tag:blogger.com,1999:blog-87240780107169393762024-03-05T01:18:37.456-08:00जंतर मंतर शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.comBlogger1136125tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-80238463389104344562021-03-31T23:03:00.004-07:002021-03-31T23:03:50.901-07:00सन बयालीस में नंदीग्राम की हिंदू-मुस्लिम एकता ने अंग्रेज़ी हुकूमत से मुकाबला किया था<p> </p><p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><br /></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण सिंह </span></b><b><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">तृणमूल कांग्रेस के पूर्व
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नेता और <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बंगाल सरकार में मंत्री<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और ममता बनर्जी के करीबी भक्त रह चुके शुवेंदु
अधिकारी को जब बीजेपी में भर्ती किया गया था तो पार्टी को लगता था कि बहुत बड़ा तख्तापलट
हो गया है . जिस दिन वे भर्ती हुए थे उस दिन बहुत बड़े जश्न का आयोजन किया गया था .
उम्मीद<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की गयी थी कि सारे बंगाल में वे
तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को बीजेपी में ला देंगे लेकिन उनके पाला बदलते ही
ममता बनर्जी ने उनकी सीट से अपनी उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. भवानीपुर की अपनी मज़बूत सीट छोड़कर उन्होंने
नंदीग्राम में ही अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया .<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>शुवेंदु अधिकारी ने भी तुरंत ऐलान कर दिया कि वे ममता को नंदीग्राम से पचास
हज़ार से ज़्यादा वोटों से हराएंगे और अगर न हरा सके तो राजनीति से संन्यास से लेंगे
. बीजेपी वालों ने शायद सोचा था कि नंदीग्राम में तो शुवेंदु का ही काम है उनके
लिए अपने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>क्षेत्र से जीतना बहुत आसान होगा
. आंकड़ों पर नज़र डालें तो साफ हो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जाएगा कि
2009 के लोकसभा चुनाव से ही नंदीग्राम में<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>तृणमूल कांग्रेस को ज़बरदस्त बहुमत मिलता<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>रहा है .जिसमें मुख्य कार्यकर्ता के रूप में शुवेंदु अधिकारी शामिल होते
रहे हैं . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी
के उत्थान के बावजूद भी तृणमूल को कोई<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>घाटा नहीं हुआ था <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. बीजेपी के
वोटों में वृद्धि हुई .वह वृद्धि लेफ्ट फ्रंट के वोटों का बीजेपी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के खाते में आ जाने के कारण हुई थी. नंदीग्राम
में बीजेपी के वोटों में २५ प्रतिशत की वृद्धि हुयी थी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जिसमें 22 प्रतिशत लेफ्ट फ्रंट से शिफ्ट होने
वाले वोटरों का योगदान था. इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस को बीजेपी से 33 प्रतिशत की
बढ़त थी ..बीजेपी को उम्मीद थी कि शुवेंदु के साथ आ जाने से यह अंतर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ख़त्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ . बीजेपी में
शामिल होने से उनके वोटों का तीस प्रतिशत मुस्लिम मतदाता तुरंत उनके खिलाफ ही हो
गया . चुनाव करीब आने के साथ साथ यह साफ़ हो गया कि ममता को हराना आसान नहीं है और
शुवेंदु अधिकारी उतने मज़बूत नहीं हैं जितने माने जा रहे थे . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उनकी 2011 और 2016 की जीत में क्षेत्र के करीब
तीस प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा योगदान होता था . वे सभी ममता बनर्जी के साथ
हैं . अब ममता को नंदीग्राम का विधानसभा<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>चुनाव जीतने के लिए <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बाकी बच्चे
सत्तर प्रतिशत <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वोटों में से केवल 21
प्रतिशत की और ज़रूरत है<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जब कि शुवेंदु अधिकारी
को 51 प्रतिशत वोट मिलना ज़रूरी है . हालांकि वहां से सी पी एम की उम्मीदवार भी एक
शिष्ट महिला हैं , उनके साथ भी कुछ लोगों की सहानुभूति है लेकिन जिस तरह से शुवेंदु
अधिकारी ने हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण किया है उसके चलते लेफ्ट फ्रंट की उम्मीदवार
कोई बहुत फर्क डालने वाली नहीं साबित होंगी.<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>नंदीग्राम के कुल वोटों का 51 प्रतिशत लेने के लिए शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को कुल हिंदू वोटों का 70 प्रतिशत से ज्यादा वोट
लेना पडेगा . यह तर्क के लिए बनाई गयी एक काल्पनिक स्थिति <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है लेकिन सच्चाई यह है कि लेफ्ट फ्रंट के
लिए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आई एस एफ वाले मौलाना भी रैली कर चुके
हैं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>, कुछ लेफ्ट फ्रंट के वोट भी वहां हैं
जो उसके उम्मीदवार को मिलेंगे ही . इसलिए जीतने<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>वाले<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>40 से 45 प्रतिशत वोट का लक्ष्य रखना पडेगा . </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यह स्थिति ममता को भी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है
और शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को . ममता को मालूम है
कि नंदीग्राम या पूरे बंगाल में जीतने के लिए उनको कम से कम आधे हिन्दू वोट चाहिए
..शायद इसीलिये उन्होंने हिन्दुओं को खुश <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>करने के लिए कई काम किये हैं. मीडिया को साथ
लेकर मंदिरों में जाना , मंच से चंडीपाठ करना अपने गोत्र को सार्वजनिक<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रूप से बताना आदि ऐसे काम हैं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जिससे साफ पता चलता है कि मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी जानती हैं कि उनके खिलाफ सभी हिन्दुओं को लामबंद करने की कोशिश हो रही
है.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उनके पुराने शिष्य , शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ने उनको ‘ बेगम ममता ‘ और नंदीग्राम में मिनी
पाकिस्तान बनाने की कोशिश करने वाली बताकर उनको हिन्दू विरोधी साबित करने की पूरी
तैयारी कर ली है .लेफ्ट फ्रंट के खिलाफ जब ममता ने काम किया था और उनके बदमाशों को
सामना <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किया तह तो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ही उनके सेनापति थे . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उन्होंने पिछले दस वर्षों में लेफ्ट फ्रंट वालों
को हिंसा का बार बार शिकार बनाया है .ममता को मालूम है कि अपनी उस प्रतिभा का शुवेंदु
पूरी तरह से इस बार भी प्रयोग<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>करेंगे .
नंदीग्राम में शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कभी मुसलमानों
के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हीरो हुआ करते थे लेकिन अब वे उनको
हिंसा शिकार बनाने का माहौल बना रहे हैं . . </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">नंदीग्राम का इलाका वास्तव
में चावल उत्पादकों का गढ़<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>माना जाता है .
वहां <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किसानों के मुद्दे भी चुनाव में महत्वपूर्ण
हुआ करते थे लेकिन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ने चुनाव को पूरी तरह से हिन्दू बनाम मुस्लिम
बनाने की पूरी कोशिश की है <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. ऐसा लगता है
कि उनकी पार्टी को मालूम है कि वे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>धार्मिक
आधार पर चुनाव को पूरी तरह बांटने में नाकाम रहे<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>हैं. अमित शाह<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सहित सभी बड़े नेताओं
का<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मतदान के ठीक पहले वहां ज़मीनी स्तर का
प्रचार करना इस बात का साफ़ संकेत है . हालांकि बीजेपी के नेता और उनके समर्थक
विश्लेषक और चैनल इस बात का ज़बरदस्त प्रचार कर रहे हैं कि उन्होंने ममता बनर्जी को
नंदीग्राम में चार दिन तक चुनाव प्रचार करने के लिए मजबूर कर दिया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन सच्चाई यह है कि केवल नंदीग्राम में बीजेपी
के बड़े नताओं को चुनाव के एक दिन पहले रोड शो करने को तो ममता ने मजबूर किया है .
बहरहाल सबको मालूम है कि नंदीग्राम का चुनाव सही मायनों में दोनों पक्षों के लिए
प्रतिष्ठा का चुनाव<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . अगर बीजेपी वाले
मुख्यमंत्री को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हराने में सफल<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हो जाते हैं तो उनकी बंगाल की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राजनीति बहुत ही आसान हो जायेगी . शुवेंदु
अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सहित जो बड़ी संख्या में तृणमूल
कांग्रेस वाले बीजेपी में शामिल हुए हैं उनकी मदद से तृणमूल के बाकी कार्यकर्ताओं
को साथ लेने में बहुत मदद मिलेगी . लेकिन अगर<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>ममता जीत गयीं तो बीजेपी को झटका लगेगा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>क्योंकि अगर बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार
दोबारा बनती है तो जैसा कि ममता और शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ने पिछले<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>दस साल में लेफ्ट फ्रंट के कार्यकर्ताओं को हिंसा का शिकार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बनाया है उसी तरह से बीजेपी के कार्यकर्ता निशाने
पर लिए जा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सकते हैं . लेफ्ट फ्रंट के
ज़्यादातर कार्यकर्ता ममता और शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की संयुक्त ताक़त और उनके गुंडों <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की पिटाई से बचने के लिए बीजेपी में जा चुके हैं
. अगर बीजेपी कमज़ोर पड़ती है तो वे लोग भी हिंसा से बचने के लिए अन्य तरीकों को
अपनाएंगे .उन तरीकों में तृणमूल की शरण जाना भी शामिल हो सकता है . शुवेंदु
अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ने नंदीग्राम से ममता की
उम्मीदवारी की घोषणा के बाद ऐलान किया था कि अगर वे चुनाव हार गए तो वे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राजनीति से संन्यास ले लेंगे . उनको संन्यास
लेने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अगर वे
हार गए और तृणमूल कांग्रेस की सरकार बन गयी तो उनको ममता किसी तरह की राजनीति लायक
छोड़ेंगी ही नहीं .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उनका पूरा परिवार आज<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ममता बनर्जी की कृपा से राजनीतिक मलाई काट रहा
है . उनके परिवार के ज़्यादातर सदस्य लोकसभा विधानसभा और जिले की राजनीति में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बड़े पदों पर हैं. वह सब छूट जाएगा . उनके हारने
के बाद बीजेपी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के लिए भी उनका कोई ख़ास
उपयोग नहीं रह जाएगा क्योंकि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पार्टी को
उनकी ज़रूरत बंगाल के बाहर बिलकुल नहीं पड़ेगी यानी उनको राजनीति से रिटायर होने की
जहमत नहीं उठानी पड़ेगी . वे दूध की मक्खी की तरह फेंक दिए जायेंगे.इसलिए जहां यह
चुनाव ममता बनर्जी के भविष्य की राजनीति की स्थिरता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की लडाई है वहीं शुवेंदु अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के लिए यह लड़ाई एक राजनीतिक नेता के रूप में अस्तित्व
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भी लड़ाई है . </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">नंदीग्राम<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चुनाव के पिछले आंकड़े एक दिलचस्प<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कहानी बताते हैं .2016 के विधानसभा चुनाव में शुवेंदु
अधिकारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को ज़बरदस्त बहुमत मिला था .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उनके लोगों को उम्मीद थी कि बहुमत के वे आंकड़े
उनके साथ ही चले जायेंगे लेकिन ऐसा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नहीं
हुआ. उनकी जीत में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सहयोग देने वाले मतदातों
का एक बड़ा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हिस्सा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मुसलमानों का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>था और वे अब उनके साथ नहीं हैं . वे उनको<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हराने के लिए एकजुट हैं .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुवेंदु अधिकारी की सोच में जो दूसरा तर्कदोष
था वह यह कि वे सभी हिन्दुओं को अपने साथ ले लेंगे लेकिन बंगाल में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और वह भी नंदीग्राम जैसे जागरूक क्षेत्र में
सभी मतदाताओं को धार्मिक आधार पर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बांटना
नामुमकिन है . </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">लेफ्ट फ्रंट सरकार की
भूमिअधिग्रहण नीति के खिलाफ जब बंगाल की जनता 14 साल पहले लामबंद हुई थी तो नंदीग्राम
ही<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उसके केंद्र में था .उसी आन्दोलन ने
ममता बनर्जी को सत्ता दिलवाई<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और शुवेंदु
अधिकारी को नेता बनाया . लेकिन उसके पहले भी इस गाँव की जागरूकता का डंका ब्रिटिश
साम्राज्य के सर पर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बज चुका था. उस लड़ाई
में हिन्दू और मुसलमान साथ साथ थे . जब अगस्त 1942 में महात्मा गांधी ने ,’,भारत
छोड़ो ‘ का नारा दिया था तो उसकी धमक नंदीग्राम में बहुत ही ज़ोरदार तरीके से देखी
गयी थी. 30 सितंबर 1942 के दिन क़रीब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दस
हज़ार लोगों का एक जुलूस नंदीग्राम के पुलिस थाने पर गया और उन्होंने थेन पर तिरंगा
झंडा फहरा दिया था .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ब्रिटिश<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सैनिकों ने गोली चला दी जिसके कारण आठ लोग मारे
गए . भारत सरकार ने शहीदों की जो डिक्शनरी छापी है उसमें<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नंदीग्राम के आठों शहीदों के नाम हैं . मरने
वालों में शेख अलाउद्दीन , अजीम<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बख्श और
शेख अब्दुल भी थे. उन दिनों के अविभाजित मिदनापुर जिले , नंदीग्राम जिसका हिस्सा
है , में 1920 और 1930 के महात्मा गांधी के आन्दोलनों में भी हिन्दू-मुस्लिम एकता
की ज़बरदस्त जुगलबंदी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>देखने को मिली थी . मौजूदा चुनाव में उसी
नंदीग्राम में हिंदू-मुस्लिम विवाद पैदा करके चुनाव जीतने की शुवेंदु अधिकारी की कोशिश
कितना सफल होती है इस पर राजनीतिशास्त्र , समाजशास्त्र और इतिहास के जानकारों
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दृष्टि लगातर बनी रहेगी . </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: black; font-family: "Arial","sans-serif"; font-size: 13.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-17259665752736921772021-03-27T21:42:00.003-07:002021-03-27T21:42:43.432-07:00फिल्म पगलैट में आशुतोष राणा के चेहरे पर उमड़ा हुआ “ निनाद करता सन्नाटा “ बेहतरीन अभिनय का दस्तावेज़ है .<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><br /></p>
<p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">शेष नारायण सिंह </span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;">नेटफ्लिक्स पर फिल्म पगलैट से मुक़ाबला
हुआ.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>एक नौजवान की मृत्यु के दिन से उसकी
तेरहवीं के 13<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिन की कथा है . लखनऊ टाइप
शहरों में निम्न मध्यवर्गीय संयुक्त परिवारों में होने वाले स्वार्थ और ओछेपन के
तांडव को बहुत ही नफासत से प्रस्तुत किया गया है . मौत के दुःख में शामिल होने के
लिए आने वाले रिश्तेदारों के नकलीपन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का
चित्रण वस्तुवादी है . कोई चमकदार सेट नहीं .<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>एक निम्न मध्यवर्गीय मोहल्ला, एक नदी , कुछ घटवार दिखा कर फिल्म को आला
मुकाम पर पंहुचा दिया गया है . मौत के बाद भी लालच के शिकार होने वाले गरीबी से
जूझ रहे ,सम्पन्नता का अभिनय कर रहे परिवारों की<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>कहानी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस तरह से फिल्माई गयी है कि
लगता है कि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>फिल्मकार और कलाकारों ने
सच्चाई को उसी तरह से पकड़कर रखा है जैसे फिल्म पड़ोसन के ‘ चतुर नार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>‘ वाले गाने में महमूद ने सुर को पकड रखा था
.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा ने पाखण्ड
को रेखांकित करने में शानदार काम किया . रघुवीर यादव का पप्पू तायाजी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>याद रहेगा लेकिन मेरी नज़र में आशुतोष राणा का
काम विश्वस्तर का है . पूरी फिल्म में वे बोलते बहुत कम हैं लेकिन चेहरे पर जो
दर्द की इबारत लिखी है वह बेजोड़ है . दर्द के हर स्वरूप का दर्शन आशुतोष के अभिनय
में देखने को मिला.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>परिवार के स्वार्थी
लोगों<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को झेलने का दर्द अलग है तो
डिस्काउंट की बात करने वाले गिरि जी अलग लगते हैं . उनके बेटे की तेरहवीं पूरी
होने के पहले उनकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विधवा बहू के
इंश्योरेंस में मिले पचास लाख रूपये झटकने के चक्कर में पड़े रिश्तदारों के आचरण के
दर्द की खीझ अलग है , स्वर्गीय बेटे की पत्नी को मिलने वाले इन्श्योरेंस के पैसे
को हड़पने की साजिश में शामिल होने के दर्द को उन्होंने अमर बना दिया है . फिल्म
ख़त्म होने के बाद मैं यही सोचता रहा कि दर्द को इतने वस्तुवादी तरीके से जीने की आशुतोष
राणा की क्षमता उनको काबुलीवाला और<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दो
बीघा ज़मीन के बलराज साहनी के मेयार पर ले जाकर खड़ा कर देती है .सही बात यह है गिरि
जी के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दर्द का चित्रण<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उन कालजयी फिल्मों से बीस ही पड़ेगा क्योंकि
मैंने किसी भी फिल्म में ऐसा “<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>निनाद करता
सन्नाटा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>“ कभी नहीं देखा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जो आशुतोष राणा के चेहरे दर्ज पूरी फिल्म के
दौरान दर्ज था .अच्छी फिल्मों के शौकीन लोगों के लिए एक अच्छी फिल्म .एक ऐसी फिल्म
जो <span style="color: black;">क्रिस्टोफर कॉडवेल<b> </b>के सौंदर्यशास्त्र के
मानकों पर सही उतरनी चाहिए .</span></span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><o:p> </o:p></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-67083598431868913472021-03-25T09:17:00.001-07:002021-03-25T09:17:05.090-07:00मेरे बारे में सबीहा हाशमी के विचार<p> </p><p class="MsoNormal"><br /></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">शेष ने मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश कभी
नहीं की ,मुझे बहुत सम्मान किया हमेशा . अपने और मेरे बच्चों को बहुत प्यार करते
हैं ,पति बहुत शानदार हैं .बोलने और लिखने में हमेशा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सही शब्दों का प्रयोग करते हैं . ऐसा लगता है कि
जो शब्द उन्होंने प्रयोग किया है ,उससे बेहतर शब्द हो ही नहीं सकता था . मेरी
ज़िंदगी के सबसे कठिन दौर में वह हमेशा खड़े रहे . फायर इंजन की तरह रहे और यह
गारंटी थी कि हर परेशानी को रोकने की कोशिश करेंगे .मेरे लिए बहुत कुछ किया लेकिन
कभी एहसान नहीं जताया . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जब भी मेरे ऊपर
उपकार किया तो मुझे लगता था कि उनसे उपकार लेकर मैंने उनपर बहुत कृपा की है . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-53802854593336374022021-03-24T22:56:00.005-07:002021-03-24T22:56:48.124-07:00ममता बनर्जी के बारे में दिलीप घोष का बयान तालिबानी है<p> <b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण
सिंह</span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">पश्चिम
बंगाल के प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष , दिलीप घोष ने राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के सन्दर्भ में एक बहुत ही आपत्तिजनक बयान दिया
है. नंदीग्राम में जब ममता परचा दाखिल करने गयी थीं तो उनके पाँव में चोट लग गयी
थी. शायद फ्रैक्चर था. प्लास्टर लगाया गया . अब ममता बनर्जी व्हील चेयर से चलती
हैं और चुनाव प्रचार करती हैं . इमकान है कि ममता बनर्जी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को इन हालात में मतदाताओं को सहानुभूति भी मिल
रही है . बीजेपी ने पिछले एक साल से बंगाल विधानसभा चुनाव जीतेने के लिए सारी ताक़त
झोंक<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रखी है . आज की स्थिति यह है कि अधिकतर
चुनाव सर्वे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बीजेपी को पिछड़ता हुआ बता रहे
हैं . चुनावी सर्वे के अनुसार <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ममता बनर्जी
बंगाल की सबसे लोकप्रिय नेता हैं और यही बात वहां बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री पद
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दावेदारी करने वालों को खल रही है
.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष भी इन
नेताओं में शामिल हैं जो मुख्यमंत्री पद की उम्मीद लगाये बैठे हैं . ऐसे नेताओं
में दिलीप घोष का नाम सबसे ऊपर है . शायद यही कारण है कि वे ममता बनर्जी के बारे
में ऊल जलूल बयान दे रहे हैं . ममता बनर्जी की चोट को लेकर उन्होंने पुरुलिया की
एक चुनाव सभा में कह दिया कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ममता बनर्जी
के पाँव का प्लास्टर कट गया है और अब क्रेप बैंडेज लगी हुयी है . वे पाँव उठकर
सबको ( बैंडेज ) दिखाती रहती हैं . साड़ी ऐसे पहनती हैं जिससे एक <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाँव ढका रहता है और दूसरा खुला रहता है. अगर
उनको अपना पाँव खुला ही रखना है तो साड़ी क्यों पहनती हैं ,उनको बरमूडा पहनना चाहिए
जिससे ( पाँव ) स्पष्ट<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिखता रहे . उनके
इस बेहूदा बयान पर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लोक सभा सदस्य मोहुआ
मोइत्रा ने ट्वीट करके कहा कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिलीप घोष
का यह बयान एक विकृतकामी ( pervert ) का बयान है और ऐसी मानसिकता वाले सभी
विकृतकामी बन्दर चुनाव हारेंगे . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p> </o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">चुनाव
हारना जीतना तो नतीजों से पता लगेगा लेकिन दिलीप घोष की घटिया मानसिकता का<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पता उनके इस बयान से जगजाहिर हो गया है . साथ
साथ यह भी पता चलने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बीजेपी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और कैलाश
विजयवर्गीय की सारी मेहनत के बावजूद दिलीप घोष टाइप “ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विकृतकामी बंदरों “ को हार साफ़ नज़र आ रही है .
अगर यही बयान किसी विरोधी नेता ने बीजेपी की किसी महिला नेता के खिलाफ दे दिया
होता तो देश के बड़े न्यूज़ चैनल चौबीसों घंटे यही खबर चला रहे होते लेकिन दिलीप घोष
के मर्दवादी नपुंसक बयान पर किसी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चैनल ने
कोई खबर नहीं चलाई . बहरहाल उनकी अपनी मजबूरियां होंगी लेकिन दिलीप घोष के इस बयान
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चौतरफा निंदा होनी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चाहिए और उनकी इस मानसिकता को उसी तरह के लोगों
के दिमाग की स्थिति से जोड़कर देखा जाना चाहिए जो<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>स्त्री को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अपने से घटिया मानते
हैं. ऐसा कई बार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सुना गया है कि किसी बड़े
सरकारी पद पर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तैनात महिला अफसर का चपरासी उसका
हुक्म मानने में अपनी हेठी समझता है .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिलीप
घोष का बयान उसी संकुचित सोच वाली मानसिकता वाले चपरासी की तरह का ही बयान<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>माना जाएगा . यह भी ज़रूरी है कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सभ्य समाज के प्रबुद्ध लोग इस तरह<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सोच
की निंदा करें और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को धार देने की कोशिश करें. महिलाओं
के अधिकार की लड़ाई लड़ने वालों को को यह चाहिए कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के
तालिबानी संगठनों की तरह सोचने वालों की हर मुकाम पर निंदा करें . दिलीप घोष का
बयान उसी तालिबानी सोच का भारतीय संस्करण है. </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p> </o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">तालिबानी
सोच के चलते देश की आज़ादी को भी खतरा पैदा हो जाता है . भारत और पाकिस्तान एक समय
पर अंग्रेजों से आज़ाद हुए थे . महात्मा गांधी के नेतृत्व में जो आज़ादी की लड़ाई लड़ी
गयी थी उसमें नैसर्गिक न्याय स्थाई भाव था . शोषित पीड़ित जमातों के साथ न्याय उसी
का हिस्सा है . डॉ लोहिया समेत सभी बड़े नेताओं ने बार बार कहा है कि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>महिलायें भी अपने देश में शोषित पीड़ित रही हैं
वे चाहे जिस<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जाति या धर्म का पालन करने
वाली हों. आज़ादी के बाद देश की नीतियाँ गांधी के ही रास्ते पर चलीं . ज़मींदारी
उन्मूलन हुआ,दलितों के लिये आरक्षण हुआ, उनको शिक्षा देने का अभियान चलाया गया <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाकिस्तान में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कुछ नहीं हुआ. वहां पर समाज के समृद्ध वर्गों के
एकाधिकार को बनाये रखने के लिए ही सारे नियम<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>क़ानून बनाये गए .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यही कारण है कि
आज पाकिस्तान एक पिछड़ा देश है जबकि भारत दुनिया के शीर्ष देशों में गिना<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जाने लगा<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>है . पाकिस्तान में तो अभी तक महिलाओं को अपमानित करने का कुटीर उद्योग चल
रहा है .इसी सोच का नतीजा है कि वहां <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जब
भी चुनाव होते हैं तो घटिया मर्दवादी सोच के लोग ही हावी रहते<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं. पाकिस्तान में होने वाले किसी चुनाव के
लिए सबसे बड़ा ख़तरा पुरातनपंथियों और तालिबानी सोच के लोगों से रहता है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पिछले कई वर्षों <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाकिस्तान
के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सरहदी सूबे , खैबर पख्तूनख्वां ,में
तालिबानियों की ओर से पर्चे बांटे जाते हैं जिसमें अपील की जाती है कि चुनाव के
दिन कोई भी महिला घर से बाहर न निकले और वोट न डाले . सूबे के मर्दों को हिदायत दी
जाती <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है कि अपने घर की औरतों को वोट डालने
के लिए घर से बाहर न निकलने दें . जो पर्चे बांटे जाते <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं उनमें लिखा होता है कि औरतों के लिए
डमोक्रेसी में शरीक होना गैर इस्लामी है <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>.दिलीप
घोष के बरमूडा वाले बयान से पाकिस्तानी तालिबान की इसी सोच की बू आती है . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p> </o:p></span></p>
<p style="line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">इस
तरह की सोच वाले सभी पार्टियों में मौजूद हैं . ज़रूरत इस बात की है उन लोगों को राजनीति
की मुख्यधारा से<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बाहर ही रखा जाए . पाकिस्तानी
तालिबानी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मानसिकता किसी भी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>समाज में स्वीकार नहीं की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जानी चाहिए .एक समाज के रूप में हमें इस
मानसिकता से लड़ना पडेगा . असली समस्या यह है कि आज भी हमारा पुरुष प्रधान समाज
महिलाओं को कमज़ोर मानता है .जब तक औरतों के बारे में पुरुष समाज की बुनियादी सोच
नहीं बदलेगी तब तक कुछ नहीं होने वाला है . असली लड़ाई पुरुषों की मानसिकता</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"> <span lang="HI">बदलने की है .जब यह मानसिकता</span> <span lang="HI">बदलेगी उसके बाद
ही देश की आधी आबादी के खिलाफ निजी तौर पर की जाने वाली ज़हरीली बयानबाजी से बचा</span>
<span lang="HI">जा सकता है . दुनिया जानती है कि संसद और विधानमंडलों में महिलाओं
के ३३ प्रतिशत आरक्षण के लिये कानून बनाने के लिए देश की अधिकतर राजनीतिक
पार्टियों में आम राय है लेकिन कानून संसद में पास नहीं हो रहा</span> <span lang="HI">है . इसके पीछे भी वही तर्क है कि पुरुष प्रधान समाज से आने वाले नेता
महिलाओं के बराबरी के हक को स्वीकार नहीं करते .इसीलिये सामाजिक</span>, <span lang="HI">आर्थिक राजनीतिक और नैतिक</span> <span lang="HI">विकास को बहुत तेज़
गति दे सकने वाला यह कानून अभी पास नहीं हो रहा है .महिला आरक्षण का विरोध कर रही
जमातें किसी से कमज़ोर नहीं हैं और महिलायें <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पिछले कई दशक से सरकारों को अपनी बातें मानने के
लिए दबाव डालती रही हैं .अपने को पिछड़ी जातियों के राजनीतिक हित की निगहबान बताने
वाली राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के आरक्षण में अलग से पिछड़ी जातियों के लिए
आरक्षण की बात कर रही हैं . सबको मालूम है कि यह मुद्दे को भटकाने का तरीका है .</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">महिला
अधिकारों की लड़ाई कोई नई नहीं है</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">भारत की आज़ादी</span> <span lang="HI">की लड़ाई के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>साथ महिलाओं की आज़ादी की लड़ाई का आन्दोलन भी
चलता रहा है .१८५७ में ही मुल्क की खुदमुख्तारी की लड़ाई शुरू हो गयी थी लेकिन
अँगरेज़ भारत का साम्राज्य छोड़ने को तैयार नहीं था. उसने इंतज़ाम बदल दिया. ईस्ट
इण्डिया कंपनी से छीनकर ब्रितानी सम्राट ने हुकूमत अपने हाथ में ले ली. लेकिन शोषण
का सिलसिला जारी रहा. दूसरी बार अँगरेज़ को बड़ी चुनौती महात्मा गाँधी ने दी .
१९२० में उन्होंने जब आज़ादी की लड़ाई का नेतृत्व करना शुरू किया तो बहुत शुरुआती
दौर में साफ़ कर दिया था कि उनके अभियान का मकसद केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं है</span>, <span lang="HI">वे सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई लड़ रहे हैं</span> , <span lang="HI">उनके साथ पूरा मुल्क खड़ा हो गया . . हिन्दू</span> ,<span lang="HI">मुसलमान</span>, <span lang="HI">सिख</span>, <span lang="HI">ईसाई</span>, <span lang="HI">बूढ़े</span> ,<span lang="HI">बच्चे नौजवान</span> , <span lang="HI">औरतें और मर्द सभी गाँधी
के साथ थे. सामाजिक बराबरी के उनके आह्वान ने भरोसा जगा दिया था कि अब असली आज़ादी
मिल जायेगी. लेकिन अँगरेज़ ने उनकी मुहिम में हर तरह के अड़ंगे डाले . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">महिलाओं
के सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए उनको राजनीतिक अधिकार मिलना <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ज़रूरी है और उसके लिए महिलाओं को आरक्षण मिलना
ही चाहिए .आरक्षण के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बिल को पास उन
लोगों के ही करना है जिनमें से अधिकतर मर्दवादी</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">
<span lang="HI">सोच की बीमारी</span> <span lang="HI">के मरीज़ हैं . और वे
दिलीप घोष टाइप मानसिकता वाले लोग हैं . पिछले दिनों एक रिपोर्ट आई थी जिसमें लिखा
है कि</span> <span lang="HI">अहमदाबाद की</span> 58 <span lang="HI">फीसदी
औरतें गंभीर रूप से मानसिक तनाव की शिकार हैं. उनका अध्ययन बताता है कि</span> 65 <span lang="HI">फीसद औरतें सरेआम पड़ोसियों के सामने बेइज्जत की जाती</span><span style="border: none windowtext 1.0pt; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;"> </span><span lang="HI">है.</span> 35 <span lang="HI">फीसदी
औरतों की बेटियां अपने पिता की हिंसा की शिकार हैं. यही नहीं</span> 70 <span lang="HI">फीसदी औरतें गाली गलौच और धमकी झेलती हैं.</span> 68 <span lang="HI">फीसदी औरतों ने थप्पड़ों से पिटाई की जाती है. ठोकर और धक्कामुक्की की
शिकार</span> 62 <span lang="HI">फीसदी औरतें हैं तो</span> 53<span lang="HI"> फीसदी लात-घूंसों से पीटी जाती हैं. यही नहीं</span> 49 <span lang="HI">फीसदी को किसी ठोस या सख्त चीज से प्रहार किया गया जाता है. वहीं</span> 37 <span lang="HI">फीसदी के जिस्मों पे दांत काटे के निशान पाए गए.</span> 29 <span lang="HI">फीसद गला दबाकर पीटी गई हैं तो</span> 22 <span lang="HI">फीसदी
औरतों को सिगरेट से जलाया गया है. "</span></span><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">दिलीप घोष यह सब
तो नहीं कर सकते लेकिन जो उन्होंने ममता जी की चोट, साड़ी और बरमूडा वाला बयान दिया
है वह इसी श्रेणी के अपराधों की मानसिक स्थिति से पैदा होती है और उनकी निंदा की
जानी चाहिए .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-51640840299680465492021-03-21T10:17:00.008-07:002021-03-21T10:17:45.369-07:00वाणी की युद्ध-यात्रा ,हमने ढाका पर भारतीय सेना की विजय को देखा है –डॉ धर्मवीर भारती की आँखों से<p> </p><p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><br /></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">शेष नारायण सिंह </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">बंगलादेश की आज़ादी की लड़ाई एक हथियारबंद
लड़ाई थी जिसमें<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पहले के पूर्वी पाकिस्तान
की जनता के हर वर्ग ने हिस्सा लिया था . शेरपुर ,जमालपुर, टंगाइल होते हुए जो सेना
ढाका पंहुची थी उसकी अगुवाई मेजर जनरल गन्धर्व नागरा कर रहे थे. उनके साथ सहयोगी ब्रिगेडियर
क्लेर भी थी . उन दिनों टीवी नहीं था .<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>रेडियो और अखबार से ही ख़बरें मिलती थीं. उस लड़ाई का आँखों देखा हाल हमने उस
दौर की सबसे लोकप्रिय हिंदी पत्रिका धर्मयुग में पढ़ा था. धर्मयुग के संपादक डॉ
धर्मवीर भारती एक युद्ध संवाददता के रूप में जनरल गंधर्व नागरा की सेना के साथ साथ
चल रहे थे. डॉ भारती को हिंदी भाषा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दुनिया का पहला युद्ध संवाददाता होने का गौरव
प्राप्त<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है .उनके फोटोग्राफर बालकृष्ण भी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>साथ थे. धर्मयुग में छपे डॉ धर्मवीर भारती
के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>डिस्पैच <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>१९७१ के दिसंबर और १९७२ की जनवरी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में भारत के कोने कोने में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पढ़े जाते थे.<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>एम ए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रीवियस के छात्र के रूप में
हमने उन ख़बरों को पढ़ा था , बार बार पढ़ा था. हिंदी में गद्य लेखन के जो श्रेष्ठतम मानदंड
हैं, वह रिपोर्टें उन्हीं में शुमार की जायेंगी . वैसे भी डॉ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>धर्मवीर भारती की गद्य लेखन का सम्मान चंहुओर है
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन मुक्तिवाहिनी और मित्रवाहिनी के साथ
उनकी वह यात्रा ऐतिहासिक है .कल ( २० मार्च ) <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वाणी प्रकाशन के अरुण माहेश्वरी से डॉ भारती
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>क़लम की ताकत और उस लडाई की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रिपोर्टिंग की चर्चा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हो रही थी , तो मैंने डॉ<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भारती की रिपोर्ट के कुछ अंश सुनाना शुरू कर
दिया .बहुत सारे अंश हमको जबानी याद हैं ..<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>कुछ क्षण बाद ही अरुण जी भी कुछ अंश<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>सुनाने लगे. मैंने कहा ,भाई आप तो उस समय १०-११ साल के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रहे होंगे, आप तो शायद धर्मयुग न पढ़ते रहे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हों <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो
उन्होंने ११८ पृष्ठों की एक किताब दिखाई जिसमें वह सारी रिपोर्ट छपी हुयी है . “ युद्ध-यात्रा
“ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नाम की यह किताब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वाणी प्रकाशन ने ही छापी है . मैं गदगद हो गया
. उन्होंने वह किताब मुझे दी और<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कहा कि यह
आपके लिए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है. अपन भी सख्त याचक हैं . कभी
मुफ्त में मिली किताब पढ़ते नहीं . मुझे मालूम है कि वे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मुझसे किताब का दाम नहीं लेंगे इसलिए मैंने कहा
कि आप किताब पर कुछ लिख कर दीजिये. उन्होंने कहा कि लिखना तो आदरणीय पुष्पा भारती
जी का अधिकार है लेकिन चलिए कुछ लिखता हूं. उन्होंने पुष्पा जी और स्व डॉ भारती के
हवाले से वह किताब मुझे दे दी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">घर पंहुचकर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किताब <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पढ़ना शुरू किया . आधी तो रात में ही पढ़ गया और
जो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बची उसे सुबह पूरी कर लिया . उस किताब
में मेरे लिए नया कुछ भी नहीं था. सारा कुछ हमने आज के पचास साल पहले पढ़ रखा था
,इसलिए डॉ भारती की वह रिपोर्टें ऐसी लगती हैं कि जैसे हम भी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उनमें कहीं<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>मौजूद हैं . उन्हीं रिपोर्टों को पढ़कर अपने मित्रों को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सुनाते हुए मेरे जीवन के कुछ स्मरणीय क्षण<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जुड़े हुए हैं , बहुत ही अच्छी यादें हैं .हमारे
सैन्य विज्ञान के प्राध्यापक एस सी श्रीवास्तव साहब तो मेजर जनरल गन्धर्व नागरा और
ब्रिगेडियर क्लेर को राम-लक्षमण कहा करते थे . भारतीय सेना ढाका की तरफ पूरब पश्चिम
उत्तर दक्षिण की तरफ से बढ़ रही थी और सबकी बाकायदा दुनिया भर में रिपोर्टिंग हुयी
लेकिन हिंदी क्षेत्र की जनता को उत्तर की तरफ से आती हुयी मेजर जनरल गंधर्व नागरा
की सेना के बारे में ही ज्यादा जानकारी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>थी. हम लोगों को मालूम है कि जमालपुर से बढ़ते हुए जब ढाका शहर के ठीक बाहर
जनरल नागरा की फ़ौज पंहुच गयी तो वे मीरपुर पुल पर गए और उन्होंने ही अपने दो
अफसरों को वह चिट्ठी लेकर भेजी थी जिसमें पाकिस्तानी सेना का आला अफसर लेफ्टीनेंट
जनरल ए ए के नियाजी को समझाया गया था कि,” मैं अपनी फ़ौज के साथ यहाँ तक आ पंहुचा
हूँ. यदि आप अपनी कुशल चाहते<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं तो
आत्मसमर्पण कर दें .आत्मसमर्पण के बाद आपकी और आपकी सेना की पूरी सुरक्षा की
गारंटी मैं लेता हूँ. : उसके बाद जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया .
जनरल नागरा और जनरल<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नियाजी एक<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दूसरे से पूर्व परचित थे . दोनों गले मिले . उसके
बाद कलकत्ता से पूर्वी कमान के कमांडर जनरल जे एस<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>अरोड़ा ढाका गए और समर्पण की कार्यवाही विधिवत पूरी की गयी . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ४/७ राजपूत
रेजिमेंट में कमीशन किये गए थे इसलिए भारत की सेना में उनके बहुत सारे दोस्त थे .
उनको जनरल नागरा के वचन के अनुसार राजपूत <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रेजिमेंटल सेंटर और गढ़वाल राइफल्स सेंटर में
युद्धबंदी के रूप में रखा गया . डॉ भारती की रिपोर्ट में तो यह नहीं लिखा है लेकिन
जब जनरल अरोड़ा के सामने जनरल नियाजी समर्पण करने आये तो उनको अपनी पिस्तौल समर्पण
करना<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>था. जनरल अरोड़ा ने कहा कि बेल्ट भी
खोल दो . बेल्ट <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>खोलने के बाद नियाजी ने
कहा कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पतलून भी ? इस बात <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ठहाका लगा और जब नियाजी को बताया गया कि उनकी
सेना ने किस तरह से अत्याचार किये हैं तो उनको अफ़सोस भी हुआ.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दरअसल उनको तो बलि का बकरा बनाया गया था .उनके
पहले तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना का कमांडर लेफ्टिनेट जनरल
टिक्का खान था और उसने जब देखा कि है हार <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>निश्चित है तो वह भाग कर वापस रावलपिंडी चला गया
था. बाग्लादेश में उसी के तैनात किये गए अफसर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तैनात थे जो सब कके सब बूचर थे . इसके पहले वह
बलोचिस्तान में अपने खूंखार तरीकों से बूचर ऑफ़ बलोचिस्तान का तमगा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हासिल कर चुका था. उसी जनरल टिक्का खान का
रिश्तेदार वह बदतमीज लेफ्टिनेंट जैदी भी था जिसको जमालपुर कीलड़ाई में युद्धबंदी
बनाया गया था .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">डॉ भारती की रिपोर्ट<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पढ़कर ही हमको<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>पता था कि मुक्तिबाहिनी के कमांडर कर्नल उस्मानी कितने बहादुर थे .मां काली
की कसम खाकर अपने सैनिकों को भेजते मुस्लिम मुक्तिबाहिनी अफसरों की कहानी भी वहीं
दर्ज है . मुक्तिबाहिनी के सेक्टर कमांडर मेजर जलील को ,भारतीय सेना के कर्नल बरार
और मेजर महेंद्र , फ़्लाइंग ऑफिसर वर्मा के कटाक्ष का बेहतरीन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वर्णन भी धर्मयुग रिपोर्टों में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पढ़ा था . उस पूरी रिपोर्ट को छापकर अरुण
माहेश्वरी और उनकी यशस्वी बेटी अदिति ने बहुत ही आला और नफीस काम किया है. मन तो
कह रहा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है कि सारी कथा लिख दूं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन लिखूंगा नहीं क्योंकि आप में से अगर कोई ‘युद्ध-यात्रा
‘ को पढ़ना चाहेगा तो उसका मज़ा किरकिरा हो जायेगा </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-16353091099248200572021-03-15T00:55:00.007-07:002021-03-15T00:55:54.411-07:00 बहुत अरसा बाद लखनऊ की माल एस्टेट गया ,मन खुश हो गया .<p><br /></p><p><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">शेष नारायण सिंह </span></p><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">कई दशक बाद माल गया. माल के राजा कुंवर भूपेन्द्र सिंह की शादी की 51 वीं सालगिरह थी . उनकी पौत्री ( नवनिधि और माधवेंद्र की बेटी ) का अन्नप्राशन भी था बाकायदा जश्न मनाया गया . उनके प्रिय जल्लाबाद फार्म पर मुख्य कार्यक्रम था . उनके बच्चों ने आयोजन किया था . उनके उन सारे दोस्तों को आमंत्रित किया गया था जो उनको पाचास साल या उससे ज़्यादा वक़्त से जानते हैं . उन्होंने अपनी पढ़ाई काल्विन ताल्लुकेदार्स कालेज लखनऊ में थोड़े दिन की ,अमेरिका गए और लखनऊ यूनिवर्सिटी में पूरी की . उनको मैं सत्तर के दशक से जानता हूं. मैं उनको सम्मान से लल्लन दादा कहता हूं. शुरुआती परिचय के बाद उनसे मुलाकातें तो बहुत रेगुलर नहीं थीं लेकिन लखनऊ के उनके 60 पुराना क़िला आवास पर कभी कभार आना जाना होता था . बाद में मैं दिल्ली आ गया और वे लखनऊ में आम के पल्प की यूनिट लगाने में व्यस्त हो गए . फिर इमरजेंसी लग गयी और ज्यादातर पढ़े लिखे लोग थोड़े संकोच में रहने लगे . पता नहीं कब कौन और कहाँ नाराज़ हो जाए और फिर सत्ता का क्रोध किस रूप में आ जाये . अमेठी के कोहरा में उनकी चाची का मायका है . उनके मामा स्व रवीन्द्र प्रताप सिंह सुल्तानपुर जिले के जनसंघ के जिलास्तर के नेता थे. 1967 में गौरीगंज से एम एल ए रह चुके थे. 1977 में जब संजय गांधी के सामने विपक्ष को कोई ताकतवर उम्मीदवार नहीं सूझ रहा था तो नानाजी देशमुख ने अमेठी से जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में रवीन्द्र प्रताप सिंह के नाम की घोषणा कर दी . वे चुनाव में उस वक़्त की सत्ता के युवराज के खिलाफ मैदान में आये और उन्होंने संजय गांधी को बहुत बुरी तरह हराया . उन दिनों मैं रोज़गार की तलाश में दिल्ली में रहता था . उनके ही आवास पर लल्लन दादा से दोबारा मुलाक़ात हुई . लल्लन दादा mango belt में बहुत सम्मान की शख्सियत हैं . मलीहाबाद के आसपास जहां लखनऊ के आम की राजधानी है , उसी के पास उनका एस्टेट है . जल्लाबाद का बाग़ भी उसी इलाके में है और अब वहां उनके बेटे कुंवर माधवेंद्र सिंह ने एक आधुनिक और वैज्ञानिक ,माधव उद्यान विकसित कर दिया है . उसी माधव उद्यान में १३ मार्च का जश्न आयोजित था . उस कार्यक्रम का आयोजन उनकी बेटियों और बेटों ने किया था . उनके भाई कुंवर देवेन्द्र सिंह हामेशा की तरह साथ साथ मौजूद थे जैसे राम के साथ लक्ष्मण. भाभी साहिबा, कुंवरानी गायत्री सिंह के इर्द गिर्द ही सारा कार्यक्रम केंदित था. हो भी क्यों न ? अपनी बेटियों को जिस तरह से भाभी ने शिक्षा दिलवाई है , जिस तरह से उनका लालन पालन किया है सभी ख़ुदमुख़्तार हैं . आम तौर पर राजाओं की बेटियाँ इतनी आत्मनिर्भर नहीं होतीं, लेकिन मनीषा ,मेघना, मोहिता, मौसमी सब जहां भी जाती हैं रोशनी बिखेर देती हैं . दादा की बहनों, भाइयों की औलादें अपने जीवनसाथियों के साथ जश्न में शामिल थीं. कटक से आयी भांजी ने जिस तरह से फिल्म का गाना render किया वह बेहतरीन था . उनके बेटे माधवेंद्र की जो बहू आई है वह एक सकारात्मक ऊर्जा का पुंज है . नवनिधि सिंह , माल की बहू है लेकिन भाभी साहिबा उसको वही सम्मान देती हैं जो बेटियों को या शायद उससे भी ज्यादा . मुझे खुशी है कि मैं इस बार माल के किसी आयोजन में शामिल हो सका. मैं ही नहीं ,अवध के ताल्लुकेदारों के ज्यादातर परिवार जश्न में शामिल हुए .उनमें बहुत से लल्लन दादा के साथ यूनिवर्सिटी के छात्र भी रह चुके हैं. सबकी अपनी मीठी मीठी यादें हैं . </div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"> मैं बजात खुद राजा या ताल्लुकदार परिवार से नहीं हूँ. commoner हूं . उनसे सात साल छोटा हूँ तो साथ पढने लिखने का भी कोई मतलब नहीं . दर असल मेरा बेहतरीन समय उनके साथ दिल्ली में ही बीता है . लल्लन दादा ने लोगों से मुझे अपना भाई कहकर परिचित कराया . उनके बालसखा अनिल चंद्रा दिल्ली में गारमेंट की दुनिया के बहुत ही आदरणीय नाम हुआ करते थे. अब तो बुज़ुर्ग हो गए . दोनों साथ साथ लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ते थे. अनिल दादा के पिताजी स्व डॉ सुशील चंद्रा ,लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रह चुके थे , जेके इंस्टीट्यूट के डाइरेक्टर रह चुके, रिटायर होने के बाद दिल्ली में ही रहते थे. बहुत बड़ा नाम था उनका. वे सभ्यता की प्रतिमूर्ति थे . अनिल चंद्रा के डैडी थे तो लल्लन दादा समेत ज्यादातर दोस्त उनको डैडी ही कहते थे . वे हमारे डैडी चंद्रा हो गए . एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि तुम ठाकुर हो सुल्तानपुर के और अवध की असली नफासत और ठसक तुम्हारी पर्सनालिटी में नहीं है . तुमको चाहिए कि लल्लन को गुरू मानकर चलो तो तुमको सभ्य समाज में उठने बैठने की तमीज आ जायेगी . तो जनाब हमने डैडी चंद्रा की सलाह मानी और तमीज के मामले में हम लल्लन दादा के शिष्य हो गए. अपने गुरू के पद को उन्होंने बहुत ही गंभीरता से लिया और मुझे 1978 में तमीज सिखाने के प्रोजेक्ट में लग गए . यह अलग बात है कि आज 43 साल बाद भी मैं कुछ खास तमीज नहीं सीख पाया . लल्लन दादा और अनिल दादा जब कभी बात करने लगते थे तो घंटों बतियाते रहते थे. दोनों ही मित्र , भाई ज़्यादा लगते थे . एक बार अनिल चंद्रा के मालचा मार्ग दिल्ली स्थित घर पर एलान किया गया कि लल्लन दादा और अनिल दादा कुछ ख़ास किस्म का लखनवी भोजन आमंत्रित लोगों को खिलाएंगे. दोनों ही मित्रों ने खुद ही बावर्चीखाने का ज़िम्मा संभाला . हम लोग लंच पर आमंत्रित थे . सारे नौकर चाकर भी साथ लगे थे . हम भी सहायक की भूमिका में थे. एक बजे के बाद से भूख के मारे बुरा हाल था लेकिन चूंकि तमीज के विद्यार्थी थे तो भूख ज़ाहिर करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. चार बजे लंच सर्व हुआ तब तक हमारे पेट में चूहे कूद रहे थे. बहरहाल खाना लाजवाब था. 13 मार्च के जश्न में अनिल दादा शामिल नहीं हो सके लेकिन मैं उनकी भी नुमाइंदगी कर रहा था . </div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">दिल्ली में जे एन यू के छात्रावास का खाना ही हम खाते थे लेकिन जब लल्लन दादा दिल्ली आते थे तो हम पांच सितारा होटलों में खाने जाया करते थे . हमने अमरीका और ब्रिटेन की बेहतरीन फ़िल्में उनके साथ ही देखी हैं . उनको अच्छे कपडे पहनने का बहुत ही शौक़ है . उस दौर के मेरे भी सभी अच्छे कमीजें और पतलून उनके साथ ही जाकर खरीदे गए हैं. </div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">लल्लन दादा यानी कुंवर भूपेन्द्र सिंह का एक कौल है कि उनके आम दुनिया में सबसे बेहतरीन आम होते हैं . मैं इस बात की तस्दीक करता हूँ. हर साल आम के मौसम में मेरे लिए जल्लाबाद फ़ार्म के आम ज़रूर आते थे और दिल्ली में अपने ख़ास मित्रों और शुभचिंतकों को मैं आम खिलाया करता था. उन दिनों मैं बेरोजगार था लेकिन उन्होंने जब भी मुझे किसी से मिलाया तो या तो अपना भाई या colleague कहकर ही मिलाया . दुनिया भर विख्यात food technologist डॉ आनन्द कुराडे को कुंवर भपेन्द्र सिंह ने अपनी कम्पनी में काम दिया था . माल की कैनर्स इंडिया लिमिटेड उनका पहला कंसल्टेंसी का काम था. . जब लल्लन दादा को मैंने बताया कि बीबीसी रेडियो में भी मुझे कुछ काम मिलता रहता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था. आज के करीब 24 साल पहले जब मैंने एन डी टी वी ज्वाइन किया तो उन्होंने मुझे और मेरे दोस्तों को मिठाई खिलाई थी. मेरे तीनों बच्चे उनको बहुत ही सम्मान की नज़र से देखते हैं. 1988 में मेरे ग्रीन पार्क के घर में जब भी वे पधारे सब के लिए कोई न कोई गिफ्ट लेकर आये .</div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">एक बार उन्होंने कहा कि पीटर सेलर्स की कोई फिल्म चाणक्य सिनेमा में लगी हुयी है , उसको देखना है . उस सिनेमा हाल की महंगी टिकटें सबसे पहले बिक जाती थीं. जब हम पंहुचे तो थोड़ी देर हो गयी थी और 65 पैसे वाली टिकटें ही बची थी, उन्होंने कहा वही खरीद लो क्योंकि उनको अगले दिन सुबह की फ्लाइट से लखनऊ जाना था. एक रूपये तीस पैसे की टिकट खरीदी गयी . गौर करने की बात यह है कि हम अशोक होटल में खाना खाकर गए थे जिसका बिल आज के चालीस साल पहले हज़ार रूपये तो रहा ही होगा और जिस टैक्सी में हम आये उस्सको भी उन दिनों डेढ़ सौ रूपये दिए गए. भाभी साहिबा के साथ एक बार वे वैष्णों देवी गए . जब लौटे तो मेरे बच्चों को ख़ास तौर से बुलाकर प्रसाद दिया .</div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">ऐसी उनके बारे में बहुत सारी यादें हैं . कभी लिखूँगा . अब वे पूरी तरह रिटायर हैं , माधवेंद्र ने काम बहुत अच्छी तरह संभाल लिया है . अब माल या जल्लाबाद जाना बहुत आसान है . पहली बार जब गया था तो मलीहाबाद होकर गया था , गंगा नाम का उनका सहायक मेरी सेवा में रहता था . उन दिनों लगता लगता था कि माल बहुत दूर है . लेकिन इस बार हज़रतगंज से चलने के एक घंटे के बाद मैं जल्लाबाद पंहुच गया था , क्योंकि दुबग्गा से माल के लिए एक सड़क बन गयी है जिसपर कोई ख़ास ट्रैफिक नहीं रहता . कुल मिलाकर ‘ मालगाँव ‘ भी तरक्की कर रहा है .माल में तो कोठी है ही जल्लाबाद में भी एक बेहतरीन कॉटेज है. सोचता हूं कि अब जब भी लखनऊ जाऊं तो एक बार उस संत , राजा भूपेन्द्र सिंह के ठिकाने पर ज़रूर जिसने पता नहीं कितने लोगों का उपकार किया है लेकिन कभी किसी से उस मदद पाने वाले की मजबूरी या गरीबी का उल्लेख नहीं किया . उनके बारे में मुबारक सिद्दीकी का यह शे’र कितना मौजूं है .</div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">किसी की रह से , ख़ुदा की ख़ातिर , उठा के काँटे हटा के पत्थर </div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">फिर उस के आगे , निगाह अपनी झुका के रखना . कमाल ये है </div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">बहुत बहुत मुबारक भाभी जी और लल्लन दादा . बहुत बहुत बधाई मेरे बच्चो .</div></div>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-15013885884119771832021-03-15T00:45:00.004-07:002021-03-15T00:45:38.194-07:00 बांगलादेश के पचास साल और बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान<p><br /></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8667px; margin: 0in 0in 10pt;"><b><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt; line-height: 18.4px;">शेष नारायण सिंह</span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt; line-height: 18.4px;"><br /><br /><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial;"></span></span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8667px; margin: 0in 0in 10pt;"><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4667px;">50 साल पहले बंगलादेश का जन्म हुआ था. 26 मार्च को उसकी पचासवीं जयन्ती मनाई जायेगी . उसके पहले सात मार्च को शेख मुजीब ने पाकिस्तान से बांगलादेश की आज़ादी का नारा दिया था और 26 मार्च को आज़ादी के जंग का इअलान कर दिया था . उसी दिन से पूर्वी पाकिस्तान ख़त्म और बंगलादेश अस्तिव में आ गया . इस साल 26 मार्च के कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. कोरोना की महामारी आने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा होगी . बांग्लादेश के जन्म के साथ ही असंभव भौगोलिक बंटवारे का एक अध्याय ख़त्म हो गया था. नए राष्ट्र के संस्थापक </span><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4667px;">,<span lang="HI">शेख मुजीबुर्रहमान को तत्कालीन पाकिस्तानी शासकों ने जेल में बंद कर रखा था लेकिन उनकी प्रेरणा से शुरू हुआ बंगलादेश की आज़ादी का आन्दोलन भारत की मदद से परवान चढ़ा और एक नए देश का जन्म हो गया.. बंगलादेश का जन्म वास्तव में दादागीरी की राजनीति के खिलाफ इतिहास का एक तमाचा था जो शेख मुजीब के माध्यम से पाकिस्तान के मुंह पर वक़्त ने जड़ दिया था. आज पाकिस्तान जिस अस्थिरता के दौर में पंहुच चुका है उसकी बुनियाद तो उसकी स्थापना के साथ ही १९४७ में रख दी गयी थी लेकिन इस उप महाद्वीप की ६० के दशक की घटनाओं ने उसे बहुत तेज़ रफ़्तार दे दी थी.. यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य था कि उसकी स्थापना के तुरंत बाद ही मुहम्मद अली जिन्नाह की मौत हो गयी. प्रधानमंत्री लियाक़त अली को पंजाबी आधिपत्य वाली पाकिस्तानी फौज और व्यवस्था के लोग अपना बंदा मानने को तैयार नहीं थे और उनको हिन्दुस्तान से आया हुआ मोहाजिर मानते थे . उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया. जब जनरल अय्यूब खां ने पाकिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़ा किया तो वहां गैर ज़िम्मेदार हुकूमतों के दौर का आगाज़ हो गया.. याह्या खां की हुकूमत पाकिस्तानी इतिहास में सबसे गैर ज़िम्मेदार सत्ता मानी जाती है. ऐशो आराम की दुनिया में डूबते उतराते </span>, <span lang="HI">जनरल याहया खां ने पाकिस्तान की सत्ता को अपने फौजी अफसरों के क्लब का ही विस्तार समझ लिया था . मानसिक रूप से कुंद </span>,<span lang="HI">याहया खान किसी न किसी की सलाह पर ही निर्भर करते थे </span>, <span lang="HI">उन्हें अपने तईं राज करने की तमीज नहीं थी. कभी प्रसिद्ध गायिका नूरजहां की राय मानते </span>,<span lang="HI">तो कभी ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की. सच्ची बात यह है कि सत्ता हथियाने की अपनी मुहिम के चलते ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने याहया खान से थोक में मूर्खतापूर्ण फैसले करवाए..ऐसा ही एक मूर्खतापूर्ण फैसला था कि जब संयुक्त पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेम्बली ( संसद) में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी</span>, <span lang="HI">अवामी लीग को स्पष्ट बहुमत मिल गया तो भी उन्हें सरकार बनाने का न्योता नहीं दिया गया..पश्चिमी पाकिस्तान की मनमानी के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में पहले से ही गुस्सा था और जब उनके अधिकारों को साफ़ नकार दिया गया तो पूर्वी बंगाल के लोग सडकों पर आ गए. . मुक्ति का युद्ध शुरू हो गया</span>, <span lang="HI">मुक्तिबाहिनी का गठन हुआ और स्वतंत्र बंगलादेश की स्थापना हो गयी.. इस तरह १६ दिसंबर १९७१ का दिन बंगलादेश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया.उसी दिन पाकिस्तान की फौज के करीब १ लाख सैनिको ने घुटने टेक दिए और भारतीय सेना के सामने समर्पण किया था . बाद में बंगलादेश ने भी बहुत परेशानियां देखीं </span>, <span lang="HI">१५ अगस्त १९७५ के दिन शेख मुजीब की उनकी फ़ौज के कुछ अफसरों ने धानमंडी स्थित उनके मकान में मार डाला . फ़ौजी अफसरों ने उस हमले में उनके पूरे परिवार को मार डाला था. शेख मुजीब की पत्नी ,उनके तीन बेटे और भी कुछ रिश्तेदार जो उनके घर में टिके हुए थे , सबको मार डाला गया था . उनकी दो बेटियाँ जर्मनी में थीं लिहाजा उनकी जान बच गयी. उनमें से एक शेख हसीना आजकल बंगलादेश की प्रधानमंत्री हैं .शेख साहब को मारकर बांग्लादेश में भी फौज ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया . यह वही लोग थे जो पाकिस्तानी फौज के अफसर थे लेकिन बंगालदेश की स्थापना के बाद बंगलादेश की सेना में बंटवारे के तहत आ गए थे . उसके बाद फ़ौज ने बार बार बांग्लादेश की सत्ता पर आधिपत्य जमाया और कई बार ऐसे लोग सत्ता पर काबिज़ हो गए जो पाकिस्तानी आततायी</span>, <span lang="HI">जनरल टिक्का खान के सहयोगी रह चुके थे. जनरल टिक्का खान को बूचर ऑफ़ बलोचिस्तान कहा जाता था . बाद में उसको ढाका की तैनाती दी गयी. जब बंगलादेश की आज़ादी के लिए मुक्ति बाहिनी का आन्दोलन चल रहा था तो ले.जनरल टिक्का खान ही ढाका में पाकिस्तानी फौज का कमांडर था . उसी की सरपरस्ती में बंगलादेश में नागरिकों का क़त्ले-आम हुआ था . उसी ने अपने फौजियों को आदेश दिया था कि बाग्लादेश को तबाह करो. इतिहास का सबसे बड़ा बलात्कार भी उसी के हुक्म से बंगलादेश में हुआ था . बलात्कार करने वाले सभी पाकिस्तानी फौज के लोग ही थी . बलात्कार की घटनाएं उस दौर में पूर्वी पाकिस्तान में जितना हुईं उतनी शायद ज्ञात इतिहास में कहीं भी </span>,<span lang="HI">कभी न हुई हों ..बाद में जब पाकिस्तानी फ़ौज को लगा कि अब भारत की सेना के सामने आत्मसमर्पण करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है तो टिक्का खान खुद भी भाग गया और उसने अपने खास लोगों को भी भगा दिया . ढाका के आसपास तैनात सेना ने पाकिस्तानी जनरल नियाजी की अगुवाई में भारतीय ले. जनरल जगजीत सिंह अरोरा के सामने समर्पण किया .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8667px; margin: 0in 0in 10pt;"><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4667px;">शेख मुजीब की मृत्यु के बाद काफी दिन तक फ़ौज ने बंगालदेश की सत्ता को अपने कब्जे में रखा .बाद में शेख मुजीबुर्रहमान की पार्टी ने फ़ौज को राजनीतिक तरीके से शिकस्त दी और वहां लोकशाही की स्थापना हुई . शेख मुजीब की बेटी शेख हसीना ने फौजी हुकूमत का सपना देखने वालों को बंगालदेश में उसकी औकात पर रखा हुआ है और बे नागरिक प्रशासन को मजबूती देने की कोशिश शुरू लगातार कर रही हैं ..</span>बंगलादेश का गठन इंसानी हौसलों की फ़तेह का एक बेमिसाल उदाहरण है..जब से शेख मुजीब ने ऐलान किया था कि पाकिस्तानी फौजी हुकूमत से सहयोग नहीं किया जाएगा<span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4667px;">, <span lang="HI">उसी वक्त से पाकिस्तानी फौज ने पूर्वी पाकिस्तान में दमनचक्र शुरू कर दिया था. सारा राजकाज सेना के हवाले कर दिया गया था और वहां फौज ने वे सारे अत्याचार किये</span>, <span lang="HI">जिनकी कल्पना की जा सकती है .. .आतंक का राज कायम कर रखा था सेना ने .. लोगों को पकड़ पकड़ कर मार रहे थे पाकिस्तानी फौजी. लेकिन बंगलादेशी नौजवान भी किसी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं था. जिस समाज में बलात्कार पीड़ित महिलाओं को तिरस्कार की नज़र से देखा जाता था उसी समाज में स्वतंत्र बंगलादेश की स्थापना के बाद पूरे देश का नौजवान उन लड़कियों से शादी करके उन्हें सामान्य जीवन देने के लिए आगे आया. बलात्कार करने वाली पाकिस्तानी फौज सबसे खूंखार हाथियार बलात्कार ही थी लेकिन वहां के नौजवानों ने उसी हथियार को भोथरा कर दिया.जिन लोगों ने उस दौर में बंगलादेशी युवकों का जज्बा देखा है वे जानते हैं कि इंसानी हौसले पाकिस्तानी फौज़ जैसी खूंखार ताक़त को भी शून्य पर ला कर खड़ा कर सकते हैं .. . बंगलादेश की स्थापना में भारत और उस वक़्त की प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी का बड़ा योगदान है. इंदिरा गांधी को उस वक़्त के पाकिस्तान के संरक्षक अमरीका से ज़बरदस्त पंगा लेना पडा था . पाकिस्तानी फौज के सभी हथियार अमरीका ने ही दे रखा था. जब बंगलादेश की आजादी बिलकुल साफ़ नजर आ रही थी उस वक़्त अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी कीसिंजर ने अमरीका की सेना के सातवें बेड़े के विमानवाहक जहाज , इंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में स्थापित कर दिया था. भारत की सेना को धमकाने की कोशिश की जा रही थी . लेकिन जब अमरीका को सी आई ए की इंटेलिजेंस से पता लगा कि तत्कालीन भारतीय रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम ने सेना के एक ऐसे आत्मघाती दस्ते का गठन कर दिया था जो अमरीकी नौसेना के सबसे बड़े अभियान को ही बरबाद करने की योजना बना चुका था , तो उनका विमान वाहक जहाज, इंटरप्राइज़ वापस अपने सातवें बेड़े में जा मिला . पाकिस्तानी फौज की हार हुई बंगलादेश की स्थापना हो गयी . भारत का बंगलादेश की स्थापना में बड़ा योगदान है क्योंकि अगर भारत का समर्थन न मिला होता तो शायद बंगलादेश का गठन अलग तरीके से हुआ होता..</span></span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4667px;"><br /><br /><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial;">लेकिन यह बात भी सच है कि अपनी स्थापना के इन <span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial;">50 <span lang="HI"> वर्षों में बंगलादेश ने बहुत सारी मुसीबतें देखी हैं . अभी वहां लोकशाही की जड़ें बहुत ही कमज़ोर हैं..शेख हसीना एक मज़बूत</span>, <span lang="HI">दूरदर्शी और समझदार नेता तो हैं और </span>2004 <span lang="HI">से लगातार प्रधानमंत्री पद पर हैं .उनकी अगुवाई में बांगलादेश की अर्थव्यवस्था आज बहुत ही सही तरीके से चल रही है . देश की प्रति व्यक्ति आय भारत से अधिक है . कोरोना के चलते जो अमरीकी और यूरोपीय कम्पनियां चीन से अपने कारखाने हटा रही हैं उनमें से कई बंगलादेश में अपने कारखाने लगा रही हैं . इस सब के बाद भी लोकशाही के खिलाफ काम करने वाली वे शक्तियां उनको उखाड़ फेंकने के लिए अभी तक जोर मार रही हैं जिन्होंने बंगलादेश की स्थापना का विरोध किया था या उनके परिवार को ही ख़त्म कर दिया था . उन शक्तियों में जमाते-इस्लामी प्रमुख है . उन लोगों को बंगलादेश में इस्लामी शासन कायम करने की बहुत जल्दी है . शेख हसीना धार्मिक आधार पर सत्ता की स्थापना की पक्षधर नहीं हैं . वे शेख मुजीबुर्रहमान के सपनों के हिसाब से सोनार बांगला की कल्पना को साकार करने में लगी हुई हैं. शेख हसीना पड़ोसी देशों से अच्छे सम्बन्ध की पक्षधर हैं और उनके नेतृत्व में बंगलादेश सही कूटनीतिक अर्थों में भारत का मित्र देश है . आज शेख हसीना को भारत की मदद की वैसी ज़रूरत नहीं है जैसी १९७१ में थी लेकिन आपसी सम्मान का रिश्ता बनाने की कोशिश करना चाहिए . भारत में या पश्चिम बंगाल में अगर हिन्दू राष्ट्र की बात की जायेगी तो बंगलादेश जैसे एक बेहतरीन दोस्त की लोकतांत्रिक नेता पर भी अवाम का दबाव बढेगा और भारत से दोस्ती पर संकट की स्थिति आ जायेगी इसलिए देश में धर्मनिरपेक्षता के निजाम पर सत्ताधारी नेताओं को हमला करने से बाज आना चाहिए ..</span></span></span></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-30297864464681485262021-03-07T17:25:00.005-08:002021-03-07T17:25:46.187-08:00महिला सशक्तीकरण के लिए महिलाओं को शिक्षा और राजनीतिक अधिकार देने पड़ेंगे<p> <b style="text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष
नारायण सिंह</span></b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; text-align: justify;"> </span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">मेरे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बचपन में मेरे गाँव में अठारह साल के पहले सभी
लड़कों लड़कियों की शादी हो जाती थी . आम तौर पर शादी के एक या तीन साल बाद लडकी की
विदाई होती थी .उस विदाई के समय लडकियां बिलख बिलख कर रोती थीं, उनकी माँ सबसे
ज़्यादा रोती थी. शुरू में तो समझ में नहीं आता था कि रोने की क्या ज़रूरत है . थोडा
बड़े होने पर पता चला कि रोने का कारण यह होता था कि एकदम अंजान लोगों के साथ जाकर
रहना होता था और ज्यादातर लड़कियों<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को
ससुराल में कष्ट सहना पड़ता था. <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अवधी
लोकगीतों में सुसराल में अकेली पड़ गयी लडकी की व्यथा की कहानियाँ भरी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पड़ी हैं .जो लड़की अपने घर में अपने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>माँ बाप के साथ पूरी तरह स्वतंत्र रहती थी
,ससुराल में जाकर उसे तरह तरह के बंधन में बाँध दिया जाता था . सबसे बड़ी बात तो
उसको घूंघट में रहना पड़ता था. अपने मायके में वह किसी भी बाग़ में जा सकती थी या
किसी भी खेत में जा सकती थी लेकिन ससुराल में बहू के रूप में उसका कहीं भी जाना
प्रतिबंधित हो जाता था . अति सामंती परिवारों में तो यह भी शेखी बघारी जाती थी कि
हमारे यहाँ औरत दुलहन के रूप में डोली में आती है<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>और मौत के बाद ही घर से बाहर निकलती है .जो लडकी अपने घर में भाई बहन और
माँ बाप की लाडली होती थी वही सुसराल में जाकर रसोई का सारा काम करने के लिए मजबूर
थी . गरीब परिवारों में नई नई<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बहू की
ड्यूटी में घर में झाडू<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बुहारू करना,
बर्तन मांजना , सास के पाँव दाबना, उनके नहाने के लिए पानी रखना , उनके सर में तेल
डालना ,<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>घर भर के कपडे धोना सब कुछ शामिल <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>होता था. सबके खाने के बाद उसको खाना<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मिलता था .<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>ज़िंदगी एकदम से बदल जाती थी लेकिन अजीब बात है कि वही लड़की जब वापस अपने
माँ बाप के पास विदा होकर कुछ हफ्ते या महीने के लिए आती थी तो खुशी ज़ाहिर करती
थी. ऐसा शायद इसलिए होता था कि उसको बचपन से ही यह समझ में आता रहता <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>था कि बेटी और बहू का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रोटोकाल अलग अलग<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>होता है . जो औरत अपनी बेटी की विदाई के समय
बिलख बिलख कर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रोती थी ,वही अपने बेटे की
पत्नी के प्रति तानाशाही पूर्ण रवैय्या अपनाती थी .वास्तव में यह मानसिकता ही औरतों
के सम्मान के जीवन में सबसे बड़ी बाधा है . मेरे मामा की बेटी की शादी एक ऐसे
परिवार में कर दी गयी थी जहां सास बहुत ही खूंखार महिला थी . उसके बेटे ने पढाई
लिखाई भी नहीं पूरी की और <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मामा की फूल से
बच्ची को ज़िंदगी में बहुत ही तकलीफ उठानी पडी. उसकी अकाल मृत्यु हो गयी. बाद में
पता चला कि उसकी सास ने उसको जलाकर मार डाला था. ऐसे बहुत सारे किस्से हैं. </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">यह
हालात आज से कम से कम चालीस साल पहले के हैं. अब स्थितियां बदल गयी हैं लेकिन
आदर्श स्थिति अभी नहीं आई है .जो भी थोडा बहुत <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बदलाव आया है उसका कारण शिक्षा है . अब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शादियाँ भी देर से होने लगी हैं. आम तौर पर लडकियां
पढाई लिखाई कर रही हैं और परिवारों में भी बदलाव हो रहे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं . संयुक्त परिवार की अवधारणा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अंतिम सांस ले रही है . शादी के बाद ज्यादातर
लड़के अपना अलग घर बसा रहे हैं . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मेरे पहले
की पीढी में अपनी पत्नी या अपने बच्चों की खैरियत की चिंता करना पुरुष के लिए बहुत
अजूबा माना जाता था . यह मानकर चला जाता था कि परिवार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सबका ख्याल रख लेगा लेकिन अब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ऐसा नहीं है . हालात तेज़ी से बदल रहे हैं लेकिन
बदलाव की रफ़्तार कम है .उसे और तेज़ करना पडेगा .परिवर्तन की गति को दिशा देने के
लिए महिलाओं की शिक्षा और राजनीतिक फैसलों में उनके दखल की ज़रूरत सबसे ज़्यादा है
.लड़कियों की तरक्की और बदलाव के विचार तो जागरूक तबकों में हमेशा से ही रहा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है लेकिन शिक्षा के अभाव में उसको हासिल नहीं
किया जा सका. </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">महिलाओं
को सही सम्मान मिल पाए उसके लिए मर्दवादी या पुरुष की उच्चता की भावना को हमेशा के
लिए खतम करना पडेगा . समाज के हर स्तर पर मौजूद यह मानसिकता ही असली<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दुश्मन है . जब यह मानसिकता</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">बदलेगी उसके बाद ही देश की आधी आबादी की
बराबरी की बात सोची जा सकती है .लेकिन पुरुष प्रधान<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>समाज में यह मानसिकता हावी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . संसद और विधानमंडलों में महिलाओं के ३३
प्रतिशत आरक्षण के लिये कानून बनाने की बात को उदहारण के तौर पर रखा जा सकता है
.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यह<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>राजनीतिक मांग बहुत<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>समय से चल रही
है .देश की अधिकतर राजनीतिक पार्टियों में आम राय है कि ऐसा कानून बनना चाहिए लेकिन
कानून संसद में पास नहीं हो रहा</span> <span lang="HI">है . इसके पीछे भी वही
तर्क है कि पुरुष प्रधान समाज से आने वाले राजनेता महिलाओं के बराबरी के हक को
स्वीकार नहीं करते .इसीलिये सामाजिक</span>, <span lang="HI">आर्थिक राजनीतिक और
नैतिक</span> <span lang="HI">विकास को बहुत तेज़ गति दे सकने वाला यह कानून
अभी पास नहीं हो रहा है . अपने को पिछड़ी जातियों के राजनीतिक हित की निगहबान
बताने वाली राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के आरक्षण में अलग से पिछड़ी जातियों के
लिए आरक्षण की बात कर रही हैं . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">अपने
देश में महिला अधिकारों की लड़ाई कोई नई नहीं है</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">. भारत की आज़ादी</span> <span lang="HI">की लड़ाई के साथ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>साथ महिलाओं की आज़ादी की लड़ाई का आन्दोलन भी
चलता रहा है .१८५७ में ही मुल्क की खुद मुख्तारी की लड़ाई शुरू हो गयी थी लेकिन
अँगरेज़ भारत का साम्राज्य छोड़ने को तैयार नहीं था. उसने इंतज़ाम बदल दिया. ईस्ट
इण्डिया कंपनी से छीनकर ब्रितानी सम्राट ने हुकूमत अपने हाथ में ले ली. उसके बाद
भी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शोषण का सिलसिला जारी रहा. दूसरी बार
अँगरेज़ को बड़ी चुनौती महात्मा गाँधी ने दी . १९२० में उन्होंने जब आज़ादी की
लड़ाई का नेतृत्व करना शुरू किया तो बहुत शुरुआती दौर में साफ़ कर दिया था कि उनके
अभियान का मकसद केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं है</span>, <span lang="HI">वे
सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई लड़ रहे हैं</span> , <span lang="HI">उनके साथ
पूरा मुल्क खड़ा हो गया . . हिन्दू</span> ,<span lang="HI">मुसलमान</span>, <span lang="HI">सिख</span>, <span lang="HI">ईसाई</span>, <span lang="HI">बूढ़े</span> ,<span lang="HI">बच्चे नौजवान</span> , <span lang="HI">औरतें और मर्द सभी गाँधी
के साथ थे. सामाजिक बराबरी के उनके आह्वान ने भरोसा जगा दिया था कि अब असली आज़ादी
मिल जायेगी. लेकिन अँगरेज़ ने उनकी मुहिम में हर तरह के अड़ंगे डाले . १९२० की
हिन्दू मुस्लिम एकता को खंडित करने की कोशिश की . अंग्रेजों ने पैसे देकर अपने
वफादार हिन्दुओं और मुसलमानों के साम्प्रदायिक संगठन बनवाये और देशवासियों की एकता
को तबाह करने की पूरी कोशिश की . लेकिन राजनीतिक आज़ादी हासिल कर ली गयी. आज़ादी
के लड़ाई का स्थायी भाव सामाजिक इन्साफ और बराबरी पर आधारित समाज की स्थापना भी थी
. लेकिन १९५० के दशक में जब गांधी नहीं रहे तो कांग्रेस के अन्दर सक्रिय हिन्दू और
मुस्लिम पोंगापंथियों ने बराबरी के सपने को चकनाचूर कर दिया . इनकी पुरातनपंथी सोच
का सबसे बड़ा शिकार महिलायें हुईं. इस बात का अनुमान <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब महात्मा
गाँधी की इच्छा का आदर करने के उद्देश्य से जवाहरलाल नेहरू ने हिन्दू विवाह
अधिनियम पास करवाने की कोशिश की तो उसमें कांग्रेस के बड़े बड़े नेता टूट पड़े और
नेहरू का हर तरफ से विरोध किया. यहाँ तक कि उस वक़्त के राष्ट्रपति ने भी अडंगा
लगाने की कोशिश की. हिन्दू विवाह अधिनियम कोई क्रांतिकारी दस्तावेज़ नहीं था .
इसके ज़रिये हिन्दू औरतों को कुछ अधिकार देने की कोशिश की गयी थी. लेकिन मर्दवादी
सोच के कांग्रेसी नेताओं ने उसका विरोध किया. नेहरू बहुत बड़े नेता थे</span> , <span lang="HI">उनका विरोध कर पाना पुरातनपंथियों के लिए भारी पड़ा और बिल पास हो गया.</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>.</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><br />
<span lang="HI">महिलाओं को उनके अधिकार देने का विरोध करने वाली पुरुष मानसिकता के
चलते आज़ादी के बाद सत्ता में औरतों को उचित हिस्सेदारी नहीं मिल सकी. संसद ने संविधान
में संशोधन करके पंचायतों में तो सीटें रिज़र्व कर दीं लेकिन बहुत दिन तक पुरुषों
ने वहां भी उनको अपने अधिकारों से वंचित रखा . ग्राम<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पंचायतों में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>माहिलाओं के आरक्षण के बाद प्रधानपति प्रजाति के
मर्द भी देखे जाने लगे थे .अब यह बीमारी कम हो रही है लेकिन सब कुछ बहुत <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>धीरे धीरे हो रहा है . इसी सोच के कारण संसद और
विधान मंडलों में महिलाओं को आरक्षण देने की बात में अड़ंगेबाजी का सिलसिला जारी
है . किसी न किसी बहाने से पिछले पचीस वर्षों से महिला आरक्षण बिल राजनीतिक अड़ंगे
का शिकार हुआ पड़ा है . देश का दुर्भाग्य है कि महिला आरक्षण बिल का सबसे ज्यादा
विरोध वे नेता कर रहे हैं जो डॉ राम मनोहर लोहिया की राजनीतिक सोच को बुनियाद बना
कर राजनीति आचरण करने का दावा करते हैं . डॉ लोहिया ने महिलाओं के राजनीतिक
भागीदारी का सबसे ज्यादा समर्थन किया था और पूरा जीवन उसके लिए कोशिश करते रहे थे.
भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी तो संसद और विधान मंडलों में महिलाओं के
आरक्षण की बात का समर्थन उनके कार्यक्रमों में शामिल था . अब केंद्र में उनकी
स्पष्ट बहुमत की सरकार है . संविधान में संशोधन करने की स्थिति में पार्टी है . दो
तिहाई से ज्यादा राज्य सरकारें उनकी या उनके सहयोगियों की हैं लेकिन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अब बीजेपी की तरफ से उस दिशा में कोई काम नहीं
हो रहा है. अपनी राजनीतिक विचारधारा को सत्ता में स्थाई बनाने के लिए सारी कोशिश
चल रही है और सत्ता के हर संस्थान पर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विचारधारा की पकड मज़बूत की जा रही है. ऐसी हालत
में यह बात समझ से परे हैं कि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विपक्ष में
रहने के दौरान महिलाओं के आरक्षण का जो एजेंडा बीजेपी ने चलाया था उसको लागू क्यों
नहीं किया जा रहा है . महिला दिवस के मौके पर<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>महिलाओं के सशक्तीकरण के बहुत सारे भाषण होते हैं . सबको मालूम है कि
सशक्तीकरण तभी होगा जब महिलाएं शिक्षित होंगी और उनको राजनीतिक अधिकार मिलेंगे .
इस दिशा में सरकार को क़दम उठाना चाहिए .</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><o:p> </o:p></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-41568693555503720382021-03-04T00:57:00.005-08:002021-03-04T00:57:58.012-08:00 महिलाओं के सशक्तीकरण से ही हाथरस जैसी घटनाओं पर लगाम लगेगी<p><br /></p><div class="adn ads" data-legacy-message-id="177fc6669063d376" data-message-id="#msg-a:r-1871419157924086077" style="background-color: white; border-left: none; color: #222222; display: flex; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; padding: 0px;"><div class="gs" style="margin: 0px; padding: 0px 0px 20px; width: 1134px;"><div class=""><div class="ii gt" id=":128" style="direction: ltr; font-size: 0.875rem; margin: 8px 0px 0px; padding: 0px; position: relative;"><div class="a3s aiL " id=":127" style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; font-stretch: normal; font-variant-east-asian: normal; font-variant-numeric: normal; line-height: 1.5; overflow: hidden;"><div dir="ltr"><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt;">शेष नारायण सिंह</span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt;"></span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">हाथरस में एक बार फिर इंसानियत को अपमानित किया गया है . एक बदमाश कई साल से एक लडकी के पीछे पडा हुआ था . करीब तीन साल पहले लडकी के पिता ने उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत की . 15 दिन बाद ही उसकी ज़मानत हो गयी . तब से वह परिवार को परेशान कर रहा था . पिछले दिनों उस बदमाश ने लडकी के पिताजी को गोली मार दी. गोली सरेआम मारी गयी, बहुत ही वहशियाना तरीके से मारी गयी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. गोली लगने के बाद लडकी चीखती रही लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुयी . जब उसका वीडियो वायरल हुआ तब सरकार हरकत में आई. </span><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भी मैदान ले लिया और योगी सरकार से पीडिता के लिए इन्साफ माँगा . लेकिन कुछ ही देर बाद पता चला कि गोली मारने वाला बदमाश ,गौरव शर्मा सामाजवादी पार्टी से जुड़ा हुआ था .सपा के उस दौर के बड़े नेताओं के साथ गौरव शर्मा की कई तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं। वह अविभाजित सपा के नेता और पूर्व मंत्री शिवपाल यादव समेत कई दिग्गज नेताओं का ख़ास बताया जा रहा है . अलीगढ़ से भाजपा सांसद सतीश गौतम के साथ भी उसकी कई तस्वीरें हैं . ऐसे में भाजपा और सपा समर्थकों के बीच सोशल मीडिया पर एक दूसरी पार्टी पर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है .</span><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p style="font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; line-height: 21pt; margin: 0in 0in 0.0001pt; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">हाथरस में कुछ महीने पहले भी एक लडकी की मौत की खबर आई थी जिसमें अभियुक्त ने उसको खेत में मार डाला था. उस केस में भी बलात्कार और हत्या के आरोप लगे थे लेकिन सरकार ने बार बार दावा किया कि बलात्कार नहीं हुआ था , केवल हत्या की गयी थी. उस बार भी सरकारी अमले का रवैया बहुत ही गैरजिम्मेदार रहा था . सरकार ने पुलिस वालों को तो हटा दिया था लेकिन कलेक्टर जमा रह गया था. हालांकि परिवार वालों को बताये बिना ,उसी ने लाश को रात के अँधेरे में जलाने जैसा गलत काम किया था. यह उत्तरप्रदेश सरकार की क़ानून व्यवस्था पर ज़बरदस्त सवालिया निशान तो पैदा करता ही है . योगी सरकार की रहबरी भी सवालों की ज़द में है . नए मामले में उत्तरप्रदेश की सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष की मुख्य पार्टी से अपराधी के सम्बन्ध सामने आ रहे हैं .अब होगा यह दोनों ही पार्टियां मिलकर केस को दबा देंगी, उस पापी का कहीं न कहीं रिश्ता निकल आएगा और राजनीतिक बिरादरी उसके पक्ष में खडी हो जायेगी . इसके पहले वाले हाथरस कांड में भी यह हो चुका है . अभियुक्त की बिरादरी वाले राजपूत समाज के लोग अपराधी को महान बनाने के चक्कर में सभाएं कर रहे थे. कुछ साल पहले भी इसी इसी ब्रज क्षेत्र में आपराधियों को फूल माला पहनाकर वोट लेने की कोशिश हो चुकी है . सबको मालूम था वे अपराधी वही थे जिन्होंने मुज़फ्फर नगर के दंगे के दौरान बेहिसाब खून खराबा किया था . उन अभियुक्तों को सम्मानित करने वाले सभी नेता भारतीय जनता पार्टी के थे. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते उनकी पार्टी के बदमाश सरेआम यही सब अपराध किया करते थे . उनको भी सरकारी संरक्षण मिलता था . अब भारतीय जनता पार्टी के गुंडों को वह संरक्षण मिल रहा है . अपने गुंडों की मनमानी का समर्थन करने का भस्मासुरी तरीका ख़त्म किये बिना समाज और राष्ट्र का भला नहीं होगा . सत्ताधारी नेताओं की इन्हीं कारस्तानियों के चलते भारत की इज्ज़त दुनिया के देशों में कम हो रही है . अमरीका के थिंक टैंक ‘फ्रीडम हाउस ‘ की रिपोर्ट अखबारों में छपी है . पिछले साल तक की रिपोर्टों में भारत को “ स्वतंत्र “ श्रेणी में रखा जाता था लेकिन सी बार भारत को “ आंशिक रूप से स्वतंत्र “ में रख दिया गया है .इस पदावनति का कारण असहिष्णुता है . रिपोर्ट में मुसलमानों पर हमले ,नागरिक अधिकार की अवहेलना , देशद्रोह कानून का मनमाना प्रयोग जैसी बातें का उल्लेख किया गया है . हाथरस जैसे काण्ड के कारण महिलाओं और लड़कियों की असुरक्षा भी देश की प्रतिष्टा को बाकी दुनिया में घटा रही है .</span><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.4pt; margin: 12pt 0in 6pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">देश के हर कोने से महिलाओं पर हो रहे</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> <span lang="HI">अत्याचार की ख़बरें आ</span> <span lang="HI">रही हैं . उत्तर प्रदेश से बलात्कार</span> <span lang="HI">की ख़बरें कई ज़िलों से आ रही हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं के साथ अत्याचार की इतनी ख़बरें आती हैं कि जब किसी दिन घटना की सूचना नहीं आती तो लगता है कि वही समाचार का विषय है। आज आलम यह है कि कहीं भी किसी भी लडकी को घेरकर उसको अपमानित करना राजनीतिक पार्टियों से जुड़े शोहदों का अधिकार सा हो गया है .सवाल उठता है कि क्या वे लड़कियां जो अकेले देखी जायेगीं उनको बलात्कार का शिकार बनाया जायेगा. बार बार</span> <span lang="HI">सवाल पैदा होता है कि लड़कियों के प्रति समाज का रवैया इतना वहशियाना क्यों है। दिसंबर २०१३ में हुए दिल्ली</span> <span lang="HI">गैंग रेप कांड के बाद समाज के हर वर्ग में गुस्सा था.</span> <span lang="HI">अजीब बात है कि बलात्कार जैसे अपराध के बाद शुरू हुए आंदोलन से वह बातें निकल कर नहीं आईं</span> <span lang="HI">जो महिलाओं</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">राजनीतिक ताक़त देतीं</span> <span lang="HI">और उनके सशक्तीकरण की बात</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">आगे बढ़ातीं</span> . <span lang="HI">गैंग रेप का शिकार हुई लडकी के साथ हमदर्दी वाला जो आंदोलन शुरू हुआ था उसमें बहुत कुछ ऐसा था जो कि व्यवस्था बदल देने की क्षमता रखता था लेकिन बीच में पता नहीं कब अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने आंदोलन</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">हाइजैक कर लिया और आंदोलन</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">दिशाहीन और हिंसक बना दिया . इस दिशाहीनता का नतीजा यह हुआ</span> <span lang="HI">कि महिलाओं के सशक्तीकरण के मुख्य मुद्दों से राजनीतिक विमर्श</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">पूरी तरह से भटका दिया गया .</span> <span lang="HI">बच्चियों और महिलाओं के प्रति समाज के रवैय्ये</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">बदल डालने का जो अवसर मिला था</span> <span lang="HI">उसको</span> <span lang="HI">गँवा दिया गया।</span> <span lang="HI">अब ज़रूरी है</span> <span lang="HI">कि कानून में ऐसे प्रावधान किये जाएँ और उनको लागू करने की इच्छाशक्ति सरकारों में नज़र आये जिससे कि अपराधी</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">मिलने वाली सज़ा</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">देख कर भविष्य में किसी भी पुरुष की हिम्मत न पड़े कि बलात्कार के बारे में सोच भी सके. ऐसे लोगों के खिलाफ सभ्य समाज</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">लामबंद होने की ज़रूरत है जो लडकी</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">इस्तेमाल की वस्तु साबित करता . हमें एक ऐसा समाज</span> <span lang="HI">चाहिए जिसमें लडकी के साथ बलात्कार करने वालों और उनकी मानसिकता की हिफाज़त करने वालों के खिलाफ सामाजिक जागरण हो ,ताक़त हो.</span> <span lang="HI"> मर्दवादी मानसिकता के चलते इस देश में लड़कियों</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">दूसरे दरजे का इंसान माना जाता है और लडकी की इज्ज़त की रक्षा करना समाज का कर्त्तव्य माना जाता है . यह गलत है . पुरुष कौन होता है लडकी की रक्षा करने वाला . ऐसी शिक्षा और माहौल बनाया जाना चाहिए जिसमें लड़की खुद</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">अपनी रक्षक माने . लड़की के रक्षक के रूप में पुरुष</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">पेश करने की मानसिकता</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">जब तक खत्म नहीं किया जाएगा तह तक कुछ नहीं बदलेगा . जो पुरुष समाज अपने आप</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">महिला की इज्ज़त का रखवाला मानता है वही पुरुष समाज अपने आपको</span> <span lang="HI">यह अधिकार भी दे देता है कि वह महिला के</span> <span lang="HI">यौन जीवन का संरक्षक</span> <span lang="HI">और उसका उपभोक्ता है . इस मानसिकता</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया जाना चाहिए .मर्दवादी सोच से एक समाज के रूप में लड़ने की ज़रूरत है . और यह लड़ाई केवल वे लोग कर सकते हैं जो लड़की और लड़के</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">बराबर का</span> <span lang="HI">इंसान मानें और उसी सोच</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">जीवन के हर क्षेत्र में उतारें . कुछ स्कूलों में भी कायरता</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">शौर्य बताने वाले पाठ्यक्रमों की कमी</span> <span lang="HI">नहीं है .इन पाठ्यक्रमों</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">खत्म करने की ज़रूरत है . सरकारी स्कूलों के स्थान पर देश में कई जगह ऐसे स्कूल खुल गए हैं</span>,<span lang="HI">जहां मर्दाना शौर्य की वाहवाही की शिक्षा दी जाती है . वहाँ औरत</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">एक ‘ वस्तु ‘ की रूप में सम्मानित करने की सीख दी जाती है. इस मानसिकता के खिलाफ एकजुट</span> <span lang="HI">होकर उसे ख़त्म करने की ज़रूरत है . अगर हम एक समाज के रूप में अपने आपको</span> <span lang="HI">बराबरी की बुनियाद पर नहीं स्थापित कर सके तो जो पुरुष अपने आपको</span> <span lang="HI">महिला का रक्षक बनाता फिरता है वह उसके साथ ज़बरदस्ती करने में भी संकोच नहीं करेगा. शिक्षा और समाज की बुनियाद में ही यह भर देने की ज़रूरत है कि पुरुष और स्त्री बराबर है और</span> <span lang="HI">कोई किसी का रक्षक नहीं है. सब अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं. बिना बुनियादी बदलाव के बलात्कार</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">हटाने की</span> <span lang="HI">कोशिश वैसी</span> <span lang="HI">ही है जैसे किसी घाव पर मलहम लगाना . हमें ऐसे एंटी बायोटिक की तलाश करनी है जो शरीर में ऐसी शक्ति पैदा करे कि घाव में मवाद पैदा होने की नौबत ही न आये. कहीं</span> <span lang="HI">कोई बलात्कार ही न हो . उसके लिए सबसे ज़रूरी बात यह है कि महिला और पुरुष के बीच बराबरी</span> <span lang="HI">को</span> <span lang="HI">सामाजिक विकास की आवश्यक शर्त माना जाए.</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.4pt; margin: 12pt 0in 6pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">इस बात की भी ज़रुरत है कि लड़कियों की तालीम को हर परिवार </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">,<span lang="HI">हर बिरादरी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाये और उनकी शिक्षा के लिए ज़रूरी पहल की जाए . लेकिन जो भी करना हो फ़ौरन करना पडेगा क्योंकि इस दिशा में जो काम आज से सत्तर साल पहले होने चाहिए थे उन्हें अब शुरू करना है . अगर और देरी हुई तो बहुत देर हो जायेगी .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8667px; margin: 0in 0in 10pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 21.4667px;"> </span></p></div><div class="yj6qo"></div><div class="adL"></div></div></div><div class="hi" style="background: rgb(242, 242, 242); border-bottom-left-radius: 1px; border-bottom-right-radius: 1px; margin: 0px; padding: 0px; width: auto;"></div></div></div><div class="ajx" style="clear: both;"></div></div><div class="gA gt acV" style="background: rgb(255, 255, 255); border-bottom-left-radius: 0px; border-bottom-right-radius: 0px; border-top: none; color: #222222; font-family: Roboto, RobotoDraft, Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 0.875rem; margin: 0px; padding: 0px; width: auto;"><div class="gB xu" style="border-top: 0px; padding: 0px;"><div class="ip iq" style="border-top: none; clear: both; margin: 0px; padding: 16px 0px;"></div></div></div>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-37897162389547876152021-03-04T00:56:00.003-08:002021-03-04T00:56:45.059-08:00गुजरात के चुनाव नतीजों से आन्दोलन करने वाले किसान नेताओं को सबक लेना चाहिए<p> </p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 16pt;"> </span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt;">शेष नारायण सिंह</span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt;"></span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 16pt;"> </span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने भारी जीत दर्ज की है . अभी कुछ दिन पहले छः महानगरपालिकाओं के चुनाव हुए थे . उन चुनावों में भी बीजेपी ने सभी नगरों पर कब्जा किया था . सूरत ,अहमदाबाद, वड़ोदरा, राजकोट ,जामनगर और भावनगर की </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> 6<span lang="HI"> महानगर पालिकाओं में ही चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने पूरी सफलता पाई थी . उसदिन एक टीवी चैनल के डिबेट में शामिल होने का मौक़ा मिला था. दिल्ली के कुछ विद्वानों ने कहा था कि बीजेपी मूल रूप से महानगरों की पार्टी है इसलिए जीत स्वाभाविक है . जब ग्रामीण इलाकों वाले जिला पंचायत , नगर पंचायत , तालुका और ग्राम पंचायतों के चुनाव होंगे तो माहौल बदल जाएगा . उसी चर्चा में अहमदाबाद से शामिल हो रहे एक पत्रकार मित्र ने चेतावनी दी थी कि अभी जल्दी इस तरह के अनुमान लगाना ठीक नहीं है क्योंकि कुछ दिन बाद ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी चुनाव होने वाले हैं ,दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा . वे चुनाव हो गए हैं और स्पष्ट हो गया है कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों में भी भारतीय जनता पार्टी और नरेद्र मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है . इसके पहले गुजरात विधानसभा की आठ सीटों पर उपचुनाव हुए थे जहां भारतीय जनता पार्टी को </span>8<span lang="HI"> सीट मिली थी . अब ग्रामीण क्षेत्रों में फैले ,जिला ,तहसील पंचायत एवं नगर पालिका में भारी जीत देखी गयी है .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">इन नतीजों से सबसे बड़ा नुकसान कांग्रेस का हुआ है . गुजरात में कांग्रेस की जड़ें बहुत कमज़ोर पड़ चुकी हैं और अब कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो पार्टी को सफलता की राह पर ले जा सके. ताज़ा पंचायत चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह से हुयी हार के बाद राज्य के पार्टी अध्यक्ष अमित चावड़ा और नेता प्रतिपक्ष परेश धनानी ने इस्तीफा दे दिया है . या यों कहें की उनको पार्टी आलाकमान ने हटा दिया है . इस्तीफे के बाद उन्होंने कहा कि , “ स्थानीय निकाय चुनाव के परिणाम हमारी उम्मीदों के विपरीत हैं। हम जनता के जनादेश को स्वीकार करते हैं। ‘ आदिवासी समाज में मज़बूत पकड़ वाले ,भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता छोटू भाई वसावा भी गुजरात की कुच्छ सीटों पर नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता वाले नेता मने जाते हैं . हर चुनाव के पहले पार्टियां उनको साथ लेने की कोशिश करती हैं . लेकिन इस चुनाव में उनकी भी मिट्टी पलीद हो गयी है .उनके अपने पुत्र चुनाव हार गए हैं . कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व अध्यक्ष अर्जुन भाई मोढवाडिया के भारी रामदेव भाई भी चुनाव हार गए हैं</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">इन चुनावों ने साबित कर दिया है कि गुजरात में भारतीय जनता पार्टी अब उतनी ही मज़बूत पार्टी है जितनी 1977 के चुनाव के पहले कांग्रेस पार्टी हुआ करती थी . उन दिनों कांग्रेस में ऐसे नेता थे जिन्होंने महात्मा गांधी और सरदार पटेलके साथ काम किया था और उन दोनों नेताओं का वहां पूरा सम्मान था लेकिन कांग्रेस की राजनीति में इंदिरा गांधी के आगमन के बाद गुजरात समेत पूरे देश में कांग्रेसियों के बीच सरदार पटेल का सम्मान होना बंद हो गया . उसके बाद कांग्रेस की शक्ति में कमी आने का सिलसिला शुरू हुआ . अयोध्या आन्दोलन के बाद भारतीय जनता पार्टी में मजबूती आने लगी . सरदार पटेल की विरासत के सही उत्तराधिकारी के रूप में भी नरेंद्र मोदी की पहचान होने लगी है जिसका नतीजा है कि आज भारतीय जनता पार्टी के गढ़ के रूप में गुजरात स्थापित हो चुका है और अब साफ़ लगने लगा है कि वहां पार्टी को हरा पाना बहुत ही दूर की कौड़ी है .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> आम तौर पर माना जाता था कि भारतीय जनता पार्टी शहरी मध्यवर्ग की पार्टी है लेकिन अब ऐसा नहीं है . अब सभी वर्गों के लोग भारतीय जनता पार्टी के साथ नज़र आने लगे हैं. 2019 के चुनावों में एक बात बार बार उभर का सामने आ रही थी कि उत्तर भारत के सभी इलाकों में लोग ओबीसी वर्ग की जातियों में नरेंद्र मोदी की पहचान उनके अपने नेता के रूप में हो रही थी. ग्रामीण इलाकों में रसोई गैस , बिजली और सरकारी खर्च पर बने शौचालयों के कारण सभी जातियों के लोगों में उनकी लोकप्रियता बढ़ी थी .आज नरेंद्र मोदी को सभी वर्गों का समर्थन है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी को उन्होंने उसी मुकाम पर पंहुचा दिया है जहां कभी कांग्रेस हुआ करती थी. आज लगभग पूरे भारत में बीजेपी या तो सत्ता में है या विपक्ष की मज़बूत पार्टी है .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">पिछले एक साल में हुए कई राज्यों के चुनावों में भी भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात जैसा तो नहीं लेकिन अच्छा प्रदर्शन किया है . बिहार विधानसभा चुनाव में अब तक भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार की सहयोगी पार्टी के रूप में चुनाव लडती थी.. इस बार भी वही हुआ लेकिन इस बार. भारतीय जनता पार्टी को नीतीश कुमार की जे डी यू से ज्यादा सीटें मिलीं . पिछले साल कई अन्य राज्यों में उपचुनाव भी हुए . 11 राज्यों में हुए 58 सीटो के उप-चुनाव में भाजपा को 40 सीटो पर जीत हासिल हुई जिसमें एक तो गुजरात ही है जहां उसका स्ट्राइक रेट शत प्रतिशत रहा . मध्य प्रदेश में 28 में 19 उत्तर प्रदेश में 7 में 6 मणिपुर में 5 में से 4 ,कर्नाटक में और तेलंगाना की सभी सीटों के उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के नाम रहे . इसके अलावा लद्दाख ऑटोनोमस डेवलपमेंट काउन्सिल और</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 11.25pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल भी भारतीय जनता पार्टी को खासी सफलता मिली .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 11.25pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> इन चुनावों में बहुत सारे चुनाव दिल्ली के पास हो रहे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के आन्दोलन के शुरू होने के बाद हुए हैं . आन्दोलन में शामिल किसानों ने बार बार यह बात दुहराई है कि वे खेती में नीतिगत हस्तक्षेप वाले तीन कानूनों के वापस होने तक आन्दोलन को जारी रखेंगे. शुरू में ऐसा संकेत दिया जा रहा था कि किसान आन्दोलन को ग्रामीण जनता का बड़ा समर्थन हासिल है .आम तौर पर आन्दोलन के बाद होने वाले चुनाव के नतीजे इस बात का संकेत देते हैं कि किस पार्टी की क्या हैसियत है . अगर आन्दोलन सफल रहा तो उसके बाद होने वाले चुनावों में सत्ताधारी पार्टी को हार का सामना करना पड़ता है लेकिन अगर सत्ताधारी पार्टी को सफलता मिलती है तो माना जाता है कि आन्दोलन की लोकप्रियता उतनी नहीं है जितनी कि बताई जा रही है. मौजूदा किसान आन्दोलन की भी यही स्थति है . </span><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> <span lang="HI">पंजाब में</span></span><span style="text-align: start;"> </span><span lang="HI"><span style="text-align: start;">नगर पंचायतों के चुनाव के नतीजे में तो बीजेपी का नुकसान हुआ लेकिन पंजाब वैसे भी बीजेपी स्टेट नहीं है . वहां वह अकाली दल की सहयोगी पार्टी रही है . अब अकाली दल अलग है, किसानों के मुद्दे पर ही अकाली दल ने बीजेपी का साथ छोड़ा था लेकिन उसको भी कोई ख़ास सफलता नहीं मिली .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 11.25pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;">गुजरात के ग्रामीण इलाकों में हुए चुनावों और उसमें सत्ताधारी पार्टी को मिली सफलता की रोशनी में नई कृषि नीति के खिलाफ आन्दोलन कर रहे किसानों को ज़रूरी सबक लेना चाहिए और वह सबक यह है कि तीनों कानूनों को वापस लेने की जिद छोड़कर</span><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> <span lang="HI">किसानों के फायदे वाले प्रावधानों की बात</span> <span lang="HI">करें . सबको मालूम है कि कृषि क़ानून में बदलाव ज़रूरी है</span> ,<span lang="HI">क्योंकि 1965-66 की हरित क्रान्ति के नीतिगत हस्तक्षेप के बाद कोई भी बड़ा बदलाव नहीं किया गया है .</span> </span><span style="background-clip: initial; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"><span style="text-align: start;"> <span lang="HI">कांग्रेस को जानना चाहिए कि </span>1991 <span lang="HI">में जब डॉ मनमोहन सिंह ने देश के आर्थिक विकास के लिए जो फार्मूला तय किया था ,मौजूदा</span> <span lang="HI">क़ानून उसी बात को आगे बढाने की कोशिश है . किसानों को चाहिए कि दीवाल पर लिखी इबारत को भांप लें और मान लें कि नई कृषि नीति के बाद भारतीय जनता पार्टी और नरेद्र मोदी की लोकप्रियता के ग्राफ में वृद्धि हुयी है और किसान आन्दोलन के नेताओं को सरकार के साथ मिल बैठकर आन्दोलन को वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए .</span></span></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-56930062127414408422021-03-04T00:55:00.006-08:002021-03-04T00:55:47.091-08:00 मेरा गाँव ,मेरा देस <p> </p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"><br />यह गाँव सुल्तानपुर जिले के लम्भुआ ब्लाक में है. गाँव पंहुचने के लिए जिला मुख्यालय से करीब २२ किलोमीटर सुलतानपुर जौनपुर रोड पर चलने के बाद धोपाप रोड पर बाएं मुड़ना पड़ता है . लम्भुआ से तीन किलोमीटर दूरी पर यह गाँव स्थित है . मेरा गाँव शोभीपुर अपेक्षाकृत नया गाँव है . यह मामपुर नाम की गाँव सभा का हिस्सा है .माम्पुर गाँव सभा में चार हिस्से हैं . झलिया ,पुरवा ,माम्पुर और शोभीपुर .मामपुर सरयूपारीण ब्राह्मणों का गाँव है जो पुरवा और मामपुर में बसे हुए हैं. शायद उनका कोई पूर्वज देवरिया से प्रयाग की यात्रा के दौरान यहीं बस गया होगा . हन्या तिवारी हैं यह लोग . इनके रिश्तेदार कुछ पाण्डेय ,दूबे और मिश्र भी अब गाँव में बस गए हैं . झलिया में मूल रूप से गौतम ठाकुरों का निवास है . यह लोग भी पड़ोस के मकसूदन गांव से जुड़े हुए लोग हैं . मकसूदन में गौतम ठाकुरों की बड़ी आबादी है जो डेरवा, बगिया और झलिया में फैली हुई है . यही झलिया सरकारी कागज़ात में मामपुर का हिस्सा बन गया है . गौतम लोग मकसूदन के राजकुमार ज़मींदारों के रिश्तेदार थे . उनको पूर्वजों से सम्मान से लाकर यहाँ बसाया था . शोभीपुर में करीब १२० साल पहले मकसूदन के ज़मींदारों की एक पट्टी के लोगों ने घर बना लिया था . मकसूदन के १८६१ के ज़मींदार बाबू दुनियापति सिंह के चार बेटों में से एक की औलादों ने शोभीपुर में घर बना लिया था . उसके पहले उनके साथ कुछ परजा पवन भी आ गए थे . इसलिए कुम्हार ,कहार, नाई भी गाँव में हैं . बस यही गाँव था . कुछ साल बाद पड़ोस के गाँव नरिन्दापुर से परिहार ठाकुरों के एक परिवार को गाँव के बाबू साहेब ने गाँव निकाला दे दिया था . शोभीपुर वालों ने उनको रोक लिया और कुछ ज़मीन उनके हवाले करके यहीं बसा दिया . इन्हीं पर्हारों के रिश्तेदार कुछ चौहान ठाकुर भी आ गए . राजकुमारों के रिश्तेदार बैस भी आ गए . मकसूदन के गौतम ठाकरों का एक हिस्सा भी इस गाँव में है. एक परिवार नाऊ और एक परिवार दलित बिरादरी का भी है . मुस्लिम फकीरों का भी एक परिवार है जो गाँव से थोड़ी दूरी पर बसा हुआ है . भुडकुल्ली साईं की औलादें हैं सब लेकिन अब कई परिवार बन गए हैं .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"></span></p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;">गाँव में पुरानी सोच हावी रही है . पढाई लिखाई के कोई ख़ास परम्परा नहीं रही है . झलिया के कुछ लोग आज से करीब सत्तर साल पहले मुम्बई गए थे . वहां छोटे मोटे काम ही करते रहे . मजदूर रहे या किसी कपडे की मिल में कुछ काम किया . झलिया के लिए लगभग हर घर से लोग मुम्बई में हैं . मामपुर के लोग भी हैं. लेकिन ऐसा कोई नहीं है जिसको खोली के आसपास के बाहर कोई जानता हो . पुरवा के एक पाण्डेय जी मुंबई में पुरोहिती का काम करते हैं. उनकी पैठ कई उद्योगपति परिवारों में भी है. शोभीपुर से पहली बार मुम्बई ठाकुर रामसुख सिंह गए थे. कल्याण के नैशनल रेयान कारपोरेशन में उनको काम मिल गया था. उन्हीं के हवाले से उनके परिवार के लोग भी गए . सभी छोटे मोटे काम करते हैं . मूलत कल्याण के आसपास ही रहते हैं. इन लोगों के बच्चों ने ठीक ठाक पढाई कर ली है . कुछ वकील हैं , कुछ डाक्टर हैं ,कुछ ने अपना कारोबार कर लिया है . २००२ में गाँव के एक लड़के ने आई आई एम से एम बी ए करने के बाद मुंबई में एक विदेशी बैंक में मैनेजर की नौकरी कर ली थी अब वह एक अमरीकी बैंक का प्रेसीडेंट है .उसकी पत्नी पहले बीबीसी में थीं अब मुंबई के प्रतिष्ठित एस पी जैन इंस्टीटयूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड रिसर्च में प्रोफ़ेसर है .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"></span></p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;">मामपुर ग्रामसभा में कोई मंदिर नहीं है . शोभीपुर में एक नीम के पेड़ में विराजमान काली माई ही गाँव की सामूहिक आस्था का केंद्र हैं . चारों ही गाँवों में काली माई हैं . कुछ पीपल के पेड़ों में शंकर जी का स्थान मान लिया गया है . मंदिर तो गाँव से</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"> <span lang="HI">करीब पांच किलोमीटर दूर गोमती के किनारे धोपाप में था </span>, <span lang="HI">मकसूदन में भी एक हनुमान जी का मंदिर था </span>,<span lang="HI">नरेंदापुर में भी एक मंदिर था जिसमें वहां के बाबू साहेब ने एक पुजारी रख दिया था जिसको वे कुछ तनखाह देते थे और वह सुबह शाम वहां पूजा कर देता था .धोपाप के मंदिर में तो जेठ के दशहरा और</span> <span lang="HI">कार्तिक की पूर्णिमा जैसे अवसरों पर भारी भीड़ होती थी लेकिन ज़्यादातर लोग गोमती में स्नान करके अपने घर चले जाते थे. मंदिर में जाने वालों की संख्या बहुत कम होती थी .दर असल इलाके में लोग मंदिरों में जाकर पूजा पाठ नहीं करते</span>, <span lang="HI">वहां केवल दर्शन करते हैं और अयोध्या</span>, <span lang="HI">बिजेथुआ</span>, <span lang="HI">जनवारी नाथ जैसे मंदिरों में जाकर चढ़ावा चढाते हैं </span>,<span lang="HI">जहां वहां के मुक़ामी पंडित जी खुली तोंद के साथ विद्यमान रहते हैं और पूजा कर रहे होते हैं .</span></span></p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;">तीन चार साल पहले गाँव में सड़क की ज़मीन पर अपने घर के सामने एक बाबू साहब ने एक बहुत ही छोटा मंदिर बनवा दिया है लेकिन उसमें भी ताला बंद रहता है . चर्चा है कि गाँव के बीच में जाने वाली प्रयागराज-अकबरपुर का चौडीकरण होना है और गाँव में जिन लोगों ने सड़क की ज़मीन पर अपनी दीवारें बनवा रखी हैं,उसी से बचने के लिए यह मंदिर बनवाया गया है. पूरी ग्रामसभा में एक सरकारी प्राइमरी स्कूल है जो १९६२ में खुला था. एक उद्यमी ने एक नर्सरी स्कूल भी खोल दिया है . गाँव मुख्य मार्ग पर है इसलिए वहां यातायात की सुविधा है .करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित लम्भुआ बाज़ार अब नागर पंचायत बन गया है . तहसील ,ब्लाक आदि सरकारी दफतर सब वहीं हैं . गाँव में सरकार के नाम पर बस प्राइमरी स्कूल ही है .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"></span></p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;">गाँव में खेती ही आजीविका का साधन है लेकिन कोई भी खेती नहीं करना चाहता . चीन से लड़ाई के बाद साठ के दशक में गाँव से तीन चार लोग फ़ौज में भर्ती हो गए थे . उनमें से एकाध कोई नायब सूबेदार तक पंहुचकर रिटायर हुआ . उसके पहले चीन की लड़ाई में भी गाँव के एक व्यक्ति शामिल हुए थे लेकिन वी आर एस लेकर आ गए . गाँव के सबसे पुराने फौजी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जो भर्ती शुरू हुई उसमें भी फ़ौज में गए थे . गाँव में सबसे पहले उच्च शिक्षा पाने वालों में डॉ श्रीराज सिंह हैं . उन्होंने १९५५ में बी एच यू से बी एस-सी कर लिया था . बाद में पी एच डी तक की पढाई की और पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में रीडर पद से रिटायर हुए . अब वे ९० साल के हैं और गाँव में सबसे अधिक उम्र के वे ही हैं . गाँव में उनका शानदार घर है लेकिन वे शहर में सुलतानपुर में घर बनवाकर रहते हैं .बहुत सारे जूनियर इंजीनियर ( जे ई ) गाँव में हैं. सरकारी विभागों में जे ई को तनख्वाह के अलावा जो गिजा मिलती है उसके कारण उन जे ई लोगों के परिवार में सम्पन्नता भी है . सरकारी नौकरी का मोह गाँव में बहुत प्रबल है इसलिए आर पी ऍफ़ में कुछ सिपाही भी भर्ती हो गए हैं . एकाध लड़के सब इंस्पेक्टर भी हैं. गाँव की एक लडकी विश्व बैंक में भी काम कर चुकी है . विदेश में तो कोई नहीं बसा है एक परिवार ऐसा है जिसका विदेशों में आना जाना लगा रहता है . जो अमरीकी बैंक में प्रेसीडेंट हैं उनकी बहन आई आई एम बंगलौर में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर है. उनके ही परिवार का एक लड़का पिछले साल इलाहाबाद के ग्रामीण इंजीनियरिंग कालेज से बी ई करने के बाद सहायक इंजीनियर बना है . उनके यहाँ कभी हलवाही करने वाले दलित पारिवार का एक लड़का भी उनके साथ ही पढाई करके सहायक इंजीनियर बना है. इसको सामाजिक तरक्की का एक बड़ा उदहारण माना जा सकता है </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"></span></p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;"> </span></p><p style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: "Times New Roman", serif; font-size: 12pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif;">गाँव में कोई हाट बाज़ार या मेला नहीं लगता . पड़ोस के गाँव रामपुर के चौराहे पर कुछ लोगों ने दूकान खोल ली थी ,अब वहीं एक बाज़ार विकसित होता नज़र आ रहा है . इस गाँव में सरकार में उच्च पद पर कोई नहीं है . मुंबई आदि शहरों में जो लोग गए हैं उनमें उद्योगपति कोई नहीं है. सब मेहनत मजूरी करके ही पेट पाल रहे हैं. गाँव में गरीबी सबसे बड़ी समस्या है . कोरोना के दौर में इस गाँव में एक आदमी मुंबई से आया था लेकिन कोरोना का कोई भी असर गाँव पर नहीं पड़ा</span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-79735609404252504752021-03-04T00:51:00.004-08:002021-03-04T00:51:48.299-08:00 नई कृषिनीति को पूरी तरह से खारिज़ करने की मांग का विरोध होना चाहिए . <p><br /></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><b><span lang="HI" style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt; padding: 0in;">शेष नारायण सिंह</span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span lang="HI" style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;">नई कृषिनीति के लिए केंद्र सरकार की तरफ से लाये गए कानूनों के बाद पंजाब सहित देश के कई हिस्सों में किसानों की अगुवाई में विरोध हो रहा है</span><span style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> <span lang="HI">जिसको किसान आंदोलन का नाम दिया गया है . दिल्ली</span> <span lang="HI">राज्य के तीन प्रवेश द्वारों पर किसानों ने अपने खेमे लगा दिए हैं . किसान आन्दोलन शुरू होने के बाद जब पहली बार कोई राजनीतिक चुनाव हुआ तो साफ़ समझ में आ गया कि किसानों का आन्दोलन बीजेपी को राजनीतिक नुकसान पंहुचा सकता</span> <span lang="HI">है . पंजाब में</span> <span lang="HI">नगर पंचायतों के चुनाव के नतीजे आये वे केंद्र की बीजेपी सरकार के</span> <span lang="HI">लिए बुरी खबर के रूप में आये. हालांकि यह भी सच है कि जहां बीजेपी के खिलाफ खडी पार्टी का</span> <span lang="HI">मुकामी नेता मज़बूत है </span>,<span lang="HI">वहां बीजेपी को नुक्सान होता</span> <span lang="HI">है लेकिन अगर विपक्ष लुंजपुंज है तो</span> <span lang="HI">बीजेपी का कुछ नहीं बिगड़ेगा . पंजाब के बाद ही गुजरात में बड़े नगर निगमों के चुनाव हुए जहां बीजेपी को भारी फ़ायदा हुआ. यह नतीजे यह भी ऐलान कर रहे हैं कि अगर विपक्ष में कोई मज़बूत पार्टी या नेता खड़ा</span> <span lang="HI">होगा तो बीजेपी के खिलाफ जनता वोट देने के लिए तैयार हो</span> <span lang="HI">जायेगी . कांग्रेस पार्टी</span> <span lang="HI">की पंजाब में सरकार है और</span> <span lang="HI">पिछले चार साल से अमरिंदर सिंह की</span> <span lang="HI">सरकार ने बहुत सारे ऐसे काम किये</span> <span lang="HI">हैं जिनके कारण उनका विरोध भी है लेकिन नगर</span> <span lang="HI">पंचायतों के चुनाव के नतीजे बताते हैं कि अकाली दल और बीजेपी से नाराज़ लोगों ने टूट कर</span> <span lang="HI">कांग्रेस को</span> <span lang="HI">समर्थन दिया है .</span> <span lang="HI">कांग्रेस का लगभग सभी नगर पंचायतों पर क़ब्ज़ा हो गया है . इन नतीजों से बीजेपी की उन उम्मीदों को झटका लगा है जिसके तहत</span> <span lang="HI">उसके नेता सोच रहे थे कि यह चुनाव मूल</span> <span lang="HI">रूप से शहरी इलाकों में हुए हैं . कृषि कानूनों का विरोध करने वाले</span> <span lang="HI">ज्यादातर किसान गाँवों में रहते हैं.</span> <span lang="HI">बीजेपी वाले सोच रहे थे कि शहरी इलाकों में अगर अच्छा समर्थन मिल गया तो किसान आन्दोलन को अलोकप्रिय बताने में मदद मिलेगी ज्यादातर</span> <span lang="HI">विरोध प्रदर्शन जारी है .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span lang="HI" style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;">बंगाल में भी बीजेपी को अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव करना पड़ा है . वहां इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. सबको मालूम है कि नंदीग्राम में किसानों की समस्याओं को मुद्दा बना कर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने २०११ का चुनाव लड़ा था और दशकों से जमी हुई वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ फेंका था. उस आन्दोलन का प्रमुख नौजवान चेहरा था शुवेंदु अधिकारी . शुवेंदु को बाद में ममता बनर्जी ने मंत्री बनाया . उनके पूरे परिवार को राजनीति से जो भी लाभ संभव</span><span style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> <span lang="HI">है </span>, <span lang="HI">मिलता रहा लेकिन बीजेपी ने उनको तोड़ लिया . कोशिश यह थी कि किसानों के नेता के रूप में बनी उनकी छवि का लाभ लिया जाएगा .बहुत ही बाजे गाजे के साथ उनको बीजेपी में भर्ती किया गया . लेकिन जब किसान आन्दोलन से उपजी नाराज़गी की आंच बंगाल में भी दिखने लगी तो पार्टी ने चुनावी रणनीति में बदलाव किया . अब मुस्लिम नेता </span>,<span lang="HI">असदुद्दीन ओवैसी को मैदान में आ गए हैं .बीजेपी के सभी नेता अपने भाषणों में ममता सरकारी की तुष्टीकरण की नीति की आलोचना कर रहे हैं</span>, <span lang="HI">जय श्रीराम के नारे लगा रहे हैं और ममता को हिंदुत्व की पिच पर खेलने के लिए मजबूर कर रहे हैं .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span lang="HI" style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> बीजेपी को</span><span style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> <span lang="HI">नई कृषि नीति की</span> <span lang="HI">वजह से चुनावी नुक्सान हो रहा है . यह भी संभव है कि राजनीतिक नुक्सान का आकलन</span> <span lang="HI">करने के बाद</span> <span lang="HI">बीजेपी और उनकी सरकार किसानों की मांग को मान भी ले और तीनों क़ानून वापस ले ले लेकिन लेकिन वह देश के लिए ठीक नहीं होगा . आन्दोलन का असर गावों में किसानों की नाराजगी के रूप में साफ नज़र आ रहा है . बीजेपी को अगर इस बात का सही अंदाजा लग गया तो</span> <span lang="HI">खेती के औद्योगीकरण और पूंजीवादीकरण पर रोक लग जायेगी और किसानी उसी हरित क्रान्ति के दौर में बनी रह जायेगी . पूंजीवादी आर्थिक विकास की दिशा कोई बहुत अच्छी चीज नहीं है लेकिन जब पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था उसी ढर्रे पर जा रही हो तो खेती को उससे बाहर रखने से उन्हीं लोगों का नुक्सान होगा जो खेती पर ही</span> <span lang="HI">निर्भर हैं . यह भी सच है कि जिस रूप में नए कानूनों को लाया</span> <span lang="HI">गया है उसमें बहुत कमियाँ हैं . पूरा कानून वापस लेने की जिद पर अड़े किसानों को चाहिए कि उसमें जो खामियां हैं उनको दुरुस्त करने की बात करें और पूरे के पूरे कानून को वापस लेने की बात छोड़ दें . वरना डर यह है कि कहीं नई कृषि नीति का भी वही हाल न हो जाए जो</span> <span lang="HI">इंदिरा गांधी के पहले कार्यकाल में परिवार नियोजन का हुआ था . दो</span> <span lang="HI">बच्चों तक परिवार को सीमित रखने की योजना बहुत ही अच्छी थी. उसको लागू करने की तरकीब भी बहुत अच्छी थी . स्वैच्छिक नीति थी</span>, <span lang="HI">उत्साहित करने के लिए धन आदि की भी व्यवस्था</span> <span lang="HI">थी लेकिन</span> <span lang="HI">संजय गांधी ने जिस तरह से उसको लागू करने की योजना बनाई उससे</span> <span lang="HI">कांग्रेस की सरकार जनमानस में बहुत अलोकप्रिय हो गयी और नतीजा हुआ कि १९७७ में इंदिरा गांधी चुनाव हार गयीं . उनकी हार में परिवार नियोजन की नीति को आक्रामक तरीके से</span> <span lang="HI">लागू करने की बात भी थी .उसी का नतीजा है कि बाद की किसी सरकार ने परिवार नियोजन को ठीक से लागू करके राजनीतिक हानि झेलने का जोखिम नहीं लिया और आज देश की आबादी</span> <span lang="HI">सवा सौ करोड़ से ज़्यादा हो चुकी है . सभी संसाधनों पर भारी असर पड़ रहा है .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span lang="HI" style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;">नई कृषि नीति लागू करने के लिए देश के सभी गुनी जन मिलकर बैठकर कृषि नीति में ज़रूरी सुधारों की बात करें . सरकार भी जिद छोड़कर कृषि नीति में जो किसान विरोधी धाराएं हैं उनको सही कर दे और किसान भी</span><span style="border: 1pt none windowtext; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; padding: 0in;"> <span lang="HI">सभी कानूनों को वापस लेने की जिद छोड़कर</span> <span lang="HI">किसानों के फायदे वाला कानून बनवाने की बात</span> <span lang="HI">करें . कृषि क़ानून में बदलाव ज़रूरी है </span>,<span lang="HI">क्योंकि हरित क्रान्ति के बाद कोई भी बड़ा बदलाव नहीं किया गया है .</span> </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> 1991 <span lang="HI">में जब डॉ मनमोहन सिंह ने जवाहरलाल देश की अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी विकास के रास्ते पर डाला था तो उन्होंने कृषि में बड़े सुधारों की बात की थी . मौजूदा</span> <span lang="HI">क़ानून उसी बात को आगे बढाने की कोशिश है लेकिन उसमें बहुत सारी कमियाँ हैं . इसीलिये नए</span> <span lang="HI">कानून का विरोध हो रहा है . खेती को अगर विकास का औजार और ग्रामीण गरीबी को घटाने</span> <span lang="HI">के वाहक रूप में रखना है तो कृषि सुधारों के का पूरी तरह से विरोध नहीं किया जाना चाहिए . १९९१-९२</span> <span lang="HI">में जो होना चाहिए था अगर उसमें और देर की गयी तो ग्रामीण</span> <span lang="HI">क्षेत्रों में गरीबी और बढ़ेगी . डॉ मनमोहन सिंह ने गरीबों की रक्षा करने वाली कृषि नीति के आधार पर बात करते हुए खुले बाज़ार की सुविधा नहीं दी . खेती की पैदावार पर निर्यात के कंट्रोल लागू रहे </span>, <span lang="HI">उपज की आवाजाही पर भी सरकारी सख्ती थी. नतीजा यह हुआ कि खेती से प्रति एकड़ कम कीमत मिलती रही . किसान के</span> <span lang="HI">पास आमदनी ही नहीं थी तो मजदूरी भी कम</span> <span lang="HI">रही. आज भारतीय खेती में खेत मजदूर की संख्या </span>,<span lang="HI">ज़मीन के मालिक से ज्यादा है . पंजाब और हरियाणा के अलावा बाकी देश में किसानों के पास बहुत कम</span> <span lang="HI">क्षेत्रफल की ज़मीन खेती लायक है . पंजाब सहित बाकी देश में ज़मीन के नीचे</span> <span lang="HI">पानी का स्तर लगातार नीचे जा रहा है . धान और गेहूं की खेती में बहुत पानी लगता है . धान से निकलने वाले चावल का तो देश के बाहर भी बाज़ार है लेकिन गेहूं को निर्यात करना असंभव है .ऐसी खेती की ज़रूरत है जिससे जलस्तर का संतुलन भी बना रहे और खेती से प्रति एकड़ आर्थिक उपज भी ऐसी हो जिससे किसान के परिवार की देखभाल भी हो सके. साथ साथ औद्योगीकरण को भी</span> <span lang="HI">रफ्तार दी जाए जिससे खेती से बाहर निकलने वाले कामगारों को उद्योगों में खपाया जा सके .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 14.25pt; margin: 0in 0in 15pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">सबसे ज़रूरी बात तो कम पानी</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> <span lang="HI">वाली खेती को देश की आदत बनाने की ज़रूरत है क्योंकि अगर ज्यादा पानी वाली गेहूं और धान जैसी फसलें ही पैदा की जाती रहीं तो देश में पानी की भारी कमी हो जायेगी . इजरायल में इसी तरह के प्रयोग किये गए और अब बहुत बड़े पैमाने पर सफलता मिल चुकी है . रेगिस्तान में महंगी निर्यात होने लायक फसल पैदा करके उन्होंने अपने यहाँ के ज़मीन मालिकों की संपन्नता को कई</span> <span lang="HI">गुना बढ़ा दिया है. कीनू</span>, <span lang="HI">नींबू</span>, <span lang="HI">खजूर और जैतून की खेती को बढ़ावा दिया गया जिसमें कम से कम पानी लगता है और सभी उत्पादन निर्यात किये जाते हैं . ज़रूरत इस बात की है एक एक बूँद पानी बचाया जाय और सीमित ज़मीन से ज़्यादा आर्थिक लाभ लिया जाए.</span> <span lang="HI">नई कृषि नीति को इस दिशा में जाना चाहिए था. एक</span> <span lang="HI">प्रसिद्ध कहावत है कि </span>“ <span lang="HI">हमको ज़मीन अपने पूर्वजों से विरासत में नहीं मिलती </span>,<span lang="HI">हम उसे अपने बच्चों से उधार लेते</span> <span lang="HI">हैं . </span>“ <span lang="HI">यानी</span> <span lang="HI">हमें इस ज़मीन को उनके मालिकों तक उसी तरह से पंहुंचाना है जैसी हमको मिली थी . साफ़ मतलब है कि ज़मीन का जलस्तर घटाए बिना खेती करने की ज़रूरत है . उसके लिए धान और गेहूं से खेती को हटाकर कम पानी वाली खेती करनी पड़ेगी . नए</span> <span lang="HI">कृषि क़ानून</span> <span lang="HI">में इस व्यवस्था को लागू करने की कोशिश की गयी है लेकिन कुछ कमियाँ हैं उनको ठीक किये जाने की ज़रूरत है .</span> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8667px; margin: 0in 0in 10pt;"> </p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8667px; margin: 0in 0in 10pt;"> </p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-14190689562597960522021-02-10T22:38:00.001-08:002021-02-10T22:38:19.034-08:00<p> <b style="color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 20pt;">हिमालय को तबाही बचाने को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया जाना चाहिए</span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">शेष नारायण सिंह</span></b><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">हिमालय की छाती पर एक बार और मूंग दला गया . चमोली जिले में ग्लैसियर फटने से तबाही आयी. सबसे बड़ी तबाही का कारण एक बिजली परियोजना और उसके तथाकथित विकास के कारण आई है . हिमालय को उजाड़ने का सारा काम विकास के लिए और विकास के नाम पर किया जा रहा है लेकिन उसके चक्कर में प्रकृति की सबसे बड़ी धरोहर, हिमालय को ही तबाह किया जा रहा है . हिमालय में आज विकास के नाम पर अजीबोगरीब कारनामे हो रहे हैं . दुर्भाग्य यह है कि सत्तर के दशक में शासक वर्गों ने यह समझना शुरू कर दिया था कि हिमालय के क्षेत्र में भी विकास उसी तरह का किया जाना चाहिए जैसा कि मैदानी क्षेत्रों में सड़क बिजली पानी की व्यवस्था करके किया जाता है . आज य्तक वही सोच जारी है . सत्ता पर बैठे लोगों को समझना चाहिए कि हिमालय हमारे विकास का प्रहरी है , रक्षक है . वह जीवंत बना रहे ,यही बहुत बड़ी बात है . पूरे देश को चाहिए कि हिमालय में वैसा विकास न होने दें जैसा कि मैदानी इलाकों में होता है . हिमालय प्रेमी लोगों की एक बड़ी जमात यह मानती है कि हिमालय के कारण ही भारत के उत्तरी भाग में विकास होता है . हिमालय से ही देश में नदियों की कई बड़ी श्रृंखलाएं चलती हैं. गंगा और यमुना नदी का भारत के आर्थिक , सांस्कृतिक ,राजनीतिक, सामरिक ,धार्मिक और साहित्यिक विकास में योगदान अद्वितीय है . ज़रूरत इस बात की है कि हिमालय को उसकी अपनी गति से , अपनी लय से भारत के रक्षक के रूप में बने रहने दिया जाए . लेकिन अजीब बात यह है कि जो भी शासक होता है वह विकास के वही पैमाने अख्तियार करने लगता है जिसका विरोध लगातार करता रहा होता है .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">हिमालय अपनी मौजूदगी से ही देश के बहुत बड़े भूभाग पर विकास की धारा बहा रहा है लेकिन उसके अस्तित्व को ही खतरे में डालकर विकास की इबारत रखना बहुत बड़ी गलती होगी . अपने कालजयी महाकाव्य </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">, <span lang="HI">कुमारसंभव में महान कवि कालिदास ने पहला ही श्लोक हिमालय की महिमा में लिखा है . लिखते</span> <span lang="HI">हैं कि</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">अस्त्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">,<span lang="HI">हिमालयो नाम नगाधिराजः ।</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">पूर्वापरौ तोयनिधी वगाह्य</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">, <span lang="HI">स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः॥</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">दुर्भाग्य की बात यह है कि आज इस देवतात्मा </span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">,<span lang="HI">नगाधिराज और पृथ्वी के मानदंड को हम वह सम्मान नहीं दे पा रहे हैं जो उसे वास्तव में मिलना चाहिए .हिमालय को पृथ्वी की बहुत नई पर्वत श्रृंखला माना जाता है . भारत के लिए तो हिमालय जीवनदायी है . गंगा और यमुना समेत बहुत सारी नदियाँ हिमालय से निकलती हैं . प्रगति के नाम पर में समय समय पर सरकारें हिमालय को नुक्सान</span> <span lang="HI">पंहुचाती रहती हैं . केदारनाथ में</span> <span lang="HI">प्रकृति के क्रोध और तज्जनित विनाशलीला को दुनिया ने देखा है . उसके पहले उत्तरकाशी में एक</span> <span lang="HI">भूकम्प के चलते पहाड़ के दुर्गम इलाक़ों से किसी तरह का संपर्क महीनों के लिए रुक गया था. समय समय पर हिमालय से प्रेम करने वाले और दुनिया भर के पर्यावरणविद</span> <span lang="HI">चिंता जताते रहते हैं लेकिन कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता . गंगा और हिमालय की रक्षा के लिए बहुत सारे महामना संतों ने अपने जीवन का</span> <span lang="HI">बलिदान भी किया है . लेकिन आजादी के बाद से ही हिमालय के दोहन की प्रक्रिया शुरू हो गयी है जो अभी तक जारी है . इस कड़ी में एक </span>‘ <span lang="HI">विकास का प्रोजेक्ट </span>‘ <span lang="HI">चारधाम परियोजना है .कुछ वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में आया था कि सड़क यातयात और हाईवे मंत्रालय की चार धाम परियोजना</span> <span lang="HI">के कारण हिमालय के जंगलों और वन्यजीवन को भारी नुकसान हो रहा है . सुप्रीम कोर्ट ने सही जानकारी के लिए रवि चोपड़ा की अगुवाई में</span> <span lang="HI">एक हाई पावर कमेटी नियुक्त की थी ..उसकी</span> <span lang="HI">कुछ रिपोर्टें आ चुकी हैं .कमेटी की राय में उत्तराखंड में चल रही</span> <span lang="HI">चार धाम परियोजना के कारण हिमालय के पर्यावरण को भारी नुक्सान हो रहा है .जिसके दूरगामी परिणाम बहुत ही भयानक होंगे.</span> <span lang="HI">इस कमेटी ने पर्यावरण मंत्रालय से तुरंत कार्रवाई करने की मांग की है .. कमेटी की रिपोर्ट किसी भी पर्यावरण</span> <span lang="HI">प्रेमी को चिंता में</span> <span lang="HI">डाल देगी . रवि चोपड़ा ने पर्यावरण</span> <span lang="HI">मंत्रालय को लिखा है कि वहां अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं </span>,<span lang="HI">पहाड़ को तोड़ा जा रहा है . बिना किसी सरकारी मंजूरी के जगह जगह खुदाई की</span> <span lang="HI">जा रही है और कहीं भी मलबा</span> <span lang="HI">फेंका जा रहा है .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">चारधाम परियोजना के तहत उत्तराखंड राज्य के प्रमुख धार्मिक केन्द्रों को</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> <span lang="HI">सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए कई सौ किलोमीटर की सड़क तैयार करने की योजना है . हिमालय के पर्यावरण को बिना कोई नुक्सान पंहुचाये इस महत्वाकांक्षी योजना को पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन वहां खूब मनमानी</span> <span lang="HI"> हुई . उच्च अधिकार प्राप्त कमेटी ने आगाह किया था कि इस मनमानी को फौरन रोकना पडेगा . 2017 से ही</span> <span lang="HI">बिना अनुमति लिए पेड़ों की कटाई का सिलसिला जारी है .जब यह बात वहां के अखबारों में छप गयी</span> <span lang="HI">तो 2018 में तत्कालीन राज्य सरकार से बैक डेट में</span> <span lang="HI">अनुमति ली गयी . रिपोर्ट में लिखा</span> <span lang="HI">है कि चारधाम</span> <span lang="HI">प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री की एक महत्वाकांक्षी और</span> <span lang="HI">महत्वपूर्ण योजना को लागू करने के लिए शुरू किया गया है . परियोजना के</span> <span lang="HI">ड्राफ्ट में बहुत साफ़ बता दिया गया है कि हिमालय के पर्यावरण को कोई नुक्सान नहीं पंहुचाया</span> <span lang="HI">जाएगा .लेकिन वहां फारेस्ट एक्ट और एन जी टी एक्ट का सरासर उन्ल्लंघन करके अंधाधुंध विकास का तांडव जमकर हुआ . क़ानून और सरकारी आदेशों को तोडा मरोड़ा भी खूब गया . रक्षा मंत्रालय के सीमा सड़क संगठन ने 2002 और 2012 के बीच कोई आदेश दिया</span> <span lang="HI">था . उसी के सहारे बड़े पैमाने पर</span> <span lang="HI">पहाड़ों को तबाह किया जा रहा है जबकि उस आदेश में इस तरह की कोई बात</span> <span lang="HI">नहीं थी . राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के दिशानिर्देशों की भी कोई परवाह</span> <span lang="HI">नहीं की गयी . केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य </span>, <span lang="HI">राजाजी नैशनल पार्क और फूलों के घाटी नैशनल पार्क के इलाके में हिमालय को भारी नुक्सान पंहुचाया</span> <span lang="HI">जा रहा है .</span> <span lang="HI">सबको मालूम है कि हिमालय के पर्यावरण की रक्षा देश की सबसे बड़ी अदालत की हमेशा से ही प्राथमिकता रही है . लेकिन यह भी देखा गया है और चारधाम परियोजना में भी देखा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की मंशा को तोड़ मरोड़कर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने वाले बिल्डर-ठेकेदार-नौकरशाह-नेता माफिया</span> <span lang="HI">कोई न कोई रास्ता निकाल लेते हैं . ऐसी हालत में उत्तराखंड के आज के प्रभावशाली नेताओं को राजनीतिक पार्टियों की सीमा के बाहर</span> <span lang="HI">जाकर काम करना होगा. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत</span>, <span lang="HI">सांसद अनिल बलूनी </span>,<span lang="HI">पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जैसे नेताओं की अगुवाई में पहाड़ की राजनीतिक बिरादरी को आगे आना चाहिए और अपने संरक्षक हिमालय की रक्षा के लिए लेकिन ज़रूरी राजनीतिक प्रयास करना चाहिए .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">अगर राजनेता तय</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> <span lang="HI">कर ले तो उनकी मर्जी के खिलाफ जाने की किसी भी माफिया</span> <span lang="HI">की हिम्मत नहीं पड़ती है .</span> <span lang="HI">हरीश रावत के कार्यकाल में हिमालय को कई बार नुक्सान हुआ</span> <span lang="HI">है लेकिन अब पानी सर के ऊपर जा रहा है . सत्ता और राजनीतिक पार्टी तो आती जाती रहेगी लेकिन अगर हिमालय को नुक्सान पंहुचाने का सिलसिला जारी रहा तो आने वाली पीढ़ियां इन नेताओं को माफ़ नहीं करेंगी.</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> हिमालय के चमोली जिले में आया मौजूदा संकट भी हिमालय को सम्मान न देने के कारण ही आया है .लेकिन लगातार चल रही हिमालय के असम्मान की दिशा में वः एक कड़ी मात्र है . वहां भी अगर वह बिजली उत्पादन केंद्र न होता तो इतना ज्यादा नुक्सान न होता , जितना हुआ है . इसलिए ज़रूरी है कि हिमालय से छेड़छाड़ फ़ौरन बंद की जाय. हिमालय को उसके मूल स्वरूप में रहने दिया जाय. अपनी नदियों, पेड़ पौधों ,पशुपक्षियों के साथ हिमालय एक देवतात्मा की तरह खड़ा रहे और देश की निगहबानी करता रहे. हिमलाय के विकास के लिए ,वहां रहने वालों के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को अतिरिक्त धन की व्यवस्था करनी चाहिए , ज़रूरत पड़े तो हिमालय के नाम पर अतितिक्त टैक्स लगाया जा सकता है और हिमलाय के गाँवों में रहने वालों को मैदानी विकास के लालच से मुक्त किया जा सकता है . पर्यावरण प्रबंधन के बहुत सारी संस्थान बनाये जा सकते हैं और पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के हिमालयी विशेषज्ञ भेजे जा सकते हैं . हमारे आई आई एम और आई आई टी के स्नातकों ने दुनिया भर में इंजीनियरिंग और प्रबंधन के क्षेत्र में जो मुकाम बनाया है वह काम हिमालय के संस्थाओं से निकले पर्यावरणविद कर सकते हैं . नरेंद्र मोदी सख्त फैसले लेने के लिए विख्यात हैं इसलिए मौजूदा दौर में यह संभव है कि हिमालय की रक्षा के लिए ऐसे फैसले लिए जाएँ जिससे हिमालय की रक्षा की गारंटी हो सके. पूरे देश को इस बात के लिए तैयार होना पड़ेगा कि हिमालय की इंसानी आबादी को सब्सिडी देने की किसी भी सरकारी स्कीम का पूरी तरह से स्वागत किया जाय. उत्तराखंड की सरकार की ड्यूटी यह बना दी जाय कि वह हिमालय में इंसानी लालच से पैदा हुयी किसी प्रगति को घुसने न दें. वह केवल हिमालय की रक्षा करें. सरकार चलाने एक लिए केंद्र और गंगा नदी के क्षेत्र में आने वाले राज्य उनको आर्थिक योगदान करें . केंद्र सरकार में हिमालय के संरक्षण के लिए अलग मंत्रालय बनाया जाना चाहिए . पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि उत्तराखंड के सांसद अनिल बलूनी हिमालय के विकास के लिए समय समय पर पहल करते रहते हैं . उनको मेरे इन सुझावों को तार्किक परिणति तक ले जाने के लिए सक्रिय होना चाहिए . हिमालय की रक्षा आज हमारे अस्तित्व से जुड़ गया है . किसी भी इंसानी गलती को उसकी तबाही में शामिल होने से रोकना एक राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए .</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-89455459598414775412021-02-10T22:37:00.002-08:002021-02-10T22:37:08.362-08:00हिमालय को बचाना सभी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए <p> </p><p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 18.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 18.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 18.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 18.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण
सिंह</span></b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">उत्तर दिशा
में स्थित देवतात्मा हिमालय नाम के नगाधिराज पर प्रकृति का एक और आक्रोश फूटा है. ल<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>यह इंसान की गलत नीतियों का खामियाजा हिमालय को
भोगना पड़ता है .नतीजतन <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हिमालय पर प्रकृति
का एक और कहर बरपा हो गया . उत्तराखंड के चमोली जिले में एक ग्लेशियर फटने से ऋषि
गंगा क्षेत्र में तबाही आयी है .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वहां के
एक बिजली उत्पादन केंद्र पर मुख्य रूप से असर पड़ा है .</span><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt;"> अपने देश में बिजली
के उत्पादन को <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विकास से जोड़ा जाता है .</span><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">अपने देश में नेताओं ने और पूंजी के
बल पर राज करने वाले लोगों के एक वर्ग ने विकास की अजीब परिभाषा प्रचलित कर दी है
. ग्रामीण इलाकों को शहर जैसा बना देना विकास माना जाता है . इकनामिक फ्रीडम के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बड़े चिन्तक डॉ मनमोहन सिंह और बीजेपी</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">, <span lang="HI">कांग्रेस और शासक वर्गों की अन्य
पार्टियों में मौजूद उनके ताक़तवर चेले पूंजीपति वर्ग की आर्थिक तरक्की के
लिए कुछ भी तबाह कर देने पर आमादा हैं . इसी चक्कर में अब</span> <span lang="HI">उत्तराखंड के पहाड़ तबाही की ज़द में हैं .इस बार की चमोली की घटना <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में लगातार गर्म होते जा रहे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पर्यावरण का भी योगदान है . विश्व <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के नेता क्लाइमेट चेंज को गंभीरता से नहीं ले
रहे हैं. पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति ,डोनाल्ड ट्रंप जैसे गैरजिम्मेदार नेता तो पेरिस
समझौते से अमरीका को बाहर ले गए थे . यह तो गनीमत है कि नए राष्ट्रपति जो बाइडेन
ने फिर से अमरीका को पेरिस वार्ता से जोड़ दिया है. क्लाइमेट चेंज का खामियाजा दुनिया
भर को झेलना पड़ेगा .भारत ने चमोली में झेल लिया . सफलता के लिए इस दिशा में दुनिया
भर के देशों के साथ मिलकर चलना पडेगा . भारत अकेले कुछ नहीं कर सकता . लेकिन अकेले
यह तो किया ही जा सकता है कि अपने हिमालय को बचाने के लिए जो ज़रूरी उपाय हों और
अपने बस में हिन्, वे किये जाएँ.अब हिमालय को निजी और पूंजीपति वर्ग के स्वार्थों और
मैदानी तर्ज के विकास की सोच के कारण इतना कमज़ोर कर दिया गया है कि वह बारिश को भी
संभाल नहीं पाता, ग्लेशियर फटने की बात तो अलग है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आज उत्तराखंड </span>,<span lang="HI">खासकर गढ़वाल
क्षेत्र में हिमालय नकली तरीके के विकास की साज़िश का शिकार हो चुका है और वह
प्रकृति के मामूली गुस्से को भी नहीं झेल पा रहा है .</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">हिमालय के
प्रति अपमान का आलम यह है कि गंगा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नदी को</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">उसके उद्गम के पास ही बांध दिया गया है .
बड़े बाँध बन गए हैं और भारत की संस्कृति से जुडी यह नदी</span> <span lang="HI">कई जगह पर अपने रास्ते से हटाकर सुरंगों के ज़रिये बहने को मजबूर कर दी
गयी है .. पहाडों को खोखला करने का सिलसिला टिहरी बाँध की परिकल्पना के साथ शुरू
हुआ</span> <span lang="HI">था. 1974 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे ,हेमवती
नंदन बहुगुणा ने सपना देखा था कि प्रकृति पर विजय पाने की लड़ाई के बाद जो जीत
मिलेगी वह पहाड़ों को भी उतना ही संपन्न बना देगी जितना मैदानी इलाकों के शहर हैं
.उनका कहना था कि पहाड़ों पर बाँध बनाकर देश की आर्थिक तरक्की के लिए बिजली पैदा
की जायेगी .इसी सोच के चलते</span> <span lang="HI">गंगा को घेरने की योजना
बनाई गयी थी . ऐसा लगता है कि हिमालय के पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा को यह बिलकुल
अंदाज़ नहीं रहा होगा कि वे किस तरह की तबाही को अपने हिमालय में न्योता दे रहे
हैं .पहाड़ों से बिजली पैदा करके संपन्न<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>होने की दीवानगी के चलते ही <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उत्तरकाशी और गंगोत्री के</span> 125 <span lang="HI">किलोमीटर इलाके में पांच बड़ी बिजली परियोजनायें है. जिसके कारण
गंगा को अपना</span> <span lang="HI">रास्ता छोड़ना पड़ा .इस इलाके में बिजली
की परियोजनाएं एक दूसरे से लगी हुई हैं .. एक परियोजना जहां खत्म होती है
वहां से दूसरी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुरू हो जाती है. यानी नदी
एक सुरंग से निकलती है और फिर दूसरी सुरंग में घुस जाती है. इसका मतलब ये है कि जब
ये सारी परियोजनाएं पूरी हों जाएंगी तो इस पूरे क्षेत्र में अधिकांश जगहों पर गंगा
अपना स्वाभाविक रास्ता छोड़कर सिर्फ सुरंगों में बह रही होगी. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ
फंड ने गंगा को दुनिया की उन</span> 10 <span lang="HI">बड़ी नदियों में
रखा है जिनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. गंगा मछलियों की</span> 140 <span lang="HI">प्रजातियों को आश्रय देती है. इसमें पांच ऐसे इलाके हैं जिनमें मिलने वाले
पक्षियों की किस्में दुनिया के किसी अन्य हिस्से में नहीं मिलतीं. जानकार कहते हैं
कि गंगा के पानी में अनूठे बैक्टीरिया प्रतिरोधी गुण हैं. यही वजह है कि दुनिया की
किसी भी नदी के मुकाबले इसके पानी में आक्सीजन का स्तर</span> 25 <span lang="HI">फीसदी ज्यादा होता है. ये अनूठा गुण तब नष्ट हो जाता है जब गंगा को
सुरंगों में धकेल दिया जाता है जहां न ऑक्सीजन होती है और न सूरज की रोशनी.. इसके
बावजूद सरकारें <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी
देने पर आमादा रहती हैं .. </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">.</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">भागीरथी को
सुरंगों और बांधों के जरिये कैद करने का विरोध तो स्थानीय लोग तभी से कर रहे हैं
जब इन परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी. लेकिन वहीं पर रहने वाले बहुत से नामी
साहित्यकार और बुद्धिजीवी इस अनुचित विकास की बात भी करने लगे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं . उसमें कुछ ऐसे लोग भी शामिल थे
जिन्होंने पहले बड़े बांधों के नुक्सान से लोगों को आगाह भी किया था लेकिन
बाद में पता नहीं किस लालच में वे सत्ता के पक्षधर बन</span> <span lang="HI">गए.
ऐसा भी नहीं है कि हिमालय और गंगा के साथ हो रहे अन्याय से लोगों ने आगाह नहीं
किया था. पर्यावरणविद</span>, <span lang="HI">आज के बीस साल पहले सुनीता नारायण</span>,
<span lang="HI">मेधा पाटकर </span>, <span lang="HI">आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर
जी डी अग्रवाल और बहुत सारे हिमालय प्रेमियों ने इसका विरोध किया . बहुत सारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पत्रिकाओं ने बाकायदा अभियान चलाया लेकिन सरकारी
तंत्र ने कुछ नहीं सुना. सरकार ने जो सबसे बड़ी कृपा की थी वह यह कि प्रोफ़ेसर
अग्रवाल का अनशन तुडवाने के लिए उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन
चंद्र खंडूड़ी दो परियोजनाओं को अस्थाई रूप से रोकने पर सहमत जता दी थी लेकिन बाद
में फिर उन परियोजनाओं पर उसी अंधी गति से काम शुरू हो गया. सबसे तकलीफ की बात यह
है कि भारत में बड़े बांधों की योजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है जब दुनिया भर में
बड़े बांधों को हटाया जा रहा है. अकेले अमेरिका में ही करीब 700 बांधों</span>
<span lang="HI">को हटाया जा चुका है</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">सेंटर फार
साइंस एंड इन्वायरमेंट ने एक रिपोर्ट जारी करके कहा</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">
<span lang="HI">था</span> <span lang="HI">कि २५ मेगावाट से कम की जिन छोटी
पनबिजली परियोजनाओं को सरकार बढ़ावा दे रही है उनसे भी पर्यावरण को बहुत नुक्सान
हो रहा</span> <span lang="HI">है . इस तरह की देश में हज़ारों परियोजनाएं हैं
.उत्तराखंड में भी इस तरह की थोक में परियोजनाएं</span> <span lang="HI">हैं</span>
<span lang="HI">जिनके कारण भी बर्बादी आयी है. उत्तराखंड में करीब 1700 <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>छोटी पनबिजली परियोजनाएं हैं . भागीरथी और
अलकनंदा के बेसिन में</span> <span lang="HI">करीब 70 <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>छोटी पनबिजली स्कीमों को लगाया गया है . जो</span>
<span lang="HI">हिमालय को अंदर से कमज़ोर कर रही</span> <span lang="HI">हैं.
इन योजनाओं के चक्कर में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नदियों के सत्तर
फीसदी हिस्से को नुक्सान पंहुचा है .इन योजनाओं को बनाने में जंगलों की भारी</span>
<span lang="HI">क्षति हुई है . सड़क</span>, <span lang="HI">बिजली के खंभे आदि बनाने
के लिए हिमालय में भारी तोड़फोड़ की गयी है और अभी भी जारी है.मौजूदा कहर इसी
गैरजिम्मेदार सोच का नतीजा है .</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">अगर राजनेता तय</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">कर ले तो उनकी मर्जी के खिलाफ जाने
की किसी भी माफिया</span> <span lang="HI">की हिम्मत नहीं पड़ती है .</span>
<span lang="HI">लेकिन नेताओं ने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सही सलाह न
सुनने का निश्चय कर लिया है . तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के कार्यकाल में
हिमालय को कई बार नुक्सान हुआ</span> <span lang="HI">है . उसके बाद से अब तक यह
सिलसिला चला आ रहा है. अब तो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पानी सर के
ऊपर जा रहा है . सत्ता और राजनीतिक पार्टी तो आती जाती रहेगी लेकिन अगर हिमालय को
नुक्सान पंहुचाने का सिलसिला जारी रहा तो आने वाली इन लोगों को पीढ़ियां माफ़
नहीं करेंगी. सरकार को चाहिए कि हिमालय के विकास की अपनी मैदानी कल्पनाओं से दूर
रहे. सरकारी अदूरदृष्टि का एक<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नमूना यह है
कि सत्तर के दशक में जब बहुगुणा जी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उत्तर
प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उनकी चापलूसी करने के चक्कर में गढ़वाल और कुमाऊं के
लिए लखनऊ में बैठे आला अफसरों ने जुताई के लिए ट्रैक्टरों पर भारी सब्सिडी की
स्कीम शुरू कर दी थी. जब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कुछ लोगों ने
बहुगुणा जी को बताया तो उन्होंने इस योजना को तुरंत रोकने का आदेश दिया . उन्होंने
अफसरों को समझाया कि पहाड़ में खेती वाली ज़मीन नाली या सीढीनुमा होती है इसलिए वहां
ट्रैक्टर का कोई इस्तेमाल नहीं है .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पहाड़
पर बिजली उत्पादन और ऋषिकेश से रूद्र प्रयाग तक बने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिल्ली और मुंबई के रईसों के आलीशान बंगले भी
जलेबीनुमा दिमागी सोच का नतीजा है .उन<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>बंगलों से भी हिमालय का भारी नुक्सान हो रहा है .</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">आज जो
चमोली में हुआ है वही 2013 में</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">
<span lang="HI">केदारनाथ में हुआ था . उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय
बहुगुणा को हिमालय की इकोलाजी से खिलवाड़ करने वाली नीतियों को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रोकने की सलाह दी गयी थी .वे उन दिनों कांग्रेस
में थे . जून 2013 की बाढ़ को ठीक से संभाल नहीं</span> <span lang="HI">पाए थे
. उनकी चौतरफा आलोचना हुयी थी . उसी सिलसिले में उनको मुख्यमंत्री पद भी गंवाना
पड़ा था .वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ
करते थे और केदारनाथ में फंसे हुए गुजरातियों को बचाने के लिए उन्होंने गुजरात
सरकार को सक्रिय कर दिया था .</span> <span lang="HI">नरेंद्र मोदी ने विजय
बहुगुणा और मनमोहन सिंह सरकार की केदारनाथ की बाढ़ के कुप्रबंध को लेकर सख्त आलोचना
की थी. आज उनकी सरकार केंद्र में भी है और राज्य में भी</span> . <span lang="HI">उम्मीद की जानी चाहिए कि विजय बहुगुणा वाली गलतियां आने वाले समय में कोई
भी सरकार न करने पाए .केंद्र सरकार को विकास के<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>लिए अन्य जगहों से अलग तरह की नीतियों को हिमालय में लागू करना चाहिए .
हिमालय के क्षेत्र में आने वाले सभी राज्यों की सरकारों को शामिल करके केंद्र सरकार
एक ज़रूरी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नीति की घोषणा कर सकती है . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-54926207236586152342021-02-05T21:58:00.002-08:002021-02-05T21:58:16.209-08:00नई कृषि नीति के बारे में मेरे विचार <p><br /></p><p><br /></p><p> <span style="background-color: white; color: #050505; font-family: inherit; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,</span></p><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="bkmol-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="bkmol-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="bkmol-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.</span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="6b9ts-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="6b9ts-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="6b9ts-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="30j8d-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="30j8d-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="30j8d-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">कल ( 5 फरवरी ) पहली बार टीवी डिबेट में किसान आंदोलन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए दिल्ली के गाजीपुर बार्डर के यू पी गेट पर गया. डिबेट वहीं किसानों के बीच होनी थी. </span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="4jrfk-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="4jrfk-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="4jrfk-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">मुझे खुशी है कि मैंने वह सब बातें खुलकर कहीं जिनको मैं सच मानता हूं. स्टूडियो में तो कई बार बहस में शामिल हो चुका हूँ लेकिन ज़मीनी बहस का यह पहला मौक़ा था. </span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="ev183-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="ev183-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="ev183-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="87jrp-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="87jrp-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="87jrp-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">मैंने कहा कि सरकारी नीतियों के स्तर पर नीतिगत हस्तक्षेप की ज़रुरत बहुत दिनों से ओवरड्यू है . यह काम सरकार को कई साल कर लेना था. तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने अपने 1992 के आद्योगीकरण और उदारीकरण के कार्यक्रम में इसका संकेत दिया था .लेकिन गठबंधनों की सरकारों के चलते कोई नहीं सरकार यह काम नहीं कर सकी. </span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="2l8nv-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="2l8nv-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="2l8nv-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="2fd7h-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="2fd7h-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="2fd7h-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">आज़ादी के बाद देश में करीब बीस साल तक खेती में कोई भी सुधार नहीं किया गया . १९६२ में चीन के हमले के समय पहले से ही कमज़ोर अर्थव्यवस्था तबाही के कगार पर खडी थी तो पाकिस्तान का भी हमला हो गया . खाने के अनाज की भारी कमी थी . उस समय के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने कृषिमंत्री सी सुब्रमण्यम से कुछ करने को कहा . सी सुब्रमण्यम ने डॉ एस स्वामीनाथन के सहयोग से मेक्सिको में बौने किस्म के धान और गेहूं के ज़रिये खेती में क्रांतिकारी बदलाव ला चुके डॉ नार्मन बोरलाग ( Dr Norman Borlaug ) को भारत आमंत्रित किया . उन्होंने पंजाब की खेती को देखा और कहा कि इन खेतों में गेहूं की उपज को दुगुना किया जा सकता है . लेकिन कोई भी किसान उनके प्रस्तावों को लागू करने को तैयार नहीं था . कृषि मंत्री सी सुब्रमण्यम ने गारंटी दी कि आप इस योजना को लागू कीजिये ,केंद्र सरकार सब्सिडी के ज़रिये किसी तरह का घाटा नहीं होने देगी. शुरू में शायद डेढ़ सौ फार्मों पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के सहयोग से यह स्कीम लागू की गयी. और ग्रीन रिवोल्यूशन की शुरुआत हो गयी. पैदावार दुगुने से भी ज़्यादा हुई और पूरे पंजाब और हरियाणा के किसान इस स्कीम में शामिल हो गए . ग्रीन रिवोल्यूशन के केवल तीन तत्व थे . उन्नत बीज, सिंचाई की गारंटी और रासायनिक खाद का सही उपयोग . उसके बाद तो पूरे देश से किसान लुधियाना की तीर्थयात्रा पर यह देखने जाने लगे कि पंजाब में क्या हो रहा है कि पैदावार दुगुनी हो रही है . बाकी देश में भी किसानों ने वही किया .उसके बाद से खेती की दिशा में सरकार ने कोई पहल नहीं की है .आज पचास साल से भी ज़्यादा वर्षों के बाद खेती की दिशा में ज़रूरी पहल की गयी है .मोदी सरकार की मौजूदा पहल में भी खेती में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता है .</span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="fe1ki-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="fe1ki-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="fe1ki-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="9ac50-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="9ac50-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="9ac50-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"> </span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="eqk8j-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="eqk8j-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="eqk8j-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="2u71i-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="2u71i-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="2u71i-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">1991 में जब डॉ मनमोहन सिंह ने जवाहरलाल नेहरू के सोशलिस्टिक पैटर्न के आर्थिक विकास को अलविदा कहकर देश की अर्थव्यवस्था को मुक़म्मल पूंजीवादी विकास के ढर्रे पर डाला था तो उन्होंने कृषि में भी बड़े सुधारों की बात की थी . लेकिन कर नहीं पाए क्योंकि गठबंधन की सरकारों की अपनी मजबूरियां होती हैं . अब नरेंद्र मोदी ने खेती में जिन ढांचागत सुधारों की बात की है डॉ मनमोहन सिंह वही सुधार लाना चाहते थे लेकिन राजनीतिक दबाव के कारण नहीं ला सके. मोदी सरकार ने उन सुधारों का कांग्रेस भी विरोध कर रही है , किसानों का एक वर्ग भी विरोध कर रहा है . वह राजनीति है लेकिन कृषि सुधारों के अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र को समझना ज़रूरी है . सरकार ने जो कृषि नीति घोषित की है उसको आर्थिक विकास की भाषा में agrarian transition development यानी कृषि संक्रमण विकास का माडल कहते हैं . यूरोप और अमरीका में यह बहुत पहले लागू हो चुका है . आज देश का करीब 45 प्रतिशत वर्कफ़ोर्स खेती में लगा हुआ है . जब देश आज़ाद हुआ तो जीडीपी में खेती का एक बड़ा योगदान हुआ करता था . लेकिन आज जीडीपी में खेती का योगदान केवल 15 प्रतिशत ही रहता है . यह आर्थिक विकास का ऐसा माडल है जो एक तरह से अर्थव्यवस्था और ग्रामीण जीवनशैली पर बोझ बन चुका है .</span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="bbpoc-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="bbpoc-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="bbpoc-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="20q17-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="20q17-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="20q17-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">आर्थिक रूप से टिकाऊ ( sustainable ) खेती के लिए ज़रूरी है कि खेती में लगे वर्कफोर्स का कम से कम बीस प्रतिशत शहरों की तरफ भेजा जाय जहां उनको समुचित रोज़गार दिया जा सके. आदर्श स्थिति यह होगी कि उनको औद्योगिक क्षेत्र में लगाया जाय. आज सर्विस सेक्टर भी एक बड़ा सेक्टर है .गावों से खाली हुए उस बीस प्रतिशत वर्कफोर्स को सर्विस सेक्टर में काम दिया जा सकता है . खेती में जो 25 प्रतिशत लोग रह जायेंगें उनके लिए भी कम होल्डिंग वाली खेती के सहारे कुछ ख़ास नहीं हासिल किया जा सकता . खेती पर इतनी बड़ी आबादी को निर्भर नहीं छोड़ा जा सकता ,अगर ऐसा होना जारी रहा तो गरीबी बढ़ती रहेगी .इसलिए खेती में संविदा खेती ( contract farming ) की अवधारणा को विकसित करना पडेगा . संविदा की खेती वास्तव में कृषि के औद्योगीकरण का माडल है .खेती के औद्योगीकरण के बाद गावों में भी शहरीकरण की प्रक्रिया तेज़ होगी और वहां भी औद्योगिक और सर्विस सेक्टर का विकास होगा . इस नवनिर्मित औद्योगिक और सर्विस सेक्टर में बड़ी संख्या में खेती से खाली हुए लोगों को लगाया जा सकता है . </span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="f4bdd-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="f4bdd-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="f4bdd-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">मैंने उस डिबेट में यह भी कहा कि सरकार जो मौजूदा कानून लाई है उसमें खामियां भी हैं .उनको ठीक किया जाना चाहिए नहीं तो वे नतीजे नहीं निकलेगें जो निकलना चाहिए . ज़खीरेबाज़ों और कान्ट्रेक्ट फार्मिंग के ज़रिये ज़मीन हथियाने वालों पर लगाम लगाने का प्रावधान बिल में नहीं है ,वह भी किया जाना चाहिए . कानून में इस बात की गारंटी होनी चाहिए कि विवादों का निपटारा दीवानी अदालतों में होगा ,एस डी एम् को सारी ताक़त नहीं दी जानी चाहिए . सरकार को और किसान नेताओं को जिद के दायरे से बाहर आना पडेगा . सरकार का कानून अभी प्रो बिजनेस है उसको प्रो मार्केट करने की ज़रूरत है . अपनी जिद छोड़कर सरकार को यह सुधार करके बात करनी चाहिए और किसानों को भी क़ानून वापस लेने की जिद छोडनी चाहिए क्योंकि अगर यह क़ानून रद्द हो गया तो कृषि को आधुनिक बनाने की कोशिश को बड़ा झटका लगेगा .</span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="3rfg4-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="3rfg4-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="3rfg4-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">मुझे व्यक्तिगत रूप से खुशी इस बात की है कि किसानों के बीच में खड़े होकर उनकी कमियाँ बताने की हिम्मत मुझे ऊपर वाले ने दी. जहाँ तक सरकार की कमियाँ बताने के बात है वह तो मैं कई बार स्टूडियों में बैठकर कर चुका हूँ. . अब न्यूज़ 18 इंडिया के अलावा भी अब सभी चैनलों में जा सकता हूँ . जो लोग भी मुझे बुलाएं उनकी सूचनार्थ निवेदन है मेरे यही दृष्टिकोण हैं और कोई चैनल इससे इतर बात कहलवाना चाहता है तो वह मैं नहीं आर पाऊंगा .</span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="9iel6-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="9iel6-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="9iel6-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="9aa2e-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="9aa2e-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="9aa2e-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;"><br data-text="true" style="animation-name: none !important; transition-property: none !important;" /></span></div></div><div class="" data-block="true" data-editor="a4kqj" data-offset-key="9rdrj-0-0" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div class="_1mf _1mj" data-offset-key="9rdrj-0-0" style="animation-name: none !important; direction: ltr; font-family: inherit; position: relative; transition-property: none !important;"><span data-offset-key="9rdrj-0-0" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">( इस लेख में कुछ पैराग्राफ मेरे एक पुराने लेख से कापी पेस्ट किये गए हैं ) </span></div></div>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-55269810195335113412021-02-04T09:38:00.002-08:002021-02-04T09:38:14.961-08:00 पंडित मुनीश्वर दत्त उपाध्याय – पहले बड़े नेता थे जिनको मैंने देखा <p><br /></p><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">शेष नारायण सिंह </div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">पहली बार किसी राजनीतिक चुनाव में अपने मातापिता और गाँव के अन्य लोगों को वोट डालते मैंने १९६२ के चुनाव में देखा था. लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ साथ होते थे . बाद में पता चला कि वहां से विधायक कौन था लेकिन चुनाव के दौरान कांग्रेस के दो बैलों की जोड़ी की ही चौतरफा चर्चा थी. कांग्रेसी उमीदवार पखरौली के उमा दत्त थे ,वे ही जीते . जनसंघ के दीपक निशान से उम्मीदवार रामपुर के उदय प्रताप सिंह थे लेकिन ज्यादातर लोग बैलों की जोड़ी पर ही वोट डाल रहे थे . उसके पहले मैंने अपने गाँव में जिले के बड़े नामी वकील बाबू गनपत सहाय को ऊँट छाप से चुनाव लड़कर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करते देखा था. 1961 में सुल्तानपुर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ था . कांग्रेस के ताक़तवर नेता स्व गोविन्द वल्लभ पन्त के बेटे कृष्ण चन्द्र पन्त को कांग्रेस से टिकट मिला था जिसका कांग्रेसी दावेदार बाबू गनपत सहाय ने विरोध किया और बाग़ी उम्मेदवार के रूप में पर्चा भर दिया . ऊँट चुनाव निशान से उनका ज़बरदस्त प्रचार हुआ और कृष्ण चन्द्र पन्त चुनाव हार गए. उस समय के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता चंद्रभानु गुप्त ने पन्त जी के बेटे का समर्थन किया था लेकिन कांग्रेस चुनाव हार गयी. यह सब जानकारी मुझे बाद में मिली जब मैंने उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में रूचि लेना शुरू किया . चुनाव के दौरान तो एक लेफ्ट हैंड ड्राइव विल्लीज़ जीप पर बैठे सफ़ेद मूंछों वाले बाबू गणपत सहाय की याद भर है . उनकी जीत का फायदा यह हुआ कि कांगेस की समझ में आ गया कि गनपत सहाय को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता . नतीजतन १९६२ के आम चुनाव में सुल्तानपुर लोकसभा सीट से उनेक बेटे कुंवर कृष्ण वर्मा को टिकट मिला और वे ही लोकसभा के सदस्य हुए . लेकिन यह सब एक बच्चे के रूप में द्केही गयी यादें हैं. </div></div><div class="o9v6fnle cxmmr5t8 oygrvhab hcukyx3x c1et5uql ii04i59q" style="animation-name: none !important; background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; margin: 0.5em 0px 0px; overflow-wrap: break-word; transition-property: none !important; white-space: pre-wrap;"><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">जिस पहले राजनीतिक चुनाव और घटनाक्रम की मुझे स्पष्ट याद है वह १९६६ में हुए उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के चुनाव की है . उन दिनों सुल्तानपुर-प्रतापगढ़-बाराबंकी जिलों को मिलाकर विधानपरिषद का एक चुनाव क्षेत्र होता था . उस चुनाव में चंद्रभानु गुप्त की उम्मीदवार थीं ,बाराबंकी की मोहसिना किदवई . उनको चुनौती दिया प्रतागढ़ के पंडित मुनीश्वर दत्त उपाध्याय ने . उपाध्याय जी उस चुनाव में मेरे घर आये थे . पहली बार किसी साक्षात नेता का दर्शन मुझे मुनीश्वर दत्त उपाध्याय का ही हुआ . मैं हाई स्कूल में पढता था और मुझे विधिवत याद है कि हमारे ब्लाक प्रमुख स्व त्रिभुवन दत्त पाण्डेय उनको लेकर आये थे. विधानपरिषद के चुनावों में सभी वोट नहीं देते थे . मतदान का अधिकार केवल ग्राम प्रधानों को होता था. मेरे पिताजी गाँव के प्रधान थे. मुनीश्वर दत्त उपाध्याय मेरे घर आये . काफी देर तक बैठे और कुछ शरबत आदि भी ग्रहण किया . उन दिनों गाँवों में चाय पीने का उतना रिवाज़ नहीं था. चाय की पैकिंग भी पुडिया में होती थी. ‘ लिप्टन लाओजी टी ‘ की पुड़िया मैं ही कई बार राम नायक सेठ के यहाँ से लाया करता था. लेकिन किसी के आने पर चाय नहीं शरबत या शिखरन पिलाने की प्रथा थी. किसी नेता का साक्षात दर्शन मैंने पहली बार उसी चुनावों में किया था . मेरे पिताजी उनसे बहुत प्रभावित हुए और न केवल अपना बल्कि और कुछ लोगों के भी कुछ वोट दिलवाए थे . देवरी और नौगवां में हमारे खानदान के लोग ही गाँव प्रधान थे . मोहसिना किदवई वह चुनाव हार गईं थीं .मुनीश्वर दत्त उपाध्याय को प्रदेश में मंत्री बनाया गया था .</div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">मुनीश्वर दत्त उपाध्याय से मैं इतना प्रभावित हुआ कि उनके बारे में मैंने काफी जानकारी इकठ्ठा की . जब मैं उसी साल प्रतापगढ़ की तहसील पट्टी के पास अपनी बहिन के गाँव गया तो पता चला कि वहां का जो इंटर कालेज था उसको मुनीश्वर दत्त उपाध्याय ने ही खुलवाया था. बहुत बड़ी बिल्डिंग थी उस कालेज की . मेरे अपने इंटर कालेज से बहुत बड़ी . उनको बेल्हा ( प्रतापगढ़ ) का मदनमोहन मालवीय कहा जाता था क्योंकि उन्होंने जिले में बहुत सारे कालेज खोले. किसी भी कालेज में अपना नाम नहीं डालते थे . जैसे इंटर कालेज पट्टी या डिग्री कालेज प्रतापगढ़ ही नाम होता था. बाद में लोगों ने सभी कालेजों में लोगों के नाम जोड़ लिए . प्रतापगढ़ वाले डिग्री कालेज में तो उनका खुद का नाम दे दिया गया . जब उन्होंने पढाई की थी तो उनके जिले में स्कूल कालेजों की संख्या बहुत कम थी . उन्होंने खुद प्रतापगढ़ के सोमवंशी इंटर कालेज से पढाई की थी. इस कालेज को राजा प्रताप बहादुर ने शुरू किया था इसलिए बाद में उसका नाम पी बी इंटर कालेज कर दिया गया . उन दिनों जिले में और कोई भी इंटर कालेज नहीं था. . मुनीश्वर दत्त उपाध्याय ने तय किया कि शिक्षा से ही समाज में बदलाव आयेगा . उत्तर प्रदेश के मज़बूत राजनेता के रूप में उन्होंने भारत की आजादी के बाद अपने जिले प्रतापगढ़ में कालेज और स्कूल खोलने का सिलसिला जारी कर दिया .१९५२ में लोकसभा का सदस्य चुने जाने के बाद जिले के ग्रामीण अंचल में शिक्षा संस्थाओं की बड़े पैमाने पर स्थापना शुरू कर दी. पट्टी का इंटर कालेज और सैफाबाद का हाई स्कूल उनकी शुरुआती संस्थाएं थीं . बाद में उन्होंने करीब दो दर्ज़न स्कूल कॉलेज शुरू करवाए . वे जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के बहुत करीबी थे.. जब १९७७ में मैंने उनसे मिला तो बहुत बूढ़े हो चुके थे लेकिन आज़ादी की लडाई की बहुत सारी यादें उनके पास थीं . इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र के रूप में ही वे आज़ादी की लडाई में शामिल हो गए थे. जवाहरलाल नेहरू ने जब प्रतापगढ़ और रायबरेली में किसानों के संघर्ष का नेतृत्व किया तो मुनीश्वर दत्त उपाध्याय उनके मुख्य संगठनकर्ता थे. उस दौर में वे जिले के किसान नेताओं बाबा रामचंदर और झिंगुरी सिंह के साथ आज़ादी का सन्देश किसानों तक पंहुचाने में जी जान से जुटे थे और काफी हद तक सफल रहे थे . आज़ादी के बाद मुनीश्वर दत्त उपाध्याय को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। .उपाध्याय जी वर्ष 1952 व 1957 में प्रतापगढ़ से दो बार लोकसभा का चुनाव जीते लेकिन १९६२ में वहां से जनसंघ के टिकट पर प्रतापगढ़ के राजा ,अजीत प्रताप सिंह लोकसभा पंहुचे .</div><div dir="auto" style="animation-name: none !important; font-family: inherit; transition-property: none !important;">उत्तर प्रदेश में आज़ादी के बाद जो भूमि सुधार लागू हुए उनमें मुनीश्वर दत्त उपाध्याय का बड़ा योगदान है . ज़मींदारी उन्मूलन के लिए वे आज़ादी की लड़ाई के दौरान सक्रिय रहे . ज़मींदारी प्रथा पर उनकी किताब भी है . मेरी कोशिश है कि उनके किसी वंशज से मुलाक़ात हो जाए तो अपनी प्रस्तावित किताब में उनपर बाकायदा के अध्याय लिखूंगा क्योंकि आज़ादी की लडाई की जो मूल मान्यताएं हैं उनको उन्होंने ज़मीन पर लागू किया था . उनके असली मित्रों लाल बहादुर शास्त्री और जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद उनको चंद्रभानु गुप्त ने दरकिनार कर दिया क्योंकि उनको मालूम था कि मुनीश्वर दत्त उपाध्याय उनके लिए चुनौती बन सकते थे. उसके बाद राज्य की राजनीति में उनकी हैसियत कम हो गयी थी . ८५ साल की उम्र में १९८३ में उनकी मृत्यु हुई.</div></div>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-75183112628661373152021-02-03T19:50:00.004-08:002021-02-03T19:50:43.042-08:00चौरी चौरा की घटना के बाद अंगेजों का दमनतंत्र तेज़ हो गया था<p> </p><p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><br /></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण सिंह </span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p style="background: white; margin-bottom: 6.0pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in; margin-top: 6.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">चौरी
चौरा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के सौ साल पूरे होने को हैं . सरकार
की तरफ से उसकी शताब्दी को जोर शोर से मनाया जा रहा है . इसी चार फरवरी को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कार्यक्रमों के शुरुआत हो चुकी है. यह सिलसिला
साल भर चलता रहेगा . चौरी चौरा की याद में डाक टिकट भी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जारी किया जाएगा . चौरी चौरा आज़ादी के इतिहास
का हिस्सा है क्योंकि १९२० में शुरू हुए महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन के बाद वहां
के पुलिस वालों ने असहयोग आन्दोलन के क्रांतिकारियों पर अत्याचार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किया था . ४ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>फरवरी १९२२ के दिन वहां के पुलिस थाने में असहयोग
आन्दोलन के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कुछ कार्यकर्ताओं ने आग लगा दी
थी. जिसमें २२ पुलिस वालों की जान चली गयी थी .उसी के घटना के बाद महात्मा गांधी
ने अपने असहयोग आन्दोलन को वापस ले लिया था .<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>असहयोग आन्दोलन में लगे हुए लगभग सभी नेताओं ने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गांधी जी से अपील की थी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कि आन्दोलन को वापस न लिया जाए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>क्योंकि १९२० में आन्दोलन शुरू होने के डेढ़
वर्ष के अन्दर ही देश के गाँव गाँव में अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में
जागरूकता फ़ैल चुकी थी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. असहयोग आन्दोलन ने
भारत में अंग्रेज़ी सरकार की बुनियाद को हिलाकर रख दिया था .इस आन्दोलन के कारण
जागरूकता का एक बहुत बड़ा अभियान पूरे देश में शुरू हो चुका था . देश में अंग्रेजों
के आतंक के नीचे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दबे कुचले लोग सीना तानकर
खड़े हो गए थे . उनको शांतिपूर्ण तरीके से अत्याचार को सहने की शैली समझ में आने
लगी थी . सरकारी आतंक फैलाकर जनता को डराने के युग का अंत हो चुका था . हज़ारों लोग
मुसकराते हुए गिरफ्तारियां दे रहे थे .भारतीय दंड संहिता के वे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सारे मुक़दमे बेकार सिद्ध हो रहे थे जिनके नाम
से लोग १९२० के पहले डर जाया करते थे . देशद्रोह के मुक़दमों की लोग परवाह ही नहीं
कर रहे थे . हज़ारों धनी मानी लोगों ने अपनी इच्छा से ऐशो आराम की ज़िंदगी को
तिलांजलि दी थी और<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जानबूझकर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गांधी जी की शैली में गरीबी का जीवन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बिता रहे थे . सरकार के अत्याचारी शासन से पैदा
हुयी ताक़त को लोग अपने नैतिक साहस से धता बता रहे थे. <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>माइकेल ओ डायर टाइप आतंक की हवा निकल रही थी . माइकेल
ओ डायर ही वह दुष्टात्मा था जिसने जलियांवाला बाग़ में अपने चमचे जनरल रेजिनाल्ड
डायर से निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलवाई<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>थीं और उस के उस घिनौने काम को सही भी ठहराया था . वह इंडियन सिविल सर्विस
का अफसर था और उन दिनों पंजाब में लेफ्टीनेंट गवर्नर पद पर तैनात था .उसी ने
डिफेंस ऑफ़ इंडिया रूल्स की स्थापना की थी जो सरकारी दमनतंत्र का एक बड़ा क़ानून बन
गया था. <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उसके आतंक की कारस्तानियों को
पूरे ब्रिटिश भारत में लोगों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जाता था .लेकिन उसका असर
उलटा हुआ . जलियांवाला<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बाग़ के आतंक के बाद
लोगों को जब उसके जवाब में महात्मा गांधी का असहयोग आन्दोलन का सहारा मिला तो दमनतंत्र
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भोथरा<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>हो गया. लोगों पर थोक में राजद्रोह के मुक़दमे दर्ज हुए लेकिन महात्मा गांधी
के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अहिंसा और सत्याग्रह के नैतिक हथियारों
के सामने सब कुछ नाकाम रहा . पंजाब के उस दुष्ट लेफ्टीनेंट गवर्नर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>माइकेल ओ डायर को १९४० में क्रांतिकारी शहीद
उधम सिंह ने मार गिराया था. </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; margin-bottom: 6.0pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in; margin-top: 6.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">१९२०
के आन्दोलन में देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता भी बहुत बड़े स्तर पर हो गयी थी.
महात्मा ने उस एकता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की ताक़त के बल पर
अंग्रेजों को साफ़ कह दिया कि मनमानी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नहीं
चलेगी.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>१९२१ के दिसम्बर तक ब्रिटिश सरकार
के सामने अहिंसा और सत्याग्रह की ज़बरदस्त चुनौती पैदा हो चुकी थी .अंग्रेजों के
सहयोगी देसी राजे महराजे और उदारपंथी लोगों की हिम्मत भी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>असहयोग आन्दोलन की ताक़त के सामने पस्त हो चुकी
थे . अँगरेज़ सरकार लोगों पर दमन का हथियार चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जलियांवाला बाग़ जैसे बहुत सारे सम्मेलन हो रहे
थे. सभी अहिंसक सम्मलेन होते थे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. लेकिन
सरकार की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि माइकेल ओ डायर वाली बेवकूफियां कर सके . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; margin-bottom: 6.0pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in; margin-top: 6.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">आहिंसा
की ताक़त के सामने अँगरेज़ सरकार की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय .इसी दौर
में गोरखपुर जिले के चौरी चौरा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में हिंसा
हो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गयी . हुआ यह कि असहयोग आन्दोलन के
कार्यकर्ता महंगाई और बाज़ार में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शराब की बिक्री
के खिलाफ<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>धरना दे रहे थे. चौरी चौरा के
पुलिस वाले ने उनको<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मारा पीटा , कुछ लोगों
को वहीं थाने में बंद कर दिया .इसके <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विरोध
में बाज़ार में चार फरवरी को विरोध प्रदर्शन का आवाहन किया गया . करीब ढाई हज़ार
सत्याग्रही इकठ्ठा हुए और जुलूस की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शक्ल
में चौरी चौरा बाज़ार की तरफ जाने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लगे
.शराब की एक दूकान के सामने धरना देने का कार्यक्रम था . उनके नेता को पुलिस ने पकड
लिया और जेल में बंद कर दिया . जिसका विरोध करने<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>के लिए लोग अहिंसक तरीके से पुलिस थाने की तरफ बढ़ने लगे. हथियारबंद पुलिस
ने उनको रोकने की कोशिश की और हवाई फायरिंग<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>शुरू कर दी . आंदोलनकारियों को गुस्सा आया और उन्होंने पुलिस के ऊपर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कंकड़ पत्थर फेंकना शुरू कर दिया . उसके बाद
पुलिस ने गोली चला दी और मौके पर ही तीन लोगों की मौत हो गयी और कई लोग ज़ख़्मी हो
गए .पुलिस वाले<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भाग कर थाने में छुप गए
.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गुस्साए लोगों ने पुलिस को खदेड़ा और
थाने में आग लगा दी .जिसमें २२ पुलिस वाले मारे गए .ऐसा लगता है कि ब्रिटिश हुकूमत
को ऐसे ही किसी मौके की तलाश थी . उन्होंने आस पास के इलाके में मार्शल लॉ लगा
दिया और ज़बरदस्त तरीके <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>धर पकड़ शुरू हो गयी
. पंजाब के माइकेल ओ डायर को तत्कालीन वायसरॉय लार्ड<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रीडिंग ने सही ठहराया और आतंक का राज कायम करने
की कोशिश<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुरू हो गयी . सर हरकोर्ट बटलर
यू पी के गवर्नर थे . उनको आतंक का राज कायम करने का मौक़ा मिल गया और पूरे उत्तर
प्रदेश में पुलिस की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ज्यादती की घटनाएं
आने लगीं .<o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; margin-bottom: 6.0pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in; margin-top: 6.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">जब
महात्मा गांधी को इस घटना के बारे में जानकारी मिली तो वे बहुत दुखी हुए .उन्होंने
कहा कि चौरी चौरा में हिंसा में लिप्त होकर सत्याग्रहियों ने गलत काम किया है .
उन्होंने प्रायश्चित्त के लिए पांच दिन का उपवास रखा .उन्होंने तय किया कि भारत के
उनके अपने लोग अभी अहिंसक तरीके से आज़ादी लेने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हैं
. और गांधी जी ने १२ फरवरी को आन्दोलन को रोकने का फरमान जारी कर दिया था .उनका
कहना था कि चौरी चौरा के बहाने अब अँगरेज़ सरकार भारतीयों को कुचल देने का अभियान
चलायेगी और नैतिक ताकत से आयी हुयी अहिंसा के हथियार <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दबा
देगी . गांधी जी भी गिरफ्तार हो गए और उनको छः साल की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सज़ा सुनाई गई . जवाहरलाल नेहरू मदन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मोहन मालवीय , सरदार पटेल जैसे कांग्रेस नेताओं
ने महात्मा जी के आन्दोलन वापस लेने के फैसले का<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>विरोध किया लेकिन महात्मा गांधी ने<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>किसी की नहीं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सुनी. उनका दृढ
विश्वास था कि चौरी चौरा में हिंसा करने का आन्दोलन कारियों का काम गलत था . इसी
आन्दोलन के दौर में सरदार पटेल की भी कांग्रेस में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विधिवत ताक़त स्थापित हुई .असहयोग <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आन्दोलन के शुरू होते ही वल्लभभाई पटेल ने
गुजरात के लगभग सभी गाँवों की यात्रा की</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"> , <span lang="HI">कांग्रेस के
करीब ३ लाख सदस्य भर्ती किया और करीब १५ लाख रूपया इकट्ठा किया . सन १९२० के १५
लाख रूपये का मतलब आज की भाषा में बहुत ज़्यादा होता है. और यह सारा धन गुजरात के
किसानों से इकठ्ठा किया गया था. सरदार पटेल <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के जीवन का वह दौर शुरू हो चुका था जिसके बाद
उन्होंने गांधी जी की किसी बात का विरोध नहीं किया . कई मुद्दों पर असहमति ज़रूर
दिखाई लेकिन जब फैसला हो गया तो वे महात्मा जी के फैसले के साथ रहे.</span> <span lang="HI">चौरी चौरा काण्ड के बाद महात्मा गांधी ने आन्दोलन वापस ले लिया, तो सरदार
पटेल भी उस फैसले के पक्ष में नहीं थे लेकिन उन्होंने महात्मा गांधी का समर्थन
किया क्योंकि महात्मा गांधी को आशंका थी कि उसके बाद अंग्रेज़ी राज का दमनचक्र उसी
तरह से चल पडेगा जैसे १८५७ के समय में हुआ था . कांग्रेस के बाकी बड़े नेता आन्दोलन
वापस लेने का विरोध करते रहे लेकिन वल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी का पूरा
समर्थन किया. राजनीतिक कार्य के साथ उन्होंने अपने एजेंडे में शराब</span>, <span lang="HI">छुआछूत और जाति प्रथा के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया . गुजरात के तत्कालीन
विकास में सरदार पटेल के इस कार्यक्रम का बड़ा योगदान माना जाता है .</span><o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; margin-bottom: 6.0pt; margin-left: 0in; margin-right: 0in; margin-top: 6.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">चौरी
चौरा की घटनाओं के लिए अंग्रेजों ने २२८ ने लोगों पर दंगा और आगज़नी का मुक़दमा चलाया
.आठ महीने मुक़दमा चला और १७२ लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गयी . छः लोगों की पुलिस
हिरासत में ही मृत्यु हो गयी थी . पूरे देश में इस फैसले के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा
. मदन मोहन मालवीय चौरी चौरा की घटनाओं से शुरू से जुड़े हुए थे . उन्होंने ही हाई
कोर्ट में फैसले के रिव्यू के लिए पैरवी की .२० अप्रैल १९२३ को इलाहाबाद हाई कोर्ट
ने १९ लोगों की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>फांसी की सज़ा को बहाल रखा .११०
लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा दी ,बाकी लोगों को भी कुछ वर्षों की सज़ा हुयी . कुल
मिलाकर कहा जा सकता है कि चौरी चौरा की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>घटनाओं के कारण असहयोग आन्दोलन को बड़ा झटका लगा
था . महात्मा गांधी जेल <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चले गए थे . फिर
से देश को एकजुट <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>होने में आठ साल लगे जब
महात्मा गांधी ने १९३० के अपने सविनय अवज्ञा आंदोलन की घोषणा की. अगर चौरी चौरा न
हुआ होता तो १९३० के बाद जिस तरह से अंगेजों ने आजादी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की लड़ाई के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संगठन ,कांग्रेस को गंभीरता से लेना शुरू किया ,
गोलमेज सम्मेलन हुआ, गवर्नमेंट ऑफ़ इण्डिया एक्ट १९३५ आया वह सब आठ साल पहले ही हो
गया होता. </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 6.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-23588250881011656312021-01-29T17:53:00.005-08:002021-01-29T17:53:49.978-08:00भारत के गाँवों के लिए महात्मा गांधी का सपना <p> </p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 29.3333px; margin: 0in 0in 7.5pt; text-align: justify;"><b><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt; line-height: 32px;">शेष नारायण सिंह</span></b><b><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 12pt; line-height: 32px;"></span></b></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">राजनीतिक विचारकों के एक बड़े वर्ग के लोग मानते हैं कि महात्मा गांधी राजनीतिक आजादी के बाद कांग्रेस को समाप्त कर देना चाहते थे . उनका कहना था कि कांग्रेस एक संघर्ष के वाहक के रूप में तो बिलकुल सही थी लेकिन राजकाज चलाने के लिए एक नए संगठन का विकास किया जाना चाहिए . कांग्रेस को वे सामाजिक परिवर्तन के लिए इस्तेमाल करना चाहते थे . उन्होंने गावों के विकास को केंद्र में रखकर देश के विकास का सपना देखा था . उन्होंने ने कहा था कि भारत के आज़ाद होने के बाद यहाँ ग्राम स्वराज</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> <span lang="HI">आयेगा . देश को विकसित करने के लिए गांव को विकास की इकाई बनाया जाएगा और गाँवों की सम्पन्नता ही देश की सम्पन्नता की यूनिट बनेगी . लेकिन आजादी के बाद ऐसा नहीं हो सका . अपने देश में ब्लाक डेवेलपमेंट के माडल को अपनाया गया . आज़ादी के बाद देश में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शुरू किये गए कार्यक्रमों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण कार्यक्रम था . उस वक़्त की सरकार ने कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम के ज़रिये महात्मा गांधी के सपनों के भारत को एक वास्तविकता में बदलने की कोशिश शुरू कर दी . महात्मा जी के जन्मदिन के दिन २ अक्टूबर १९५२ में भारत में कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की गयी थी . इस योजना में खेती</span>,<span lang="HI">पशुपालन</span>,<span lang="HI">लघु सिंचाई</span>,<span lang="HI">सहकारिता</span>,<span lang="HI">शिक्षा</span>,<span lang="HI">ग्रामीण उद्योग आदि को शामिल किया गया था . अगर ठीक से लागू किया गया होता तो ग्रामीण जीवन में बड़े बदलाव आ सकते थे लेकिन गाँव से लेकर देश की राजधानी तक मौजूद नौकरशाही और नेताओं ने भ्रष्टाचार के रास्ते सब कुछ बर्बाद कर दिया .इस तरह महात्मा गांधी के सपनों के भारत के निर्माण के लिए सरकारी तौर पर जो पहली कोशिश की गयी थी सफल नहीं हुई . ग्रामीण भारत में शहरीकरण के तरह तरह के प्रयोग हुए और जिसके कारण ही आज भारत उजड़े हुए गाँवों का एक देश है .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"> </span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">महात्मा गांधी अगर आज़ादी के बाद पांच साल भी जीवित रहे होते तो उनकी किताब ग्राम स्वराज में लिखी हुयी अधिकतर बातें संभव हो गयी होतीं और शायद भारत आज एक अलग तरह का देश होता लेकिन 30 जनवरी 1948 के दिन एक हत्यारे ने उनकी हत्या कर दी . आज उनकी शहादत के 73 साल बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि उन्होंने भारत के गाँवों के विकास के लिए कैसा सपना देखा था . बहुत सारी बातें उनके लेखों में दर्ज हैं. उनके लेखों से उनमें से कुछ बातों को संकलित करने का प्रयास मैंने इस लेख में किया है</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-clip: initial; background-color: white; background-image: initial; background-origin: initial; background-position: initial; background-repeat: initial; background-size: initial; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: normal; margin: 0in 0in 0.0001pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;">.</span><span style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 29.3333px; margin: 0in 0in 7.5pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;">4 अगस्त 1946 के हरिजन में उन्होंने लिखा है कि “ गाँव के अवधारणा बहुत ही मज़बूत है . मेरी कल्पना के गाँव में एक हज़ार लोग होंगे. यह इकाई आत्मनिर्भर होगी और पूरी तरह संगठित होगी .” हरिजन (</span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;"> 10<span lang="HI"> नवंबर 1</span>946<span lang="HI">) के लेख में लिखते हैं कि “ गाँव वालों को अपने कौशल का इतना अधिक विकास कर लेना चाहिए जिससे उनके द्वारा बनाए हुए सामान के लिए बाज़ार बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाय .जब हमारे गाँवों का पूरा विकास हो जाएगा तो वहां उच्च कौशल की योग्यता और कला के जानकारों की कमी नहीं रहेगी . गाँव में कवि होंगे ,कलाकार होंगे ,ग्रामीण वास्तुविद ,भाषावैज्ञानिक और शोधकार्य करने वाले लोग होंगे . संक्षेप में कहा जाय तो गाँव में ऐसी किसी भी चीज़ की कमी नहीं होगी जिसकी ज़रूरत पड़ सकती है . आज ( १९४६ में ) तो गाँव गोबर के भीट जैसे हैं लेकिन कल वहां स्वर्ग जैसे बगीचे होंगे . वहां रहने वाले लोग ऐसे होंगे जिनका कोई भी शोषण नहीं कर सकेगा और उनको कोई धोखा नहीं दे सकेगा .इस तरह के गाँवों के पुनर्निर्माण का काम तुरंत ( नवंबर 1946 ) शुरू हो जाना जाहिए . गाँवों के पुनर्निर्माण का काम स्थाई तौर पर किया जाना चाहिए .कला ,स्वास्थ्य ,शिल्प और शिक्षा को एक ही स्कीम में मिला देना चाहिए . नई तालीम इन चारों को समेकित करने का अच्छा माध्यम है और यह इन सभी बातों को साथ लेकर चलती है . इसीलिये मैं ग्रामीण विकास को संचाबद्ध तरीके से न करके सभी चारों पक्षों को साथ लेकर चलना चाहूँगा . अगर गाँवों के पुनर्निर्माण के काम में स्वच्छता को न शामिल किया गया तो हमारे गाँव वैसे ही गंदे रहेंगे जैसे कि आज हैं . ग्रामीण स्वच्छता को विकास की ज़रूरी अंग के रूप में लेना पडेगा क्योंकि अगर एस अन किया गया तो गाँव रहने लायक नहीं रह जायेंगे . सदियों से चली आ रही गंदगी की प्रवृत्ति से ग्रामीण जीवन को मुक्ति दिलाना बहुत बड़ा काम है . ग्रामीण विकास के काम में लगे हुए लोगों को ग्रामीण स्वच्छता के विज्ञान की जानकारी होनी ज़रूरी है .अगर उनके पास यह जानकारी नहीं है तो उनको ग्राम विकास के काम में नहीं लगाया जाना चाहिए .</span></span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 29.3333px; margin: 0in 0in 7.5pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;">नई तालीम और बुनियादी शिक्षा को लागू किये बिना करोड़ों बच्चों को शिक्षा दे पाना असंभव होगा इसलिए ग्रामीण विकास के काम में लगाये जाने वाले कर्मचारियों को इस विधा में दक्ष होना पडेगा और उसको बुनियादी शिक्षा का शिक्षक बनना पड़ेगा. </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;">.<span lang="HI">बुनियादी शिक्षा से ही प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत हो जायेगी .बच्चे खुद ही अपने मातापिता को पढ़ाने लगेंगे .औरत को पुरुष की अर्धांगिनी कहा जाता है. इसलिए जब तक औरत को भी वही अधिकार नहीं मिलते जो पुरुषों को हैं , जब तक लड़की पैदा होने पर वैसी ही खुशी नहीं मनाई जाती जैसी लड़के के जन्म के समय मनाई जाती है तब तक हमको मालूम होना चाहिए भारत को आंशिक रूप से लकवा मार गया है. औरत को पीड़ा देना अहिंसा का विरोध करना है इसलिए ग्रामीण विकास में लगा हर कार्यकर्ता हर औरत को अपनी माँ, बहन या बेटी की तरह ही सम्मान देगा .इस तरह का कर्मचारी ग्रामीण लोगों के सम्मान का हक़दार होगा. .</span><br />.<br /><span lang="HI">अस्वस्थ लोगों के लिए स्वराज हासिल कर पाना असंभव है. इसलिए हमें अपने लोगों के स्वास्थ्य को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए . ग्रामीण कर्मचारियों को स्वास्थ्य की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए .</span>.<br /><br /></span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 29.3333px; margin: 0in 0in 7.5pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;">एक ऐसी भाषा जो सब के लिए सामान्य हो , बहुत ज़रूरी है . ऐसी सामान्य भाषा के बिना कोई राष्ट्र अस्तित्व में नहीं आ सकता . हिंदी ,हिन्दुस्तानी और उर्दू के विवाद में पड़े बिना ग्रामीण कर्मचारी को राष्ट्रभाषा की जानकारी लेनी चाहिए . राष्ट्रभाषा ऐसी हो जिसको हिन्दू-मुस्लिम सभी समझ सकते हों .अंग्रेज़ी के प्रति हमारे प्रेम ने हमको क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति बेवफा कर दिया है . ग्रामीण स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी को चाहिए कि वह गाँव वालों को उनकी अपनी भाषा पर गर्व करने और अन्य राज्यों को भाषाओं का सम्मान करने की भावना के लिए प्रेरित कर सके . अन्य क्षेत्रों की भाषाओं को सीखने के लिए उत्साहित भी किया जाना चाहिए .</span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 29.3333px; margin: 0in 0in 7.5pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;">यह सारा कार्यक्रम बालू पर बनी दीवाल जैसा होगा अगर यह आर्थिक समानता की मज़बूत बुनियाद पर नहीं बनाया जाएगा . आर्थिक समानता का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि सबके पास एक जैसी ही वस्तुएं हों . हमारी दृष्टि में आर्थिक समानता का मतलब यह है कि सबके पास रहने के लिए एक उचित मकान हो, संतुलित और पर्याप्त भोजन हो ,ज़रूरत भर को खादी के कपडे हों . अगर ऐसा हुआ तो आज की जो निर्दय गैरबराबरी है उसको अहिंसक तरीके से ख़त्म किया जा सकेगा . “</span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;"></span></p><p class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Calibri, sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 29.3333px; margin: 0in 0in 7.5pt; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: black; font-family: "Nirmala UI", sans-serif; font-size: 14pt; line-height: 37.3333px;">ग्रामीण भारत की जो कल्पना महात्मा गांधी ने की थी उसको यदि हासिल कर लिया गया होता तो आज देश की हालत बहुत ही अच्छी होती </span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-78101347384833597522021-01-29T17:24:00.003-08:002021-01-29T17:24:22.309-08:00वैष्णव जन तो तेने रे कहिए जे पीड़ पराई जाणे रे।’ ‘पर दु:खे उपकार करे तोये, मन अभिमान ना आणे रे "<p> </p><p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><br /></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण सिंह </span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">गुजरात के संत कवि नरसी मेहता का लगभग वही समय है जब गंगा सारजू के
बीच संत तुलसीदास विचरण कर रहे थे .नरसी मेहता का भजन</span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">," <span lang="HI">वैष्णव जन तो तेने रे
कहिए " महात्मा गांधी को बहुत प्रिय था। यह भजन गांधी जी की दैनिक प्रार्थना
का अंग बन गया था। </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">मेरा विश्वास है कि अगर कोई भी व्यक्ति इस भजन में बताये गए किसी
भी पद्यांश को अपने जीवन में उतारने की कोशिश कर ले तो उसका जीवन सफल हो जाएगा और
उसको मन की शान्ति मिलेगी . कोई भी एक पद उठा लीजिये और उसको जीवन में उतार दीजिये
या कोशिश ही करिए तो जीवन बहुत ही अच्छा अनुभव देगा . मैंने एक छात्र के रूप में
अपने दर्शन शास्त्र के प्राध्यापक </span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">, <span lang="HI">डॉ अरुण कुमार सिंह को इस भजन के पहले छंद का
अभ्यास करते देखा है . बाद में मैंने भी कोशिश शुरू की और आज भरोसे के साथ कह सकता
हूँ कि उस कोशिश के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कारण ही जीवन के प्रति
एक निश्चित दिशा इस भजन से मिली है . नरसी मेहता जब कहते हैं कि </span>,<o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">" <span lang="HI">वैष्णव जन तो तेने रे कहिए जे पीड़ पराई जाणे
रे।</span>’ <o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">‘<span lang="HI">पर दु:खे उपकार करे तोये</span>, <span lang="HI">मन
अभिमान ना आणे रे "</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><br style="mso-special-character: line-break;" />
<!--[if !supportLineBreakNewLine]--><br style="mso-special-character: line-break;" />
<!--[endif]--><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">तो वे मानवीयता का एक बहुत बड़ा सन्देश दे रहे होते हैं . वैष्णव जन
को आम तौर पर भले आदमी के रूप में माना जा सकता है . जब वे कहते हैं कि वैष्णव जन तो
वही है जो दूसरों की तकलीफ को जानता हो वह तो आधी ही बात होती है . पूरी और असली
बात दूसरे वाक्य में है और वह यह है कि दूसरे के दुःख में उपकार करे लेकिन अपने मन
में भी अभिमान न आने दे .यानी किसी दुखी व्यक्ति के प्रति उपकार करने के बाद अपने
मन में भी यह भावना न आने दे कि मैंने किसी का उपकार किया . अगर यह भावना आ गयी तो
नरसी मेहता के अनुसार आप वैष्णव जन नहीं हैं और गांधी जी के अनुसार आप भले आदमी
नहीं हैं . </span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">देखा यह गया है कि बहुत सारे लोग दुखी लोगों का उपकार करते हैं </span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">, <span lang="HI">उसको पैसे देते हैं </span>, <span lang="HI">वस्त्र भोजन आदि देते हैं . किसी की परेशानी में मदद करते हैं </span>,<span lang="HI">उसके इलाज के लिए सहायता करते हैं यानी उसके दुःख में उपकार करते हैं
लेकिन उसका प्रचार करने लगते हैं . या तो बकरी की तरह मैं मैं मैं करने लगते हैं ,जो
भी उनका प्रलाप सुनने को तैयार हो उसको बताते रहते हैं या एक दर्जन केला देते हुए
फोटो खिंचवाते हैं</span>, <span lang="HI">या सबसे सस्ता कम्बल खरीद करकर ठण्ड के मौसम
में वितरित करते हुए फोटो अखबार में छपवाते हैं और आत्मप्रचार में लग जाते हैं .
यह भलमनसी नहीं है</span> ,<span lang="HI">महात्मा गांधी या नरसी मेहता के पैमाने
वे लोग न तो वैष्णव हैं और नहीं भले आदमी हैं क्योंकि उनके यहाँ तो किसी और को
बताने की बात तो दूर अपने मन में भी अभिमान नहीं आने देना है .अगर अपने मन में भी
अभिमान आ गया तो फिर आप वैष्णव जन नहीं रहे . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">इस साधना का अभ्यास बहुत ही कठिन काम है . आपको ज्यादातर लोग ऐसे
मिल जायेंगें जो लोगों की मदद करते हैं ,जिसकी मदद करते हैं उसकी ज़िंदगी में
निश्चत बदलाव आता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है लेकिन हर आम-ओ-ख़ास को
बताते रहते हैं कि उन्होंने खुद अपने दस्ते-पाक से फलाने की मदद की है . ऐसा करते
ही वे महात्मा जी की कसौटी पर खरे उतरने में नाकाम रह जाते हैं .</span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span lang="HI" style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">नरसी मेहता की इसी बात को उर्दू के शायर मुबारक सिद्दीकी ने भी
कहने की कोशिश की है .जब वे कहते हैं कि ,</span><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p style="line-height: 200%; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="border: none windowtext 1.0pt; color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;">“ किसी </span><span data-m="\1xds" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">की </span><span data-m="\1jsy" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">रह </span><span data-m="\1nr7" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">से </span><span data-m="\1z1f" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">ख़ुदा </span><span data-m="\1xds" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">की </span><span data-m="\1sev" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">ख़ातिर </span><span data-m="\0gfl" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">उठा </span><span data-m="\12od" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">के </span><span data-m="\2tjw" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">काँटे, </span><span data-m="\1rix" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">हटा </span><span data-m="\12od" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">के </span><span data-m="\0rz5" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">पत्थर </span><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%;"><o:p></o:p></span></p>
<p data-l="10" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; box-sizing: border-box; font-stretch: inherit; font-variant-caps: normal; font-variant-east-asian: inherit; font-variant-ligatures: normal; font-variant-numeric: inherit; line-height: 200%; orphans: 2; text-align: justify; text-decoration-color: initial; text-decoration-style: initial; text-decoration-thickness: initial; vertical-align: baseline; widows: 2; word-spacing: 0px;"><span data-m="\0kme" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;"><span lang="HI" style="border: none windowtext 1.0pt; color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;">फिर </span><span data-m="\0u4s" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">उस </span><span data-m="\12od" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">के </span><span data-m="\1axp" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">आगे, </span><span data-m="\2kpb" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">निगाह </span><span data-m="\0l87" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">अपनी </span><span data-m="\0vxq" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">झुका </span><span data-m="\12od" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">के </span><span data-m="\18jh" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">रखना </span><span data-m="\08ym" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">,कमाल </span><span data-m="\2p25" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">ये </span><span data-m="\0ucw" style="border-radius: 3px; box-sizing: border-box; cursor: pointer; display: inline-block; font-stretch: inherit; font-style: inherit; font-variant: inherit; font-weight: inherit;">है </span>.” </span><span style="border: none windowtext 1.0pt; color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="line-height: 200%; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="border: none windowtext 1.0pt; color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;">तो वे भी लगभग वही बात कह रहे होते<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>हैं जो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संत तुलसीदास के समकालीन
संत नरसी मेहता ने कही थी .महात्मा गांधी के प्रिय भजन की हर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पंक्ति में जीवन को पुरसुकून बनाने के मन्त्र
देखे जा सकते हैं .</span><span style="border: none windowtext 1.0pt; color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;"><o:p></o:p></span></p>
<p style="line-height: 200%; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><span style="color: black; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 200%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in; text-align: justify;"><span style="color: #050505; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-62552118036283281072021-01-27T22:06:00.002-08:002021-01-27T22:06:27.621-08:00अपनी हर बात मनवा लेने की जिद और लाल किले पर हिंसा ने किसान आन्दोलन को बैकफुट पर ला दिया <p> </p><p class="MsoNormal"><br /></p>
<p class="MsoNormal"><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">शेष नारायण सिंह </span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">नई कृषि नीति लागू करने के लिए बनाए गए
केंद्र सरकार के तीन कानूनों के खिलाफ देश के<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>किसानों का एक वर्ग दो महीने से अधिक समय से उन कानूनों की वापसी के लिए
आन्दोलन कर रहा है . अब तक यह आन्दोलन गांधी जी के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सत्याग्रह के हिसाब से चल रहा था . किसान दिल्ली
की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सीमाओं पर धरने पर बैठे हुए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>थे लेकिन अब आन्दोलन के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ऊपर हिंसा के आरोप लग<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रहे हैं . 26 जनवरी के दिन दिल्ली की सीमा में
घुसकर ट्रैक्टर परेड निकालने का उनका फैसला उल्टा पड़ गया है . किसानों के एक वर्ग
के नेता पन्नू ने जिद पकड़<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रखी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>थी वे ट्रैक्टर<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>परेड लेकर दिल्ली की रिंग रोड पर ज़रूर जायेंगे . उनकी राग अलग थी . बहुत
सारे किसान संगठनों ने मिलकर एक<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मोर्चा
बना रखा था ,उसी मोर्चे के नेताओं ने मिलकर सरकार से दस से अधिक दौर की बातचीत की
. उसका नाम संयुक्त किसान मोर्चा नाम दिया गया था . संयुक्त किसान मोर्चा ने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिल्ली पुलिस के साथ बातचीत करके तय किया था कि
दिल्ली की तीन सीमाओं से तीन परेड निकलेगी और तयशुदा मार्ग से होती हुयी अपने
स्थान पर वापस आ जायेगी .संयुक्त किसान मोर्चा से अलाग एक संघर्ष मोर्चा बना था
जिसके नेता कोई पन्नू जी हैं उनका संगठन रिंग रोड पर जाने के लिए आमादा था .वे
रिंग रोड पर गए और आगे बढ़त हुए लाल किले तक पंहुच गए . उनके लोगों ने वहां तोड़फोड़
की और लाल किले पर सिख धर्म का झंडा और<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>किसान यूनियन का झंडा फहरा दिया . सुरक्षा के काम में लगे पुलिस वालों से
मारपीट भी की और बाद में उनके एक नेता ने अपने कृत्य को सही भी ठहराया .लाल किले
पर जो तोड़फोड़ हुई उसके पीछे पंजाबी फिल्मों के एक अभिनेता , दीप<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सिद्धू और एक गैंग्स्टर लाखा सिधाना का नाम आ
रहा है . सिधाना पर अपराध के कई मुक़दमे भी चल चुके हैं और सिद्धू के बारे में
बताया जा रहा है कि वह बीजेपी सांसद सनी देयोल का ख़ास आदमी है .आन्दोलन से
सहानुभूति रखने वाले बता रहे हैं कि किसान आन्दोलन को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तोड़ने में दीप सिद्धू की वही भूमिका है जो सी ए
ए के धरने को तोड़ने में कपिल मिश्रा की थी . आरोप लग रहे हैं कि दीप सिद्धू ने
बीजेपी के इशारे पर आन्दोलन को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कमज़ोर करने
के लिए यह सब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कारस्तानी की है . उसके काम
से किसानों के आन्दोलन का भारी नुक्सान हुआ है . किसान आन्दोलन के नेताओं का कहना
है कि आन्दोलन को कमज़ोर करने के लिए ही सरकार ने दीप सिद्धू को आगे करके तोड़फोड़
करवाई है . कांग्रेस और सी पी एम ने तो साफ़ तौर पर आरोप लगा दिया है कि यह सारा
काम सरकार का ही है . किसान आन्दोलन के लगभग सभी बड़े नेताओं के खिलाफ दिल्ली पुलिस
ने एफ़ आई आर दर्ज कर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लिया है यानी सरकार
ने बता दिया है कि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उनके साथ किसी तरह की सहानुभूति नहीं बरती
जायेगी . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">लाल किले पर हुए तोड़फोड़ के बाद किसान
आन्दोलन को बड़ा झटका लगा है . दरअसल गांधी जी के सत्याग्रह वाले वाले फार्मूले के
हिसाब से आंदोलन चाल्ने में शान्ति का बहुत बहुत बड़ा योगदान है . उसमें किसी तरह
की हिंसा के लिए जगह नहीं है .अगर आन्दोलन<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>गलती से भी हिंसक हो गया तो सरकार उसको कुचलने में समय नहीं लगाती .
इसीलिये जब महात्मा गांधी का 1920 वाला आन्दोलन हिंसक हो गया , कुछ लोगों ने गोरखपुर
जिले के चौरी चौरा में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हिंसा कर दी,
ब्रिटिश सत्ता के प्रतिनिधि पुलिस थाने में आग<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>लगा दी तो महात्मा गांधी ने आन्दोलन को वापस ले लिया . कांग्रेस पार्टी के
सभी बड़े नेता आग्रह करते रहे लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अगस्त 1920 <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को शुरू हुआ आन्दोलन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>फरवरी 1922 मने वापस ले लिया गया . उनका तर्क
था कि अहिंसा और सत्य के प्रति आस्था ही उनका सबसे बड़ा हथियार है. उसके न होने पर तो
सत्ता का मुकाबला कैसे होगा. इसलिए दुनिया भर में जहां भी महात्मा गांधी की
सत्याग्रह की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राजनीति पर आधारित आन्दोलन
हुए हैं उनमें<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हिंसा का कोई स्थान नहीं रहा
है . अमरीका में वर्षों से अश्वेतों के अधिकार की लड़ाई चल रही थी लेकिन उसमें
हिंसा और मारकाट स्थाई भाव था . कोई सफलता नहीं मिल रही थी लेकिन महात्मा गांधी की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अहिंसा और सत्याग्रह के आधार पर जब बसों में काले
और सफ़ेद लोगों का भेद मिटाने के लिए , रेस्तराओं में काले और गोरों के अलग लंच
काउंटर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>खतम करने के ,अश्वेतों के वोट देने
के अधिकार के लिए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>या लांग मार्च के
आन्दोलन चलाये गए तो सभी सफल हुए.<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दक्षिण
अफ्रीका में ही<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सत्याग्रह की अवधारणा का
जन्म हुआ था लेकिन वहां अश्वेतों से आज़ादी की लड़ाई हिंसक तरीके से लड़ी जा रही थी
और लगातार असफलता मिल रही थी लेकिन जैसे ही गांधी जी के हथियार का प्रयोग शुरू हुआ
गौरांग महाप्रभुओं के सामने नेल्सन मंडेला की बात मानने के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सिवा कोई और रास्ता नहीं बचा .यानी अगर
सत्याग्रह वाला रास्ता चुना<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है तो हिंसा
के लिए उसमें कोई स्थान नहीं होता .किसान आन्दोलन के नेता लोग यह कह रहे हैं कि दस
प्रतिशत लोग ही<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हिंसा के रास्ते पर गए थे
बाकी लोग अभी भी शान्ति के साथ साथ आन्दोलन में लगे रहेंगे लेकिन यह बात चलती नहीं
है . आन्दोलन से जुड़े लोगों की हिंसा कोई<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>वैदिकी हिंसा नहीं है ,वह अपराध है . दिल्ली के किसान आन्दोलन में
दरार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पड़ना शुरू हो गयी है .भारतीय किसान
यूनियन ( भानु गुट ) ने अपना डेरा डंडा उखाड़ दिया है . तराई के किसानों के नेता वी
एम सिंह ने भी आन्दोलन को खतम कर दिया है . जयपुर जाने वाला राजमार्ग हरियाणा सरकार
ने खाली करवा लिया है यानी आन्दोलन अब बहुत कमज़ोर पड़ गया है .लगता है कि केंद्र
सरकार ने भी अब <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मन बना लिया है कि बहुत
हुआ .अब आन्दोलन को खतम ही किया जाना चाहिए . किसान नेता भी अब बैकफुट पर हैं .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">इस बात में दो राय नहीं है <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>खेती के आधुनिकीकरण के लिए नीति के स्तर पर सरकारी
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हस्तक्षेप की ज़रूरत थी . आज़ादी के बाद पहली
बार इसकी आवश्यकता महसूस की गयी थी . जवाहरलाल नेहरू ने 1957 में नागपुर कांग्रेस
में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सहकारिता आधारित सामुदायिक खेती की
बात<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की थी. लेकिन चौधरी चरण सिंह की
अगुवाई में बड़े किसानों के न्यस्त स्वार्थ वालों ने उसका ज़बरदस्त विरोध किया
और<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बात वहीं खतम हो गयी थी . उसके बाद
नेहरू ने कृषि मंत्रालय के ज़रिये 1959 में एक बहस की शुरुआत करवाई और<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हरित क्रान्ति की अवधारणा की शुरुआत<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हुयी . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में
खेती में सुधार लाने की दिशा में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>काम शुरू
हुआ. चकबंदी की गयी और किसानों को अपनी सारी ज़मीन एक जगह पर इकठ्ठा करने का मौक़ा
दिया गया . उसके बाद शास्त्री जी के कार्यकाल में उनके कृषिमंत्री सी सुब्रमण्यम की
अगुवाई में किसानों को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रति बीघा उपज को
दुगुना करने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का लक्ष्य रखा गया . यह काम
1965 में शुरू हुआ .उसके पहले लगातार तीन साल के सूखे के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कारण देश में खाद्यान्न की भारी किल्लत हो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गयी थी.
शास्त्री जी ने लोगों से आग्रह किया था कि लोग सप्ताह में एक दिन भूखे रहें
,बाकायदा व्रत रखें. उस माहौल में सी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सुब्रमण्यम की किताब ए न्यू स्ट्रेटेजी फॉर
एग्रीकल्चर प्रकाशित हुई . सी सुब्रमण्यम ने <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>डॉ स्वामीनाथन को आगे किया , एल के झा लाल
बहादुर शास्त्री के प्रमुख सचिव थे , वे भी शामिल हुए और सबने कोशिश करके मेक्सिको
की कृषि क्रान्ति के जनयिता , डॉ नार्मन बोरलाग को आमंत्रित किया . उन्होंने जल्दी
पैदा होने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वाली प्रजातियों के बीज का
इंतजाम किया , रासायनिक खाद और सही समय पर सिंचाई के ज़रिये उत्पादन बढ़ने की रणनीति
बनाई . कोई किसान तैयार ही नहीं हो रहा था . पंजाब कृषि विश्ववद्यालय लुधियाना के सहयोग
से बड़ी मुश्किल से पंजाब के कुछ किसानों को तैयार किया गया और जब फसल पैदा हुई तो
पूरे देश में किसानों में उत्सुकता हुयी और देश अनाज के बारे में आत्मनिर्भर हो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गया . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">जब डॉ मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के रूप
में देश की अर्थव्यवस्था को पूंजीवादी रास्ते पर डाला तब से ही बात चल रही थी कि
खेती के औद्योगीकरण<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के लिए भी केंद्र
सरकार को नीतिगत हस्तक्षेप<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>करना चाहिए .
कई पीढ़ियों के बाद भाइयों में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बंटवारे के
चलते<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किसानों की ज़मीन के रक़बा बहुत ही
छोटा हो चुका है , खेती से परिवार का गुज़र नहीं हो रहा है . ज़रूरत इस बात की है कि
किसानी के काम में लगे लोगों को और अधिक अवसर दिए जाएँ . इसलिए एक नई कृषि नीति की
ज़रूरत थी . वर्तमान सरकार वह नीति लेकर आई . उस नीति में कुछ ऐसी खामियां हैं
जिनके परिणाम अच्छे नहीं होंगे .इसलिए उमें सुधार <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किये जाने की ज़रूरत है . किसानों ने उन खामियों
का बार बार उल्लेख किया लेकिन उनको ठीक करवाने के बजाय<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तीनों कानूनों को खारिज करने की जिद पर अड़ गए .
यह गलत था . सरकार की तरफ से जब एक एक क्लाज़ पर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बात करने का प्रस्ताव आया तो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किसानों को उसे लपक लेना चाहिए था लेकिन वे तो जिद
पर थे . कोई भी सरकार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अपनी सोची समझी नीति
को वापस नहीं लेती , उसमें संशोधन की बात की जा सकती थी .लेकिन किसान संगठनों को
मुगालता था . अब आन्दोलन हिंसक हो गया है तो उनको सम्मानजनक तरीके आन्दोलन वापस
लेने के अवसर भी बहुत कम रह गए हैं . हिंसा के बाद सरकार के हाथ में कानून
व्यवस्था का<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हथियार आ गया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है. किसान संगठनों ने कहा है कि आन्दोलन जारी
रहेगा . अब उनको चाहिए कि बातचीत में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश करें नहीं तो
सरकार नए कृषि कानूनों को ज्यों का त्यों लागू करेगी और किसान नेताओं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को किसानों की नज़र में नीचा दिखना पडेगा . आन्दोलन
हिंसक वारदात के बाद कमज़ोर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पड़ गया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है लेकिन सरकार को भी चाहिए कि जो सही सुझाव देश
भर के किसानों और खेती के जानकारों से आये हैं उनको सही तरीके से कानूनों में शामिल
करके बात को आगे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बढ़ाएं .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-23684332562454278632021-01-13T17:40:00.003-08:002021-01-13T17:40:29.942-08:00आज ( 14 जनवरी ) आर एन द्विवेदी की पुण्यतिथि है<p> </p><p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 24.0pt; line-height: 115%;">लोकतंत्र को पत्रकारिता की ज़रूरत है </span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 24.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">शेष नारायण सिंह </span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">अमरीकी इतिहास में डोनाल्ड ट्रंप पहले ऐसे
राष्ट्रपति होने का अपमान हासिल करने में कामयाब हो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गए हैं जिन पर दो बार महाभियोग चलाया गया . बुधवार
को जब प्रतिनिधि सभा ने उनपर महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया तो उनकी रिपब्लिकन
पार्टी के भी दस सदस्यों ने भी उनके खिलाफ वोट दिया . उसके तुरंत बाद उन्होंने एक
वीडियो जारी करके अपना बचाव करने की कोशिश की लेकिन अमरीकी मीडिया ने उनके बयान
में दिए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गए एक एक झूठ का नीर क्षीर विवेचन
कर दिया . छः जनवरी को ही उन्होंने अपने समर्थकों को उकसाकर अमरीकी संसद भवन,
कैपिटल , पर हमला करने के लिए भेज दिया था. <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>महाभियोग के बाद जारी बयान में उन्होंने अपने आपको
पीड़ित साबित करने की कोशिश की . पिछले एक हफ्ते<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>में लोकतंत्र के खिलाफ जितना काम अमरीका के निवर्तमान राष्ट्रपति ट्रंप ने
किया है<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उसकी एक एक बात की जानकारी पूरी
दुनिया को मिल चुकी है . ऐसा संभव इसलिए हुआ कि अमरीकी संविधान में पहले संशोधन के
बाद से ही यह व्यवस्था है कि अमरीका में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अभिव्यक्ति की पूरी आज़ादी होगी और अमरीकी मीडिया
इस प्रावधान का पूरा लाभ उठाता है और अमरीकी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>लोकतंत्र के निगहबान के रूप में मौजूद रहता है . अमरीकी मीडिया में सत्य के
प्रति प्रतिबद्धता हर मुकाम पर देखी जा सकती है .नतीजा यह<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है कि ट्रंप के बावजूद अमरीकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राष्ट्र जितना सुरक्षित था ,आज भी उतना ही
सुरक्षित है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>छः जनवरी के पहले और बाद
में अमरीकी पत्रकारिता ने जो बुलंदियां स्थापित की हैं उनपर दुनिया के हर निष्पक्ष
पत्रकार को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गर्व होना<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चाहिए .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">इस बात में दो राय<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नहीं हो सकती कि लोकतंत्र के लिए पत्रकारिता एक
जीवनदायिनी शक्ति है . जिन देशों में भी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>लोकतंत्रीय व्यवस्था कायम है वहां की पत्रकारिता काफी हद तक उस व्यवस्था को
जारी रखने के लिए ज़िम्मेदार है . अपने यहाँ भी </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">प्रेस की ज़िम्मेदारी भरी आजादी की अवधारणा
संविधान में हुए पहले संसोधन <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से ही आती है
.आज़ादी के बाद</span> <span lang="HI"> हमारे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संस्थापकों ने प्रेस की आज़ादी का प्रावधान </span> <span lang="HI">संविधान में ही कर दिया लेकिन जब उसका ट्रंप की तरह दंगे भड़काने के लिए इस्तेमाल
होने लगा तो संविधान में पहले संशोधन के ज़रिये उसको<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और ज़िम्मेदार बना दिया गया . . संविधान के
अनुच्छेद</span> 19(1)(a) <span lang="HI">में अभिव्यक्ति की स्वत्रंत्रता
की जो व्यवस्था दी गयी है</span>,<span lang="HI">उसपर कुछ पाबंदी लगा दी गयी .और <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>प्रेस की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आज़ादी को निर्बाध ( अब्सोल्युट ) होने से रोक
दिया गया . संविधान के अनुच्छेद</span> 19(2) <span lang="HI">में उसकी
सीमाएं तय कर दी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गयीं . </span> <span lang="HI">संविधान में लिख दिया गया </span> <span lang="HI">कि</span> <span lang="HI">अभिव्यक्ति की आज़ादी के "अधिकार के प्रयोग पर</span> <span lang="HI">भारत की प्रभुता और अखंडता</span>, <span lang="HI">राज्य की सुरक्षा</span>, <span lang="HI">विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों</span>, <span lang="HI">लोक
व्यवस्था</span>, <span lang="HI">शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा
न्यायालय-अवमान</span>, <span lang="HI">मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में
युक्तियुक्त निर्बंधन जहां तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके
प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि
बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी</span>. <span lang="HI">"</span>
<span lang="HI">यह भाषा सरकारी है लेकिन बात समझ में आ जाती है . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">संविधान
के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . अगर सरकार के खिलाफ मीडिया कोई ज़रूरी बात
उजागर करता है तो सरकार का कर्तव्य है कि मीडिया की सुरक्षा करें . हमने देखा है
कि कई बार असुविधाजनक लेख लिखने के कारण सत्ताधारी पार्टियों की शह पर पत्रकारों
की हत्याएं भी होती हैं .असुविधाजनक लेख लिखने के लिए अगर लोगों की हत्या की
जायेगी तो बहुत ही मुश्किल होगी . लोकतंत्र के अस्तित्व पर ही</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">सवालिया
निशान </span> <span lang="HI">लग जाएगा. </span> <span lang="HI">इस
लोकतंत्र को बहुत ही मुश्किल से हासिल किया</span> <span lang="HI">गया है
और उतनी ही मुश्किल से इसको संवारा गया है . स्वतंत्र मीडिया सरारों की रक्षा करता
है ,असत्य आचरण करने वाला चापलूस मीडिया सरकारी पक्ष का ज़्यादा नुक्सान करता है .इसलिए
सरकारों को मीडिया को नियंत्रित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए .तत्कालीन
प्रधानमंत्री <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इंदिरा</span> <span lang="HI">गांधी ने यह गलती 1975 में की थी. इमरजेंसी में सेंसरशिप लगा दिया था .</span> <span lang="HI">सरकार के खिलाफ कोई भी खबर नहीं छप सकती थी. टीवी और रेडियो पूरी तरह से
सरकारी नियंत्रण में थे</span> , <span lang="HI">इंदिरा जी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के पास</span> <span lang="HI">तक </span> <span lang="HI">सूचना पंहुचा सकने वालों में सभी चापलूस होते थे</span>, <span lang="HI">इसलिए उनको</span> <span lang="HI">सही ख़बरों का पता</span> <span lang="HI">ही नहीं लगता था . उनको</span> <span lang="HI">बता दिया गया कि
देश में उनके पक्ष में बहुत भारी माहौल है और वे दुबारा भी बहुत ही आराम से चुनाव
जीत जायेंगीं .</span> <span lang="HI">उन्होंने उसी सूचना के आधार पर </span> <span lang="HI">चुनाव करवा दिया और १९७७ में चुनाव हार गयीं . लेकिन यह हार एक दिन में
नहीं हुई . उसकी तह में जाने पर समझ में आयेगा कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इंदिरा गांधी के भक्त और तत्कालीन कांग्रेस
अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने प्रेस सेंसरशिप के दौरान नारा दिया था कि </span> ' <span lang="HI">इंदिरा इज इण्डिया</span> ,<span lang="HI">इण्डिया इज </span> <span lang="HI">इंदिरा</span> ,' <span lang="HI">इसी</span> .<span lang="HI">तरह से जर्मनी के तानाशाह हिटलर के तानाशाह बनने के पहले उसके एक चापलूस
रूडोल्फ हेस ने नारा दिया था कि </span> ,' <span lang="HI">जर्मनी इस
हिटलर</span> , <span lang="HI">हिटलर इज जर्मनी</span> '.
<span lang="HI">रूडोल्फ हेस नाजी पार्टी में बड़े पद पर था .मौजूदा
शासकों को इस तरह की प्रवृत्तियों से बच कर रहना चाहिए</span> <span lang="HI">क्योंकि मीडिया का चरित्र बहुत ही अजीब होता</span> <span lang="HI">है . इमरजेंसी के दौरान पत्रकारों का एक वर्ग किसी को भी आर एस एस का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सदस्य</span> <span lang="HI">बताकर
गिरफ्तार करवाने की फ़िराक में रहता था . जैसे आजकल किसी को अर्बन नक्सल पह
देने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का फैशन हो गया है .उस दौर में भी
बहुत सारे पत्रकारों ने आर्थिक लाभ के लिए सत्ता की चापलूसी में चारण शैली में
पत्रकारिता की . गौर करने की बात यह है कि इंदिरा गांधी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जवाहरलाल नेहरू की बेटी थीं जिन्होंने अपने
खिलाफ लिखने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वालों को खूब उत्साहित किया
था . एक बार उन्होंने कहा था कि मुझे पीत पत्रकारिता से नफरत<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है लेकिन मैं किसी पत्रकार के पीत पत्रकारिता
करने के अधिकार की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करूंगा . नेहरू ने पत्रकारिता और
लोकशाही को जिन बुलंदियों तक पंहुचाया था ,सत्तर के दशक में उन मूल्यों में बहुत
अधिक क्षरण हो गया था . पत्रकारिता में क्षरण का ख़तरा आज भी बना हुआ है . चारण
पत्रकारिता</span> <span lang="HI">सत्ताधारी पार्टियों</span> <span lang="HI">की सबसे</span> <span lang="HI">बड़ी दुश्मन है क्योंकि वह सत्य
पर पर्दा डालती है और सरकारें गलत फैसला लेती हैं . ऐसे माहौल में सरकार की
ज़िम्मेदारी बनती है कि वह मीडिया को निष्पक्ष और निडर बनाए रखने में योगदान करे </span> <span lang="HI">. चापलूस पत्रकारों से पिंड छुडाये . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>एक आफ द रिकार्ड बातचीत में बीजेपी के मीडिया से
जुड़े एक नेता ने बताया कि जो पत्रकार टीवी पर हमारे पक्ष में नारे लगाते रहते है</span> , <span lang="HI">वे हमारी पार्टी का बहुत नुक्सान करते हैं . भारतीय जनता पार्टी के बड़े
नेताओं में इस तरह की सोच एक </span> <span lang="HI">अच्छा संकेत है .</span> <span lang="HI">सरकार को चाहिए कि पत्रकारों के सवाल पूछने के</span> <span lang="HI">अधिकार और आज़ादी को सुनिश्चित करे . साथ ही संविधान के अनुच्छेद १९(२) की
सीमा में</span> <span lang="HI">रहते हुए कुछ भी लिखने की</span> <span lang="HI">आज़ादी और अधिकार को सरकारी तौर पर गारंटी की श्रेणी में ला दे . इससे
निष्पक्ष पत्रकारिता का बहुत लाभ होगा. </span> <span lang="HI">ऐसी कोई
व्यवस्था कर दी जाए जो सरकार की चापलूसी करने को </span> <span lang="HI">पत्रकारीय</span> <span lang="HI">कर्तव्य पर कलंक माने और इस तरह का काम करें वालों को हतोत्साहित करे.</span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">आज
( 14 जनवरी ) ऐसे ही एक पत्रकार की पुण्यतिथि है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उस वक़्त की सबसे आदरणीय समाचार एजेंसी , यू एन
आई के लखनऊ ब्यूरो चीफ , आर एन द्विवेदी का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>1999 में इंतकाल हो गया था . करीब चौथाई शताब्दी
तक उन्होंने लखनऊ की राजनीतिक घटनाओं को बहुत करीब से देखा था . उन <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिनों चौबीस घंटे टीवी पर ख़बरें नहीं आती <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>थी. इसलिए हर सत्ताधीश एजेंसी के ब्यूरो चीफ के
करीब होने की कोशिश करता था . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उस दौर में
बहुत सारे पत्रकारों ने सत्ताधारी पार्टी की जयजयकार करके बहुत सारी संपत्ति भी
बनाई लेकिन लखनऊ में विराजने वाले इस फ़कीर ने केवल सम्मान <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अर्जित किया . पक्ष विपक्ष की सभी ख़बरों को जस
की तस ,कबीर साहेब की शैली में प्रस्तुत करते रहे और जब इस दुनिया से विदा हुए तो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अपने पेशे के प्रति ईमानदारी का परचम<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लहराकर गए . उन्हीं की बुलंदी के एक पत्रकार
ललित सुरजन को पिछले महीने हमने खोया है . यह लोग सत्तर के दशक की पत्रकारिता
के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गवाह <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं. मैं मानता हूँ कि भारत के राजनीतिक इतिहास
में जितना महत्व 1920 से<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>1947 का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है , उतना ही महत्व 1970 से <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>2000 तक कभी है . जितना परिवर्तन उस दौर में
हुआ उसने आने वाले दशकों या शताब्दियों की दिशा तय की. आज़ादी की लड़ाई के शुरुआती
दिनों से ही उत्तर प्रदेश की राजनीतिक .घटनाएं इतिहास को प्रभावित करती रही हैं . इन
तीस <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वर्षों में भी उत्तर प्रदेश में जो भी
हुआ उसका असर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पूरे देश की राजनीति पर पड़ा.
कांग्रेस का <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विघटन, इमरजेंसी का लगना ,
वंशवादी राजनीति की स्थापना , जनता पार्टी का गठन और उसका विघटन <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>, भारतीय जनता पार्टी की स्थापना , बाबरी मस्जिद
के खिलाफ आन्दोलन , उसका विध्वंस , दलित राजनीति का उत्थान, <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>समाजवादी सोच के साथ राजनीति<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में भर्ती हुए लोगों के लालच की घटनाएँ ,
केंद्र में गठबंधन सरकार की स्थापना , मंडल कमीशन लागू होना , केंद्र में बीजेपी
की अगुवाई<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में सरकार की स्थापना अदि ऐसे
विषय हैं जिन्होंने देश के भावी इतिहास की दिशा तय की है . इन राजनीतिक गतिविधियों
में इंदिरा गांधी , संजय<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गांधी, राजीव
गांधी ,चौ चरण सिंह, चंद्रशेखर, नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी ,अशोक सिंघल,विश्वनाथ
प्रताप सिंह , मुलायम सिंह यादव , कल्याण सिंह , कांशीराम ,मायावती और राजनाथ सिंह
की भूमिका से कोई भी इनकार नहीं कर सकता . इन सबको बहुत करीब से<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>देखते और रिपोर्ट करते हुए आर एन द्विवेदी ने
देश और दुनिया को बाखबर रखा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और पत्रकारिता
का सर्वोच्च मानदंडों को <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जीवित रखा .इसलिए
उनको जानने वाले उनकी तरह की पत्रकारिता को बहुत ही अधिक महत्व देते हैं . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">हम
जानते हैं कि देश के लोकतंत्र की रक्षा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में राजनीतिक पार्टियों , विधायिका ,
न्यायपालिका, कार्यपालिका का मुकाम बहुत ऊंचा है लेकिन पत्रकारिता का स्थान
भी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लोकतंत्र के पक्षकारों को बाखबर रखने
में बहुत ज्यादा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . इसलिए लोकतंत्र को
हमेशा ही निष्पक्ष पत्रकारिता की ज़रूरत बनी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रहेगी . </span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-11870369395013871912021-01-06T23:38:00.003-08:002021-01-06T23:38:26.943-08:00 अमरीका की संसद पर गुंडों से हमला करवाकर डोनाल्ड ट्रंप ने लोकतंत्र की अवधारणा का भारी नुक्सान किया है<p><br /></p>
<p class="MsoNormal"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%;">शेष नारायण सिंह</span></b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%;">
</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने लगातार
लोकतन्त्र को शर्मशार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किया है . दुनिया के
सबसे मज़बूत लोकतंत्र को उनके समर्थकों ने जो नुकसान पंहुचाया है ,आने वाले बहुत
समय तक इतिहास इसको याद रखेगा . अमरीका में छः जनवरी को जो हुआ है उसको अमरीकी लोग
बहुत दिनों तक तकलीफ का पर्याय बताते रहेंगे. डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति पद का
चुनाव हार चुके हैं . लेकिन अपनी हार को वे स्वीकार नहीं कर रहे हैं . अमरीका में
अलग अलग राज्यों में अलग तरह के चुनाव क़ानून हैं . उन्हीं कानूनों के आधार पर अब तक
अमरीकी लोकतंत्र चल रहा है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ट्रंप ने उन
राज्यों के चुनाव कानूनों को चुनौती दी जहां वे चुनाव हार गए हैं . पहले तो अधिकारियों
को ही हड़का कर अपने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पक्ष में फैसला देने
के लिए दबाव बनाया . उनमें से बहुत से अधिकारी उनके अपने लोग थे लेकिन <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सभी ने नियम क़ानून का हवाला देकर उनकी बात मानने
से इनकार कर दिया . उसके बाद कोर्ट में मुक़दमे किये गए. सभी अदालतों ने ट्रंप के
दावों को गलत बताया . उसके बाद उन्होंने अपने साथ चुनाव लड़ने वाले उपराष्ट्रपति
,माइकेल पेंस को धमकाया कि वे उनके <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पक्ष
में फैसला सुना दें लेकिन उन्होंने भी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>बहुत ही साफ शब्दों में मना कर दिया . अमरीका में भी हमारी तरह से ही देश
के उपराष्ट्रपति ऊपरी सदन के पीठासीन अधिकारी होते हैं .<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उसी नियम के तहत माइकेल पेंस अमरीकी सेनेट के पीठासीन
अधिकारी हैं लेकिन उन्होंने कुछ भी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>गैरकानूनी करने से मना कर दिया . कहीं से भी नियमों के अधीन रहकर हेराफेरी
करने में असफल रहने के बाद ट्रंप ने अमरीकी कांग्रेस के दोनों सदनों की संयुक्त
बैठक में मतों के की गिनती की प्रक्रिया को ही नुक्सान पंहुचने की कोशिश शुरू कर
दी . उनके इस काम से अमरीका सहित पूरी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>दुनिया में उनकी थू थू हो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रही है .
अमरीकी सेनेट में उनकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रिपब्लिकन पार्टी
के पचास सदस्य हैं जिनमें से 43 ने उनकी इस<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>कारस्तानी का विरोध किया है . उनकी पत्नी की चीफ आफ स्टाफ ने ट्रंप के
कारनामे से नाराज़ होकर इस्तीफा दे दिया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है
. व्हाइट हाउस के प्रेस सेक्रेटरी ने भी इस्तीफा दे दिया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है. उनका कहना है कि डोनाल्ड ट्रंप के
गैर्ज़िमीदार फैसलों को सही ठहराना उनके लिए असंभव है. हो सकता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है कि अभी और भी इस्तीफे हो जायं .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनावों के लिए पड़े
मतदान की पहले तो गिनती राज्यों की राजधानियों में होती<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . राज्य की तरह से प्रमाणित वोटों की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गिनती अमरीकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में छः
जनवरी को की जाती<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>उसके बाद ही अमरीकी राष्ट्रपति पद के चुनाव की
पुष्टि होती है और 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति की पदस्थापना होती है .अमरीका की
संसद को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कांग्रेस कहते हैं . जब वोटों को सही
ठहराने की प्रक्रिया चल रही थी और कांग्रेस का संयुक्त अधिवेशन चल रहा था ,उसी दौरान
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सदन के अंदर सैकड़ों को गुंडे घुस आये . वे
सभी डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक थे .संयुक्त अधिवेशन में प्रत्येक राज्य की सरकार ने सत्यापित
वोटों को सदन की मंजूरी के लिए रखा जाता है .अगर कोई सेनेटर और कुछ प्रतिनिधि
एतराज करते हैं तो उसपर बाकायदा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बहस
होती<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है और वोट पड़ता<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है. उस वोट के बाद ही राज्य से आये वोटों को
मंजूरी दी जाती है .यही प्रक्रिया चल<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रही
थी जब सैकड़ों की संख्या में लोग सदन में घुस आये . लाठी डंडों से लैस यह लोग
तोड़फोड़ करने लगे. सेनेटर और प्रतिनिधियों को मारने लगे . संसद की सुरक्षा के लिए
तैनात कैपिटल हिल की पुलिस को भी मारा<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>पीटा . राष्ट्रपति ने केंद्रीय सुरक्षा<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>बल<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>को तैनात नहीं किया . ऐसा लगता
है कि वे अपने बदमाशों को खुली छूट देना चाहते थे . उसके बाद उपराष्ट्रपति माइकेल
पेंस ने पड़ोसी राज्य वर्जीनिया से नैशनल गार्ड को बुलाया . सेनेटरों और
प्रतिनिधियों को<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बचाकर सुरक्षित स्थानों
पर ले जाया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गया तब जाकर उनकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जान बची . इस हमले में सदन के अन्दर चार लोगों
की मौत हो गयी . ऐसा अमरीकी सिस्टम में अकल्पनीय है . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">अमरीकी सदन की घटनाओं के बाद डोनाल्ड ट्रंप
अपनी पार्टी में भी अकेले पड़<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं . उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप के जो विभिन्न
बयान आये हैं उससे लगता है कि वे भी अपने<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>पति की हरकतों से नाराज़ हैं . पार्टी में उनकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>निंदा करने वालों की संख्या बढ़ रही है . बात को
समझने <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के लिए सेनेट का उदाहरण ही पर्याप्त
है . जब संयुक्त बैठक में अरिजोना के नतीजों को चुनौती दी गयी तो 15<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सेनेटरों ने <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ट्रंप की बात का समर्थन किया था लेकिन जब संसद
पर हमला हो गया और यह साफ हो गया कि सब ट्रंप ने ही करवाया है तो समर्थकों की
संख्या घटकर छः रह गयी .पेंसिलवानिया के वोट को चुनौती देने पर पूरे सदन में केवल
सात लोग ट्रंप के साथ बचे थे . उनकी पार्टी के ही 43 लोग उनका साथ छोड़ चुके थे .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">अमरीकी राजधानी में इस वक़्त जो माहौल है
उसको देखकर लगता है कि बहुत<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सारे लोग ट्रंप
का साथ छोड़ने वाले हैं . वहां इस बात की चर्चा चल चुकी है कि अमरीकी संविधान के 25
वें संशोधन का इस्तेमाल करके<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दोनों सदनों
में यह प्रस्ताव पास कर दिया जाए कि डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रूप में अब काम करने लायक नहीं हैं.और उनके कार्यकाल
के जो दो हफ्ते बचे हैं उससे भी उनको हटा दिया जाय. जिस तरह से अमरीकी जनमत उनके
खिलाफ हो गया है ,उसके मद्देनज़र इस बात की सम्भावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता
कि उनपर महाभियोग भी चला दिया जायेगा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और
उनको हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से रोक दिया<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>जाय. महाभियोग को चलाने के लिए दोनों सदनों के दो तिहाई सदस्यों के बहुमत
की ज़रूरत होती है . शुरू में तो ट्रंप पर किसी महाभियोग की संभावना<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का कोई सवाल ही नहीं था लेकिन जिस तरह से पिछले
एक महीने में उन्होंने अपनी ही पार्टी के लोगों के विश्वास के साथ धोखा किया है
,उसके बाद सेनेट में केवल सात लोग बचे हैं जो उनकी हर सनक का साथ देने के लिए
तैयार नज़र आ रहे हैं .बाकी उनके अपने ही लोग उनके खिलाफ मैदान ले चुके<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">राष्ट्रपति ट्रंप यह <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तर्क दे रहे हैं कि उनको सात करोड़ अमरीकियों ने
वोट दिया है . और जोसेफ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बाइडेन की जीत से
उन सात करोड़ अमरीकियों के हितों का नुक्सान हुआ है . ट्रंपवादी लोग समझ नहीं पा
रहे हैं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कि जिन जो बाइडेन ने ट्रंप को
हराया है उनको तो सात करोड़ चालीस लाख से भी ज़्यादा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वोट मिले<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>हैं . ट्रंप नतीजों के दिन से ही प्रलाप कर रहे हैं कि चुनाव उन्होंने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जीता था <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जिसको उनसे चुरा लिया गया है जबकि सच्चाई यह है
कि ट्रंप चुनाव हार चुके हैं और वे उस हारे हुए चुनाव को गुंडई के बल पर फिर जीत
लेना चाहते हैं . उनके समर्थकों में ऐसे बहुत लोग<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>हैं जो अमरीका में श्वेत लोगों के आधिपत्य के समर्थक हैं . जब अमरीका में
मानवाधिकारों के आन्दोलन ने जोर पकड़ा और ब्राउन का फैसला आने के बाद काले बच्चों
को भी स्कूलों में दाखिला देना अनिवार्य कर दिया गया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>तो <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संयुक्त राज्य अमरीका के दक्षिण के राज्यों
में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>श्वेत<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अधिनायकवादियों के कई गिरोह बन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गए थे . उन हथियारबंद बदमाशों के गिरोह को क्लू
क्लैक्स क्लान के नाम से जाना जाता है . बाद में तो महिलाओं और काले लोगों के
मताधिकार के क़ानून भी बन<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गए . साठ के दशक
में<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राष्ट्रपति केनेडी और उनके भाई बॉब
केनेडी ने मानवाधिकारों के लिए बहुत काम किया . उसके बाद क्लू क्लैक्स क्लान वाले
धीरे धीरे तिरोहित हो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>रहे थे लेकिन जब
रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति चुनाव में<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>रिपब्लिकन पार्टी की ओर से उम्मीदवार बने तो उन्होंने भी इन क्लू क्लैक्स क्लान
वाले चांडालों को आगे किया और काले लोगों<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>औकात दिखाने के नाम पर चुनाव जीत लिया .<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>रिचर्ड निक्सन का जो हश्र हुआ वह दुनिया को मालूम है . महाभियोग की चपेट
में आये और<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>अपमानित होकर उनको<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गद्दी छोडनी पडी. उसी तरह के श्वेत अधिनायकवाद
का सहारा लेकर डोनाल्ड ट्रंप इस बार का चुनाव जीतना चाहते थे . उन्होंने अपने पूरे
चुनाव में ओबामा के कार्यकाल की निंदा को अपना प्रमुख एजेंडा बनाया और अश्वेत
,अफ्रीकी-भारतीय-अमरीकी कमला हैरिस के खिलाफ लगातार ज़हर उगलते रहे . चुनाव प्रचार
के घटियापन का आलम यह था कि वे लगातार कहते रहे कि जो बाइडेन की उम्र ज़्यादा है और
अगर उनको जीत मिली तो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चार साल जिंदा नहीं
रहेंगे और कमला हैरिस राष्ट्रपति बन जायेंगी . इतने अमानवीय तरीके से चुनाव प्रचार
में ट्रंप लगातार हर इलाके के श्वेत गुंडों को बढ़ावा देते रहे. जब<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मतदान के बाद वोटों की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गिनती हो रही थी ,तब भी यह बदमाश लोग वहां भी
तोड़फोड़ कर रहे थे. और अब बाकायदा संसद पर ही हमला कर दिया .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;">डोनाल्ड ट्रंप के लिए शर्म की बात यह<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जो बदमाश आये थे वे वहीं व्हाइट हाउस के पास बने
हुए डोनाल्ड<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ट्रंप के होटल में ही ठिकाना
बनाये हुए थे .इस बात में कोई दो राय नहीं है कि डोनाल्ड<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ट्रंप ने अपने आपको अमरीका की बहुत बड़ी आबादी
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नज़र में घटिया इंसान साबित कर लिया है
.उनकी इस कारस्तानी का नुक्सान लोकतंत्र को झेलना<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>पडेगा. <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दुनिया के बहुत सारे देशों
में कई तानाशाह चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज़ हैं . लेकिन कई बार वे चुनाव हारने के
बाद सत्ता छोड़ देते हैं . डोनाल्ड ट्रंप के इस उदाहरण के बाद इस बात के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि उनमें
से बहुत सारे तानाशाह अब ट्रंप के तरीकों से ही सत्ता से चिपके रहना चाहेंगे. यह
लोकशाही की अवधारणा का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p> </o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-72368029762569227502020-12-30T04:38:00.002-08:002020-12-30T04:38:14.478-08:00कोरोना के बाद तर्जे-हुकूमत में बदलाव की सम्भावना और उसकी दिशा <p> </p><p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span></b><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span></b><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><br /></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण सिंह</span></b><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">2020 बीत गया . इतना बुरा साल मैंने
अपने जीवन में कभी</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI"> नहीं देखा था
.दुनिया भर में कोरोना वायरस का</span> <span lang="HI"> आतंक था . भारत में इस
महामारी से बचाव की तैयारी थोडा विलम्ब <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से
शुरू हुई. जब अमरीका में कोरोना बढ़ चुका था तब तक भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मानने
को तैयार नहीं</span> <span lang="HI">थे <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कि अपने देश में कोई ख़तरा है . <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>11 मार्च 2020 को स्वास्थ्यमंत्री डॉ हर्षवर्धन
ने</span> <span lang="HI"> बयान दिया कि देश में कोई मेडिकल इमरजेंसी नहीं है
. हालांकि उसी हफ्ते प्रधानमंत्री ने जनता कर्फ्यू की घोषणा की थी . बाद में 21
दिन का पूर्ण लॉक डाउन घोषित किया गया .आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो लगता है कि
काश सरकार समय रहते चेत गयी होती तो कोरोना से जो तबाही आई है उसको कम किया जा
सकता था . बाद में तो सरकार ने <span style="color: #2a2a2a;">चेतावनी और सावधानी की
अपील करना शुरू कर दिया . </span></span><span style="color: #2a2a2a;"> <span lang="HI">स्कूल कालेज बंद किये गए .ट्रेनें रद्द </span> <span lang="HI">की गईं
. लेकिन सत्ताधारी पार्टी के कुछ लोग तरह तरह की</span> <span lang="HI">मूर्खताओं
के ज़रिये दुनिया भर में देश के शासक वर्ग की खिल्ली</span> <span lang="HI">उड़वाते </span> <span lang="HI">रहे . सत्ताधारी</span> <span lang="HI">दल के समर्थक एक बाबा ने गौमूत्र की एक पार्टी आयोजित की . उसमें बहुत
सारे लोग शामिल हुए और</span> <span lang="HI">कैमरों के सामने गौमूत्र
पिया लेकिन उसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब तो साल बीत चुका है लेकिन कोरोना की चिंता
बरकरार है </span>,<span lang="HI"> आर्थिक मोर्चे पर </span> <span lang="HI">भारी
नुकसान हो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चुका है ,</span>,<span lang="HI"> स्वास्थ्य सेवाओं की कठिन </span> <span lang="HI">परीक्षा हो रही है
. घर में बंद लोगों और बच्चों को तरह तरह की मानसिक प्रताडनाओं से गुजरना पड़ रहा
है . ब्रिटेन से चलकर कोरोना का एक नया स्ट्रेन आ गया है . चौतरफा डर और दहशत का </span> <span lang="HI">आलम है .कोरोना के कारण किसी न</span> <span lang="HI"> किसी प्रियजन
की मृत्यु हो चुकी है . मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से यह साल बहुत ही बुरा रहा है .
मेरे शुभचिंतक ललित सुरजन की मृत्यु मेरे लिए एक निजी आघात है . पिछले सात आठ
वर्षों में मैंने जो भी अच्छी किताबें पढी हैं उनका ज़िक्र ललित जी ने ही किया था .
मुझसे करीब चार साल</span> <span lang="HI"> बड़े थे लेकिन सही अर्थों में बड़े
भाई की भूमिका थी उनकी. </span> <span lang="HI">मैं उनके अखबार में काम करता
हूँ लेकिन एक कर्मचारी के रूप में उन्होंने मुझे कभी नहीं देखा . उनकी विचारधारा
लिबरल और डेमोक्रेटिक थी . सबको अवसर देने के पक्षधर थे . सामाजिक</span> <span lang="HI"> पारिवारिक संबंधों को निभाने के जो सबसे बड़े मुकाम हैं </span>,<span lang="HI">ललित जी वहां विराजते थे . कोरोना काल में जब उनके कैंसर का पता चला तो
विमान सेवाएँ बंद थीं. रायपुर में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कैंसर
के इलाज की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>वह व्यवस्था नहीं थी जो दिल्ली
या मुंबई में उपलब्ध है <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>. उनके बच्चे उनको
चार्टर्ड विमान से दिल्ली लाये. बीमारी की हालत में भी वे लगातार अपना काम करते
रहे</span>, <span lang="HI">लिखते रहे और पोडकास्ट के ज़रिये अपनी कवितायें देश को
सुनाते रहे . कैंसर से मुक्त होने की दिशा में चल पड़े थे . उम्मीद हो गयी थी कि
फिर सब कुछ पहले जैसा ही हो जाएगा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लेकिन</span> <span lang="HI">एकाएक <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ब्रेन स्ट्रोक हुआ और बीती
दो दिसंबर को चले गए . ललित सुरजन की मृत्यु का घाव 2020 का वह </span> <span lang="HI">घाव है</span> <span lang="HI"> जो अगर भर भी गया तो निशान गहरे छोड़
जाएगा . मेरे मित्रों में राजीव</span> <span lang="HI"> कटारा</span>, <span lang="HI">दिनेश तिवारी </span>, <span lang="HI">मगलेश डबराल कुछ ऐसे लोग इस मनहूस
साल में छोड़ गए जिनकी कमी हमेशा खलेगी . </span><o:p></o:p></span></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">ग्रेटर नोयडा की अपनी
कॉलोनी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>से मैंने हज़ारों</span><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI"> मजदूरों को पैदल अपने</span> <span lang="HI"> गाँव जाते देखा है . उन लोगों के दर्द को बयान करने की मैंने कई बार
कोशिश की</span> <span lang="HI"> है लेकिन बयान नहीं कर पाया . उन मजदूरों के
पलायन के कुछ बिम्ब तो ऐसे हैं</span> <span lang="HI"> जिनके बारे में अगर रात
में याद आ जाये तो नींद नहीं</span> <span lang="HI"> आती. </span> <span lang="HI">जिन तकलीफों से लोग घर गए हैं उसमें सरकारी गैरजिम्मेदारी साफ़ नज़र आती</span> <span lang="HI"> है. अगर सरकार ने थोडा दिमाग लगाकर योजना बनाई होती तो शायद उतना बुरा न
होता </span>,<span lang="HI">जितना हुआ . जो लोग</span> <span lang="HI"> अपने
घर नहीं गए </span>, <span lang="HI">यहीं</span> <span lang="HI"> रह गए उनके
खाने पीने की जो तकलीफें हैं उनकी भी याद शायद ही</span> <span lang="HI"> भुलाई
जा सके . सरकारी राशन का इंतजार करते लोग</span>, <span lang="HI">एकाध दर्ज़न केला
देकर उनके साथ फोटो खिंचवाते असहिष्णु नेता </span>, <span lang="HI">गरीबों के लिए
आये राशन से चोरी करते छुटभैया नेता इस साल के कुछ ऐसे दृश्य हैं जो किसी को भी</span> <span lang="HI"> विचलित कर</span> <span lang="HI"> देगें . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">कुछ बातें सकारात्मक भी
हुई हैं .कोरोना के संकट के दौर में डरे हुए लोगों ने कुछ ऐसे काम भी किये हैं
जिनको अगर जीवन की पद्धति में ढाल लें तो उनका अपना और समाज का बहुत भला होगा .</span><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI"> खामखाह बाज़ारों में घूमना
बंद हुआ</span> <span lang="HI"> है</span>, <span lang="HI">शादी ब्याह के नाम
पर फालतू के खर्च पर भी नियंत्रण देखा गया है . धार्मिक आयोजनों में जो भीड़ </span> <span lang="HI">जुटाई जाती थी उसपर भी लगाम लगी</span> <span lang="HI"> है . और भी
बहुत सी सामाजिक आर्थिक बुराइयों से लोगों किनारा किया है .अगर लोग इसी को अपनी
जीवन शैली के रूप में अपना लें तो चीजें सुधरेंगी .इस कोरोना काल में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जो सबसे ज़रूरी बात हुई</span> <span lang="HI"> है वह यह कि स्वस्थ रहने को प्राथमिकता देने की जो तमीज कोरोना ने सिखाई
है उसको अगर लोग अपनी आदत में शामिल कर</span> <span lang="HI"> लें उसको स्थाई
करने की ज़रूरत है . कोरोना की दहशत का नतीजा यह था कि लोग संभलकर रहे </span>, <span lang="HI">ऊलजलूल चीज़ें नहीं खाईं और बहुत</span> <span lang="HI"> लोगों से
मिलना जुलना नहीं रखा . शायद इसी वजह से <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस साल वे</span> <span lang="HI"> तथाकतित
सीज़नल</span> <span lang="HI"> बीमारियाँ नहीं हुईं.</span> <span lang="HI"> खाने पीने में भी लोगों ने किफ़ायत बरती </span>, <span lang="HI">फालतू की
खरीदारी नहीं हुई</span>, <span lang="HI"> शापिंग के शौक़ पर भी लगाम लगी रही .
कोरोना के संकट के दौरान</span> <span lang="HI"> मजबूरी में</span> <span lang="HI"> सीखी गयी इन बातों का पालन करने से बहुत फायदा हो सकता है . </span></span><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">वैश्विक स्तर पर 2020 में लोकतांत्रिक मूल्यों का जो ह्रास हुआ है वह अपना
स्थाई प्रभाव छोड़ने वाला है . </span> <span lang="HI">दुनिया भर में तानाशाही
ताकतें मज़बूत हुई हैं . </span> <span lang="HI">आज दुनिया में कम से कम पचास
देश</span> <span lang="HI"> ऐसे हैं जहां सत्ता पर </span> <span lang="HI">तानाशाहों का क़ब्ज़ा है. बहुत सारे शासकों के बीच तानाशाही प्रवृत्तियाँ बढ़
रही हैं. साफ़ नज़र आ रहा है कि चुनाव</span> <span lang="HI"> के वर्तमान तरीके
लिबरल डेमोक्रेसी की स्थापना में नाकाम हो रहे</span> <span lang="HI"> हैं .
तुर्की का</span> <span lang="HI"> उदाहरण दिया जा सकता</span> <span lang="HI"> है .</span> <span lang="HI"> वहां का शासक बाकायदा चुनाव जीतकर आया
है लेकिन काम तानाशाहों वाला कर रहा है . ब्राजील में भी यही हाल है . असली या
काल्पनिक संकट के नाम पर तानाशाही प्रवित्ति वाले सात्ताधीश मनमानी</span> <span lang="HI"> करने लगते</span> <span lang="HI"> हैं. कहने का मतलब यह है कि मौजूदा
चुनाव पद्धति </span> <span lang="HI">सही अर्थों में लोकशाही निज़ाम</span> <span lang="HI"> कायम करने में असफल साबित हो रही है . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span lang="HI" style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">राजनीतिक इतिहास पर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>डालने पर पता चलता है कि <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किसी भी राजनीतिक विचारधारा पर आधारित कोई भी
शासन पद्धति </span><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">सत्तर
साल के आसपास ही चल पाती है .1917 में लेनिन की अगुवाई में रूसी क्रान्ति हुयी थी
लेकिन सत्तर साल बीतते बीतते वह सत्ता और राजनीति की एक कारगर विचारधारा के रूप
में फेल हो गयी .बोल्शेविक क्रान्ति की विचारधारा पेरेस्त्रोइका और ग्लैसनास्त की
बलि चढ़ गयी . जो वामपंथी विचारधारा आधे यूरोप और एशिया के एक हिस्से में राजकाज की
विचारधारा थी </span>,<span lang="HI">वह खतम हो गयी . आज कहने को तो चीन में
वामपंथी विचारधारा है लेकिन वह मार्क्सवाद के बुनियादी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सिद्धांतों से परे है.</span> <span lang="HI"> <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शी जिनपिंग अपने को आजीवन
तानाशाह पद पर स्थापित कर लिया है . आज जो</span> <span lang="HI"> भी शासन
व्यवस्था चीन में है वह आम आदमी के लिए तानाशाही</span> <span lang="HI">
व्यवस्था ही है .</span> <span lang="HI">सर्वहारा का अधिनायकत्व उसमें कहीं
नहीं है .रूसी क्रान्ति के बाद लोकतंत्र के ज़रिये<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>सत्ता पाने का सिलसिला दूसरे विश्वयुद्ध के बाद शुरू<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हुआ . दुनिया भर फैले राजशाही </span>, <span lang="HI">तानाशाही और उपनिवेशवादी सत्ताधीशों के खात्मे का दौर शुरू हो गया . एशिया
और अफ्रीका में गुलाम देशों की आजादी की बाढ़ सी आ गयी थी .आज की जो चुनाव पद्धति
है वह बहुत</span> <span lang="HI"> सारे </span> <span lang="HI">देशों ने उसी
कालखंड में अपनाई और उसी के ज़रिये लोकतंत्र की स्थापना की . लेकिन अब सब कुछ बदल रहा
है .लोकप्रिय चुनाव के बाद भी बहुत सारे शासक तानाशाह बन रहे हैं .</span> <span lang="HI"> इसका मतलब यह हुआ कि वर्तमान चुनाव</span> <span lang="HI"> पद्धति
लोकशाही स्थापित करने में नाकाम साबित हो रही है .</span> <span lang="HI">
इतिहास को मालूम है कि </span> <span lang="HI">फ्रांसीसी क्रान्ति के बाद
यूरोप में सामंती व्यवस्था पर कुठाराघात हुआ था </span> <span lang="HI">और
औद्योगिक क्रान्ति का प्रादुर्भाव हुआ था </span>,<span lang="HI"> लोगों में बराबरी
की संस्कृति का विकास हुआ लेकिन शताब्दी बीतने के साथ साथ राजनीतिक परिवर्तन की
बातें माहौल में आना</span> <span lang="HI"> शुरू हो गयी थीं. दूसरे
विश्वयुद्ध के बाद भी बड़े बदलाव हुए थे . कोरोना ने भी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दुनिया भर की आर्थिक हालात पर ज़बरदस्त असर डाला
है </span>, <span lang="HI">इसके बाद भी बड़े बदलाव की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आहट साफ़ सुनाई पड़ रही है . शुरुआती दौर में
चुनकर आये सत्ताधीशों की प्राथमिकता</span> <span lang="HI"> जनकल्याण हुआ करती
थी . लेकिन कोरोना काल में देखा जा रहा है कि चाहे तुर्की का अर्दोगन हो या चीन का
शी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जिनपिंग</span> <span lang="HI"> </span>,
<span lang="HI">सभी अपने आपको</span> <span lang="HI"> शासन पद्धति</span> <span lang="HI"> के केंद्र में रखने की</span> <span lang="HI"> कोशिश कर रहे हैं .</span> <span lang="HI"> यहाँ तक कि अमरीका में भी शासक में स्थाई</span> <span lang="HI">
होने की बीमारी जोर पकड चुकी है .डोनाल्ड ट्रंप चुनाव हार चुके हैं लेकिन सत्ता
छोड़ने को तैयार नहीं हैं . ज़ाहिर है बदलाव होगा .</span> <span lang="HI"> बड़ा
बदलाव होगा . </span> <span lang="HI">आगामी बदलाव दुनिया को किस दिशा में ले
जाएगा उसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता . उम्मीद की जानी चाहिए कि निर्वाचित
शासकों में जो तानाशाही की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं </span>,<span lang="HI">अगला
बदलाव उसको नाकाम करेगा और कोई अन्य बेहतर व्यवस्था</span> <span lang="HI">
लागू होगी जिसका स्थाई भाव<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>लिबरल
डेमोक्रेसी ही होगा <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>.</span></span><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: normal; margin-bottom: .0001pt; margin-bottom: 0in;"><span style="color: #2a2a2a; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span><span style="mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> </span><span style="line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-bidi-font-family: Calibri; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman"; mso-hansi-font-family: Calibri;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><o:p> </o:p></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-59861281473248464982020-12-28T01:11:00.001-08:002020-12-28T01:11:27.987-08:00कांग्रेस नेता के रूप में राहुल गांधी अक्सर गैरजिम्मेदार काम करते रहते हैं<p> </p><p class="MsoNormal" style="line-height: 24.0pt; margin-bottom: 15.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: 24.0pt; margin-bottom: 15.0pt;"><br /></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: 24.0pt; margin-bottom: 15.0pt;"><b><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण सिंह </span></b><b><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: 24.0pt; margin-bottom: 15.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">कांग्रेस के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आला नेता <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>राहुल गांधी फिर विदेश यात्रा पर चले गए . अक्सर
जाते रहते हैं लेकिन इस <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बार उनकी विदेश
यात्रा बहुत बड़ी उत्सुकता का विषय बनी हुयी है . कांग्रेस की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>स्थापना के 135 साल पूरे होने पर <span style="mso-spacerun: yes;"> </span><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कांग्रेस पार्टी ने एक <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बड़े आयोजन की योजना बनाई थी लेकिन कार्यक्रम के
ठीक एक दिन पहले राहुल गांधी विदेश निकल लिए . कांग्रेस ने इस बार<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>स्थापना दिवस को बड़े पैमाने पर मनाने का फैसला
इसलिए किया था <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कि<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>दिल्ली की सीमा पर आन्दोलन कर रहे किसानों की
समस्याओं को बड़ा मुद्दा बनाना चाहती थी लेकिन पार्टी की योजना धरी की धरी रह गयी
और कांग्रेस का आला अफसर यूरोप निकल गया .आज स्थिति यह है कि किसानों का मुद्दा तो
पीछे चला गया और आज छोटे बड़े सभी कांग्रेसियों के एक ही सवाल पूछा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जा रहा है कि उनका सबसे बड़ा नेता कहाँ है. कुछ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कांग्रेसियों के अलावा साधारण कांग्रेसी चुप
रहने<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में ही भलाई समझ रहा है . दिल्ली में
कांग्रेस मुख्यालय में आज जब झंडा फहराया जा रहा था तो प्रियंका गांधी से जब
पत्रकारों ने उनके<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>भाई और आला नेता ,
राहुल गांधी के बारे में पूछा तो उनके पास कोई जवाब नहीं था . बेचारी चुपचाप चली
गयीं क्योंकि इस सवाल का क्या जवाब देतीं कि<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>कांग्रेस के कैलेण्डर में सबसे मह्त्वपूर्ण तारीख के ठीक एक दिन पहले उनके
भाई साहब कहाँ<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>चले<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गए हैं . राहुल गांधी के क़रीबी और कांग्रेस के
मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला अपनी शैली में सवालों के जवाब दे रहे हैं कि
राहुल गांधी किसी निजी यात्रा पर विदेश चले<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>गए हैं .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: 24.0pt; margin-bottom: 15.0pt;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कांग्रेस ने नई कृषि नीति के खिलाफ आन्दोलन कर
रहे<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>किसानों के साथ अपने आपको जोड़ने की
पूरी कोशिश की है . राहुल खुद राष्ट्रपति के यहाँ गए , दो करोड़ किसानों से दस्तखत
करवाकर ट्रक में लादे हुए कागजों को मीडिया के सामने पेश किया . हमेशा ही किसानों
के साथ सहानुभूति के बयान दिए लेकिन जब किसानों की एक बार फिर केंद्र सरकार से 29
दिसंबर को बात होने वाली<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है तो<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कांग्रेस पार्टी फिर से रक्षात्मक मुद्रा में
आने के लिए मज़बूत कर दी गयी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है . अब कोई
भी कांगेसी नेता कोई भी बात करने की कोशिश करेगा तो उससे राहुल गांधी के बारे में
ही सवाल पूछा जाएगा . ज़ाहिर है कांग्रेस के सामने अपने कार्यकर्ताओं को मोबिलाइज
करने का एक अवसर था <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>और उसको राहुल<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गांधी के विदेश यात्रा के मोह की बलिबेदी पर
कुर्बान करना पडा है . </span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">2004 में राहुल गांधी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>कांग्रेस पार्टी में औपचारिक रूप से शामिल हुए थे .2013 में कांगेस के
जयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस की दरबारी संस्कृति<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के मठाधीशों ने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बनवा लिया
था . उसी के साथ ही चुनावों में कांग्रेस<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>पार्टी के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कमज़ोर पड़ने का सिलसिला
शुरू<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हो गया था .<span class="MsoHyperlink"><span style="border: none windowtext 1.0pt; color: windowtext; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;"> </span></span><span class="MsoHyperlink"><span style="border: none windowtext 1.0pt; color: windowtext; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in; text-decoration: none; text-underline: none;">उसके बाद से पार्टी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>में उन नेताओं
का वर्चस्व बढना शुरू हो गया <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जो </span></span><strong><span style="border: none windowtext 1.0pt; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-weight: normal; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;">लुटियन बंगलो
ज़ोन की शोभा बढाते हैं</span></strong></span><strong><span style="border: none windowtext 1.0pt; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; font-weight: normal; mso-border-alt: none windowtext 0in; padding: 0in;"> . <span lang="HI">इनमें से ज्यादातर ज़मीनी मजबूती के कारण नेता नहीं बने हैं . इन सब पर
इंदिरा गांधी परिवार की कृपा बरसती रही है और</span> <span lang="HI">उसी के
इनाम के रूप में यह लोग राजनीतिक सत्ता का लाभ</span> <span lang="HI">उठाते
रहते हैं. उसी के साथ ज़मीनी नेताओं को<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>दरकिनार किये जाने का सिलसिला भी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुरू हो गया .राहुल गांधी के <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>नेतृत्व में <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कांग्रेस पार्टी में ऐसे लोग बड़े नेता बने बैठे हैं
जिसमें कभी पूरे भारत के गाँवों और शहरों से आये</span> <span lang="HI">जनाधार
वाले नेता कांग्रेस के नीतिगत फैसले लिया करते</span> <span lang="HI">थे. .2013
में</span> <span lang="HI">संपन्न हुये जयपुर की चिन्तन शिविर में जब
राहुल गांधी को कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया</span> <span lang="HI">उसी
दिन से जनाधार वाले नेताओं का<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पत्ता कटना
शुरू हो गया था .यह अलग बात है कि राहुल गांधी ने उस शिविर में जो बातें कहीं थीं
अगर वे लागू हो</span> <span lang="HI">गई होतीं तो</span> <span lang="HI">कांग्रेस की दिशा</span> <span lang="HI">ही बदल गयी</span> <span lang="HI">होती.</span></span></strong><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"> <span lang="HI">कांग्रेस के उपाध्यक्ष रूप में
राहुल गांधी के नाम की घोषणा होने के बाद उन्होंने जयपुर</span> <span lang="HI">चिंतन शिविर की समापन सभा में कहा था कि</span> “ <span lang="HI">हम टिकट की बात करते हैं</span>, <span lang="HI">जमीन पे हमारा
कार्यकर्ता काम करता है यहां हमारे डिस्ट्रिक्ट प्रेसिडेंट बैठे हैं</span>, <span lang="HI">ब्लॉक प्रेसिडेंट्स हैं ब्लॉक कमेटीज हैं डिस्ट्रिक्ट कमेटीज हैं उनसे
पूछा नहीं जाता</span> <span lang="HI">हैं .टिकट के समय उनसे नहीं पूछा
जाता</span>, <span lang="HI">संगठन से नहीं पूछा जाता</span>, <span lang="HI">ऊपर से डिसीजन लिया जाता है .भइया इसको टिकट मिलना चाहिए</span>, <span lang="HI">होता क्या है दूसरे दलों के लोग आ जाते हैं चुनाव के पहले आ जाते हैं</span>, <span lang="HI">चुनाव हार जाते हैं और फिर चले जाते हैं और हमारा कार्यकर्ता कहता है भइया</span>, <span lang="HI">वो ऊपर देखता है चुनाव से पहले ऊपर देखता है</span>, <span lang="HI">ऊपर
से पैराशूट गिरता है धड़ाक! नेता आता है</span>, <span lang="HI">दूसरी पार्टी
से आता है चुनाव लड़ता है फिर हवाई जहाज में उड़ के चला जाता है।</span>“<o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">यह भावपूर्ण भाषण देने के बाद राहुल गांधी ने वही काम
शुरू कर दिया जिसकी उन्होंने भरपूर शिकायत की थी . उनके जयपुर भाषण से
कांग्रेसियों में उम्मीद बंधी थी कि कांग्रेस को एक ऐसा नेता मिल गया है जो
अगर</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">
<span lang="HI">सत्ता में रहा तो कांग्रेस पार्टी के आम कार्यकर्ता को
पहचान दिलवाएगा .और अगर विपक्ष में रहा तो ज़मीनी सच्चाइयां बाहर
आयेंगीं. लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हुआ .राहुल गांधी ने जो फैसले लिए उनसे
कांग्रेस को</span> <span lang="HI">बहुत नुक्सान ही हुआ . पंजाब में अमरिंदर
सिंह की मर्जी के खिलाफ किसी बाजवा जी को अध्यक्ष बनाया </span>, <span lang="HI">हरियाणा
में भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के खिलाफ अशोक तंवर को चार्ज दे दिया . वे बाद में
बीजेपी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते पाए गए . मध्यप्रदेश में सोनिया गांधी की
पसंद दिग्विजय सिंह को दरकिनार करने के चक्कर में ज्योतिरादित्य
सिंधिया को आगे किया </span>, <span lang="HI">वही सिंधिया <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मध्यप्रदेश में कांग्रेस की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सरकार के पतन के कारण बने . मुंबई कांग्रेस के
मुख्य मतदाता</span> <span lang="HI">उत्तर भारतीय </span>, <span lang="HI">दलित
और अल्पसंख्यक हुआ करते थे लेकिन वहां पूर्व शिवसैनिक संजय निरुपम को
अध्यक्ष बनाकर पार्टी को बहुत पीछे धकेल दिया . उत्तर प्रदेश का चार्ज
किन्हीं मधुसूदन मिस्त्री को दे दिया जिनके जीवन का सबसे बड़ा राजनीतिक काम
यह था कि वे वडोदरा में एक बार किसी बिजली के खम्बे पर चढ़कर वे नरेंद्र मोदी का कोई
पोस्टर सफलता पूर्वक उतार चुके थे .नैशनल हेराल्ड जैसे राष्ट्रीय आन्दोलन के अखबार
को ख़त्म करके निजी संपत्ति बनाने की कोशिश की . सबसे बड़ी बात यह कि उनके उपाध्यक्ष
बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी गुजरात को छोड़कर राष्ट्रीय राजनीति में
आये . कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी के प्रचार में सबसे बड़ा योगदान राहुल गांधी का
ही रहता रहा है क्यंकि वे ऐसा कुछ ज़रूर</span> <span lang="HI">बोलते या करते
रहे हैं जिससे</span> <span lang="HI">बीजेपी को</span> <span lang="HI">कांग्रेस
की धुनाई करने का अवसर मिल जाता है .</span><o:p></o:p></span></p>
<p style="background: white; line-height: 21.0pt; margin-bottom: .0001pt; margin: 0in; vertical-align: baseline;"><span lang="HI" style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;">आज कांग्रेस के स्थापना दिवस पर विदेश के लिए उड़नछू हो
कर<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जो काम राहुल गांधी ने किया है ,वह
उनके लिए कोई नई बात नहीं है .जब से वे कांग्रेस के कर्ताधर्ता बने हैं तब से यही
कर रहे हैं. लेकिन दिल्ली में उनके परिवार की गणेश परिक्रमा करने वाले नेता उनके
काम को सही<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ठहराते रहते<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं . प्रियंका गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड्गे
तक सभी नेता राहुल गांधी के स्थापना दिवस पर गायब रहने की बात से<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शर्मिंदा नज़र आये . लेकिन यह सच्चाई है कि
राहुल गांधी ऐसे काम करते रहते हैं जिससे उनकी पार्टी के बड़े नताओं से कोई जवाब
देते नहीं बनता .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="line-height: 24.0pt; margin-bottom: 15.0pt;"><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; line-height: 115%; mso-ansi-font-size: 15.0pt; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-font-size: 11.0pt; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span></span><span style="font-size: 15.0pt; line-height: 115%; mso-bidi-font-size: 11.0pt;"><o:p></o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-62957859098750573332020-12-24T21:57:00.003-08:002020-12-24T21:57:28.623-08:00जम्मू-कश्मीर में डी डी सी के सफल चुनावों के बाद पाकिस्तानी सत्तातंत्र में हडकंप<p> </p><p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><b><span style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 20.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></b><b><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 12.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">शेष नारायण सिंह</span></b></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><span lang="HI" style="color: #252525; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जम्मू-कश्मीर में सफलता
पूर्वक चुनाव आयोजित करके भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि वहां पाकिस्तान की भूमिका
केवल आतंकवाद फैलाने की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ही है. जिस <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>बड़े पैमाने पर कश्मीरी अवाम ने जिला विकास परिषद
( डी डी सी ) के चुनावों में हिस्सा लिया उससे पाकिस्तानी शासकों की वह बात एक बार
फिर पंक्चर हो गयी जिसमें<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>कहा<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>जाता था कि कश्मीर के लोग भारत के साथ नहीं हैं
. जम्मू-कश्मीर के चुनावों में लोगों ने मतदान में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया वह इस बात
की<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सनद है कि जम्मू-कशमीर में पाकिस्तान
की लाइन को मानने वाले कुछ आतंकी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>संगठन
हैं और पाकिस्तान से पैसा लेकर वहां सियासत करने वाले कुछ लोग<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं.बाकी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>कश्मीरी अवाम पूरी तरह से भारत के साथ है .नरेंद्र मोदी की कश्मीर नीति में
नई पहल की सफलता के बाद पाकिस्तानी सत्तातंत्र <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>खिसिया गया है और उसी की प्रतिक्रिया में भारत
की तरफ से सर्जिकल स्ट्राइक की आशंका को लेकर दहशत फैलाई जा रही है . हालांकि भारत
की ओर से इस तरह का कोई संकेत नहीं दिया गया है लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री
और सेना प्रमुख लगातार भारत की संभावित सर्जिकल स्ट्राइक की ख़बरें अखबारों में
छपवा रहे हैं . 24 अगस्त को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की और से जारी एक बयान में
बताया गया कि अगर भारत से किसी तरह का हमला हुआ तो उसको जवाब दिया जाएगा .</span><span style="color: #252525; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><span style="color: #252525; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><span lang="HI" style="color: #252525; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सवाल यह उठता है कि जब
भारत की सेना किसी हमले की योजना ही नहीं बना रही है तो इस तरह से युद्ध का माहौल
बनाकर अपने खिलाफ उठ रहे पाकिस्तानी अवाम के जनांदोलन को दबाने की यह कोई कोशिश तो
नहीं है .पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ( </span><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">पी पी पी ) और नवाज़ शरीफ की खानदानी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग
( नवाज़ ) एक</span><span style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"> <span lang="HI">दूसरे
के राजनीतिक विरोधी हैं लेकिन इमरान खान जिस तरह से फौज के हुक्म के गुलाम बन गए
हैं उससे पाकिस्तानी अवाम में बहुत नाराजगी है . उसी नाराज़गी को भुनाने की गरज से
बेनजीर भुट्टो और नवाज़ शरीफ की खानदानी पार्टियां एक मंच पर हैं . उनके साथ ही
पाकिस्तानी मुल्लातंत्र की कुछ पार्टियां भी शामिल हैं. विपक्ष की पार्टियों ने
इकट्ठा होकर पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट ( पी डी एम ) नाम का एक</span> <span lang="HI">फ्रंट बना लिया है जिसमे देश की दोनों बड़ी विपक्षी पार्टियों की मुख्य
भूमिका है लेकिन उसका अध्यक्ष जमियत उलेमा ए</span> <span lang="HI">इस्लाम (
एफ ) के मुखिया मौलाना फ़ज़लुर्रहमान को बनाया</span> <span lang="HI">गया</span>
<span lang="HI">है . पी डी एम का उद्देश्य इमरान खान की भ्रष्ट सरकार को</span>
<span lang="HI">उखाड़ फेंकना</span> <span lang="HI">है . उसके बाद सभी
पार्टियां चुनाव लड़ेंगी .कराची की विशाल सभा में पाकिस्तान मुस्लिम लीग ( नवाज़ )
की उपाध्यक्ष मरियम नवाज़ ने ऐलान किया कि जब भी चुनाव</span> <span lang="HI">होगा
तो पी डी एम में शामिल पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ मैदान में होंगी. अभी फिलहाल <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पी डी एम <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>ने पाकिस्तानी शहरों सभाएं करके साफ बता दिया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है कि इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद
बाजवा के हटने तक उनका आन्दोलन मुसलसल जारी रहेगा .पाकिस्तानी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>सत्ताधीश <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>विपक्ष के आन्दोलन से इतना डर गए हैं कि खबरें आ
रही हैं कि पी डी एम की सबसे</span> <span lang="HI">प्रभावशाली नेता और</span>
<span lang="HI">पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ पर जानलेवा हमला
भी किया</span> <span lang="HI">जा सकता है . कठपुतली प्रधानमंत्री इमरान खान बुरी
तरह से डरे हुए<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>हैं. कोरोना से मुकाबले के
मैदान में भी<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाकिस्तान पूरी तरह से नाकाम
है . देश की आर्थिक<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>स्थिति बहुत ही खराब
है . इन सब कारणों से पाकिस्तानी जनता में बहुत ही गुस्सा है . </span><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><span style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p> </o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">अपनी इस दुर्दशा से
जनता का ध्यान भटकाने के लिए पाकिस्तानी सरकार भारत के संभावित हमले की बोगी चला
रही है .देश के नामी अंग्रेज़ी अखबार डॉन में छपी खबर के अनुसार इस्लामाबाद में
प्रधानमंत्री की घर पर सेना प्रमुख जनरल बाजवा और आई एस आई के<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>डाइरेक्टर जनरल ले. जनरल फैज़ हमीद की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>एक बैठक में भारत से संभावित हमले को मुद्दा
बनाने <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>का फैसला किया गया .इसके पहले दुबई
की यात्रा पर गए पाकिस्तानी विदेशमंत्री शाह महमूद कुरेशी ने दावा किया था कि भारत
ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का फैसला कर लिया<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>है और कभी भी पाकिस्तान को निशाना बनाया जा
सकता है .यही नहीं<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>इस हफ्ते की <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>शुरुआत में जनरल बाजवा ने नियंत्रण रेखा के
पाकिस्तानी साइड में तैनात सैनिकों से बात कर ते हुए भी भारत से संभावित हमले की बात
<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>की थी और डींग मारी थी कि भारत के किसी
हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा .पाकिस्तानी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>विदेशनीति और आंतरिक सुरक्षा की सभी नीतियों में कश्मीर का ज़िक्र प्रमुख
रूप से होता है . वह उनका स्थाई भाव है .पाकिस्तान में भारत के संभावित हमले की
बोगी हर सरकारी मंच से चलाई जा रही है . उनके विदेशी मामलों के दफ्तर के प्रवक्ता
, ज़ाहिद हफीज़ चौधरी ने सारी दुनिया से अपील कर डाली कि विश्व के नेताओं को चाहिए
कि भारत को <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाकिस्तान पर हमला करने से
रोके .</span><span style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";"><o:p></o:p></span></p>
<p class="MsoNormal" style="background: white; line-height: normal; margin-bottom: 12.0pt;"><span lang="HI" style="color: #222222; font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt; mso-fareast-font-family: "Times New Roman";">जम्मू-कश्मीर में डी डी
सी चुनावों में बड़े पैमाने पर कश्मीरी अवाम और राजनीतिक दलों की शिरकत के बाद
पाकिस्तान के शासक वर्ग में चिंता बहुत बढ़ <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>गयी है . अब तक हर मोर्चे पर कश्मीर की बोगी
चलाकर अपनी जनता और अपने विदेशी <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>मित्रों
को भटकाने की कोशिश करने वाली<span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाकिस्तान
सरकार को अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए और कोई रास्ता नहीं दिख रहा है. ऐसी हालत
में भारत के हमले का ज़िक्र करके अपनी<span style="mso-spacerun: yes;">
</span>खिसियाहट छुपाने की कोशिश के अलावा इसको कुछ और नहीं मना जा सकता क्योंकि
भारत की तरफ से <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>पाकिस्तान पर कोई हमला
नहीं होने वाला है . हां, यह तय है कि पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों की लाख कोशिश
के बाद जिला स्तर पर राजनीतिक नेताओं की जो फैज़ खडी हो गयी है ,वह आने वाले दिनों
में पाकिस्तान के हर झूठ का जवाब देने के लिए तैयार है .</span><span style="font-family: "Nirmala UI","sans-serif"; font-size: 14.0pt;"><o:p></o:p></span></p>शेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.com0