर में सक्रिय सभी बड़े नेता बाद में बीजेपी के नेता बन गए. अरुण नेहरू, आरिफ मुहम्मद खान और सतपाल मलिक का नाम प्रमुखता से वी पी सिंह के सलाहकारों में था . बाद में सभी बीजेपी में शामिल हो गए.बाबरी मस्जिद के मुद्दे को पूरी तरह से गरमाने के बाद भ्रष्टाचार और बोफर्स को भूल कर आर एस एस ने केंद्र में सत्ता स्थापित करने की रण नीति पर काम करना शुरू कर दिया था..
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश को लामबंद करके सत्ता हासिल करने के नुस्खे को आर एस एस ने बार बार आजमाया है.यह भी पक्की बात है कि उसके बाद सत्ता भी मिलती है . लेकिन इस बार लगता है कि मनमोहन सिंह उनकी इस योजना की हवा निकालने का मन बना चुके हैं . आर एस एस ने पहले तो अन्ना हजारे को आगे करने की कोशिश की लेकिन सोनिया गाँधी ने उनको अपना बना लिया .बीजेपी के नेता बहुत निराश हो गए .अन्ना हजारे का इस्तेमाल मनमोहन सिंह के खिलाफ तो हो रहा है लेकिन वे बीजेपी के राजसूय यज्ञ का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हैं . इस खेल के फेल होने पर बीजेपी अध्यक्ष ,नितिन गडकरी ने योग के टीचर रामदेव को आगे किया लेकिन भ्रष्टाचार की हर विधा में गले तक डूबे रामदेव अब उनकी जान की मुसीबत बने हुए हैं . इन सारे नहलों पर बुधवार को चुनिन्दा और वफादार संपादकों को बुलाकर प्रधान मंत्री ने भारी दहला मारा और साफ़ संकेत दे दिया कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की मंशा को वे उजागर कर देंगें . ज़ाहिर है इस संकेत में यह भी निहित है कि वे पब्लिक डोमेन यह सूचना भी डाल देने वाले हैं कि भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर आर एस एस अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को चमकाने के फ़िराक़ में है . जानकार समझ गए हैं कि प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार को निहित स्वार्थों का एजेंडा साबित करने की कोशिश करके अपनी पार्टी के उन लोगों को भी धमकाने की कोशिश की है जो उनको राहुल गाँधी का नाम लेकर डराते रहते हैं . जहां तक बीजेपी का सवाल है उनको तो सौ फीसदी घेरे में लेने की योजना साफ़ नज़र आ रही है . जो भी हो अगले कुछ महीने साम्प्रदायिक राजनीति के विमर्श में इस्तेमाल होने वाले हैं . अगर प्रधानमंत्री ने देश की सेकुलर जमातों को अपना ,मकसद समझाने में सफलता हासिल कर ली तो एक बार बीजेपी फिर बैकफुट पर आ जायेगी
बहुत दिन बाद कुछ चुनिन्दा पत्रकारों से मुखातिब हुए मनमोहन सिंह ने अपनी बात बतायी. उनके मीडिया सलाहकार के पांच मित्र पत्रकारों के कान में उन्होंने कुछ बताया लेकिन जब देखा कि वहां से निकलकर वे संपादक लोग प्रेस कानफरेंस करने लगे हैं और प्रधान मंत्री की बात पर अपनी व्याख्या कर रहे हैं तो हडबडी में करीब नौ घंटे बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाईट पर सरकारी पक्ष भी रख दिया गया.उनके दफतर वालों की मेहनत से जारी की गयी ट्रान्सक्रिप्ट पर नज़र डालें तो साफ़ लगता है कि दिल्ली के सत्ता के गलियारों में तैर रही बहुत सारी कहानियों को खारिज करने के लिए प्रधानमंत्री ने इन पंज प्यारों को तलब किया था.उन्होंने एक बार फिर ऐलान किया कि वे कठपुतली प्रधानमंत्री नहीं हैं . राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने के अभियान को भी उन्होंने अपने तरीके से हैंडिल करने की कोशिश की . कांग्रेस के एक वर्ग की तरफ से चल रहे उस अभियान को भी उन्होंने दफन करने की कोशिश की जिसके तहत दिल्ली में यह कानाफूसी चल रही है कि सारे भ्रष्टाचार की जड़ में प्रधानमंत्री ही हैं . देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि अपने आप को बचाने के लिए ही वे प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के घेरे में नहीं आने देना चाहते . लेकिन डॉ मनमोहन सिंह ने बहुत ही बारीकी से यह बात स्पष्ट कर दी कि दरअसल कांग्रेस का वह वर्ग प्रधानमंत्री को लोकपाल से बाहर रखने के चक्कर में है जो भावी प्रधानमंत्री की टोली में है. जहां तक उनका सवाल है , वे तो प्रधानमंत्री को लोकपाल की जांच में लाना चाहते हैं . राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनवाने की कोशिश में लगे नेताओं को उनके इस बयान का असर कम करने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ेगी. संपादकों से प्रधानमंत्री के संवाद की यह वे बातें हैं जो आम तौर पर सबकी समझ में आयीं और टेलिविज़न में काम करने वाले कुछ अफसर पत्रकारों ने इसे टी वी के ज़रिये पूरी दुनिया को बताया और सर्वज्ञ की मुद्रा में बहसों को संचालित किया . दिल्ली शहर में बुधवार को कई ऐसे पत्रकारों के दर्शन हुए जो कई वर्षों से प्रधानमंत्री और उनके मीडिया सलाहकार के ख़ास सहयोगी माने जाते थे लेकिन संवाद में नहीं बुलाये गए. उनके चहरे लटके हुए थे. जो लोग नहीं बुलाये गए थे उन्होंने अपने अपने चैनलों पर बाकायदा प्रचारित करवाया कि प्रधानमंत्री अपनी कोशिश में फेल हो गए हैं .इन बातों का कोई मतलब नहीं है , दिल्ली में यह हमेशा से ही होता रहा है .ज़्यादातर प्रधानमंत्री इन्हीं मुद्दों में घिरकर अपने आपको समाप्त करते रहे हैं .केवल जवाहरलाल नेहरू ऐसे व्यक्ति थे जिनको हल्की बातों में कभी नहीं घेरा जा सका.प्रधानमंत्री ने आर एस एस और बीजेपी की अगुवाई में शुरू किये गए उस अभियान को पकड़ने की कोशिश की जिसके बल पर हर बार आर एस एस ने देश की जनता को अपनी राजनीति का हिस्सा बनाने में सफलता पायी है . उन्होंने संसद, सी ए जी और मीडिया से अपील की उनकी सरकार को सबसे भ्रष्ट सरकार साबित करने की आर एस एस की कोशिश का हिस्सा न बनें और पूरी दुनिया के माहौल को नज़र में रख कर फैसले करें.उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थ के लोग उनकी सरकार को लुंजपुंज सरकार साबित करने की फ़िराक़ में हैं और मीडिया उनको हवा दे रहा है. उन्होंने मीडिया से अपील की कृपया सच्चाई की परख के बाद ही अपनी ताक़त का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ करें.
भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की आर एस एस और बीजेपी की कोशिश को पकड़कर प्रधानमंत्री ने निश्चित रूप से दक्षिणपंथी राजनीति को अर्दब में लेने की कोशिश की है .यह बात स्पष्ट कर देने की ज़रुरत है कि १९६७ से लेकर अबतक लगभग सभी सरकारें भ्रष्ट रही हैं . उन पर विस्तार से चर्चा करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि सब को मालूम है कि टाप पर फैले भ्रष्टाचार का शिकार हर हाल में गरीब आदमी ही होता है और उसे मालूम है कि सरकार भ्रष्ट है . लेकिन भारत के समकालीन इतिहास में तीन बार केंद्रीय सरकार को भ्रष्ट साबित करके आर एस एस ने अपने आपको मज़बूत किया है. यह अलग बात है कि २००४ के चुनावों में कांग्रेस ने भी बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को महाभ्रष्ट साबित करके एन डी ए की सरकार को पैदल किया था . लेकिन केंद्र की कांग्रेस सरकार को भ्रष्ट साबित करने की कोशिश के बाद हमेशा ही आर एस एस के हाथ सत्ता लगती रही है . इस विषय पर थोड़े विस्तार से चर्चा कर लेने से तस्वीर साफ़ होने में मदद मिलेगी. १९७४ में जब जयप्रकाश नारायण का आन्दोलन शुरू हुआ तो उसमें बहुत कम संख्या में लोग शामिल थे लेकिन जब के एन गोविन्दाचार्य ने पटना में उनसे मुलाकात की और आर एस एस को उनके पीछे लगा दिया तो बात बदल गयी. राजनीति की सीमित समझ रखने वाली इंदिरा गाँधी ने थोक में गलतियाँ कीं और १९७७ में अर एस एस के सहयोग से केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बन गयी. महात्मा गाँधी की हत्या के आरोपों की काली छाया में जी रहे संगठन को जीवनदायिनी ऊर्जा मिल गयी.आर एस एस की ओर से बीजेपी में सक्रिय ,उस वक़्त के सबसे बड़े नेता, नानाजी देशमुख ने खुद तो मंत्री पद नहीं स्वीकार किया लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को कैबिनेट में अहम विभाग दिलवा दिया . जनता पार्टी की सरकार में आर एस एस के कई बड़े कार्यकर्ता बहुत ही ताक़तवर पदों पर पंहुच गए. बाद में समाजवादी चिन्तक और जनता पार्टी के नेता मधु लिमये ने इन लोगों को काबू में करने की कोशिश की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी . आर एस एस वालों ने जनता पार्टी को तोड़ दिया और बीजेपी की स्थापना कर दी. लेकिन आर एस एस के नियंत्रण में एक बड़ी राजनीतिक पार्टी आ चुकी थी. आज के बीजेपी के सभी बड़े नेता उसी दौर में राजनीति में आये थे और आज उनके सामने ज़्यादातर पार्टियों के नेता बौने नज़र आते हैं .राजनाथ सिंह , सुषमा स्वराज, नरेंद्र मोदी, सुशील कुमार मोदी सब उसी दौर के युवक नेता हैं .दिलचस्प बात यह है कि केवल राजनीतिक लाभ के लिए भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया गया था क्योंकि सत्ता में आने के बाद जनता पार्टी की सरकार अपनी पूर्ववर्ती कांग्रेस से भी ज्यादा भ्रष्ट साबित हुई .
दूसरी बार भ्रष्टाचार के खिलाफ जब आर एस एस ने अभियान चलाया तो मस्कट के रूप में राजीव गाँधी के वित्तमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को आगे किया गया . राजीव गाँधी की टीम में राजनीतिक रूप से निरक्षर लोगों का भारी जमावड़ा था . उन लोगों ने भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को ठीक से नहीं संभाला और वी पी सिंह की कठपुतली सरकार बना दी गयी. उस सरकार का कंट्रोल पूरी तरह से आर एस एस के हाथ में था और बाबरी मस्जिद के मुद्दे को हवा देने के लिए जितना योगदान वी पी सिंह ने किया उतना किसी ने नहीं किया . वी पी सिंह के अन्तःपुर में सक्रिय सभी बड़े नेता बाद में बीजेपी के नेता बन गए. अरुण नेहरू, आरिफ मुहम्मद खान और सतपाल मलिक का नाम प्रमुखता से वी पी सिंह के सलाहकारों में था . बाद में सभी बीजेपी में शामिल हो गए.बाबरी मस्जिद के मुद्दे को पूरी तरह से गरमाने के बाद भ्रष्टाचार और बोफर्स को भूल कर आर एस एस ने केंद्र में सत्ता स्थापित करने की रण नीति पर काम करना शुरू कर दिया था..
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर देश को लामबंद करके सत्ता हासिल करने के नुस्खे को आर एस एस ने बार बार आजमाया है.यह भी पक्की बात है कि उसके बाद सत्ता भी मिलती है . लेकिन इस बार लगता है कि मनमोहन सिंह उनकी इस योजना की हवा निकालने का मन बना चुके हैं . आर एस एस ने पहले तो अन्ना हजारे को आगे करने की कोशिश की लेकिन सोनिया गाँधी ने उनको अपना बना लिया .बीजेपी के नेता बहुत निराश हो गए .अन्ना हजारे का इस्तेमाल मनमोहन सिंह के खिलाफ तो हो रहा है लेकिन वे बीजेपी के राजसूय यज्ञ का हिस्सा बनने को तैयार नहीं हैं . इस खेल के फेल होने पर बीजेपी अध्यक्ष ,नितिन गडकरी ने योग के टीचर रामदेव को आगे किया लेकिन भ्रष्टाचार की हर विधा में गले तक डूबे रामदेव अब उनकी जान की मुसीबत बने हुए हैं . इन सारे नहलों पर बुधवार को चुनिन्दा और वफादार संपादकों को बुलाकर प्रधान मंत्री ने भारी दहला मारा और साफ़ संकेत दे दिया कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की मंशा को वे उजागर कर देंगें . ज़ाहिर है इस संकेत में यह भी निहित है कि वे पब्लिक डोमेन यह सूचना भी डाल देने वाले हैं कि भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर आर एस एस अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को चमकाने के फ़िराक़ में है . जानकार समझ गए हैं कि प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार को निहित स्वार्थों का एजेंडा साबित करने की कोशिश करके अपनी पार्टी के उन लोगों को भी धमकाने की कोशिश की है जो उनको राहुल गाँधी का नाम लेकर डराते रहते हैं . जहां तक बीजेपी का सवाल है उनको तो सौ फीसदी घेरे में लेने की योजना साफ़ नज़र आ रही है . जो भी हो अगले कुछ महीने साम्प्रदायिक राजनीति के विमर्श में इस्तेमाल होने वाले हैं . अगर प्रधानमंत्री ने देश की सेकुलर जमातों को अपना ,मकसद समझाने में सफलता हासिल कर ली तो एक बार बीजेपी फिर बैकफुट पर आ जायेगी
Tuesday, June 28, 2011
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को बदनाम करना मुसलमानों के खिलाफ साज़िश है
शेष नारायण सिंह
अल्पसंख्यकों के बारे में कांग्रेस पार्टी की सोच एक बार फिर बहस के दायरे में आ गयी है .एक तरफ तो कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की लाइन है जो मुसलमानों से सम्बंधित किसी भी मसले पर जो कुछ भी कहते हैं वह आम तौर पर मुसलमानों के हित में होता है और दूसरी तरफ केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ,सलमान खुर्शीद हैं जो मुसलमानों के हित की बात करते समय यह ध्यान रखते हैं कि दिल्ली की काकटेल सर्किट के उनके बीजेपी वाले दोस्त नाराज़ न हो जाएँ. दिग्विजय सिंह सरकार में नहीं हैं और उनके विचारों का विरोध कांग्रेस के ज़्यादातर नेता करते पाए जाते हैं . दिग्विजय सिंह के विचारों को वे कांग्रेसी गलत बताते हैं जो कांग्रेस में होते हुए भी हिंदुत्व की राजनीति के पोषक हैं .सलमान खुर्शीद की सोच वाले कांग्रेसी मंत्री भी इसी वर्ग में आते हैं . इन कांग्रेसियों की कोशिश रहती है कि दिग्विजय सिंह के बयान मीडिया में थोड़ी बहुत खलबली फैलाने से ज्यादा काम न आ सकें . लेकिन दिग्विजय सिंह देश के सेकुलर ढाँचे को बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं और वह देश की राजनीतिक शुचिता के लिए ज़रूरी है . उनके इस काम के लिए उन्हें दक्षिण पंथी हिन्दू और मुसलमानों के संगठन भला बुरा कहते रहते हैं .सलमान खुर्शीद के साथ ऐसा नहीं है. वे दिल्ली के उन अमीर उमरा की तरह हैं जो अपनी गद्दी बचाए रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं .वे केंद्र सरकार के ज़िम्मेदार मंत्री हैं, कांग्रेस आलाकमान के भरोसेमंद सिपाही हैं और मुसलमानों के हित के लिए केंद्र में जो कुछ भी होता है, उसके प्रभारी हैं. उनकी बात वास्तव में भारत सरकार की बात होती है .पिछले दिनों उन्होंने चेन्नई के एक कालेज में भाषण दिया और कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के खिलाफ सवाल उठाया जाना चाहिए . आपने फरमाया कि सच्चर कमेटी रिपोर्ट कलामे पाक नहीं है. हम भी मानते हैं कि कोई भी दस्तावेज़ पवित्र कुरान नहीं हो सकता. ज़ाहिर है उन्होंने किसी कमेटी की रिपोर्ट के साथ पवित्र कुरान का नाम लेकर गलती की है और उन्हें उसकी सजा मिलेगी . लेकिन सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को हल्का करने की उनकी कोशिश को माफ़ नहीं किया जाना चाहिए . आज़ादी के साठ साल बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने जस्टिस राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी जिस की रिपोर्ट आने के बाद दुनिया को मालूम हुआ कि भारत में मुसलमानों की हालत कितनी खराब है . उसको बुनियादी दस्तावेज़ मान कर कई स्तर पर सरकार ने कुछ काम भी शुरू किया . शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों के पिछड़ेपन को कम करने के लिए बहुत सारे वजीफों का ऐलान हुआ ,जिसकी ज़िम्मेदारी भी सलमान खुर्शीद के पास ही है . उनके एक ख़ास बन्दे ने एक दिन बताया था कि सलमान खुर्शीद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बनकर खुश नहीं हिं ,वे किसी मलाईदार विभाग में जाना चाहते हैं .इसीलिये इस तरह की बात कर रहे हैं जिस से उनको और कोई मंत्रालय मिल जाए.यह खेल उल्टा भी पड़ सकता है क्योंकि अगर उनके आलाकमान की समझ में यह बारीक चाल आ गयी तो सलमान साहब पैदल भी हो सकते हैं . वैसे भी उनकी राजनीतिक हसियत ऐसी नहीं है कि कांग्रेस उनको मह्त्व देने के लिए मजबूर हो सके.
जहां तक सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बारे में उनके ख्यालात की बात है वह बहुत ही गैर जिम्मेदाराना है . सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के प्रकाशित होने के पहले राजनेताओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस सरकारों पर मुसलमानों के तुष्टीकरण के आरोप लगता रहता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस रिपोर्ट ने साफ़ कर दिया था कि केंद्र सरकार ने या राज्य सरकारों ने मुसलमानों को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना रखा था. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद उनके कल्याण की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण पहल हुई है जिस से देश में बराबरी का निजाम कायम होने में मदद मिलेगी. बीजेपी और उसेक सहयोगी दलों की कोशिश है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के खिलाफ अभियान चलाकर उसे बदनाम कर दें . उनके इस अभियान में सलमान खुर्शीद का बयान बहुत ही अहम भूमिका निभाएगा. ऐसी हालत में शक़ होता है कि कहीं सलमान साहब दिल्ली में रहने वाले बीजेपी के उन मित्रों की शह पर काम कर रहे हैं जिनसे उनकी मुलाक़ात रात की दावतों में होती है. देश के सभी इंसाफ़पसंद लोगों को चाहिए कि सलमान खुर्शीद की उस कोशिश को बेनकाब करें जिसके तहत वे सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को बदनाम करने की साज़िश का हिस्सा बन रहे हैं .
अल्पसंख्यकों के बारे में कांग्रेस पार्टी की सोच एक बार फिर बहस के दायरे में आ गयी है .एक तरफ तो कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की लाइन है जो मुसलमानों से सम्बंधित किसी भी मसले पर जो कुछ भी कहते हैं वह आम तौर पर मुसलमानों के हित में होता है और दूसरी तरफ केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ,सलमान खुर्शीद हैं जो मुसलमानों के हित की बात करते समय यह ध्यान रखते हैं कि दिल्ली की काकटेल सर्किट के उनके बीजेपी वाले दोस्त नाराज़ न हो जाएँ. दिग्विजय सिंह सरकार में नहीं हैं और उनके विचारों का विरोध कांग्रेस के ज़्यादातर नेता करते पाए जाते हैं . दिग्विजय सिंह के विचारों को वे कांग्रेसी गलत बताते हैं जो कांग्रेस में होते हुए भी हिंदुत्व की राजनीति के पोषक हैं .सलमान खुर्शीद की सोच वाले कांग्रेसी मंत्री भी इसी वर्ग में आते हैं . इन कांग्रेसियों की कोशिश रहती है कि दिग्विजय सिंह के बयान मीडिया में थोड़ी बहुत खलबली फैलाने से ज्यादा काम न आ सकें . लेकिन दिग्विजय सिंह देश के सेकुलर ढाँचे को बनाए रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं और वह देश की राजनीतिक शुचिता के लिए ज़रूरी है . उनके इस काम के लिए उन्हें दक्षिण पंथी हिन्दू और मुसलमानों के संगठन भला बुरा कहते रहते हैं .सलमान खुर्शीद के साथ ऐसा नहीं है. वे दिल्ली के उन अमीर उमरा की तरह हैं जो अपनी गद्दी बचाए रखने के लिए कुछ भी कर सकते हैं .वे केंद्र सरकार के ज़िम्मेदार मंत्री हैं, कांग्रेस आलाकमान के भरोसेमंद सिपाही हैं और मुसलमानों के हित के लिए केंद्र में जो कुछ भी होता है, उसके प्रभारी हैं. उनकी बात वास्तव में भारत सरकार की बात होती है .पिछले दिनों उन्होंने चेन्नई के एक कालेज में भाषण दिया और कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के खिलाफ सवाल उठाया जाना चाहिए . आपने फरमाया कि सच्चर कमेटी रिपोर्ट कलामे पाक नहीं है. हम भी मानते हैं कि कोई भी दस्तावेज़ पवित्र कुरान नहीं हो सकता. ज़ाहिर है उन्होंने किसी कमेटी की रिपोर्ट के साथ पवित्र कुरान का नाम लेकर गलती की है और उन्हें उसकी सजा मिलेगी . लेकिन सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को हल्का करने की उनकी कोशिश को माफ़ नहीं किया जाना चाहिए . आज़ादी के साठ साल बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने जस्टिस राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी जिस की रिपोर्ट आने के बाद दुनिया को मालूम हुआ कि भारत में मुसलमानों की हालत कितनी खराब है . उसको बुनियादी दस्तावेज़ मान कर कई स्तर पर सरकार ने कुछ काम भी शुरू किया . शिक्षा के क्षेत्र में मुसलमानों के पिछड़ेपन को कम करने के लिए बहुत सारे वजीफों का ऐलान हुआ ,जिसकी ज़िम्मेदारी भी सलमान खुर्शीद के पास ही है . उनके एक ख़ास बन्दे ने एक दिन बताया था कि सलमान खुर्शीद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बनकर खुश नहीं हिं ,वे किसी मलाईदार विभाग में जाना चाहते हैं .इसीलिये इस तरह की बात कर रहे हैं जिस से उनको और कोई मंत्रालय मिल जाए.यह खेल उल्टा भी पड़ सकता है क्योंकि अगर उनके आलाकमान की समझ में यह बारीक चाल आ गयी तो सलमान साहब पैदल भी हो सकते हैं . वैसे भी उनकी राजनीतिक हसियत ऐसी नहीं है कि कांग्रेस उनको मह्त्व देने के लिए मजबूर हो सके.
जहां तक सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बारे में उनके ख्यालात की बात है वह बहुत ही गैर जिम्मेदाराना है . सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के प्रकाशित होने के पहले राजनेताओं का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस सरकारों पर मुसलमानों के तुष्टीकरण के आरोप लगता रहता था लेकिन अब ऐसा नहीं है. इस रिपोर्ट ने साफ़ कर दिया था कि केंद्र सरकार ने या राज्य सरकारों ने मुसलमानों को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना रखा था. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद उनके कल्याण की दिशा में कुछ महत्वपूर्ण पहल हुई है जिस से देश में बराबरी का निजाम कायम होने में मदद मिलेगी. बीजेपी और उसेक सहयोगी दलों की कोशिश है कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के खिलाफ अभियान चलाकर उसे बदनाम कर दें . उनके इस अभियान में सलमान खुर्शीद का बयान बहुत ही अहम भूमिका निभाएगा. ऐसी हालत में शक़ होता है कि कहीं सलमान साहब दिल्ली में रहने वाले बीजेपी के उन मित्रों की शह पर काम कर रहे हैं जिनसे उनकी मुलाक़ात रात की दावतों में होती है. देश के सभी इंसाफ़पसंद लोगों को चाहिए कि सलमान खुर्शीद की उस कोशिश को बेनकाब करें जिसके तहत वे सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को बदनाम करने की साज़िश का हिस्सा बन रहे हैं .
Thursday, June 23, 2011
क्योंकि तालीम के बिना कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता.
शेष नारायण सिंह
कांग्रेस पार्टी पूरी मेहनत से मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए जुट गयी है .जब से डॉ मनमोहन सिंह की सत्ता स्थापित हुई है, मुसलमानों के हित के बारे में गंभीरता से चर्चा हो रही है . सच्चर कमेटी का गठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जाता है . अब कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साम्प्रदायिक हिंसा पर काबू पाने की कोशिश करने की दिशा में एक बड़ा क़दम उठा दिया है. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने साम्प्रदायिक हिंसा कानून को पास कराने की दिशा में पहल कर दिया है . उम्मीद है कि यह कानून बन भी जाएगा. इसके पहले अल्पसंख्यकों के लिए वजीफों की व्यवस्था करके सरकार ने मुसलमानों को अपनी तरफ आकर्षित करने की पूरी कोशिश की थी. जिसके नतीजे भी सामने आने लगे हैं . देश में एक ऐसा माहौल बन रहा है कि संजय गाँधी के दौर में जो मुसलमान कांग्रेस से दूर चले गए था अब वही मुसलमान फिर कांग्रेस की तरफ देखने लगा है . यह भी सच है कि बिहार और शायद उत्तर प्रदेश में भी अभी मुसलमानों के वोट कांग्रेस को नहीं मिलने वाले हैं क्योंकि इन राज्यों में कांग्रेस एक बहुत की कमज़ोर जमात है . इसके बावजूद भी कांग्रेस और यू पी ए की सरकारें मुसलमानों के हित बात सोच रही हैं . इस सारी सोच में एक पहलू बहुत ही निराशाजनक है . कांग्रेस के नेता मुसलमानों का ध्यान वहीं रखते हैं जहां उन्हने मुसलमानों के वोट की ज़रुरत है . बाकी इलाकों में सब कुछ खाली खाली ही रहता है . ऐसी हालत में मुसलमानों की सर्वांगीण तरक्की की बात अभी बहुत दूर की कौड़ी नज़र आती है . सरकारी और राजनीतिक उपेक्षा का एक बड़ा उदाहरण दिल्ली के बिलकुल करीब मेवात का इलाका है . गुडगाँव की मेट्रोपोलिटन आबादी से लगा हुआ यह इलाका अभी अठारहवीं सदी की ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर है . लड़कियों की तालीम का बंदोबस्त अभी संतोष जनक नहीं है . अभी भी सामाजिक न्याय यहाँ के लोगों के लिए एक सपने से ज्यादा नहीं है . लेकिन पिछले दिनों कुछ हाई प्रोफाइल राजनेता यहाँ पधारे . खुद सोनिया गाँधी वहां गयीं. और जो हालात देखीं उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ. कांग्रेस ने अपने कुछ ऐसे नेताओं को भी भेजा जिनका मुसलमानों की तालीम के क्षेत्र में ख़ासा योगदान है . अब पता चला है कि वहां वक्फ की ज़मीन पर एक इंजीनियरिंग कालेज शुरू किया जा रहा है जिसमें दस फीसदी सीटें मेवात के लोगों के लिए रिज़र्व होंगीं.यह बड़ी शुरुआत है . पता चला है कि मेवात में ही एक मेडिकल कालेज शुरू करने की योजना बन चुकी है और उसमें भी मेवाती बच्चों को दस फीसदी सीटें देने का मन बना लिया गया है. लेकिन इस से कुछ नहीं होने वाला . यह इलाका आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ा है . यहाँ जो हाई स्कूल हैं उनमें किसी में भी साइंस का टीचर नहीं है . सवाल पैदा होता है कि अगर इस इलाके के बच्चे साइंस की तालीम में बिलकुल जीरो रहेगें तो इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढाई कैसे करेगें .
हालांकि यह संतोष की बात है कि सरकारी पहल के चलते इस इलाके में शिक्षा की तरक्की के कुछ ज़रूरी क़दम उठाये जा रहे हैं लेकिन जब तक इलाके के लोग खुशहाल नहीं होंगें तब तक कुछ नहीं होने वाला है .इस इलाके में रहने वाले लगभग सभी लोग खेती पर निर्भर हैं . लेकिन बाकी देश में किसानों को जो सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं वे यहाँ के किसानों के लिए नहीं हैं . पता नहीं सरकारी बैंकों ने क्या नियम बना रखा है कि मेवात के लोगों को खेती के लिए ज़रूरी क़र्ज़ नहीं मिलता . अजीब बात यह है कि इस हालत को किसान और सरकारी अफसर बदलने के बारे में सोचते ही नहीं हैं . इस पूरे इलाके में कहीं भी बीज उपलब्ध कराने का लिए कोई केंद्र नहीं हैं . पानी बहुत ही खारा है . ३-४ सौ फीट की गहराई तक का पानी ऐसा नहीं है जिसे पीने या किसी अन्य काम के लिए इस्तेमाल किया जा सके. इसलिए किसान खेती के लिए बारिश के पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं . सरकार को चाहिए कि इस इलाके में बहुत गहरे जाकर पानी की तलाश करे और फिर उसी पानी को पीने और अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की व्यवस्था करे. लेकिन ऐसा कहीं कुछ नहीं हो रहा है .
अपने मेवात यात्रा के दौरान यू पी ए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सामाजिक तरक्की के सबसे अहम पहलू पर सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में काम करने वालों का ध्यान खींचा था. दरअसल उनकी यात्रा के दौरान कांग्रेस सरकार ने 'जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम' को फोकस में लिया था. यह राष्ट्रीय ग्रामीण हेल्थ मिशन का गर्भवती महिलाओं के लिए शुरू किया गया एक कार्यक्रम है . मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडा वहां मौजूद थे . उनके साथ हरियाणा की पूरी सरकार वहां हाज़िर थी . १ जून के अपने कार्यक्रम में सोनिया गाँधी ने मेवात के एक सौ दस गाँवों के लिए पीने के पानी की एक परियोजना की भी शुरुआत की. किसी भी समाज के विकास में वहां की महिलाओं की तरक्की की सबसे प्रमुख भूमिका होती है . ज़ाहिर है कि कांग्रेस ने मेवात जैसे पिछड़े इलाके में यह पहल करके एक अहम राजनीतिक चाल चल दी है जिसके उसे पक्के तौर पर राजनीति लाभ होगा. मुस्लिम राजनीतिक के जानकार जानते हैं कि उत्तर भारत के बहुत सारे इलाकों में इस्लाम के प्रचार के लिए जो जमातें जाती हैं उनमें भी बड़ी संख्या में इस इलाके के लोग शामिल होते हैं . ज़ाहिर है उनके पाने गाँव में जो भी विकास की कहानी देखने को मिल रही है वे उसका भी ज़िक्र अपनी तकरीरों में ज़रूर करेगें . ऐसा लगता है कि कांग्रेसी राजनीति के मैनेजरों की नज़र इन बातों पर भी होगी.
इस बात को मानने के बहुत सारे अवसर हैं कि कांग्रेसी नेता चुनावी राजनीति के लाभ को ध्यान में रख कर इस तरह की पहल कर रहे हैं लेकिन इस बात में दो राय नहीं है इस पहल से एक बहुत ही पिछड़े इलाके के पिछड़े मुसलमानों का फायदा होगा .ज़रुरत इस बात की है कि इस पहल को बाकी देश में भी नक़ल किया जाए.और लागू किया जाए. ख़ासकर शिक्षा के हलके में होने वाली तरक्की को हर इलाके में दोहराया जाए क्योंकि तालीम के बिना कभी भी कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता.
कांग्रेस पार्टी पूरी मेहनत से मुसलमानों के वोट हासिल करने के लिए जुट गयी है .जब से डॉ मनमोहन सिंह की सत्ता स्थापित हुई है, मुसलमानों के हित के बारे में गंभीरता से चर्चा हो रही है . सच्चर कमेटी का गठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जाता है . अब कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने साम्प्रदायिक हिंसा पर काबू पाने की कोशिश करने की दिशा में एक बड़ा क़दम उठा दिया है. राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् ने साम्प्रदायिक हिंसा कानून को पास कराने की दिशा में पहल कर दिया है . उम्मीद है कि यह कानून बन भी जाएगा. इसके पहले अल्पसंख्यकों के लिए वजीफों की व्यवस्था करके सरकार ने मुसलमानों को अपनी तरफ आकर्षित करने की पूरी कोशिश की थी. जिसके नतीजे भी सामने आने लगे हैं . देश में एक ऐसा माहौल बन रहा है कि संजय गाँधी के दौर में जो मुसलमान कांग्रेस से दूर चले गए था अब वही मुसलमान फिर कांग्रेस की तरफ देखने लगा है . यह भी सच है कि बिहार और शायद उत्तर प्रदेश में भी अभी मुसलमानों के वोट कांग्रेस को नहीं मिलने वाले हैं क्योंकि इन राज्यों में कांग्रेस एक बहुत की कमज़ोर जमात है . इसके बावजूद भी कांग्रेस और यू पी ए की सरकारें मुसलमानों के हित बात सोच रही हैं . इस सारी सोच में एक पहलू बहुत ही निराशाजनक है . कांग्रेस के नेता मुसलमानों का ध्यान वहीं रखते हैं जहां उन्हने मुसलमानों के वोट की ज़रुरत है . बाकी इलाकों में सब कुछ खाली खाली ही रहता है . ऐसी हालत में मुसलमानों की सर्वांगीण तरक्की की बात अभी बहुत दूर की कौड़ी नज़र आती है . सरकारी और राजनीतिक उपेक्षा का एक बड़ा उदाहरण दिल्ली के बिलकुल करीब मेवात का इलाका है . गुडगाँव की मेट्रोपोलिटन आबादी से लगा हुआ यह इलाका अभी अठारहवीं सदी की ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर है . लड़कियों की तालीम का बंदोबस्त अभी संतोष जनक नहीं है . अभी भी सामाजिक न्याय यहाँ के लोगों के लिए एक सपने से ज्यादा नहीं है . लेकिन पिछले दिनों कुछ हाई प्रोफाइल राजनेता यहाँ पधारे . खुद सोनिया गाँधी वहां गयीं. और जो हालात देखीं उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ. कांग्रेस ने अपने कुछ ऐसे नेताओं को भी भेजा जिनका मुसलमानों की तालीम के क्षेत्र में ख़ासा योगदान है . अब पता चला है कि वहां वक्फ की ज़मीन पर एक इंजीनियरिंग कालेज शुरू किया जा रहा है जिसमें दस फीसदी सीटें मेवात के लोगों के लिए रिज़र्व होंगीं.यह बड़ी शुरुआत है . पता चला है कि मेवात में ही एक मेडिकल कालेज शुरू करने की योजना बन चुकी है और उसमें भी मेवाती बच्चों को दस फीसदी सीटें देने का मन बना लिया गया है. लेकिन इस से कुछ नहीं होने वाला . यह इलाका आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ा है . यहाँ जो हाई स्कूल हैं उनमें किसी में भी साइंस का टीचर नहीं है . सवाल पैदा होता है कि अगर इस इलाके के बच्चे साइंस की तालीम में बिलकुल जीरो रहेगें तो इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढाई कैसे करेगें .
हालांकि यह संतोष की बात है कि सरकारी पहल के चलते इस इलाके में शिक्षा की तरक्की के कुछ ज़रूरी क़दम उठाये जा रहे हैं लेकिन जब तक इलाके के लोग खुशहाल नहीं होंगें तब तक कुछ नहीं होने वाला है .इस इलाके में रहने वाले लगभग सभी लोग खेती पर निर्भर हैं . लेकिन बाकी देश में किसानों को जो सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हैं वे यहाँ के किसानों के लिए नहीं हैं . पता नहीं सरकारी बैंकों ने क्या नियम बना रखा है कि मेवात के लोगों को खेती के लिए ज़रूरी क़र्ज़ नहीं मिलता . अजीब बात यह है कि इस हालत को किसान और सरकारी अफसर बदलने के बारे में सोचते ही नहीं हैं . इस पूरे इलाके में कहीं भी बीज उपलब्ध कराने का लिए कोई केंद्र नहीं हैं . पानी बहुत ही खारा है . ३-४ सौ फीट की गहराई तक का पानी ऐसा नहीं है जिसे पीने या किसी अन्य काम के लिए इस्तेमाल किया जा सके. इसलिए किसान खेती के लिए बारिश के पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं . सरकार को चाहिए कि इस इलाके में बहुत गहरे जाकर पानी की तलाश करे और फिर उसी पानी को पीने और अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की व्यवस्था करे. लेकिन ऐसा कहीं कुछ नहीं हो रहा है .
अपने मेवात यात्रा के दौरान यू पी ए की अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सामाजिक तरक्की के सबसे अहम पहलू पर सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में काम करने वालों का ध्यान खींचा था. दरअसल उनकी यात्रा के दौरान कांग्रेस सरकार ने 'जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम' को फोकस में लिया था. यह राष्ट्रीय ग्रामीण हेल्थ मिशन का गर्भवती महिलाओं के लिए शुरू किया गया एक कार्यक्रम है . मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडा वहां मौजूद थे . उनके साथ हरियाणा की पूरी सरकार वहां हाज़िर थी . १ जून के अपने कार्यक्रम में सोनिया गाँधी ने मेवात के एक सौ दस गाँवों के लिए पीने के पानी की एक परियोजना की भी शुरुआत की. किसी भी समाज के विकास में वहां की महिलाओं की तरक्की की सबसे प्रमुख भूमिका होती है . ज़ाहिर है कि कांग्रेस ने मेवात जैसे पिछड़े इलाके में यह पहल करके एक अहम राजनीतिक चाल चल दी है जिसके उसे पक्के तौर पर राजनीति लाभ होगा. मुस्लिम राजनीतिक के जानकार जानते हैं कि उत्तर भारत के बहुत सारे इलाकों में इस्लाम के प्रचार के लिए जो जमातें जाती हैं उनमें भी बड़ी संख्या में इस इलाके के लोग शामिल होते हैं . ज़ाहिर है उनके पाने गाँव में जो भी विकास की कहानी देखने को मिल रही है वे उसका भी ज़िक्र अपनी तकरीरों में ज़रूर करेगें . ऐसा लगता है कि कांग्रेसी राजनीति के मैनेजरों की नज़र इन बातों पर भी होगी.
इस बात को मानने के बहुत सारे अवसर हैं कि कांग्रेसी नेता चुनावी राजनीति के लाभ को ध्यान में रख कर इस तरह की पहल कर रहे हैं लेकिन इस बात में दो राय नहीं है इस पहल से एक बहुत ही पिछड़े इलाके के पिछड़े मुसलमानों का फायदा होगा .ज़रुरत इस बात की है कि इस पहल को बाकी देश में भी नक़ल किया जाए.और लागू किया जाए. ख़ासकर शिक्षा के हलके में होने वाली तरक्की को हर इलाके में दोहराया जाए क्योंकि तालीम के बिना कभी भी कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता.
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