tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post2046852705780769346..comments2023-10-24T08:08:12.534-07:00Comments on जंतर मंतर : जाति-संस्था मनु की देन नहीं -- डा. बी आर अंबेडकरशेष नारायण सिंहhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-51921508849047575212009-12-06T04:14:33.802-08:002009-12-06T04:14:33.802-08:00गलत आपने बिलकुल नहीं कहा .उद्देश्य के बारे में नि...गलत आपने बिलकुल नहीं कहा .उद्देश्य के बारे में निवेदन है यह है कि जाति टूटेगी तभी समाज की तरक्की होगी. लेकिन जैसा आप ने कहा है कि जब तक सही कारण का पता नहीं होगा तब तक मर्ज का इलाज़ नहीं खोजा जा सकता. पिछले कुछ वर्षों में ऐसा माहौल बना है , ख़ास कर मेरे राज्य उत्तरप्रदेश में , कि जाति की संस्था की सारी बीमारी मनु की वजह से है . नतीजा यह हुआ है कि जाति के विनाश के लिए काम करने वाले लोगों के बीच भ्रम पैदा होने का खतरा पैदा हो गया है . कम से कम मुझे यही लगता है . जाति की व्यवस्था शताब्दियों की साज़िश का नतीजा है और उसका खात्मा एक मनु को लक्ष्य करके नहीं किया जा सकता. जैसा कि डा. अंबेडकर ने कहा था कि जब तक अंतरजातीय शादी-ब्याह नहीं होंगें , तब तक बात नहीं बनने वाली नहीं है .. अगर इस लेख से आप को यह लगा हो कि मैं जाति की संस्था को बनाए रखना चाहता हूँ ,तो मैं इम्तिहान में फ़ेल हो गया , अपनी बात को साफ़ नहीं कर पाया. क्योंकि मेरा उद्देश्य भी आप ही की तरह जाति के विनाश के लिए मज़बूत तर्क जुटाना है जिस का इस्तेमाल करके कोई भी जागरूक व्यक्ति कहीं भी इस संस्था के विनाश की बात करे तो उसे सब कुछ मालूम हो जो इस विधा के विद्वानों ने कहा है . मैंने तो बस डा अंबेडकर की बात को अपनी ज़बान में कहने की कोशिश की है ..Shesh Narain Singhhttp://www.blogger.com/profile/09904490832143987563noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8724078010716939376.post-16537258494340338932009-12-05T23:57:20.710-08:002009-12-05T23:57:20.710-08:00मुझे नहीं पता कि आपके इस लेख का उद्देश्य क्या है ?...मुझे नहीं पता कि आपके इस लेख का उद्देश्य क्या है ? वैसे तो अब इस बात से फ़र्क भी क्या पड़ता है कि जाति-वर्ण किसकी देन है ? अब तो यही कोशिश हानी चाहिए कि यह पाशविक व्यवस्था खत्म कैसे हो ? और किसकी नीयत इसे खत्म करने की है और किसकी इसे बनाए रखने की, इस पर सावधानी ज़रुर बरती जानी चाहिए। क्यों कि इसे बनाए रखने के महान प्रयासों के जतन-स्वरुप बहुत अजीबो-ग़रीब हरकतें होती देखीं गयीं हैं। कल को यह भी कहा जा सकता है कि वर्ण-व्यवस्था अंबेडकर, कांशीराम और मायावती की देन है। स्त्री-पुरुष संबंधों में कलको और खुलापन आया और उसके पक्ष में खड़ा दिखना फ़ायदेमंद दिखा तो कलको यह भी घोषित करवाया जा सकता है कि ओशो रजनीश इस धरती पर पहले चिंतक थे जिन्होने सैक्स का विरोध किया। दूसरी रणनीति यह भी हो सकती है कि ओशो तो हमारे ही तैंतीस करोड़ पैंतीसवें अवतार थे। कुछ ग़लत कह गया होऊं तो क्षमा करें। कहे बिना रहा नहीं गया।sanjaygroverhttp://www.blogger.com/profile/14146082223750059136noreply@blogger.com